फूल, ख़ुशबू, चाँद, जुगनू और सितारे आ गए
फूल, ख़ुशबू, चाँद, जुगनू और सितारे आ गए
खुद-ब-खुद ग़ज़लों में अफ़साने तुम्हारे आ गए
रूह को आदाब दिल के, थे सिखाने पर तुले
पर उसे तो ज़िस्म वाले सब इशारे आ गए
आंसुओं से सींची है, शायद ज़मीं ने फ़स्ल ये
क्या तअज्जुब पेड़ पर ये फल जो खारे आ गए
हमको भी अपनी मुहब्बत पर हुआ तब ही यकीं
हाथ में पत्थर लिए जब लोग सारे आ गए
उम्र भर फल-फूल ले, जो छाँव में पलते रहे
पेड़ बूढ़ा हो गया, वो लेके आरे आ गए
मैंने मन की बात ’श्रद्धा’ ज्यों की त्यों रखी मगर
लफ्ज़ में जाने कहां से ये शरारे आ गए
50 comments:
bahut khoob .har sher ek se bad kar ek hai.
Aabhar
फूल, ख़ुशबू, चाँद, जुगनू और सितारे आ गए
खुद-ब-खुद गजलों में अफ़साने तुम्हारे आ गए
वाह...कितना खूबसूरत मतला है...
उम्र भर फल-फूल ले, जो छाँव में पलते रहे
पेड़ बूढ़ा हो गया, वो लेके आरे आ गए..
श्रद्धा जी....दो महीने के इंतज़ार के बाद...
इतनी उम्दा ग़ज़ल तो मिलनी ही चाहिये थी.
नयी-नयी सी लगी ये कल्पना-
रूह को आदाब दिल के, थे सिखाने पर तुले
पर उसे तो ज़िस्म वाले सब इशारे आ गए
इसलिए सच ही कहा आपने कि-
मैंने मन की बात ’श्रद्धा’ ज्यों की त्यों रखी मगर
लफ्ज़ में जाने कहां से ये अंगारे आ गए
....अदभुत ... एक से बढकर एक शेर ...बेहद प्रसंशनीय गजल!!!
pyaar me doobee ghazal ko dekh kar aisaa laga
door ho kar bhi mere apne sahaare aa gaye.
ho agar ''shrddhaa'' to dil se sher aise hee bane
isliye toh dekhiye hum bin pukare aa gaye...
badhai, shraddhaa, achchhi ...dil ko chhoo lene valee ghazal ke liye.
हमको तब अपनी मुहब्बत पर हुआ जाकर यकीं
हाथ में पत्थर लिए जब लोग सारे आ गए
in panktiyon ne dil jeet liya...
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
हमको तब अपनी मुहब्बत पर हुआ जाकर यकीं
हाथ में पत्थर लिए जब लोग सारे आ गए
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है ...एक एक शेर ..सवा सेर है...
श्रद्धा जी
बहुत बेहतरीन गजल पढवाने के लिए शुक्रिया
ये शेर खास पसंद आये
आंसुओं से सींची है, शायद ज़मीं ने ये फसल
क्या ताज्जुब पेड़ पर ये फल जो खारे आ गए
मैंने मन की बात ’श्रद्धा’ ज्यों की त्यों रखी मगर
लफ्ज़ में जाने कहां से ये अंगारे आ गए
आपको इक जरूरी ई मेल भेज रहा हूँ कृपया पढ़िए
वीनस
हमको तब अपनी मुहब्बत पर हुआ जाकर यकीं
हाथ में पत्थर लिए जब लोग सारे आ गए
उम्र भर फल-फूल ले, जो छाँव में पलते रहे
पेड़ बूढ़ा हो गया, वो लेके आरे आ गए
बहुत शानदार गजल
बधाई
बहुत खूब! वाह वाह
यूँ तो पूरी ग़ज़ल ही बेहतरीन है पर ये शेर कुछ अलग अंदाज़ लिए हुए मिला।
रूह को आदाब दिल के, थे सिखाने पर तुले
पर उसे तो ज़िस्म वाले सब इशारे आ गए
"हमको तब अपनी मुहब्बत पर हुआ जाकर यकीं
हाथ में पत्थर लिए जब लोग सारे आ गए"
kyaa baat hai, lekin logo ko to tab bhi yakin nahi hota................
हमको तब अपनी मुहब्बत पर हुआ जाकर यकीं
हाथ में पत्थर लिए जब लोग सारे आ गए
मोहब्बत का ये अन्ज़ाम होना भी सुखद है.. नही तो शादी हो जाती है फ़िर एक दूसरे को पत्थर मारते है :) बहुत बढिया शेर..
और ये वाला मेरा फ़ेव -
"मैंने मन की बात ’श्रद्धा’ ज्यों की त्यों रखी मगर,लफ्ज़ में जाने कहां से ये अंगारे आ गए"
वाह! बहुत दिनों बाद पढ़ा..आनन्द आया. कहाँ हैं आजकल!
हमेशा की तरह एक बेहतरीन ग़ज़ल ! श्रद्धा जी, आपकी हर ग़ज़ल बेहद उम्दा होती है ! पता नहीं आप इतना अच्छा कैसे लिख लेती है ! ये शेर तो कमाल का है ....
आंसुओं से सींची है, शायद ज़मीं ने ये फसल
क्या ताज्जुब पेड़ पर ये फल जो खारे आ गए
हमको तब अपनी मुहब्बत पर हुआ जाकर यकीं
हाथ में पत्थर लिए जब लोग सारे आ गए
उम्र भर फल-फूल ले, जो छाँव में पलते रहे
पेड़ बूढ़ा हो गया, वो लेके आरे आ गए
इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
kal yanhaa maine comment dala tha ...........
aapka lekhan aur shavd chayan prabhavit kar gaya......
रूह को आदाब दिल के, थे सिखाने पर तुले
पर उसे तो ज़िस्म वाले सब इशारे आ गए
kya baat hai.....
अच्छी लगी आपकी रचना।
shradda ji
deri se aur bahut dino baad aane ke liye maafi chahunga ..
aapki gazal padhi , shaare hi sher man ko choo gaye .. leki ek sher ne mujhe bahut der tak rok liya ...
उम्र भर फल-फूल ले, जो छाँव में पलते रहे
पेड़ बूढ़ा हो गया, वो लेके आरे आ गए
....is sher ke liye mai aapki lekhni ko salaam karta hoon ..badhayi sweekar kare..
aabhar
vijay
- pls read my new poem at my blog -www.poemsofvijay.blogspot.com
ek se badhkar ek sher samajh hi nahi aaya ki kisko sabse sundar kahoon jab jisko padho vo hi sabse sundar .
bandhaii swikaren
फूल, ख़ुशबू, चाँद, जुगनू और सितारे आ गए
खुद-ब-खुद गजलों में अफ़साने तुम्हारे आ गए
रूह को आदाब दिल के, थे सिखाने पर तुले
पर उसे तो ज़िस्म वाले सब इशारे आ गए
आंसुओं से सींची है, शायद ज़मीं ने ये फसल
क्या ताज्जुब पेड़ पर ये फल जो खारे आ गए
हमको तब अपनी मुहब्बत पर हुआ जाकर यकीं
हाथ में पत्थर लिए जब लोग सारे आ गए
उम्र भर फल-फूल ले, जो छाँव में पलते रहे
पेड़ बूढ़ा हो गया, वो लेके आरे आ गए
मैंने मन की बात ’श्रद्धा’ ज्यों की त्यों रखी मगर
लफ्ज़ में जाने कहां से ये अंगारे आ गए
.
aap sher k duniya ke sartaj jald hi banoge.........:)bahut khub!!
Shraddha Ji .. Ek behad umda ghazal kehne par Bahut Bahut Badhai .. Shubhkamnayein.
रूह को आदाब दिल के, थे सिखाने पर तुले
पर उसे तो ज़िस्म वाले सब इशारे आ गए
oola misre kii bunaavat par ek nazar dobaara dijiyega, waise sher behtareen hai.
आंसुओं से सींची है, शायद ज़मीं ने ये फसल
क्या ताज्जुब पेड़ पर ये फल जो खारे आ गए
wah .. wah .. kya sher hai .. wah
हमको तब अपनी मुहब्बत पर हुआ जाकर यकीं
हाथ में पत्थर लिए जब लोग सारे आ गए
kya sher kaha hai .. Bahut khoob
Khumaar Sahab ka ek sher yaad aa gaya ..
"Elahi mere dost houn khairiyat se,
ye kyon ghar mein patthar nahin aa rahe hain
"
उम्र भर फल-फूल ले, जो छाँव में पलते रहे
पेड़ बूढ़ा हो गया, वो लेके आरे आ गए
achcha hai ..
मैंने मन की बात ’श्रद्धा’ ज्यों की त्यों रखी मगर
लफ्ज़ में जाने कहां से ये अंगारे आ गए
Kripaya saani misre par ek baar dobaara nazar daliyega.
Ek Khoobsurat ghazal :)
उम्र भर फल-फूल ले, जो छाँव में पलते रहे
पेड़ बूढ़ा हो गया, वो लेके आरे आ गए
हश्र हर पेड का यही होता है
खुशी देकर औरो को खुद रोता है
आंसुओं से सींची है, शायद ज़मीं ने ये फसल
क्या ताज्जुब पेड़ पर ये फल जो खारे आ गए
हमको तब अपनी मुहब्बत पर हुआ जाकर यकीं
हाथ में पत्थर लिए जब लोग सारे आ गए..
VAAH...
वाह। वैशक दिनों के बाद आती है पर गजल बेहतरीन लाती है।
हमको तब अपनी मुहब्बत पर हुआ जाकर यकीं
हाथ में पत्थर लिए जब लोग सारे आ गए
Vaah .. kya andaaz hai kahne ka ... vo muhabbat hi kya jo badnaam na ho .. lajawaab ...
उम्र भर फल-फूल ले, जो छाँव में पलते रहे
पेड़ बूढ़ा हो गया, वो लेके आरे आ गए
ye hakeekat bayaan ki hai aapne sansaar ki .. aaj ki reet yahi hai .. ghar ghar ki yahi kahaani hoti ja rahi hai ...
aapki gazlon mein yathaarth ki khushboo lipti huyi hai .. jo ise aur bhi nikhaar deti hai ...
आंसुओं से सींची है, शायद ज़मीं ने ये फसल
क्या ताज्जुब पेड़ पर ये फल जो खारे आ गए...
Really very nice.
आहा ,क्या खूबसूरत ग़ज़ल लिखी है
फूल, ख़ुशबू, चाँद, जुगनू और सितारे आ गए ....
खुशबुएँ आने लगती हैं तो हमेशा की तरह हाथों में पत्थर भी आ जाते हैं ..और जैसे कोई नींद से जगा हो ...
हम आपके लिंक को जज्बात के साइड-बार से चुराए लिए जा रहे हैं |
फूल, ख़ुशबू, चाँद, जुगनू और सितारे आ गए
खुद-ब-खुद गजलों में अफ़साने तुम्हारे आ
वाह...क्या मतला है...
हर शेर लाजवाब .... बहुत खूब !!
मज़ा आ गया ....पढ़कर....
bahoot khoob
इतनी जानदार-शानदार गजल देखकर हीं भावना का शिकार तो होना ही था. किस-किस शेर की तारीफ करूं और किसे छोड़ दूं, यह जब समझ में नहीं घुसा तो कमेन्ट बॉक्स का रुख किया. आधा घन्टा तो यह सोचने में लग गया कि कहना क्या है. अंत में यही तय किया कि सच बोलो. किसी ने कहा है----
"हम मोत्किदे मेरे नहीं हैं, कहता मुआफ
ऐसी भी क्या गजल जो कलेजा निकल दे".
मैं भी यही कह रहा हूँ कि जिस गजल से हम जैसे जल भुन कर खाक हो जाएँ, फिर उसकी तारीफ किस मुंह से करें. अब आप उस्तादों की सफ में बैठ चुकी हैं, बधाई.
मैं अपनी कुछ रचनाएँ संशोधन के लिए भेजूं क्या?
श्रद्धा जी,
उम्दा ग़ज़ल!
रूह को आदाब दिल के, थे सिखाने पर तुले
पर उसे तो ज़िस्म वाले सब इशारे आ गए
हमको भी अपनी मुहब्बत पर हुआ तब ही यकीं
हाथ में पत्थर लिए जब लोग सारे आ गए
उम्र भर फल-फूल ले, जो छाँव में पलते रहे
पेड़ बूढ़ा हो गया, वो लेके आरे आ गए
ये अश’आर खास तौर पर पसन्द आये। गज़लों पर आपकी रवानी दिनोदिन बढ़ती जा रही है।
सादर
............वे ले के आरे आ गये - बेजोड़ ।
उम्र भर फल-फूल ले, जो छाँव में पलते रहे
पेड़ बूढ़ा हो गया, वो लेके आरे आ गए..
Achook!
आंसुओं से सींची है, शायद ज़मीं ने फ़स्ल ये
क्या ताज्जुब पेड़ पर ये फल जो खारे आ गए
हमको भी अपनी मुहब्बत पर हुआ तब ही यकीं
हाथ में पत्थर लिए जब लोग सारे आ गए
उम्र भर फल-फूल ले, जो छाँव में पलते रहे
पेड़ बूढ़ा हो गया, वो लेके आरे आ गए
उफ़ लाजबाब :) ग़ज़ल दर ग़ज़ल आपके सोच की गहराई बढती ही जाती है, इसे यू ही बनाये रखें |
उम्र भर फल-फूल ले, जो छाँव में पलते रहे
पेड़ बूढ़ा हो गया, वो लेके आरे आ गए
श्रद्धा जी ,
बहुत उम्दा शेर है,मानी के ऐतबार से ख़ास तौर पर,
फूल, ख़ुशबू, चाँद, जुगनू और सितारे आ गए
खुद-ब-खुद ग़ज़लों में अफ़साने तुम्हारे आ गए
इस शेर में ’ख़ुद ब ख़ुद’का इस्तेमाल शेर में जान डाल देता है,
बहुत ख़ूब!
दूसरे तरीके से मैं ग़ज़ल को तब कामयाब मानता हूँ , जब आपकी ग़ज़लों के बारे में कोई दूसरा बात करे किसी तीसरे से ( आपस में चर्चा ) ! या तो फिर आप अपने ग़ज़ल में कुछ ऐसे अश'आर तो कहें के जिसे लोग पसंद करें , और यहाँ ये दोनों बातें हुई .! बहुत देर तक मैं श्रधेय सरवत जी से आपकी ग़ज़ल के बारे में चर्चा करता रहा ... और दूसरी बात ये के शे'र कामयाब निकले हैं..
पुख्तगी है मिसरों में ... और इसी बहाने उनसे कुछ सिख भी लिया ...
मेरे गुरु देव कहते हैं कहन का बहुत बड़ा हाथ होता है ग़ज़ल की कामयाबी में ...
यहाँ वो बात परिलक्षित हो रही है ....
और सरवत जी ने अपनी टिपण्णी में जो आखिरी लाइन लिखा है उससे रश्क हो रहा है मुझे सखी
खुबसूरत अहसासात वाला मिसरा जमानत है इस ग़ज़ल के लिए...
आपका
अर्श
हमको भी अपनी मुहब्बत पर हुआ तब ही यकीं
हाथ में पत्थर लिए जब लोग सारे आ गए
जी....
ऐसा शानदार शेर...आपकी क़लम के नसीब में ही हो सकता है
और...वो "आरे" का इस्तेमाल.....तौबा
कभी कहीं देखा ना सुना
सोचता हूँ....कह दूं ...
बता ये हुनर तूने.....सीखा कहाँ से....
मुबारकबाद .
श्रद्धा जी,
आपकी सभी ग़ज़लें और सभी शेर इतने अच्छे हैं की किसी एक शेर या ग़ज़ल की तारीफ बाकि ग़ज़लों के साथ ज्यादती होगी.
बहुत सुंदर. एक से बढ़ कर एक!
-राजीव भरोल
श्रद्धा जी,
एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बधाई, मिसरे से लेके मखते तक हर शेर लाजवाब है.
मतला शुरुआत से ही समां बाँध दे रहा है, इस शेर के क्या कहने......
उम्र भर फल-फूल ले, जो छाँव में पलते रहे
पेड़ बूढ़ा हो गया, वो लेके आरे आ गए
आंसुओं से सींची है, शायद ज़मीं ने फ़स्ल ये
क्या तअज्जुब पेड़ पर ये फल जो खारे आ गए
बहुत ही उम्दा अशआर है , मन को छुने वाली पंक्तिया | आप को साधुवाद
आंसुओं से सींची है, शायद ज़मीं ने फ़स्ल ये
क्या तअज्जुब पेड़ पर ये फल जो खारे आ गए
बहुत ही उम्दा अशआर है , मन को छुने वाली पंक्तिया | आप को साधुवाद
आंसुओं से सींची है, शायद ज़मीं ने ये फसल
क्या ताज्जुब पेड़ पर ये फल जो खारे आ गए
लाज़वाब शेर । वैसे तो आपके हर शेर मे गहराई है, और हर शेर उम्दा । बधाई स्वीकारे ।
खुद -ब खुद उनका अफसानों मे आ जाना !!!!! कितना अज़ीज़ और कितना लज़ीज़ है ???
हमको भी अपनी मुहब्बत पर हुआ तब ही यकीं
हाथ में पत्थर लिए जब लोग सारे आ गए
बहुत खूब ......!!
ये मज़ेदार कही आपने .....मुहब्बत हो तो ऐसी .....!!
श्रद्धा मैम.....
अच्छे मतले पर लिखी गयी ग़ज़ल.......शेर भी खूब बन पड़े हैं......!
रूह को आदाब दिल के, थे सिखाने पर तुले
पर उसे तो ज़िस्म वाले सब इशारे आ गए
वाह वाह.......!
आंसुओं से सींची है, शायद ज़मीं ने फ़स्ल ये
क्या तअज्जुब पेड़ पर ये फल जो खारे आ गए
क्या विम्ब खींचा है आपने......!
उम्र भर फल-फूल ले, जो छाँव में पलते रहे
पेड़ बूढ़ा हो गया, वो लेके आरे आ गए
बहुत अच्छे......!
कुछ इसी ख्याल को मैंने भी अपनी लास्ट ग़ज़ल में परोसा था शायद शेर पसंद आया हो.....(काट डाला उसी पेड़ को एक दिन, उम्र भर जिसके साए में सोते रहे.......!)
निहायत खूबसूरत ग़ज़ल !
bahut khubsurat
रूह को आदाब दिल के, थे सिखाने पर तुले
पर उसे तो ज़िस्म वाले सब इशारे आ गए
उम्र भर फल-फूल ले, जो छाँव में पलते रहे
पेड़ बूढ़ा हो गया, वो लेके आरे आ गए
बेहतरीन शेर
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