Sunday, April 25, 2010

यूँ प्यार को आज़माना नहीं था

कल रात एक मित्र से मेरे ग़ज़ल के सफ़र की चर्चा हो रही थी , चर्चा के दौरान शुरूवाती दौर में कही गई गजलों का जिक्र आया बस मन हुआ कि एक पुरानी ग़ज़ल पोस्ट की जाए



दूरी को अपनी बढ़ाना नहीं था
यूँ प्यार को आज़माना नहीं था


उसने न टोका न दामन ही थामा

रुकने का कोई बहाना नहीं था




चादर पे ख़ुशबू थी उसके बदन की

जागे तो उसका ठिकाना नहीं था



दामन पर उसके कई दाग आए
आँसू उसे यूँ, गिराना नहीं था


उल्फत में कैसे वफ़ा मिलती "श्रद्धा"
किस्मत में जब ये खज़ाना नहीं था

50 comments:

अमिताभ मीत April 26, 2010 at 12:41 AM  

उसने न टोका न दामन ही थामा
रुकने का कोई बहाना नहीं था

behtareen !!

अजय कुमार झा April 26, 2010 at 12:44 AM  

जब बता दिया सब कुछ कह के उन्हें ,
लगा कि कुछ भी उन्हें बताना नहीं था ॥

जख्म सभी सजते चले गए अपने आप ही ,
हमें उन्हें यूं इस तरह सजाना नहीं था

आपको पढा तो यूं ही लिख गया । ऐसा अक्सर होता है मेरे साथ जब भी कुछ बहुत सुंदर पढता हूं

रोहित April 26, 2010 at 12:46 AM  

ye aapke liye purani ghazal ho sakti hain...
pr aapka yeh post padhte waqt aisa laga ki ek taja hawa ke jhonke ne pure dilo-dimag me jhurjhuri si paida kr di hai...
lajabab rachna!

रोहित April 26, 2010 at 12:46 AM  

ye aapke liye purani ghazal ho sakti hain...
pr aapka yeh post padhte waqt aisa laga ki ek taja hawa ke jhonke ne pure dilo-dimag me jhurjhuri si paida kr di hai...
lajabab rachna!

M VERMA April 26, 2010 at 1:03 AM  

चादर पे ख़ुशबू थी उसके बदन की
जागे तो उसका ठिकाना नहीं था
क्या बात है
बहुत सुन्दर

Apanatva April 26, 2010 at 1:12 AM  

lajawab ........

दामन पर उसके कई दाग आए
आँसू उसे यूँ, गिराना नहीं था

par ye kuch samjh me nahee aaya...........

Udan Tashtari April 26, 2010 at 1:14 AM  

बेहतरीन!! पुरानी गज़ल..लगती नहीं कि पुरानी है. बहुत ताजा!!

संजय भास्‍कर April 26, 2010 at 1:17 AM  

कुछ शीतल सी ताजगी का अहसास करा गई आपकी रचना।

संजय भास्‍कर April 26, 2010 at 1:17 AM  

हमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.

वीनस केसरी April 26, 2010 at 1:30 AM  

उल्फत में कैसे वफ़ा मिलती "श्रद्धा"
किस्मत में जब ये खज़ाना नहीं था

नमस्ते,
जब यह शेर पढ़ा तो दिल किया कुछ लुच्चों की तरह हम भी लुच्चई करके इसे कुछ ऐसे कर दे की

उल्फत में कैसे वफ़ा मिलती "वीनस"
किस्मत में जब ये खज़ाना नहीं था

हा हा हा ")

बहुत खूब लिखा है जी
पुराना तो ये होने से रहा

आपके मित्र के बारे में कुछ हमें भी बताईये :)

sonal April 26, 2010 at 1:39 AM  

ये पंक्तिया तो कभी पुरानी नहीं हो सकती ..क्योंकि ये तो दिल की सदा है ,एक दिल बंद होगा तो दुसरे दिल में धड्केगी

कुश April 26, 2010 at 2:12 AM  

चादर पे ख़ुशबू थी उसके बदन की
जागे तो उसका ठिकाना नहीं था

इस एक शेर में ही कहानी कह दी जी.. चलिए अच्छा हुआ किसी ने ग़ज़ल चुरा ली आपकी.. इसी बहाने आप ब्लॉग पर लौटी तो सही.. :)

वन्दना अवस्थी दुबे April 26, 2010 at 2:42 AM  

बहुत सुन्दर गज़ल.
लम्बे समय तक ब्लॉग से गायब रहने का नतीजा देख लिया न श्रद्धा जी? अब नियमितता बनाये रखें.

प्रज्ञा पांडेय April 26, 2010 at 3:20 AM  

चादर पे ख़ुशबू थी उसके बदन की
जागे तो उसका ठिकाना नहीं था
आप सच में दिल की गहरायिओं में उतार देती हैं ....चादर पर खुशबू तो थी पर वो नहीं था ना ही उसका कहीं ठिकाना था ..एक अनंत चाहत एक गहरी प्यास जिसमें कोई भीगे भी और प्यासा भी रह जाये.......बधाई

दिलीप April 26, 2010 at 3:24 AM  

उसने न टोका न दामन ही थामा
रुकने का कोई बहाना नहीं था
in panktiyon ne dil jeet liya...

अरुणेश मिश्र April 26, 2010 at 3:24 AM  

प्रशंसनीय ।

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' April 26, 2010 at 4:15 AM  

उसने न टोका न दामन ही थामा
रुकने का कोई बहाना नहीं था

दामन पर उसके कई दाग आए
आँसू उसे यूँ, गिराना नहीं था
श्रद्धा जी....
हर शेर लाजवाब....
ये खास तौर पर पसंद आये.

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" April 26, 2010 at 8:56 AM  

बहुत सुन्दर ग़ज़ल है श्रद्धा जी ! हर शेर उम्दा है ... पर ये शेर कुछ ज्यादा ही अच्छा लगा ...
उसने न टोका न दामन ही थामा
रुकने का कोई बहाना नहीं था

कडुवासच April 26, 2010 at 9:36 AM  

....बहुत खूब ... बेहतरीन गजल,प्रसंशनीय!!!!

सर्वत एम० April 26, 2010 at 10:39 AM  

याद है मेरा पिछला कमेन्ट? मैं ने कहता अब आप उस्तादों की सफ में हैं. और शायद एक हफ्ता नहीं गुज़रा, आप ने सबूत भी पेश कर दिया. इतनी टिपिकल छोटी बहर और इतने जबर्दस्त अशआर! कलेजा खून हो गया. इस पर आप फरमाती हैं कि पुरानी है!!!! यानी पूत के पाँव पालने में ही..... :)

संगीता स्वरुप ( गीत ) April 26, 2010 at 11:26 AM  

दूरी को अपनी बढ़ाना नहीं था
यूँ प्यार को आज़माना नहीं था

प्यार में कोई आजमाइश नहीं होती...

चादर पे ख़ुशबू थी उसके बदन की
जागे तो उसका ठिकाना नहीं था

अब ये तो बेवफाई हो गयी :)


दामन पर उसके कई दाग आए
आँसू उसे यूँ, गिराना नहीं था

यूँ अपने को कमज़ोर नहीं बनाना चाहिए..सच कहा...

बहुत बढ़िया ग़ज़ल....

girish pankaj April 26, 2010 at 12:58 PM  

kahaan se seekhaa itanaa achchha kahane ka hunar...? badhai. naam hi 'shraddhaa'' nahi hai,kaam bhi aisa kar rahi ho ki tumpar shrddhaa hi tapakati hai. nai peerhee men bahut kam log hai, jo is tarah doob kar sher kah rahe hai.

शारदा अरोरा April 26, 2010 at 2:12 PM  

वाह श्रद्धा जी , कितनी आसानी से लयबद्धता के साथ वो सब कह दिया है जिसके लिए भारी भरकम शब्द भी चुक जाते । हाँ निचली पोस्ट में आपकी गजलों की चोरी के बारे में पढ़ कर बुरा लगा ...अगर भाव किसी को कोई सृजन करा सके तो वो अपने आप में सार्थक हो जाता है मगर इस तरह कीर्ति की चाह शर्मनाक है ।

नीरज गोस्वामी April 26, 2010 at 2:21 PM  

उसने न टोका न दामन ही थामा
रुकने का कोई बहाना नहीं था

वाह श्रद्धा जी खजाने में से हीरा चुन लायीं हैं आप...आप के इस शेर को पढ़ कर हकीकत फिल्म में कैफ़ी जी के गीत की पंक्तियाँ याद आगयीं...
मगर उसने रोका, न उसने मनाया, न दामन ही पकड़ा, न मुझको बिठाया, न आवाज़ ही दी, न वापस बुलाया...मैं आहिस्ता आहिस्ता बढ़ता ही आया...यहाँ तक की उस से जुदा हो गया मैं...
नीरज

Irshad April 26, 2010 at 10:28 PM  

beautiful

Anonymous April 27, 2010 at 12:00 AM  

आपके अनमोल खजाने का एक और मोती पढने को मिला - आभार

डॉ. मनोज मिश्र April 27, 2010 at 12:23 AM  

बहुत ही सुन्दर लगा,आभार.

Yogi April 27, 2010 at 1:35 AM  

Bahut hi sundar..

Isi tarah likhte rahiye...

Mujhe ye gazal itni pasand aai hai, maine ise apni collection mein post kar liya hai.. with a link to your post...

Keep writing..

dipayan April 27, 2010 at 3:04 AM  

बहुत ही सुन्दर गज़ल । हर शेर लाज़वाब ।

Himanshu Mohan April 27, 2010 at 3:19 AM  

आपके ब्लॉग पर शायद पहले भी आया हूँ,
ध्यान नहीं तारीफ़ की या नहीं। आपको शायद फ़र्क़ पड़े न पड़े, मगर इतनी अच्छी रचनाओं का अगर शुक्रिया न अदा किया तो मुझे ज़रूर फ़र्क़ पड़ेगा। एक नई बात पता चली - ग़ज़लों की चोरी की।
ख़ैर, हम तो यही सोच के ख़ुश रहते हैं कि चोरी तो अच्छी चीज़ों की ही होती है, मगर है ये निहायत छिछोरी हरकत। और मतला भी बदलना या ग़ायब कर देना - ये तो साफ़-साफ़ अंदाज़े-जरायम है।
बहरहाल, आप लिखती रहिए, शुभकामनाएँ।

सुरेन्द्र "मुल्हिद" April 27, 2010 at 5:04 PM  

achi rachna likhi hai aapne...

bahut hee badhiyaa....

Sulabh Jaiswal "सुलभ" April 27, 2010 at 5:50 PM  

दामन पर उसके कई दाग आए
आँसू उसे यूँ, गिराना नहीं था

उल्फत में कैसे वफ़ा मिलती "श्रद्धा"
किस्मत में जब ये खज़ाना नहीं था

क्या बात कही...आपने!

मुकेश कुमार सिन्हा April 27, 2010 at 7:28 PM  

"chadar pe khushbu thi uske badan ki......"

kitnee pyari baat kahi aapne...khubsurat !! aur umda!!

dekhen
mere jindagi ka canvess!!
jindagikeerahen.blogspot.com

दिगम्बर नासवा April 27, 2010 at 8:53 PM  

उसने न टोका न दामन ही थामा
रुकने का कोई बहाना नहीं था

चादर पे ख़ुशबू थी उसके बदन की
जागे तो उसका ठिकाना नहीं था

इतनी बेहतरीन ग़ज़लों के सामने कुछ कहना बेमानी लगता है ... बस आनंद लेने का मन करता है ...

निर्मला कपिला April 28, 2010 at 5:13 PM  

PURANI GAZAL BHEE PURANI SHRAAB JAISEE HAI{ BESHAK NAHIN PATA KI PURANI SHRAB KAISI HOTEE HAI MAGAR SUNA HAI -- HA HA HA} GAZAL BAHUT ACHHEE LAGEE
उसने न टोका न दामन ही थामा
रुकने का कोई बहाना नहीं था
LAAJAVABAA SHER HAI

KALAAM-E-CHAUHAN April 29, 2010 at 8:42 AM  

makhta achha hai shrdha

waaaaaaaaaaaah waah

Pawan Kumar April 29, 2010 at 8:12 PM  

श्रद्धा जी ग़ज़ल बहुत ही शानदार है.......आपके लिए ये ग़ज़ल पुरानी होगी हमारे लिए तो नयी लगी, एक दम चुस्त ख्याल के हमकदम लफ़्ज़ों की अदायगी .....बहुत अच्छे ! मतला ता मक्ता ग़ज़ल बेहतरीन खासकर ये शेर तो ....क्या कहने......

चादर पे ख़ुशबू थी उसके बदन की
जागे तो उसका ठिकाना नहीं था

दामन पर उसके कई दाग आए
आँसू उसे यूँ, गिराना नहीं था

Ra April 30, 2010 at 9:47 AM  

वाह ..! हर बार की तरह ...एक शानदार प्रस्तुति ....जितनी तारीफ़ करो कम ही है ...क्या बात है ....बस ऐसे ही सफ़र जारी रखिये ...हम आपके साथ है

http://athaah.blogspot.com/

इस्मत ज़ैदी May 8, 2010 at 4:41 AM  

एक अच्छी ग़ज़ल के लिए मुबारक बाद क़ुबूल फ़रमाएं

Kishore Nath May 8, 2010 at 12:46 PM  

Idhar se guzara tha socha salam karta chalun. Isi subject se aapke email in ghazalon ke bare men mail ki hai. Zara gaur farmaye.

योगेन्द्र मौदगिल May 14, 2010 at 3:54 PM  

wah shraddha ji wah.....aapko padna achha lagta hai...

खोरेन्द्र May 14, 2010 at 8:23 PM  

उल्फत में कैसे वफ़ा मिलती "श्रद्धा"
किस्मत में जब ये खज़ाना नहीं था

bahut sundar

बादल१०२ May 16, 2010 at 9:10 PM  

bahut hi behtreen sharrdha ji,dil ko chu ke gujar gaye aap ke ye sabd

Shayar Ashok : Assistant manager (Central Bank) May 17, 2010 at 2:28 AM  

उसने न टोका न दामन ही थामा
रुकने का कोई बहाना नहीं था

दामन पर उसके कई दाग आए
आँसू उसे यूँ, गिराना नहीं था

वाह !! वाह !!
बहुत खूब....लाजवाब...

अमिताभ श्रीवास्तव May 17, 2010 at 10:28 PM  

gazale mere liye sirf gungunaane aour isme kho jaane ke liye hoti he,aour dekhiye mujhe achhi lagi.

Reetika May 24, 2010 at 12:23 AM  

chadar pe khushboo thi uske daaman ki, karvaton ko choo kar shayad koi khwoab nikal gaya tha ... sundar likhti hain aap !

Murad Jaipuri September 1, 2010 at 12:21 AM  

Zabaan ki saadgi aur jazbaat ki gahraai ne behad mutassir kiya.Aaj pahli dafa aapki ghazlon se ru-ba-ru hua.Inhen padhna pursukoon ehsaas ka doosra naam hai.Kisi khaas sher ka zikr kar doosre ash'aar ko kamtar karne ki jur'at nahin kar sakta.Aapki khushiyon aur kaamyabi ke liye dua karta hoon.

***Punam*** December 8, 2010 at 2:38 AM  

zamane ke baad kuch achcha aur sachcha padhane ko mila..
her lafz dil main utrne ko kafi hai,
mere yaar,
zindagi abhi bhi jeene ko baki hai...
shukriya !!!

Subhash Malik December 9, 2010 at 10:21 PM  

दामन पर उसके कई दाग आए
आँसू उसे यूँ, गिराना नहीं था
प्रशंसनीय

Subhash Malik December 9, 2010 at 10:26 PM  

आप की मेहनत आपका चिंन्तन अत्यंत प्रशंसनीय है

www.blogvani.com

About This Blog