अज़ीब शख़्स था, आँखों में ख़्वाब छोड़ गया
अज़ीब शख़्स था, आँखों में ख़्वाब छोड़ गया
वो मेरी मेज़ पे, अपनी किताब छोड़ गया
नज़र मिली तो अचानक झुका के वो नज़रें
मेरे सवाल के कितने जवाब छोड़ गया
उसे पता था, कि तन्हा न रह सकूँगी मैं
वो गुफ़्तगू के लिए, माहताब छोड़ गया
गुमान हो मुझे उसका, मिरे सरापे पर
ये क्या तिलिस्म है, कैसा सराब छोड़ गया
सहर के डूबते तारे की तरह बन 'श्रद्धा'
हरिक दरीचे पे जो आफताब छोड़ गया
अज़ाब – punishment / Pain
सराब- Illusion
आफताब- Sun
75 comments:
बहुत खूब . हर शेर लाजवाब. क्या बात है.
शानदार ग़ज़ल के लिए धन्यवाद्
------
कौन था वो शख्स ये खुदा जाने
आभार उसका दिल में ऐसे भाव छोड़ गया
क्या बात है जी, लाजवाब, बेहद उम्दा गजल लगी ।
मतला पढ़ते ही आनंद के जिस रस में डूबा हुआ हूँ उसका अंदाज़ा आप नहीं लगा सकती,,...
पूरी ग़ज़ल में डूबता उतरता रहा ... हर शे'र कमाल का
नज़र मिली तो अचानक झुका के वो नज़रें
मेरे सवाल के कितने जवाब छोड़ गया
इस शे'र के क्या कहने जीतनी तारीफ़ करूँ कम है...
गुमान हो मुझे उसका, मिरे सरापे पर
ये क्या तिलिस्म है, कैसा सराब छोड़ गया
इन दोनों शे'रों पर मेरे सारे लिखे कुर्बान ... कमाल की शायरी जी कमाल की ...
सुबह सुबह मजा आगया.....
अर्श
उसे पता था, कि तन्हा न रह सकूँगी मैं
वो गुफ़्तगू के लिए, माहताब छोड़ गया
bahut sundar...
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गुमान हो मुझे उसका, मिरे सरापे पर
ये क्या तिलिस्म है, कैसा सराब छोड़ गया
vaah bahut khoob
ग़ज़ल बहुत सुंदर लगी....
आभार...
bahut achche khaskar maqta to kamaal likha aapne..
सहर के डूबते तारे की तरह बन 'श्रद्धा'
हरिक दरीचे पे जो आफताब छोड़ गया
'नज़र मिली तो……'
बहुत ख़ूब!
बधाई।
शानदार ग़ज़ल
अज़ीब शख़्स था, आँखों में ख़्वाब छोड़ गया
वो मेरी मेज़ पे, अपनी किताब छोड़ गया ..
हर शेर पर सुभान अल्ला निकलता है ........ ग़ज़ब के शेर हैं सारे .......
बहुत उम्दा ग़ज़ल ....बधाई !
बहुत उम्दा ग़ज़ल ....बधाई !
बहुत उम्दा ग़ज़ल ....बधाई !
तारीफ़ में अब कहने को शब्द बाकि ही नहीं रहे हैं। तारीफ़ में कुछ भी लिखने के बारे में सोचता हूँ तो याद आता है कि यह तो मैं पहले भी कह चुका हूँ। इसलिये बस इतना ही कहूँगा कि मेरी अर्से पुरानी इल्तिजा पर जल्दी ही ध्यान दीजिये और अपनी किताब ज़रूर छपवाइये। सबसे खूबसूरत शेर आखिरी वाला लगा।
सहर के डूबते तारे की तरह बन 'श्रद्धा'
हरिक दरीचे पे जो आफताब छोड़ गया
अज़ीब शख़्स था, आँखों में ख़्वाब छोड़ गया
वो मेरी मेज़ पे, अपनी किताब छोड़ गया
आप की गजल के सारे शेर एक से बढ कर एक लगे, बहुत खुब, लेकिन एक शेर ने किसी की याद ताजा कर दी.
धन्यवा्द
wow !
Mazaa aa gaya
श्रद्दा जी, आदाब
बहुत बुलंद शायरी का सबूत दे रहा है ये मतला-
अज़ीब शख़्स था, आँखों में ख़्वाब छोड़ गया
वो मेरी मेज़ पे, अपनी किताब छोड़ गया
हर शेर यादगार,
ये खास तौर पर-
उसे पता था, कि तन्हा न रह सकूँगी मैं
वो गुफ़्तगू के लिए, माहताब छोड़ गया
ज़िन्दाबाद......
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
क्या खूब लिखतीं हैं आप हम आपकी लेखनी के कायल हैं .. हर लफ्ज़ में असर है जादू है
aafareen...
श्रद्धा जी मतला क्या लिख डाला है दो मिसरों में पूरी ग़ज़ल लिख डाली है...वाह...बाकि के सारे शेर भी गज़ब के हैं....वाह श्रद्धा जी बहुत बहुत बधाई इस शानदार ग़ज़ल के लिए.
नीरज
सहर के डूबते तारे की तरह बन 'श्रद्धा'
हरिक दरीचे पे जो आफताब छोड़ गया
बहुत सुन्दर गजल—
बधाई।
नज़र मिली तो अचानक झुका के वो नज़रें
मेरे सवाल के कितने जवाब छोड़ गया
गजल का हर शेर लाजवाब है!
उसे पता था, कि तन्हा न रह सकूँगी मैं
वो गुफ़्तगू के लिए, माहताब छोड़ गया
behatareen.
mukammal gazal!!!!
har she'r kamaal!!
bemisaal!!
ise yaqinan samajhiye!
shahroz
वाह.....
श्रद्धा जी,
वो मेरी मेज पे अपनी किताब छोड़ गया
लाजवाब मिसरा!
मक्ता बहुत ही दमदार है
सहर के डूबते तारे की तरह बन 'श्रद्धा'
हरिक दरीचे पे जो आफताब छोड़ गया
Vaah Vaah !!!!
सहर के डूबते तारे की तरह बन 'श्रद्धा'
हरिक दरीचे पे जो आफताब छोड़ गया
aaj nahii ..nahii ..me bhi
padh gayaa
aapki gajal ..jinaa sikhatii hai
kyaa baat hai ..
hamare ko chhu leti hai
tum bhi kis dunia se aayii ho ...
bahut sundar ...
har she"r ..sundar ..
badhaaiiyaa
kishor
सुंदर ग़ज़ल..बधाई!!
अज़ीब शख़्स था, आँखों में ख़्वाब छोड़ गया
वो मेरी मेज़ पे, अपनी किताब छोड़ गया
बहुत सुन्दर मतला...हर शयेर बहुत उम्दा और अच्छे वजन का था..
बधाई
आशु
पूरी गज़ल ही बहुत खूबसूरत और हर शे’र पुरकशिश है..किताब छोडने वाली बात भी पहली बार कहीं पढ़ी..और इस शे’र की सकारात्मकता
सहर के डूबते तारे की तरह बन 'श्रद्धा'
हरिक दरीचे पे जो आफताब छोड़ गया
उसे पता था, कि तन्हा न रह सकूँगी मैं
वो गुफ़्तगू के लिए, माहताब छोड़ गया
poori ghazal behtareen hai..aur is sher ne khaas taur par dil churaaya hai..
shukriya..
क्या बात है श्रद्धा। वाह!
नज़र मिली तो अचानक झुका के वो नज़रें
मेरे सवाल के कितने जवाब छोड़ गया..
-बहुत शानदार रचना..हर शेर लाजबाब!!
नज़र मिली तो अचानक झुका के वो नज़रें
मेरे सवाल के कितने जवाब छोड़ गया
.... बेहतरीन गजल !!!!!
मैं सांसों के हर तार में छुप रहा हूं,
मैं धड़कन के हर राग में बस रहा हूं,
ज़रा दिल की जानिब निगाहें झुकाओ,
आवाज़ दे के हमें तुम बुलाओ,
मुहब्बत में इतना न हमको सताओ...
जय हिंद...
एक पूरी तरह से मुकम्मल गज़ल । मतले से मकते तक ...
WAAAAAH............!!!!!!!!!
मुसलसल ग़ज़ल ही कहेंगे इसे..
मतला बड़े कमाल का है.....
नज़र मिली तो अचानक झुका के वो नज़रें
मेरे सवाल के कितने जवाब छोड़ गया
लाजवाब...
shraddha ji ,
wah ,matle se maqte tak kya kuchh likh gayi hain ap lekin khas taur par
nazar mili............
sahar ke doobte .............
behad khoobsoorat ashaar
mubarak ho
सब शेर लाजवाब लगे ..खूबसूरत गजल शुक्रिया
bahut hi sundar gazal.
ajeeb shakhs tha .jaate jaate bheed me tanhaiya de gaya.......
kabhi aisa hi liha tha .......
gazal se aapki mohabbat yun hi barkarar rahe.....
ब मेरे कहने को क्या कुछ रह गया है ? कहूँ भी क्या लाजवाब? शायद कम है बाकी औरों का जोड लो । शुभकामनायें
"ये क्या तिलिस्म है,
कैसा सराब छोड़ गया ...."
बहुत ही दिल-फरेब मिसरा है....
अपनी बात ख़ुद बयान करता है.....
ग़ज़ल के सारे शेर मुह्तासिर करते हैं
लबो-लहजा भी कारगर है.....
बार बार पढने को दिल करता है
और....
कही गयी हर बात अपनी-सी महसूस होती है
मुबारकबाद .
"पढूं उसे कि कोई बात मैं करूँ ख़ुद से
मेरे लिए वो अजब इन्तिखाब छोड़ गया"
SHAYRA SHRDDHA JAIN KAA SHER KAHNE
KAA AAPNA KHOOBSOORAT ANDAZ HAI.
UNKEE IS GAZAL KE PAANCHON ASHAAR
MEIN MISHREE KEE MITHAAS HAI.
सर्वप्रथम आपका आभार।
शेर बहुत अच्छे लगे । धन्यवाद ।
वाह क्या बात है श्रधा जी .........
वाह वाह!! डूब जाती हूं पढते-पढते...कितना सुन्दर लिखती हैं आप!
अज़ीब शख़्स था, आँखों में ख़्वाब छोड़ गया
वो मेरी मेज़ पे, अपनी किताब छोड़ गया
कुछ इस तरह कि -
अजीब सानेहा मुझ पर गुज़र गया यारो
मैं अपने साये से कल रात डर गया यारो
इसी सहजता से आप भी शेर अहतीं हैं. बधाई.
गणतंत्र दिवस मुबारक हो.
सुन्दर रचना के लिए साधुवाद।
"उसे पता था, कि तन्हा न रह सकूँगी मैं
वो गुफ़्तगू के लिए, माहताब छोड़ गया"
अरे..वाह! वाह!!...गुफ़्तगु के लिये माहताब छोड़ गया...उफ़्फ़्फ़...क्या बात है मैम। सुभानल्लाह!
पूरी ग़ज़ल ही लाजवब बन पड़ी है।
हर शेर एक जादू सा कर रहा है...........
खासकर मतला और ".....वो गुफ़्तगू के लिए, माहताब छोड़ गया".
बहुत उम्दा ग़ज़ल है
bhuबहुत बेहतरीन श्रधा जी बहुत ही सुन्दर गजल
सहर के डूबते तारे की तरह बन 'श्रद्धा'
हरिक दरीचे पे जो आफताब छोड़ गया
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
उसे पता था, कि तन्हा न रह सकूँगी मैं
वो गुफ़्तगू के लिए, माहताब छोड़ गया
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आयी और देर से आने का अहसास हुआ
इसे कहते है ग़ज़ल.. खैर मैं क्या कहू.. ऊपर इतने लोग पहले ही कितना कुछ कह चुके है..
बेहतरीन गजल का जोरदार शेर .
नज़र मिली तो अचानक झुका के वो नज़रें
मेरे सवाल के कितने जवाब छोड़ गया
बहुत बहुत बधाई ..............
बेहद खूबसुरत ग़ज़ल ...........
आज ऐसा लगा जैसे कोई चुपचाप कत्ल करके चला गया.
अब हम क्या कहें, ऐसे शे'रे-एहसास पर.
WAH WAH...... EKDAM JHAKAAS , HAR LINE ME MUUUHA MUUUUHA....
shraddha ji,
matle se lekar maqte tak...poori gazal bemisaal hai..har sher apne aap men ek kahani bayan karta hai...daad kabool karen..
shukriya..
नज़र मिली तो अचानक झुका के वो नज़रें
मेरे सवाल के कितने जवाब छोड़ गया
...बस यही सिलसिला तो है जो हमें साँस लेने पर मज़बूर कर देती है |
बहुत बहुत शुक्रिया !
मैं देर से दुरुस्त आया. अब तो यही कहता फिर रहा हूँ कि किसी को भी नहीं टोकूंगा. आप को एक बार गलती से टोका था. और आप तो ऐसी ऐसी गजलें कहने लगीं कि मेरी हिम्मत ही छूट गयी. एक जंगल में २ शेर नहीं रह सकते, लिहाज़ा श्रद्धापूर्वक निवेदन कर रहा हूँ कि गजलों का यह पूरा जंगल आपको मुबारक.
इतना अच्छा लिख लिख कर मार दी न लात गरीब के पेट पर!
एक से एक बेहतरीन शेर
लाजवाब ......
धन्यवाद
आपकी गझलें वाकेइ बहोत उमदा कक्षा की एवं लाजवाब होती है
-श्याम शून्यमनस्क
http://shyam-shunyamanask.blogspot.com/2009/08/blog-post_9522.html
बहुत उम्दा ,मन को छूती हुई ,असरदार ग़ज़ल ,किन शब्दों में आपकी प्रशंशा की जाये .
इसी तरह लिखती रहें रूह को सुकून मिलता है /
सादर,
डॉ.भूपेन्द्र
जीवन सन्दर्भ .ब्लागस्पाट .कॉम
उसे पता था, कि तन्हा न रह सकूँगी मैं
वो गुफ़्तगू के लिए, माहताब छोड़ गया
aap achhi ghazal kahne lagi hain..
zore qalam aur ziyada...
regards
mahen..
aapki lagbhag saari rachna padhi,videsh me rahkar ye bhasha prem kabile-tarif h apne vichar baatne k liye shukriya 'samay mile to meri poems padhna swagat h aapki tippani ka
कुछ ऐसे ही होते है ज़िन्दगी के पड़ाव
वक्त पल पल पर श्रद्धा के राज छोड़ गया
बहुत मिलेंगे ख्वाब जगाने वाले
मिला कर के नज़रें झुकाने वाले
अपनी मीठी बातों में फंसाने वाले
सवालों में अक्सर उलझाने वाले
चले जायेंगे यूँ ही रुलाकर वो तुमको
कहने को अपना बनाकर वो तुमको
प्रतीक्षा में अपनी बैठाकर वो तुमको
मजबूरी का बहाना बताकर वो तुमको
मगर न भटकना कभी भी तू राहें
नहीं नीची करना तू अपनी निगाहें
रोके कभी भी जो दुश्मन ज़माना
और बुलंद करना तू अपनी सदाएं
mej par kitaab chord gaya ,gajal me achchi upmaye hai .badhai
ajeeb sakhs hai wo...........bahut khub!! kabhi hamare blog pe bhi tasreef layen..:)
http://jindagikeerahen.blogspot.com
अज़ीब शख़्स था, आँखों में ख़्वाब छोड़ गया
वो मेरी मेज़ पे, अपनी किताब छोड़ गया
माशाल्लाह ......!!...क्या मतला है
उसे पता था, कि तन्हा न रह सकूँगी मैं
वो गुफ़्तगू के लिए, माहताब छोड़ गया
लाजवाब शेर ......बहुत उम्दा !!
tahnks and badhai for a ghazal which is very soft and heart touching.
नज़र मिली तो अचानक झुका के वो नज़रें
मेरे सवाल के कितने जवाब छोड़ गया
wah shardha ji kya kahne :)
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