Saturday, August 7, 2010

कीड़ा मीठे में पड़ते देखा है

हमने गुलशन उजड़ते देखा है
भाई-भाई को लड़ते देखा है

इतनी वहशत जुदाई से 'तौबा'
ख़्वाब तक में बिछड़ते देखा है

बोझ नजदीकियाँ न बन जाएँ
कीड़ा मीठे में पड़ते देखा है

एक बस दिल की बात सुनने में
हमने रिश्ते बिगड़ते देखा है

अब तो गर्दन बचाना है मुश्किल
पाँव उनको पकड़ते देखा है

हार दुनिया ने मान ली "श्रद्धा"
जब तुझे जिद पे अड़ते देखा है

83 comments:

आपका अख्तर खान अकेला August 7, 2010 at 12:25 AM  

bhn shrddhaa ji hm to kdve hen isliyen kidon se surkshit hen lekin aapne rishton kaa flsfaa chnd alfaazon men jis trh se byaaan kiye hen yeh aek ajubaa he or shbdon ki jadugiri bhi, bdhayi ho . akhtar khan akela kota rajsthan

इस्मत ज़ैदी August 7, 2010 at 12:34 AM  

हमने गुलशन उजड़ते देखा है
भाई-भाई को लड़ते देखा है

एक तल्ख़ हक़ीक़त बयान करते हुए मतले से शुरु हुई ग़ज़ल अपनी मंज़िलें तय करती हुई जब इस शेर पर आती है

एक बस दिल की बात सुनने में
हमने रिश्ते बिगड़ते देखा है

तो ख़ुद ब ख़ुद इस की ख़ूबसूरती के लिए
वाह वाह !निकल जाता है मुंह से

बधाई !

Rajeev Bharol August 7, 2010 at 12:47 AM  

बहुत अच्छी गज़ल श्रद्धा जी.

"इतनी वहशत जुदाई से 'तौबा'
ख़्वाब तक में बिछड़ते देखा है"

यह शेर खास तौर पर पसंद आया.

Rajeev Bharol August 7, 2010 at 12:47 AM  

बहुत अच्छी गज़ल श्रद्धा जी.

"इतनी वहशत जुदाई से 'तौबा'
ख़्वाब तक में बिछड़ते देखा है"

यह शेर खास तौर पर पसंद आया.

K.P.Chauhan August 7, 2010 at 2:17 AM  

aapne bahut hi achchhe dhang se waastviktaa ko ujaagar kiyaa hai aajkal yahi ho rahaa hai ,koi bhi bhaai bhaai kaa nahi rahaa doulat ke liye bhaai bhaai kaa khoon kar rahaa hai
jinko paalaa thaa wo hi khoon kar rahe hain unkaa ,ahankaar me doobi unki tasweer bhi vafaa nahin farmaati

K.P.Chauhan August 7, 2010 at 2:17 AM  

aapne bahut hi achchhe dhang se waastviktaa ko ujaagar kiyaa hai aajkal yahi ho rahaa hai ,koi bhi bhaai bhaai kaa nahi rahaa doulat ke liye bhaai bhaai kaa khoon kar rahaa hai
jinko paalaa thaa wo hi khoon kar rahe hain unkaa ,ahankaar me doobi unki tasweer bhi vafaa nahin farmaati

संगीता स्वरुप ( गीत ) August 7, 2010 at 3:05 AM  

इतनी वहशत जुदाई से 'तौबा'
ख़्वाब तक में बिछड़ते देखा है

बहुत खूबसूरत गज़ल...

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' August 7, 2010 at 3:21 AM  

एक बस दिल की बात सुनने में
हमने रिश्ते बिगड़ते देखा है....
शानदार ग़ज़ल का...
सबसे खूबसूरत शेर.

मुकेश कुमार सिन्हा August 7, 2010 at 11:44 AM  

बोझ नजदीकियाँ न बन जाएँ
कीड़ा मीठे में पड़ते देखा है

kya khub bayan kiya aapne!


हार दुनिया ने मान ली "श्रद्धा"
जब तुझे जिद पे अड़ते देखा है

haan Shraddha jee!! aisa hai kya??

superb! seedhe aur sadhe shabdo me bahut kuch likh diya aapne......

सुरेन्द्र "मुल्हिद" August 7, 2010 at 12:17 PM  

bahut hee badhiyaa..

Parul kanani August 7, 2010 at 2:06 PM  

एक बस दिल की बात सुनने में
हमने रिश्ते बिगड़ते देखा है


beautiful...!

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar August 7, 2010 at 4:04 PM  

श्रद्धा जी, आपकी गजलों में कुछ तो है ऐसा जो आपकी रचनाशीलता को आम से खास बनाता है।

राज भाटिय़ा August 7, 2010 at 5:20 PM  

हार दुनिया ने मान ली "श्रद्धा"
जब तुझे जिद पे अड़ते देखा है
वाह जी बहुत सुंदर

नीरज गोस्वामी August 7, 2010 at 6:57 PM  

अब तो गर्दन बचाना है मुश्किल
पाँव उनको पकड़ते देखा है
वाह श्रद्धा जी सीधी सादी ज़बान में गहरी बातें कह जाना कोई आसान काम नहीं होता लेकिन आपने इस मुश्किल काम को कितना आसान बना दिया है...इसे कहते हैं कारीगरी...इस ग़ज़ल के लिए दिल से दाद कबूल कीजिये...
नीरज

अजय कुमार August 7, 2010 at 9:59 PM  

हार दुनिया ने मान ली "श्रद्धा"
जब तुझे जिद पे अड़ते देखा है
सार्थक बात ।

vandana gupta August 7, 2010 at 10:43 PM  

बेहद उम्दा दिल को छूती गज़ल्।

संजीव गौतम August 8, 2010 at 1:16 PM  

हार दुनिया ने मान ली "श्रद्धा"
जब तुझे जिद पे अड़ते देखा है


किस में इतनी हिम्मत है कि आप को जिद पर अड़ने के लिए मज़बूर करे।
बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है।

इतनी वहशत जुदाई से 'तौबा'
ख़्वाब तक में बिछड़ते देखा है
एक बस दिल की बात सुनने में
हमने रिश्ते बिगड़ते देखा है

खूबसूरत अशआर हैं।
मेरे ब्लाग का यूआरएल बदल गया है-

सर्वत एम० August 8, 2010 at 5:01 PM  

आप ने इतनी जल्दी गजल पोस्ट कर दी, केवल ६ दिनों में, घोर आश्चर्य! लगता है लोगों की फरमाइशें पूरी होने के दिन आ गए. गजल पर मुझे कुछ नहीं कहना क्योंकि मुझे इस बात को सोच कर ही उलझन होने लगती है कि किसी अज़ीम फनकार की शान में, बार-बार अल्फाज़ बदल कर तारीफ कैसे की जाए.
इतना अच्छा लिखना, आपको पता नहीं कितने लोगों को को जलन में डाल देता है, मुझे भी.

खोरेन्द्र August 8, 2010 at 9:35 PM  

एक बस दिल की बात सुनने में
हमने रिश्ते बिगड़ते देखा है

bahut achchha she"r hain yah
hamesha ki tarah ......

विनोद कुमार पांडेय August 9, 2010 at 2:29 AM  

एक बस दिल की बात सुनने में
हमने रिश्ते बिगड़ते देखा है

श्रद्धा जी, बेहद उम्दा ग़ज़ल...बधाई

विनोद कुमार पांडेय August 9, 2010 at 2:29 AM  

एक बस दिल की बात सुनने में
हमने रिश्ते बिगड़ते देखा है

श्रद्धा जी, बेहद उम्दा ग़ज़ल...बधाई

KK Yadav August 9, 2010 at 5:00 PM  

बोझ नजदीकियाँ न बन जाएँ
कीड़ा मीठे में पड़ते देखा है

...बहुत खूब लिखा आपने..बधाई.

Akshitaa (Pakhi) August 9, 2010 at 7:13 PM  

बहुत प्यारी ग़ज़ल...
_____________
'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है.

देवेन्द्र पाण्डेय August 10, 2010 at 12:27 AM  

हमने गुलशन उजड़ते देखा है
भाई-भाई को लड़ते देखा है

बोझ नजदीकियाँ न बन जाएँ
कीड़ा मीठे में पड़ते देखा है

..जीवन का सच बयान करते इन उम्दा शेरों के लिए बधाई स्वीकार करें.

Rohit Singh August 10, 2010 at 9:04 AM  

आपकी पिछली कुछ भी कविताएं पड़ी..बेहतह हैं.....

Lalit Kumar August 10, 2010 at 6:50 PM  

हार दुनिया ने मान ली "श्रद्धा"
जब तुझे जिद पे अड़ते देखा है

aur

इतनी वहशत जुदाई से 'तौबा'
ख़्वाब तक में बिछड़ते देखा है

ye sher saari ghazal mein sabse behtar hain! bahut achchhi ghazal hai...

VIJAY KUMAR VERMA August 11, 2010 at 12:35 AM  

हमने गुलशन उजड़ते देखा है
भाई-भाई को लड़ते देखा है
bahut hee khoobsurat line ...man ko chhoo gayi..

Dr.Bhawna Kunwar August 11, 2010 at 12:59 PM  

बहुत गहरे भाव, बहुत२ बधाई...

हैरान परेशान August 11, 2010 at 3:02 PM  

आप की गजलें ब्लॉग जगत में कुछ गिने चुने रचनाकारों की रचनाओं के समक्ष रखी जाने योग्य हैं. एक सुझाव देना चाहता हूँ आपको. गजलों में प्रेम को प्राथमिकता देना बंद कर दें. वर्तमान हालात तथा ज्वलंत समस्याओं को विषय बनाएं. आप की लोकप्रियता बढ़ेगी.

संत शर्मा August 11, 2010 at 8:38 PM  

बोझ नजदीकियाँ न बन जाएँ
कीड़ा मीठे में पड़ते देखा है

हार दुनिया ने मान ली "श्रद्धा"
जब तुझे जिद पे अड़ते देखा है

Waah wah, Lajabab.

PRAN SHARMA August 12, 2010 at 2:47 AM  

SHRDDHA JAIN KEE GAZAL KEE
BHAVABHIVYAKI ATI SAHAJ AUR
SUNDAR HAI.ACHCHHEE GAZAL KAHNE
KE LIYE UNHEN BADHAAEE AUR SHUBH
KAAMNA.

अमिताभ त्रिपाठी ’ अमित’ August 12, 2010 at 9:45 PM  

श्रद्धा जी,
अच्छे शेर हुये हैं।
एक बस दिल की बात सुनने में
हमने रिश्ते बिगड़ते देखा है
सभी शेर अच्छे लगे
सादर

योगेन्द्र मौदगिल August 15, 2010 at 11:39 AM  

wah......achhi gazal...sadhuwad..

irshad August 15, 2010 at 12:41 PM  

jazbto or khayal ke etbar se bhut khub surat gazal ke liye mubarak bad

डॉ० डंडा लखनवी August 16, 2010 at 11:09 AM  

आपकी रचना पढ़ कर मन गदगद हो गया।
अति प्रभावकारी अभिव्यक्ति !
-सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
--------------------

Peeyush Yadav August 16, 2010 at 11:23 AM  

bahut sundar..

Sulabh Jaiswal "सुलभ" August 16, 2010 at 12:30 PM  

क्या बात है. क्या अशआर कहें आपने.
बोझ नजदीकियाँ न बन जाएँ
कीड़ा मीठे में पड़ते देखा है

एक बस दिल की बात सुनने में
हमने रिश्ते बिगड़ते देखा है

हार दुनिया ने मान ली "श्रद्धा"
जब तुझे जिद पे अड़ते देखा है ... ये शेर तो बहुत ख़ास हैं.

बधाई !!!

दिगम्बर नासवा August 16, 2010 at 8:26 PM  

एक बस दिल की बात सुनने में
हमने रिश्ते बिगड़ते देखा है ..


बहुत खूब ... लाजवाब ग़ज़ल है ... नये अंदाज़ के शेर .. तल्ख़ सचाई लिए हुवे .... बेमिसाल ...

Avinash Chandra August 17, 2010 at 12:17 AM  

आपको पढना हमेशा से ही बहुत पसंद है मुझे...हर शेर बेहद ख़ूबसूरत.

Shayar Ashok : Assistant manager (Central Bank) August 17, 2010 at 3:55 AM  

बोझ नजदीकियाँ न बन जाएँ
कीड़ा मीठे में पड़ते देखा है .

यह शेर खास पसंद आया ...
बहुत खूबसूरत गज़ल ||

शरद कोकास August 17, 2010 at 5:44 PM  

बढ़िया बिम्बों का इस्तेमाल है ।

daanish August 19, 2010 at 12:46 AM  

इतनी वहशत जुदाई से , तौबा
ख़्वाब तक में बिछड़ते देखा है

किसी भी मन में
उठ सकने वाली जज़्बात-ओ-एहसास की रौ
से जान-पहचान करवाता हुआ ये अलग-सा शेर ...
मुझे ज़ाती तौर पर बहुत पसंद आया है

बोझ नजदीकियाँ न बन जाएँ
कीड़ा मीठे में पड़ते देखा है ...

काव्या में
प्र्योग्याताम्क्ता की कोई सीमा नहीं है .. !!!

और
हार दुनिया ने मान ली "श्रद्धा"
अच्छा है ...

VIVEK VK JAIN August 19, 2010 at 2:43 AM  

hamesha ki tarah hi bahut sundar!

VIVEK VK JAIN August 19, 2010 at 2:43 AM  

hamesha ki tarah hi bahut sundar!

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι August 21, 2010 at 1:25 AM  

अब तो गर्दन बचाना है मुश्किल, पांव उनको पकड़ते देखा है। ख़ूबसूरत शे"र मुबरक बाद।

ललितमोहन त्रिवेदी August 21, 2010 at 11:20 PM  

हार दुनिया ने मान ली "श्रद्धा"
जब तुझे जिद पे अड़ते देखा है

Apni bebaki aur gahare aatmvishwas ka andaz-e-bayan . Bahut khoob shriddha ji

vijay kumar sappatti August 25, 2010 at 11:16 PM  

SHRADHA JI
DERI SE AANE KE LIYE MAAFI ..
IS GAZAL KO MAIN ZINDAGI KI PESHKASH KAHUNGA .. BAS MERE PAAS KOI AUR SHABD NAHI HAI ..

VIJAY
आपसे निवेदन है की आप मेरी नयी कविता " मोरे सजनवा" जरुर पढ़े और अपनी अमूल्य राय देवे...
http://poemsofvijay.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html

जयकृष्ण राय तुषार August 29, 2010 at 7:04 PM  

badhai aap bahut salike se gazal kahtin hain with regards

अर्चना तिवारी August 29, 2010 at 8:03 PM  

बोझ नजदीकियाँ न बन जाएँ
कीड़ा मीठे में पड़ते देखा है

आपकी ग़ज़ल तो बस पढ़ते-पढ़ते डुबो देती है अपने में फिर उबरने का दिल नहीं करता

KK Yadav August 31, 2010 at 4:12 PM  

हार दुनिया ने मान ली "श्रद्धा"
जब तुझे जिद पे अड़ते देखा है

....बड़ा उम्दा लिखा...बधाई स्वीकारें.
________________
'शब्द सृजन की ओर' में 'साहित्य की अनुपम दीप शिखा : अमृता प्रीतम" (आज जन्म-तिथि पर)

Anonymous September 1, 2010 at 12:25 AM  

बेहद उम्दा...

Asha Joglekar September 1, 2010 at 11:31 AM  

हमने गुलशन उजड़ते देखा है
भाई-भाई को लड़ते देखा है
एक बस दिल की बात सुनने में
हमने रिश्ते बिगड़ते देखा है
Kya bat hai shraddha ji bahut hee sunder gazal.

निर्झर'नीर September 1, 2010 at 11:56 AM  

एक बस दिल की बात सुनने में
हमने रिश्ते बिगड़ते देखा है

अब तो गर्दन बचाना है मुश्किल
पाँव उनको पकड़ते देखा है

kya baat hai

ab to aap avval darje ki shaira ho gayi hai

daad kubool karen

SATYA September 1, 2010 at 2:04 PM  

बहुत अच्छी गज़ल,
कृपया अपने बहुमूल्य सुझावों और टिप्पणियों से हमारा मार्गदर्शन करें:-
अकेला या अकेली

पवन धीमान September 1, 2010 at 8:11 PM  

हार दुनिया ने मान ली "श्रद्धा"
जब तुझे जिद पे अड़ते देखा है
...... बहुत खूब... ..लचीलापन भी और जिद भी.. अस्तित्व के लिए दोनों का संतुलन जरुरी.

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" September 1, 2010 at 10:49 PM  

बोझ नजदीकियाँ न बन जाएँ
कीड़ा मीठे में पड़ते देखा है


waaaahhhh

Urmi September 2, 2010 at 12:16 PM  

आपको एवं आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
बहुत बढ़िया ! उम्दा प्रस्तुती!

Akanksha Yadav September 2, 2010 at 2:33 PM  

बहुत सुन्दर गजल लिखी आपने.... खूबसूरत अभिव्यक्ति.
श्री कृष्ण-जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें.

manu September 3, 2010 at 4:03 PM  

अब तो गर्दन बचाना है मुश्किल
पाँव उनको पकड़ते देखा है

waah..waah..waahh...........


laajwaab she'r...






aur...

हार दुनिया ने मान ली "श्रद्धा"
जब तुझे जिद पे अड़ते देखा है

laajwaab maqtaa....

manu September 3, 2010 at 4:04 PM  

एक बस दिल की बात सुनने में
हमने रिश्ते बिगड़ते देखा है


ismein RISHTE ko RISHTA padh rahe hain ham...

aapse maafi sahit...

Unknown September 4, 2010 at 1:16 AM  

bahut khoob gazal........
waah waah

Anonymous September 4, 2010 at 8:40 PM  

bahut hi pyari rachna...

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Pawan Kumar September 6, 2010 at 7:56 PM  

वैसे तो इस ग़ज़ल पर कमेन्ट सिंगापुर में कर ही दिया था..मगर लिखा-पढ़ी में आज उसे फिर दोहराए दे रहा हूँ....

हमने गुलशन उजड़ते देखा है
भाई-भाई को लड़ते देखा है
सच बात कहने का हौसला दिखने का शुक्रिया....सच तो यही है कोई मने या न माने...!सच्चाई को शेर में पिरोने के लिए बधाई...!

इतनी वहशत जुदाई से 'तौबा'
ख़्वाब तक में बिछड़ते देखा है
बहुत शानदार बिम्व रच दिया श्रद्धा जी....!

बोझ नजदीकियाँ न बन जाएँ
कीड़ा मीठे में पड़ते देखा है
ओहो तो उन्वान की दस्तक यहाँ से थी....

हार दुनिया ने मान ली "श्रद्धा"
जब तुझे जिद पे अड़ते देखा है
अब मतले का जिक्र आपकी ग़ज़ल में न हो...नामुमकिन...! मक्ता ता मतला ग़ज़ल सुन्दर है....!

नादान उम्मीदें September 6, 2010 at 8:11 PM  

AAPKE BLOG PAR PAHLI BAAR AAYA HOON,MAIN BHI LIKHA KARTA HOON,AAP JAISA NAHI LIKHTA,MGR KOSHISH KAR RAHA HOON,,,
SAMAY MILE TO JARUR PADHIYEGA,,,,,
BHARAT SINGH CHARAN nadaanummidien.blogspot.com ki taraf se

RockStar September 7, 2010 at 5:55 PM  

nice and visit my blog one time, name is :www.onlylove-love.blogspot.com

Mumukshh Ki Rachanain September 9, 2010 at 3:05 AM  

बढ़िया ग़ज़ल कम शब्दों में, सपाट शब्दों में..........
बधाई तहे दिल से

चन्द्र मोहन गुप्त

गौतम राजऋषि September 9, 2010 at 1:47 PM  

कल पवन जी का सिंगापुर यात्रा-वृतांत पढ़ रहा था तो आपसे मुलाकात हुई...मन मसोस कर रह गया कि हमारी इस ग़ज़ल-साम्राग्यी से कब मुलाकात होगी!

"इतनी वहशत जुदाई से तौबा/ख़्वाब तक में बिछड़ते देखा है"...अद्‍भुत शेर मैम...अद्‍भुत। और मक्ते का अंदाज भी खूब भाया।

श्रद्धा जी का ग़ज़ल-संकलन कब निकलेगा? हम बेताब हो रहे हैं अब तो....

सुरेश यादव September 11, 2010 at 11:37 PM  

श्रृद्धा जैन.जी आप की ग़ज़ल संवेदना पूर्ण है आप को हार्दिक बधाई.

अनिल कान्त September 13, 2010 at 10:36 PM  

आनंद आ गया

सुधीर राघव September 16, 2010 at 3:31 AM  

बहुत अच्छी गज़ल धन्यवाद.

Akhilesh pal blog September 19, 2010 at 7:12 PM  

bahoot khoob ,akhileshpal

VIJAY KUMAR VERMA September 19, 2010 at 9:20 PM  

अब तो गर्दन बचाना है मुश्किल
पाँव उनको पकड़ते देखा है
बहुत खूबसूरत गज़ल...

sandhyagupta September 23, 2010 at 6:26 PM  

इतनी वहशत जुदाई से 'तौबा'
ख़्वाब तक में बिछड़ते देखा है

एक बस दिल की बात सुनने में
हमने रिश्ते बिगड़ते देखा है

bahut badhiya.shubhkamnayen.

S.M.Masoom October 2, 2010 at 1:36 AM  

एक बस दिल की बात सुनने में
हमने रिश्ते बिगड़ते देखा है
Bahut khoob

प्रदीप जिलवाने October 2, 2010 at 1:39 PM  

गजल पसंद आई..

Dr.Bhawna Kunwar October 3, 2010 at 9:35 AM  

Bahut sundar gajal..bahut-2 badhai..

रचना दीक्षित October 4, 2010 at 8:42 PM  

हार दुनिया ने मान ली "श्रद्धा"
जब तुझे जिद पे अड़ते देखा है

बहुत अच्छी गज़ल श्रद्धा जी.

KARIM PATHAN Anmol October 10, 2010 at 12:36 PM  

Bojh Nazdikiyan Na Ban Jaye,
Kida mithe me padte dekha he..

Umda sher
Gazal bahut acchi lagi.
Aapka naya follower,
Ek din achanak aapka blog samne aa gya.
Padhker bahut accha lga to aapse jud gaye..
Mene b ek blog shuru kiya he jis per meri rachnaye he kabhi fursat mile to aapke do kimti pal hmare blog ko bhi dijiyega..

KARIM PATHAN Anmol
Sanchore(Jalore)
Rajasthan

dharmendra October 13, 2010 at 7:43 PM  

shraddha ji aapne chand alfazon mei dher sari bat kah di. mouzuda dour ki kadvi sachchai ko itni asani se kah dena to koi aapse sikhe. behtarin gazal ke liye aapko dher saari badhai.

Dharmendra Singh Karn.

प्रदीप कांत November 21, 2010 at 10:21 PM  

बोझ नजदीकियाँ न बन जाएँ
कीड़ा मीठे में पड़ते देखा है

बेहतरीन ....

Vikrant June 23, 2011 at 5:21 PM  

good one.

Raaj October 14, 2011 at 6:14 PM  

बहुत अच्छी गज़ल है श्रद्धा जी

David Hess February 3, 2013 at 4:53 AM  

aapne bahut hi achchhe dhang se waastviktaa ko ujaagar kiyaa hai aajkal yahi ho rahaa hai ,koi bhi bhaai bhaai kaa nahi rahaa doulat ke liye bhaai bhaai kaa khoon kar rahaa hai jinko paalaa thaa wo hi khoon kar rahe hain unkaa ,ahankaar me doobi unki tasweer bhi vafaa nahin farmaati

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