यूँ प्यार को आज़माना नहीं था
कल रात एक मित्र से मेरे ग़ज़ल के सफ़र की चर्चा हो रही थी , चर्चा के दौरान शुरूवाती दौर में कही गई गजलों का जिक्र आया बस मन हुआ कि एक पुरानी ग़ज़ल पोस्ट की जाए
दूरी को अपनी बढ़ाना नहीं था
यूँ प्यार को आज़माना नहीं था
उसने न टोका न दामन ही थामा
रुकने का कोई बहाना नहीं था
चादर पे ख़ुशबू थी उसके बदन की
जागे तो उसका ठिकाना नहीं था
दामन पर उसके कई दाग आए
आँसू उसे यूँ, गिराना नहीं था
उल्फत में कैसे वफ़ा मिलती "श्रद्धा"
किस्मत में जब ये खज़ाना नहीं था
50 comments:
उसने न टोका न दामन ही थामा
रुकने का कोई बहाना नहीं था
behtareen !!
जब बता दिया सब कुछ कह के उन्हें ,
लगा कि कुछ भी उन्हें बताना नहीं था ॥
जख्म सभी सजते चले गए अपने आप ही ,
हमें उन्हें यूं इस तरह सजाना नहीं था
आपको पढा तो यूं ही लिख गया । ऐसा अक्सर होता है मेरे साथ जब भी कुछ बहुत सुंदर पढता हूं
ye aapke liye purani ghazal ho sakti hain...
pr aapka yeh post padhte waqt aisa laga ki ek taja hawa ke jhonke ne pure dilo-dimag me jhurjhuri si paida kr di hai...
lajabab rachna!
ye aapke liye purani ghazal ho sakti hain...
pr aapka yeh post padhte waqt aisa laga ki ek taja hawa ke jhonke ne pure dilo-dimag me jhurjhuri si paida kr di hai...
lajabab rachna!
चादर पे ख़ुशबू थी उसके बदन की
जागे तो उसका ठिकाना नहीं था
क्या बात है
बहुत सुन्दर
lajawab ........
दामन पर उसके कई दाग आए
आँसू उसे यूँ, गिराना नहीं था
par ye kuch samjh me nahee aaya...........
बेहतरीन!! पुरानी गज़ल..लगती नहीं कि पुरानी है. बहुत ताजा!!
कुछ शीतल सी ताजगी का अहसास करा गई आपकी रचना।
हमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.
उल्फत में कैसे वफ़ा मिलती "श्रद्धा"
किस्मत में जब ये खज़ाना नहीं था
नमस्ते,
जब यह शेर पढ़ा तो दिल किया कुछ लुच्चों की तरह हम भी लुच्चई करके इसे कुछ ऐसे कर दे की
उल्फत में कैसे वफ़ा मिलती "वीनस"
किस्मत में जब ये खज़ाना नहीं था
हा हा हा ")
बहुत खूब लिखा है जी
पुराना तो ये होने से रहा
आपके मित्र के बारे में कुछ हमें भी बताईये :)
ये पंक्तिया तो कभी पुरानी नहीं हो सकती ..क्योंकि ये तो दिल की सदा है ,एक दिल बंद होगा तो दुसरे दिल में धड्केगी
चादर पे ख़ुशबू थी उसके बदन की
जागे तो उसका ठिकाना नहीं था
इस एक शेर में ही कहानी कह दी जी.. चलिए अच्छा हुआ किसी ने ग़ज़ल चुरा ली आपकी.. इसी बहाने आप ब्लॉग पर लौटी तो सही.. :)
बहुत सुन्दर गज़ल.
लम्बे समय तक ब्लॉग से गायब रहने का नतीजा देख लिया न श्रद्धा जी? अब नियमितता बनाये रखें.
चादर पे ख़ुशबू थी उसके बदन की
जागे तो उसका ठिकाना नहीं था
आप सच में दिल की गहरायिओं में उतार देती हैं ....चादर पर खुशबू तो थी पर वो नहीं था ना ही उसका कहीं ठिकाना था ..एक अनंत चाहत एक गहरी प्यास जिसमें कोई भीगे भी और प्यासा भी रह जाये.......बधाई
उसने न टोका न दामन ही थामा
रुकने का कोई बहाना नहीं था
in panktiyon ne dil jeet liya...
प्रशंसनीय ।
उसने न टोका न दामन ही थामा
रुकने का कोई बहाना नहीं था
दामन पर उसके कई दाग आए
आँसू उसे यूँ, गिराना नहीं था
श्रद्धा जी....
हर शेर लाजवाब....
ये खास तौर पर पसंद आये.
बहुत सुन्दर ग़ज़ल है श्रद्धा जी ! हर शेर उम्दा है ... पर ये शेर कुछ ज्यादा ही अच्छा लगा ...
उसने न टोका न दामन ही थामा
रुकने का कोई बहाना नहीं था
....बहुत खूब ... बेहतरीन गजल,प्रसंशनीय!!!!
याद है मेरा पिछला कमेन्ट? मैं ने कहता अब आप उस्तादों की सफ में हैं. और शायद एक हफ्ता नहीं गुज़रा, आप ने सबूत भी पेश कर दिया. इतनी टिपिकल छोटी बहर और इतने जबर्दस्त अशआर! कलेजा खून हो गया. इस पर आप फरमाती हैं कि पुरानी है!!!! यानी पूत के पाँव पालने में ही..... :)
दूरी को अपनी बढ़ाना नहीं था
यूँ प्यार को आज़माना नहीं था
प्यार में कोई आजमाइश नहीं होती...
चादर पे ख़ुशबू थी उसके बदन की
जागे तो उसका ठिकाना नहीं था
अब ये तो बेवफाई हो गयी :)
दामन पर उसके कई दाग आए
आँसू उसे यूँ, गिराना नहीं था
यूँ अपने को कमज़ोर नहीं बनाना चाहिए..सच कहा...
बहुत बढ़िया ग़ज़ल....
kahaan se seekhaa itanaa achchha kahane ka hunar...? badhai. naam hi 'shraddhaa'' nahi hai,kaam bhi aisa kar rahi ho ki tumpar shrddhaa hi tapakati hai. nai peerhee men bahut kam log hai, jo is tarah doob kar sher kah rahe hai.
वाह श्रद्धा जी , कितनी आसानी से लयबद्धता के साथ वो सब कह दिया है जिसके लिए भारी भरकम शब्द भी चुक जाते । हाँ निचली पोस्ट में आपकी गजलों की चोरी के बारे में पढ़ कर बुरा लगा ...अगर भाव किसी को कोई सृजन करा सके तो वो अपने आप में सार्थक हो जाता है मगर इस तरह कीर्ति की चाह शर्मनाक है ।
उसने न टोका न दामन ही थामा
रुकने का कोई बहाना नहीं था
वाह श्रद्धा जी खजाने में से हीरा चुन लायीं हैं आप...आप के इस शेर को पढ़ कर हकीकत फिल्म में कैफ़ी जी के गीत की पंक्तियाँ याद आगयीं...
मगर उसने रोका, न उसने मनाया, न दामन ही पकड़ा, न मुझको बिठाया, न आवाज़ ही दी, न वापस बुलाया...मैं आहिस्ता आहिस्ता बढ़ता ही आया...यहाँ तक की उस से जुदा हो गया मैं...
नीरज
beautiful
आपके अनमोल खजाने का एक और मोती पढने को मिला - आभार
बहुत ही सुन्दर लगा,आभार.
Bahut hi sundar..
Isi tarah likhte rahiye...
Mujhe ye gazal itni pasand aai hai, maine ise apni collection mein post kar liya hai.. with a link to your post...
Keep writing..
बहुत ही सुन्दर गज़ल । हर शेर लाज़वाब ।
आपके ब्लॉग पर शायद पहले भी आया हूँ,
ध्यान नहीं तारीफ़ की या नहीं। आपको शायद फ़र्क़ पड़े न पड़े, मगर इतनी अच्छी रचनाओं का अगर शुक्रिया न अदा किया तो मुझे ज़रूर फ़र्क़ पड़ेगा। एक नई बात पता चली - ग़ज़लों की चोरी की।
ख़ैर, हम तो यही सोच के ख़ुश रहते हैं कि चोरी तो अच्छी चीज़ों की ही होती है, मगर है ये निहायत छिछोरी हरकत। और मतला भी बदलना या ग़ायब कर देना - ये तो साफ़-साफ़ अंदाज़े-जरायम है।
बहरहाल, आप लिखती रहिए, शुभकामनाएँ।
achi rachna likhi hai aapne...
bahut hee badhiyaa....
दामन पर उसके कई दाग आए
आँसू उसे यूँ, गिराना नहीं था
उल्फत में कैसे वफ़ा मिलती "श्रद्धा"
किस्मत में जब ये खज़ाना नहीं था
क्या बात कही...आपने!
"chadar pe khushbu thi uske badan ki......"
kitnee pyari baat kahi aapne...khubsurat !! aur umda!!
dekhen
mere jindagi ka canvess!!
jindagikeerahen.blogspot.com
उसने न टोका न दामन ही थामा
रुकने का कोई बहाना नहीं था
चादर पे ख़ुशबू थी उसके बदन की
जागे तो उसका ठिकाना नहीं था
इतनी बेहतरीन ग़ज़लों के सामने कुछ कहना बेमानी लगता है ... बस आनंद लेने का मन करता है ...
PURANI GAZAL BHEE PURANI SHRAAB JAISEE HAI{ BESHAK NAHIN PATA KI PURANI SHRAB KAISI HOTEE HAI MAGAR SUNA HAI -- HA HA HA} GAZAL BAHUT ACHHEE LAGEE
उसने न टोका न दामन ही थामा
रुकने का कोई बहाना नहीं था
LAAJAVABAA SHER HAI
makhta achha hai shrdha
waaaaaaaaaaaah waah
श्रद्धा जी ग़ज़ल बहुत ही शानदार है.......आपके लिए ये ग़ज़ल पुरानी होगी हमारे लिए तो नयी लगी, एक दम चुस्त ख्याल के हमकदम लफ़्ज़ों की अदायगी .....बहुत अच्छे ! मतला ता मक्ता ग़ज़ल बेहतरीन खासकर ये शेर तो ....क्या कहने......
चादर पे ख़ुशबू थी उसके बदन की
जागे तो उसका ठिकाना नहीं था
दामन पर उसके कई दाग आए
आँसू उसे यूँ, गिराना नहीं था
वाह ..! हर बार की तरह ...एक शानदार प्रस्तुति ....जितनी तारीफ़ करो कम ही है ...क्या बात है ....बस ऐसे ही सफ़र जारी रखिये ...हम आपके साथ है
http://athaah.blogspot.com/
एक अच्छी ग़ज़ल के लिए मुबारक बाद क़ुबूल फ़रमाएं
Idhar se guzara tha socha salam karta chalun. Isi subject se aapke email in ghazalon ke bare men mail ki hai. Zara gaur farmaye.
wah shraddha ji wah.....aapko padna achha lagta hai...
उल्फत में कैसे वफ़ा मिलती "श्रद्धा"
किस्मत में जब ये खज़ाना नहीं था
bahut sundar
bahut hi behtreen sharrdha ji,dil ko chu ke gujar gaye aap ke ye sabd
उसने न टोका न दामन ही थामा
रुकने का कोई बहाना नहीं था
दामन पर उसके कई दाग आए
आँसू उसे यूँ, गिराना नहीं था
वाह !! वाह !!
बहुत खूब....लाजवाब...
gazale mere liye sirf gungunaane aour isme kho jaane ke liye hoti he,aour dekhiye mujhe achhi lagi.
chadar pe khushboo thi uske daaman ki, karvaton ko choo kar shayad koi khwoab nikal gaya tha ... sundar likhti hain aap !
Zabaan ki saadgi aur jazbaat ki gahraai ne behad mutassir kiya.Aaj pahli dafa aapki ghazlon se ru-ba-ru hua.Inhen padhna pursukoon ehsaas ka doosra naam hai.Kisi khaas sher ka zikr kar doosre ash'aar ko kamtar karne ki jur'at nahin kar sakta.Aapki khushiyon aur kaamyabi ke liye dua karta hoon.
zamane ke baad kuch achcha aur sachcha padhane ko mila..
her lafz dil main utrne ko kafi hai,
mere yaar,
zindagi abhi bhi jeene ko baki hai...
shukriya !!!
दामन पर उसके कई दाग आए
आँसू उसे यूँ, गिराना नहीं था
प्रशंसनीय
आप की मेहनत आपका चिंन्तन अत्यंत प्रशंसनीय है
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