क़दम-क़दम पे मिलेंगे, मेरी वफ़ा के चराग़
पलट के देखेगा माज़ी, तू जब उठा के चराग़
क़दम-क़दम पे मिलेंगे, मेरी वफ़ा के चराग़
नहीं है रोशनी उनके घरों में, जो दिन भर
सड़क पे बेच रहे थे, बना-बना के चराग़
कठिन घड़ी हो, कोई इम्तिहान देना हो
जला के रखती है राहों में, माँ दुआ के चराग़
ये लम्स तेरा, बदन रोशनी से भर देगा
किताब-ए-ज़िस्म को पढ़ना, ज़रा बुझा के चराग़
करो जो इनसे मुहब्बत, तो हो जहाँ रोशन
यतीम बच्चे नहीं, ये तो हैं खुदा के चराग़
उजाला बांटना आसान तो नहीं 'श्रद्धा'
चली हैं आंधियां जब भी रखे जला के चराग़
लम्स- स्पर्श
88 comments:
बहुत सटीक गजल हे
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
"ये लम्स तेरा, बदन रोशनी से भर देगा
किताब-ए-ज़िस्म को पढ़ना, ज़रा बुझा के चराग़"
...
"उजाला बांटना आसान तो नहीं 'श्रद्धा'
चली हैं आंधियां जब भी रखे जला के चराग़"
"जहां न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि" कहावत को चरितार्थ करती हुई शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई
अब मुझे उस वक्त को याद करके खौफ महसूस होता है जब मैं ने आपसे कहा था कि थोडा सुधार पैदा कीजिए. मुझे अब लगता है कि आप पहले से ही गजल में माहिर थीं, सिर्फ लोगों का इम्तिहान ले रही थीं. शायद आप भी एक कारक हैं जो प्रार्थी गजलों से पीछा छुड़ा कर भाग रहा है.
आप का फन, हुनर और बर्ताव काबिले-तारीफ है.
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
कठिन घड़ी हो, कोई इम्तिहान देना हो
जला के रखती है राहों में, माँ दुआ के चराग़
बेहतरीन सटीक गजल प्रस्तुति...
नहीं है रोशनी उनके घरों में, जो दिन भर
सड़क पे बेच रहे थे, बना-बना के चराग़
bahut khoob
कठिन घड़ी हो, कोई इम्तिहान देना हो
जला के रखती है राहों में, माँ दुआ के चराग़
ये लम्स तेरा, बदन रोशनी से भर देगा
किताब-ए-ज़िस्म को पढ़ना, ज़रा बुझा के चराग़
श्रद्धा जी...कहाँ तो ग़ज़ल में एक ढंग का शेर कहने में नानी याद आ जाती है और कहाँ आपने हर शेर कमाल का कहा है इस ग़ज़ल में...आपका फन दिनों दिन निखरता जा रहा है...मुझे यकीन है शायरी की दुनिया में आप अपना नाम बुलंद करेंगी...
नीरज
Behatareen Gazal Shradha ji!
बढ़िया गजल हे.....शुभकामनायें!!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
नहीं है रोशनी उनके घरों में, जो दिन भर
सड़क पे बेच रहे थे, बना-बना के चराग़..
behad khoobsoorat.
क्या कहूँ शब्द जैसे लूटा चुका हूँ हर शे'र पर .... सखी .. :)
सुना है पूरी ग़ज़ल कभी मुकम्मल नहीं बनती मगर ये कहावत झूट कर दिया आपने ... लोग कहते हैं के ग़ज़ल में दो तीन शे'र सही बन जाये तो ग़ज़ल मुकम्मल समझी =जाती है मगर यहाँ तो सारे ही शे'र कमाल के हैं ...
मतला अलग ही कहर बरपा रहा है , और दुसरे शे'र को जिस तरह से आपने कहा है व उसके लिए तो क्या कहूँ समझ ही नहीं आरहा है ... हासिल ग़ज़ल शे'र है यह ... और कोट किया जा सकता हिया ...
और ये लम्स / इस शे'र पे कुछ भी कहना नाज़ुकी से पंगा लेना है मैं नहीं कर सकता ... हाय रे वाली बात है इस शे'र में तो ...
रश्क हो रहा है सखी आपकी ग़ज़लों से इस बारी तो ... :)
...
ब्लॉग चेंज अच्छा लग रहा है
अर्श
bahut sunder prastuti hai aap chhote chhote dardon ko utaa deti hain .. iss sunde achana ke liye bahut badhayi
kamaal ki baat hai ji..
कठिन घड़ी हो, कोई इम्तिहान देना हो
जला के रखती है राहों में, माँ दुआ के चराग़
sundar ati sunder
श्रद्धा जी, आदाब
नहीं है रोशनी उनके घरों में, जो दिन भर
सड़क पे बेच रहे थे, बना-बना के चराग़
...समाज की हक़ीक़त को बयान करता शेर.
कठिन घड़ी हो, कोई इम्तिहान देना हो
जला के रखती है राहों में, माँ दुआ के चराग़
कितना खूबसूरत, और पाकीज़ा शेर कहा है.
बस ऐसा ही लिखती रहें, मुबारकबाद
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!
सुन्दर रचना!
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!
कठिन घड़ी हो, कोई इम्तिहान देना हो
जला के रखती है राहों में, माँ दुआ के चराग़
-वाह! बहुत उम्दा शेर निकाले हैं आपने. आनन्द आ गया. बधाई.
नहीं है रोशनी उनके घरों में, जो दिन भर
सड़क पे बेच रहे थे, बना-बना के चराग़
कठिन घड़ी हो, कोई इम्तिहान देना हो
जला के रखती है राहों में, माँ दुआ के चराग़
करो जो इनसे मुहब्बत, तो हो जहाँ रोशन
यतीम बच्चे नहीं, ये तो हैं खुदा के चराग़
bahut khoob shraddha ji ,samaj ki aur mamta ki bahut achchhi tasveer pesh ki hai .
ये लम्स तेरा, बदन रोशनी से भर देगा
किताब-ए-ज़िस्म को पढ़ना, ज़रा बुझा के चराग़
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन
उजाला बांटना आसान तो नहीं 'श्रद्धा'
चली हैं आंधियां जब भी रखे जला के चराग़
बहुत सुन्दर
महाशिवरात्री की मंगलकानाऐं
नहीं है रोशनी उनके घरों में, जो दिन भर
सड़क पे बेच रहे थे, बना-बना के चराग़
बहुत ही दूर तक जाने वाला है ये शेर .... हक़ीकत बयान कर रहा है ... आपकी ग़ज़लों की ताज़गी बहुत लुत्फ़ देती है ....
.... आपको महा-शिवरात्रि की बहुत बहुत बधाई .....
इसे कहते हैं---वेलेन्टाइन गिफ़्ट.
Bahut acchee lagee aapkee gazal.......
bahut bahut bahut .......achchhi gajal
sadaa roshan rahe teri vafaa ke charaag
ये लम्स तेरा, बदन रोशनी से भर देगा
किताब-ए-ज़िस्म को पढ़ना, ज़रा बुझा के चराग़"
isii tarah likhatii rahe
har baar
har baat
jisme mile ho aapke
bas aapke apane likhane ka
maulik andaaj ...
vah ..aapne mera dil jiit liyaa
शायरी की दुनिया में आप अपना नाम बुलंद करेंगी...
हर she"r में गहराई, बहुत ही बेहतरीन
नहीं है रोशनी उनके घरों में, जो दिन भर
सड़क पे बेच रहे थे, बना-बना के चराग़..
kishor
बेहद उम्दा ग़ज़ल है श्रद्धा जी। आपकी ग़जलों में दिनो-दिन उस्तादना फ़न जाहिर हो रहा है।
बधाई! ईकविता को भी आपकी ग़ज़लों का इन्तेजार है।
सादर
पलट के देखेगा माज़ी, तू जब उठा के चराग़
क़दम-क़दम पे मिलेंगे, मेरी वफ़ा के चराग़
नहीं है रोशनी उनके घरों में, जो दिन भर
सड़क पे बेच रहे थे, बना-बना के चराग़
बस ये दो शेर तो इस लिए लिखा यहाँ कि पूरी ग़ज़ल कैसे लिखूं ..... हर शेर लाजवाब है .... किस किस की तारीफ़ हो ?
उजाला बांटना आसान तो नहीं 'श्रद्धा'
चली हैं आंधियां जब भी रखे जला के चराग़
wah wah wah sabhi ek se badh kar ek, lajawaab.
बहुत सुन्दर रचना
बधाई स्वीकारें
पलट के देखेगा माज़ी, तू जब उठा के चराग़
क़दम-क़दम पे मिलेंगे, मेरी वफ़ा के चराग़...
ये लम्स तेरा, बदन रोशनी से भर देगा
किताब-ए-ज़िस्म को पढ़ना, ज़रा बुझा के चराग़...
उजाला बांटना आसान तो नहीं 'श्रद्धा'
चली हैं आंधियां जब भी रखे जला के चराग़...
क्या खूब लिखा है...लम्स का अर्थ बतायेंगी...कृपा होंगी...
बहुत सुंदर गजल
धन्यवाद
ये लम्स तेरा, बदन रोशनी से भर देगा
किताब-ए-ज़िस्म को पढ़ना, ज़रा बुझा के चराग़
jiyo...kya baat hai..jiyo...
bahoot achhi gajal hai
बहुत उम्दा ख़याल समेटे हुए खूबसूरत ग़ज़ल ......! मुबारक हो
बहुत बढ़िया बात कही है -
"करो जो इनसे मुहब्बत, तो हो जहाँ रोशन!
यतीम बच्चे नहीं, ये तो हैं ख़ुदा के चराग़!!
--
कह रहीं बालियाँ गेहूँ की - "वसंत फिर आता है - मेरे लिए,
नवसुर में कोयल गाता है - मीठा-मीठा-मीठा!"
--
संपादक : सरस पायस
मैं जब जब आपको पढ़ती हूँ, सब से बड़ी समस्या ये होती है कि बेहतरीन किस शेर को कहूँ....! सब एक से बढ़ कर एक होते हैं...!
नहीं है रोशनी उनके घरों में, जो दिन भर
सड़क पे बेच रहे थे, बना-बना के चराग़
कठिन घड़ी हो, कोई इम्तिहान देना हो
जला के रखती है राहों में, माँ दुआ के चराग़
ये लम्स तेरा, बदन रोशनी से भर देगा
किताब-ए-ज़िस्म को पढ़ना, ज़रा बुझा के चराग़
करो जो इनसे मुहब्बत, तो हो जहाँ रोशन
यतीम बच्चे नहीं, ये तो हैं खुदा के चराग़
kya kahna hai!! besaakhtaa waah!! waah !! nikalta hai!!
''नहीं है रोशनी उनके घरों में, जो दिन भर
सड़क पे बेच रहे थे, बना-बना के चराग़''
waah kitni sundar line likhi aapne ....hardik badhai.
ये लम्स तेरा, बदन रोशनी से भर देगा
किताब-ए-ज़िस्म को पढ़ना, ज़रा बुझा के चराग़
बहुत खूबसूरत गज़ल
दिल की रोशनी से दिल की किताब पढ़्ना है
सहारा मत देना अभी बहुत ऊँचाई चढ़ना है
हुम्म...मैंने जब कहा था कि अब इन ग़ज़लों को एक संकलन की शक्ल दे दीजिये तो आपको लगा कि मैंने यूं ही कह डाला था।
प्लीज कुछ कीजिये इस बारे में।
"ये लम्स तेरा, बदन रोशनी से भर देगा
किताब-ए-ज़िस्म को पढ़ना, ज़रा बुझा के चराग़"
अभी तक के पढ़े-सुने गये तमाम बेहतरीन अशआरों में से एक है मेरी फ़ेहरिश्त में।
phir main vahin gayaa tha aaj
phir mujhe majaa aa gayaa aaj....!!
ACHCHHEE GAZAL ISE KAHTE HAIN.
BAHUT-BAHUT BADHAAEE.
करो जो इनसे मुहब्बत, तो हो जहाँ रोशन
यतीम बच्चे नहीं, ये तो हैं खुदा के चराग़
..वाह!
ये लम्स तेरा, बदन रोशनी से भर देगा
किताब-ए-ज़िस्म को पढ़ना, ज़रा बुझा के चराग
उजाला बांटना आसान तो नहीं 'श्रद्धा'
चली हैं आंधियां जब भी रखे जला के चराग़
श्रृद्धा जी ! नाज़ुक खयाली के ऐसे बेहतरीन शे'र कभी कभी ही पढ़ने को मिलते हैं ,सचमुच आप सिद्धहस्त हैं इसमें ! इस शे'र की जितनी भी तारीफ की जाय कम है !आपको पढना बहुत पुरसुकून लगता है !
श्रद्धा जी
बहुत शानदार ग़ज़ल खासकर यह शेर बहुत अच्छे लगे
नहीं है रोशनी उनके घरों में, जो दिन भर
सड़क पे बेच रहे थे, बना-बना के चराग़
ये लम्स तेरा, बदन रोशनी से भर देगा
किताब-ए-ज़िस्म को पढ़ना, ज़रा बुझा के चराग़
पुन: वाह वाह....
मुरस्सा ग़ज़ल का क़ीमती नमूना ....
हर शेर अपने आप में मुकम्मिल नज़र आ रहा है
आपकी अपनी इनफरादियत
आपकी अलग पहचान बनाने में कामयाब है
अलग-अलग मौज़ूआत को खुद में समेटे हुए
सारे अश`आर अपनी मिसाल आप बन पड़े हैं
मुबारकबाद ...
सभी के दिल को छुआ, रौशनी से भर डाला
निज़ाम-ए-फ़न को भी रौशन किया, जला के चराग
वाह बहुत ही ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
कठिन घड़ी हो, कोई इम्तिहान देना हो
जला के रखती है राहों में, माँ दुआ के चराग़
....उम्दा ...लाजबाब ... सभी शेर एक से बढकर एक, बेहद प्रसंशनीय गजल,बधाई !!
वाह !श्रद्धा जी...
पूरी गजल जबरदस्त है..कम से कम चार शेर तो ऐसे है जो दिल में उतर गए है...
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पलट के देखेगा माज़ी, तू जब उठा के चराग़
क़दम-क़दम पे मिलेंगे, मेरी वफ़ा के चराग़
मतला बहुत सुन्दर है..
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ये लम्स तेरा, बदन रोशनी से भर देगा
किताब-ए-ज़िस्म को पढ़ना, ज़रा बुझा के चराग़
कितना नाजुक है यह शेर बिलकुल गजल की आत्मा सा..
3
करो जो इनसे मुहब्बत, तो हो जहाँ रोशन
यतीम बच्चे नहीं, ये तो हैं खुदा के चराग़
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उजाला बांटना आसान तो नहीं 'श्रद्धा'
चली हैं आंधियां जब भी रखे जला के चराग़
उफ्फ्फ !गजब ...!!
आप बहुत श्रेष्ठ लिखती है...हम आपकी गजलों के मुरीद है...!!!
ये लम्स तेरा, बदन रोशनी से भर देगा
किताब-ए-ज़िस्म को पढ़ना, ज़रा बुझा के चराग़
उफ़्फ़..क्या कह डाला आपने...सारे ही शेर just awesome..
बेहद खूबसूरत भावाभिव्यक्ति...शब्दों की अद्भुत संगति..भावपूर्ण रचना..बधाई.
______________
शब्द सृजन की ओर पर पढ़ें- "लौट रही है ईस्ट इण्डिया कंपनी".
ये लम्स तेरा, बदन रोशनी से भर देगा
किताब-ए-ज़िस्म को पढ़ना, ज़रा बुझा के चराग़"
...
"उजाला बांटना आसान तो नहीं 'श्रद्धा'
चली हैं आंधियां जब भी रखे जला के चराग़"
har baar ki tarah ....lajwaab.....!!
very nice shardha ji........
hr word meaningful hota hai apki kavita ka....
Bahut sundar rachana!Alfazon kee mohtaji hai!
Holi ki shubhkamnayen!
itane pyare-pyare sher ...? tum par shrddhaa ho rahi hai. desh ke baahar rah kar bhi desh se jude rahane kee lalak dekh kar khushi hui. sahity se jude rahana matalab desh se hu jude rahanaa hai.
आपको और आपके परिवार को होली पर्व की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
होली पर आपको सपरिवार शुभकामनायें !
ये लम्स तेरा, बदन रोशनी से भर देगा
किताब-ए-ज़िस्म को पढ़ना, ज़रा बुझा के चराग़
ये शे'र कुछ और नहीं पढने देगा...
कमाल का है..
श्रद्धा जी, आदाब
होली की हार्दिक शुभकामनाएं
ये रंग विश्वास के हमेशा बरसते जाएं मेरे वतन में
रिफ़ाक़तों की यें गंगा-जमना न सूख पाएं मेरे वतन में.
ये लम्स तेरा, बदन रोशनी से भर देगा
किताब-ए-ज़िस्म को पढ़ना, ज़रा बुझा के चराग़
vah vah vah vah
होली पर आप के लिए रंग अबीर लिए आया हूँ
रंग लेकर के आई है तुम्हारे द्वार पर टोली
उमंगें ले हवाओं में खड़ी है सामने होली
निकलो बाहं फैलाये अंक में प्रीत को भर लो
हारने दिल खड़े है हम जीत को आज तुम वर लो
मधुर उल्लास की थिरकन में आके शामिल हो जाओ
लिए शुभ कामना आयी है देखो द्वार पर होली
नहीं है रोशनी उनके घरों में, जो दिन भर
सड़क पे बेच रहे थे, बना-बना के चराग़
Zindagi ke haqiqat ko kitni achhi tarah bayan kiya hai apne ! Sach kehta hu...dil ko chun gaya !
कई बार मुझे लगता है कि आपके यहाँ आया हूँ या डॉक्टर बद्र साहब का मुशायरा है. अभिभूत कर देने वाले शेर है.
आपको और आपके परिवार को होली की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
aapki to har gazal umda hoti h....
shukria,
wah shradha ji aapki sab gazalein aur nazm qabile-tareef hain ,itne khubsurat ashaar,itne nazuk jazbaat...wah .tabiyat khush ho gayi.
ेअरे श्रद्धा जी मै ही कैसे पीछे रह गयी इतनी सुन्दर गज़ल पढने से। लाजवाब प्रस्तुती हमेशा की तरह।
नहीं है रोशनी उनके घरों में, जो दिन भर
सड़क पे बेच रहे थे, बना-बना के चराग़
वाह क्या सही बात कही
ये लम्स तेरा, बदन रोशनी से भर देगा
किताब-ए-ज़िस्म को पढ़ना, ज़रा बुझा के चराग़
श्रद्धा जी आपकी बहुआयामी प्रतिभा की कायल हूँ। बहुत सुन्दर लिखती हैं आप। शुभकामनायें
wah shraddha ji, behtreen sher nikale hain aapne. sadhuwaad...
keya khoob likha hai danyavaad
उजाला बांटना आसान तो नहीं 'श्रद्धा'
चली हैं आंधियां जब भी रखे जला के चराग़
Lajabab lekhan.
sabase sundar sher
कठिन घड़ी हो, कोई इम्तिहान देना हो
जला के रखती है राहों में, माँ दुआ के चराग़
नहीं है रोशनी उनके घरों में, जो दिन भर
सड़क पे बेच रहे थे, बना-बना के चराग़
kya gazab khazana hai yahan..phir ekbaar padhne chali aayi hun..
नहीं है रोशनी उनके घरों में, जो दिन भर
सड़क पे बेच रहे थे, बना-बना के चराग़
कठिन घड़ी हो, कोई इम्तिहान देना हो
जला के रखती है राहों में, माँ दुआ के चराग़
ये लम्स तेरा, बदन रोशनी से भर देगा
किताब-ए-ज़िस्म को पढ़ना, ज़रा बुझा के चराग़
उजाला बांटना आसान तो नहीं 'श्रद्धा'
चली हैं आंधियां जब भी रखे जला के चराग़
एक से बढ़कर एक ...
एक रोशनी में आया सा लगा.. ब्लाग में आकर चराग जलाने का शुक्रिया..
बहुत सुन्दर लिखा...बेहतरीन रचना !!
______________
"पाखी की दुनिया" में देखिये "आपका बचा खाना किसी बच्चे की जिंदगी है".
ये लम्स तेरा, बदन रोशनी से भर देगा
किताब-ए-ज़िस्म को पढ़ना, ज़रा बुझा के चराग़
बहुत बढ़िया ग़ज़ल....बहुत दिन बाद तुम्हे पढ़ा ! अच्छा लगा!
जलेगे जलने वाले पर
रौशन रहेंगे श्रद्धा के चराग़
पलट के देखेगा माज़ी, तू जब उठा के चराग़
क़दम-क़दम पे मिलेंगे, मेरी वफ़ा के चराग़
बढ़िया प्रस्तुति बहुत सटीक गजल हे
bahut khubsurat prastuti........:)
नहीं है रोशनी उनके घरों में, जो दिन भर
सड़क पे बेच रहे थे, बना-बना के चराग़
koi javab nahi laajavab sher
बेहतरीन ग़ज़लकारी मिली आपके यहाँ, श्याम सखा 'श्याम' जी के ब्लॉग से होता हुआ आया, फ़ॉलो कर लिया, आगे भी आता रहूँगा।
its nice to see u here...
sameer aggarwal...(tadap)...
http://www.tadap-tadap.blogspot.com/
achhi gazal ke liye mubaraq bad
एक लम्बे अंतराल पर आपके ब्लॉग का दर्शन किया और दुखी हो गया. कुछ मन्दिरों के बारे में पढ़ा था कि वहां हमेशा चराग जलते रहते हैं.
आपका ब्लाग भी शायद अब मन्दिर बन रहा है जहाँ चराग बुझने का नाम ही नहीं लेता.
एक मशवरा है, अभी कुछ दिनों तक इसे छूइए-छेडिएगा मत. कमेंट्स के शतक में थोड़ी सी कसर है. अवसर चूकिएगा मत. अभी नहीं तो कभी नहीं----
यह कहावत ध्यान में रखिए.
आशा है आप इस मुफ्त की सलाह का फायदा जरूर उठाएंगी.
कठिन घड़ी हो, कोई इम्तिहान देना हो
जला के रखती है राहों में, माँ दुआ के चराग़
वाह !! वाह !! ....
इस शेर पर सारा जहां कुर्बान
ये लम्स तेरा, बदन रोशनी से भर देगा
किताब-ए-ज़िस्म को पढ़ना, ज़रा बुझा के चराग़
वाह
श्रद्धाजी, आपके पुराने पोस्ट फिर से पढ रहा हूँ। आपका शब्द-चयन अद्भुत है। जैसे-किताब-ए-ज़िस्म,खुदा के चराग़।
ये लम्स तेरा, बदन रोशनी से भर देगा
किताब-ए-ज़िस्म को पढ़ना, ज़रा बुझा के चराग़
करो जो इनसे मुहब्बत, तो हो जहाँ रोशन
यतीम बच्चे नहीं, ये तो हैं खुदा के चराग़
उजाला बांटना आसान तो नहीं 'श्रद्धा'
चली हैं आंधियां जब भी रखे जला के चराग़
एक-एक लफ्ज दिल को छू जाता है। इसीलिये तो हम आपके दीवाने हैं।
श्रद्धा जी, आदाब नहीं है रोशनी उनके घरों में, जो दिन भर सड़क पे बेच रहे थे, बना-बना के चराग़ ...समाज की हक़ीक़त को बयान करता शेर. कठिन घड़ी हो, कोई इम्तिहान देना हो जला के रखती है राहों में, माँ दुआ के चराग़ कितना खूबसूरत, और पाकीज़ा शेर कहा है. बस ऐसा ही लिखती रहें, मुबारकबाद
आपकी ग़ज़ल हुए रोशन दिल के चराग
अंधेरों में जल उठे गोया कि यादों के चराग
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