वो सारे ज़ख़्म पुराने, बदन में लौट आए
वो सारे ज़ख़्म पुराने, बदन में लौट आए
गली से उनकी जो गुज़रे, थकन में लौट आए
हवा उड़ा के कहीं दूर ले गई जब भी
सफ़र तमाम किया और वतन में लौट आए
जो शहरे इश्क था, वो कुछ नहीं था, सहरा था
खुली जो आँख तो हम फिर से वन में लौट आए
बहार लूटी है मैंने कभी, कभी तुमने
बहाने अश्क़ भी हम ही चमन में लौट आए
ये किसने प्यार से बोसा रखा है माथे पर
कि रंग, ख़ुशबू, घटा, फूल, मन में लौट आए
गए जो ढूँढने खुशियाँ तो हार कर "श्रद्धा"
उदासियों की उसी अंजुमन में लौट आए
51 comments:
हवा उड़ा के कहीं दूर ले गई जब भी
सफ़र तमाम किया और वतन में लौट आए
बहुत अच्छे !
bahut khoob
इतनी सुन्दर ग़ज़ल के साथ, ग़ज़लों के वतन में लौटने की बधाई।
खुबसूरत गज़ल!! आभार
एक सरसरी दृष्टि हमारे ब्लोग पर भी करे,
http://shrut-sugya.blogspot.com/
बहुत सुन्दर!!
हवा उड़ा के कहीं दूर ले गई जब भी
सफ़र तमाम किया और वतन में लौट आए
कितनी सादगी से आप
इतना कीमती शेर कह गईं श्रद्धा जी.
गए जो ढूँढने खुशियाँ तो हार कर "श्रद्धा"
उदासियों की उसी अंजुमन में लौट आए
ऐसा कभी कभी हो तो जाता है....
लेकिन
हर बार नहीं...
सो...
.ट्राई अगेन.
बहुत अच्छी ग़ज़ल है.
हवा उड़ा के कहीं दूर ले गई जब भी
सफ़र तमाम किया और वतन में लौट आए
ये किसने प्यार से बोसा रखा है माथे पर
कि रंग, ख़ुशबू, घटा, फूल, मन में लौट आए
pasand aaye ye ashaar..
श्रद्धा जी, गजल बहुत ही सुंदर लगी सभी शेर एक से बढ कर एक. धन्यवाद
बहुत खूबसूरत गज़ल...हमेशा की तरह
गए जो ढूँढने खुशियाँ तो हार कर "श्रद्धा"
उदासियों की उसी अंजुमन में लौट आए
बहुत ख़ूब!
कभी कभी उदासियां ज़्यादा देर तक साथ रहती हैं ,
लेकिन हमेश्गी तो उन का हिस्सा भी नहीं और तब ख़ुशियां पूरे आब ओ ताब के साथ आती हैं
श्रद्धा जी
पुराना प्रशंसक हूँ आपका ....
फिर से आपकी ग़ज़ल ने वाह वाह कहने और खड़े होकर इस्तकबाल करने पर मजबूर कर दिया.
मतले से जो माहौल बना वो मकते तक आते आते बुलंदी पर था.
मतले के आलावा जो शेर पसंद आये वे थे-----
जो शहरे इश्क था, वो कुछ नहीं था, सहरा था
खुली जो आँख तो हम फिर से वन में लौट आए
ये किसने प्यार से बोसा रखा है माथे पर
कि रंग, ख़ुशबू, घटा, फूल, मन में लौट आए
गए जो ढूँढने खुशियाँ तो हार कर "श्रद्धा"
उदासियों की उसी अंजुमन में लौट आए
Badhiya Gazal...
हवा उड़ा के कहीं दूर ले गई जब भी
सफ़र तमाम किया और वतन में लौट आए
वतन की खुश्बू होती ही ऐसी है ..
शानदार गज़ल
ये किसने प्यार से बोसा रखा है माथे पर
कि रंग, ख़ुशबू, घटा, फूल, मन में लौट आए
लाजवाब...यूँ तो पूरी ग़ज़ल बेहतरीन है लेकिन ऊपर वाला शेर मैं अपने साथ लिए जा रहा हूँ...आनंद आ गया ...वाह वा..
नीरज
shrdhaa bhn aapki gzl shrddhaa se pdhi mene men urdu ka thodaa bhut jaankaar hun ghzl or uske bhr mitr men thodaa bhut smjhtaa hun lekin jitna smjhtaa hun utni smjh se daave se kh sktaa hun ke alfaaz,soch,flsfaa or behr mitr ly surtaal ke hisaab se kai dinon baad alfaaz ki jaadugiri se likhi ghzl jo sch men hr angl se ghzl h pdhne ko mili he yeh aek tippnikaar bhaayi ki trf ka mkkhn nhin di ki aavaaz he isliyen bdhaayi. akhtar khan akela kota rajthan
bahut hee khoobsurat.
श्रद्धा जी नई ग़ज़ल बहुत दिनों के बाद आयी लेकिन उतनी ही प्रभावपूर्ण. बहुत बढ़िया
वो सारे ज़ख़्म पुराने, बदन में लौट आए
गली से उनकी जो गुज़रे, थकन में लौट आए
मतला तो गज़ब का है। ग़ज़ल का कोई उस्ताद कह रहा हो जैसे.
हवा उड़ा के कहीं दूर ले गई जब भी
सफ़र तमाम किया और वतन में लौट आए
ये किसने प्यार से बोसा रखा है माथे पर
कि रंग, ख़ुशबू, घटा, फूल, मन में लौट आए
ये शेर भी पसन्द आये अपने कन्टेन्ट के कारण. पूरी ग़ज़ल में बहर का निर्वाह अच्छी तरह से किया गया है. एक अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई। पुनः नया ब्लाग बना लिया है-httpa;//kabhi-to.blogspot.com देखिएगा। खास तौर पर हरजीत जी के विषय में आपके विचार चाहिए. फ्रेन्डसशिप डे की शुभकामनाए
जो शहरे इश्क था, वो कुछ नहीं था, सहरा था
खुली जो आँख तो हम फिर से वन में लौट आए
Nice line. Kya kahna....
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल लिखी है सखी तुमने ... ये किसने प्यार से ... वाह क्या मासूम सा शे'र है ... मतला खुद कामयाब है ... बेहद खुबसूरत ग़ज़ल ... बधाई ..
अर्श
bahut sundar gazal.
हवा उड़ा के कहीं दूर ले गई जब भी
सफ़र तमाम किया और वतन में लौट आए
अहसासों से सराबोर गजल
बहुत ही बढ़िया रचना प्रस्तुत की है आपने!
--
मित्रता दिवस पर बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
jawaab nahi aapka..amazing..amazing!
खुबसूरत गज़ल!! मित्र दिवस की शुभकामना....
बहुत सुन्दर!
हवा उड़ा के कहीं दूर ले गई जब भी
सफ़र तमाम किया और वतन में लौट आए
-बहुत बेहतरीन कहा..वाह!
वाह. बहुत अच्छी गज़ल.
धन्यवाद श्रद्धा जी.
गए जो ढूँढने खुशियाँ तो हार कर "श्रद्धा"
उदासियों की उसी अंजुमन में लौट आए
bahut khubsurat........bahut umda!!
हवा उड़ा के कहीं दूर ले गई जब भी
सफ़र तमाम किया और वतन में लौट आए
ये किसने प्यार से बोसा रखा है माथे पर
कि रंग, ख़ुशबू, घटा, फूल, मन में लौट आए
Waah, Hamesha ki tarah bahut sundar.
जो शहरे इश्क था, वो कुछ नहीं था, सहरा था
खुली जो आँख तो हम फिर से वन में लौट आए
बहार लूटी है मैंने कभी, कभी तुमने
बहाने अश्क़ भी हम ही चमन में लौट आए
wah shrdha ji......... kya bat kahi hai aapne................
nice poem again......... as alwys.
बेहतरीन...क्या खूब कही है...एक एक शे'र मार्के के है . हासिल-ए-ग़ज़ल शेर चुनना मुश्किल हो रहा है. फिर भी
हवा उड़ा के कहीं दूर ले गई जब भी
सफ़र तमाम किया और वतन में लौट आए
क्या बात है. वाह
ये किसने प्यार से बोसा रखा है माथे पर
कि रंग, ख़ुशबू, घटा, फूल, मन में लौट आए
वाह !! बहुत खुबसूरत शेर ...
मज़ा आ गया , शानदार गज़ल ||
जो शहरे इश्क था, वो कुछ नहीं था, सहरा था..
kitni gahri abhwyakti hai ye ...
Shukriya !!
सारे अश'आर इशारों में कह रहे हैं - सुनो
ग़ज़लवालो! वो अपने बाँकपन में लौट आए
बेख़ुदी में वो ख़रामाँ तो कई बार हुए
जाने क्या सोच के फिर दफ़'अतन में लौट आए
गुनगुनी धूप में बूँदों से बना इन्द्रधनुष
खुदारा रंग फिर उनके सुख़न में लौट आए
सारे शेर लाजवाब हैं - मतला - क्या ख़ूब!
और "रंग,ख़ुश्बू,घटा,फूल" बहुत सुन्दर प्रयोग है। बहुत बहुत बहुत अच्छी लगी ये कहन…
श्रद्धा जी! नज़र रखिए - कोई चुरा रहा हो अगर ग़ज़लें आपकी - तो कोई बड़ी बात नहीं, डोल सकता है ईमान किसी का…
sradha ji
sundar gajl likhi apne ..badhai
संजीव गौतम की बात से बात से मैं सहमत हूँ. वाकई लगता है जैसे किसी उस्ताद का कलाम पढ़ रहे हों.
आपकी गजलों की तारीफ़ करना भी बड़ी टेढ़ी खीर होता है. किसी के फन की कितनी तारीफ़ की जाए और बार बार की जाए तो शब्द कहाँ से लाए जाएँ.
मुझे लगता है आपसे कुछ दिन कोचिंग लेनी पड़ेगी. गजले भेजूं क्या?
आपकी लेखनी से उभरे खूबसूरत अश`आर
आपकी उम्दा सोच की तर्जुमानी करने में कामयाब रहे हैं.....
वाक़ई बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है !
वो सारे ज़ख़्म पुराने, बदन में लौट आए
गली से उनकी जो गुज़रे, थकन में लौट आए
मतला खुद ग़ज़ल को आगे पढ़ लेने के लिए बेताब किये देता है
और ये शेर ...
हवा उड़ा के कहीं दूर ले गयी जब भी
सफ़र तमाम किया और वतन में लौट आये
बहुत मोह्तासिर करता है
गए जो ढूँढने खुशियाँ , तो हार कर 'श्रद्धा'
उदासियों की उसी अंजुमन में लौट आये
इस शेर को तो सच में
मक्ते का ही शेर होना था... वाह !!
ये किसने प्यार से बोसा रखा है माथे पर
कि रंग, ख़ुशबू, घटा, फूल, मन में लौट आए
..वाह!
ये किसने प्यार से बोसा रखा है माथे पर
कि रंग, ख़ुशबू, घटा, फूल, मन में लौट आए
वाह! वाह!
वाह! वाह!
ये किसने प्यार से बोसा रखा है माथे पर
कि रंग, ख़ुशबू, घटा, फूल, मन में लौट आए
रंग , घटा , खलूस , बोसा यूँ ही आपके चेहरे का नूर बढ़ाता रहे ......!!
ये किसने प्यार से बोसा रखा है माथे पर
कि रंग, ख़ुशबू, घटा, फूल, मन में लौट आए
सचमुच आपके इस शेर ने लूट लिया। शुभकामनाएं ।
GAZAL KE SABHEE SHER PANKH LAGAA
KAR GAGAN KEE OONCHAAEEYON KO
CHHOO RAHE HAIN.
ये किसने प्यार से बोसा रखा है माथे पर
कि रंग, ख़ुशबू, घटा, फूल, मन में लौट आए
मीठी सी प्यारी सी ग़ज़ल है .... खिलते मौसम से शेर बहुत कमाल लगे ....
मतला बहुत अच्छा लगा आपका...
और ये दो शे'र लाजवाब..
बहार लूटी है मैंने कभी, कभी तुमने
बहाने अश्क़ भी हम ही चमन में लौट आए
ये किसने प्यार से बोसा रखा है माथे पर
कि रंग, ख़ुशबू, घटा, फूल, मन में लौट आए
वो सारे ज़ख़्म पुराने, बदन में लौट आए
गली से उनकी जो गुज़रे, थकन में लौट आए
kyaa baat hai....padhkar thakaawat kaa andaajaa ho rahaa hai...
हवा उड़ा के कहीं दूर ले गई जब भी
सफ़र तमाम किया और वतन में लौट आए
शानदार गजल का शानदार शेर
आप की गजल मे जीवन का सत्य झलक रहा है
आप की गजल मे जीवन का सत्य झलक रहा है
kya baat hai, kya gazal kahi hai!
श्रद्धा जी, गजल बहुत ही सुंदर लगी सभी शेर एक से बढ कर एक. धन्यवाद
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