Friday, November 13, 2009

कितना आसान लगता था

Nazm,

कितना आसान लगता था
ख़्वाब में नए रंग भरना
आसमाँ मुट्ठी में करना
ख़ुश्बू से आँगन सजाना
बरसात में छत पर नहाना

कितना आसान लगता था

दौड़ कर तितली पकड़ना
हर बात पर ज़िद में झगड़ना
झील में नए गुल खिलाना
कश्तियों में, पार जाना

कितना आसान लगता था

जिंदगी में पर हक़ीक़त
ख्याल सी बिलकुल नहीं है
जिंदगी समझौता है इक
कोई जिद चलती नहीं है

जिंदगी में पर हक़ीक़त
सोच सी बिलकुल नहीं है

48 comments:

M VERMA November 13, 2009 at 11:53 PM  

जिंदगी में पर हक़ीक़त
सोच सी बिलकुल नहीं है
सही है बहुत फर्क है दोनो में

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) November 14, 2009 at 12:23 AM  

जिंदगी में पर हक़ीक़त
ख्याल सी बिलकुल नहीं है
जिंदगी समझौता है इक
कोई जिद चलती नहीं है.......


In panktiyon ne dil chhoo liya.....

bahut hi sunder kavita....

श्यामल सुमन November 14, 2009 at 12:30 AM  

बहुत खूब श्रद्धा जी।

बचपन की यादें भली होते रूप हजार।
समझौता संघर्ष ही है जीवन आधार।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' November 14, 2009 at 12:50 AM  

दौड़ कर तितली पकड़ना
हर बात पर ज़िद में झगड़ना
झील में नए गुल खिलाना
कश्तियों में, पार जाना
कितना आसान लगता था

बहुत सुन्दर गीत है!

TRIPURARI November 14, 2009 at 1:46 AM  

श्रद्धा जी,
कभी कभी सुख और दुख के बीच की रेखा मिट जाती है | फिर कितनी खुबसूरत लगने लगती है ज़िंदगी | है न.......सच !!!

राजीव तनेजा November 14, 2009 at 2:27 AM  

जिंदगी में पर हक़ीक़त
सोच सी बिलकुल नहीं है

सत्य वचन

Dr. Ashok Kumar Mishra November 14, 2009 at 3:10 AM  

आपने बहुत अच्छा लिखा है। विचार और शिल्प प्रभावित करते हैं। मैने भी अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-घरेलू हिंसा से लहूलुहान महिलाओं का तन और मन-मौका लगे तो पढ़ें और अपनी राय भी दें-

http://www.ashokvichar.blogspot.com

मेरी कविताओं पर भी आपकी राय अपेक्षित है। यदि संभव हो तो पढ़ें-

http://drashokpriyaranjan.blogspot.com

जीवन-चर्चा November 14, 2009 at 3:24 AM  

shradha ji ...achi kavita hai...mai abhi naya hu is blog ki duniya..lekin mujhe bhi hindi bhasha se bahot prem hai..
aap teacher so..apne blog me leekhe kahani ka link bhej raha hi..aap ki tippani chahunga...

http://manishmaurya89.blogspot.com/2009/11/blog-post.html

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' November 14, 2009 at 3:50 AM  

श्रद्धा जी,
गज़लें पढकर दिल बाग बाग हो गया.
क्या खूब कहा है-
चल न पाएगा वो तन्हा, ज़िंदगी की धूप में
उस को मुझ सा, कोई मिल जाए, दुआ देते रहे
लाजवाब-
धूप खिलते ही परिंदे, जाएँगे उड़, था पता
बारिशों में पेड़ फिर भी, आसरा देते रहे
मुबारकबाद आपको,
और उस्तादे-मोहतरम को सलाम...
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

गिरिजेश राव, Girijesh Rao November 14, 2009 at 9:04 AM  

बिल्कुल सही कहा आप ने।
पर सोच भी हकीकत का एक हिस्सा है।

Yogesh Verma Swapn November 14, 2009 at 9:28 AM  

जिंदगी में पर हक़ीक़त
सोच सी बिलकुल नहीं है
सही है बहुत फर्क है दोनो में


bahut khoob.

Udan Tashtari November 14, 2009 at 11:01 AM  

जिंदगी में पर हक़ीक़त
ख्याल सी बिलकुल नहीं है
जिंदगी समझौता है इक
कोई जिद चलती नहीं है


-गजब सुन्दर लिख गई...वाह के सिवाय अब कुछ निकलता नहीं..कैसा ये दिल है!! अब मचलता नहीं!!

नीरज गोस्वामी November 14, 2009 at 12:09 PM  

वाह...बहुत सच्ची बात कही है आपने श्रद्धा जी...ज़िन्दगी खूबसूरत है लेकिन इतनी भी नहीं...तल्खियाँ और खुशियाँ दोनों हैं इसमें...

नीरज

डॉ .अनुराग November 14, 2009 at 2:35 PM  

गोया पकड़ के वक़्त को थाम लेते गर......तो कितनी मुश्किलें आसां होती....

दिगम्बर नासवा November 14, 2009 at 8:05 PM  

जिंदगी में पर हक़ीक़त
ख्याल सी बिलकुल नहीं है
जिंदगी समझौता है इक
कोई जिद चलती नहीं है...

agar insaan jindagi apne haath se likh sake to baat hi kya hai .. haqeekat se judi huyee rachna hai ..
bahoot khoob likha hai ..

Manish Kumar November 15, 2009 at 10:16 PM  

baat sahi kahi aapne par kabhi kabhie bachpan ke kuch swapn samjhouton ke raston se bina takraye haqeeqat bhi bante hain.

Aur shayad isi liye hi humari umeed bandhi rahti hai aane wali zindagi se...

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) November 15, 2009 at 11:28 PM  

वाह!! वाह!!

दिल के खुश रखने को गालिब ये खयाल अच्छा है....

daanish November 16, 2009 at 12:29 AM  

कितना आसान लगता था
ख़्वाब में नए रंग भरना
आसमाँ मुट्ठी में करना
ख़ुश्बू से आँगन सजाना
बरसात में छत पर नहाना

पर हक़ीक़त
ख्याल सी बिलकुल नहीं है....

sehaj saral bhaav meiN likh di gayi aisi nayaab nazm
sach-much mn ki gehraayiyoN tk utartee hui maloom hoto hai...
zindgi ke thos phalsephe ko
samjhaane ki koshish bilkul
kaamyaab rahee hai aapki
kavyaa-shilp ek dm steek ,,,
aapki kalaa-kshamtaa ko darshaata huaa.....
abhivaadan .

लता 'हया' November 16, 2009 at 5:17 AM  

शुक्रिया श्रद्धा जी ;
आपकी रचनाएँ तो अच्छी लगी हीं लेकिन ये जान कर खुशी हुई के आप अपने मुल्क से दूर रह कर भी अपनी हिंदी के प्रसार और अध्यापन कार्य से जुड़ी हैं और यहाँ ?रोज़ भाषा के झगड़े !खैर मेरी ओर से बहुत बहुत बधाई .

गौतम राजऋषि November 16, 2009 at 11:56 AM  

"दौड़ कर तितली पकड़ना
हर बात पर ज़िद में झगड़ना.."

वाह, श्रद्धा जी का नया अंदाज़ और क्या खूब अंदाज़...

निर्मला कपिला November 17, 2009 at 11:45 AM  

जिंदगी में पर हक़ीक़त
ख्याल सी बिलकुल नहीं है
जिंदगी समझौता है इक
कोई जिद चलती नहीं है
jजीवन की सच्चाई बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है शुभकामनायें

Peeyush November 19, 2009 at 11:58 PM  

क्या खूब लिखा है श्रद्धा जी .. बहुत सुन्दर.

सुरेन्द्र "मुल्हिद" November 21, 2009 at 10:36 PM  

dil tak chhoo jaane wali baat kahi hai aapne shrdhha ji...
badhayee...

cheers!
surender
http://shayarichawla.blogspot.com/

निर्झर'नीर November 23, 2009 at 7:48 PM  

जिंदगी में पर हक़ीक़त
सोच सी बिलकुल नहीं है

kya baat kahi hai.
khoob bahot khoob

Rohit Jain November 25, 2009 at 7:26 PM  

जिंदगी में पर हक़ीक़त
ख्याल सी बिलकुल नहीं है
जिंदगी समझौता है इक
कोई जिद चलती नहीं है

achchhi rachna hai...

Satish Saxena November 26, 2009 at 12:55 AM  

वाकई ! हकीकत बयान की है आपने !

شہروز November 26, 2009 at 6:03 AM  

शुभ अभिवादन! दिनों बाद अंतरजाल पर! न जाने क्या लिख डाला आप ने! सुभान अल्लाह! खूब लेखन है आपका अंदाज़ भी निराल.खूब लिखिए. खूब पढ़िए!

Sumit November 26, 2009 at 3:09 PM  

bahot hi achha likhati hai aap. aaise hi likhte rahiye.

अमित December 5, 2009 at 5:39 PM  

बहुत खूब ! अच्छा लगा पढ़कर !

प्रवीण परिहार December 7, 2009 at 6:49 PM  

बिल्कुल सही कहा आप ने।
Thats why I Think sometime
मेरे खुबसूरत ख्याल, काश तू मेरी हकिकत होती, तो मेरी जिन्दगी भी, मेरी तन्हाई की तरह, थोडी और खुबसूरत होती।

अमिताभ त्रिपाठी ’ अमित’ December 9, 2009 at 12:23 PM  

अतीत का सुन्दर चित्रण किया है आपने।
बडे़ होने की बहुत सी कीमत चुकाते हैं हम। आसान चीजे भी कितनी मुश्किल हो जाती हैं।
सुन्दर रचना के लिये बधाई!
सादर

रंजना December 9, 2009 at 8:10 PM  

EK SAATH AAPKI KAI RACHNAYEN PADHIN AUR UNPAR MUGDH HO GAYI.....LAJAWAAB LIKHTI HAIN AAP...AAPKE LIKHNI KE SAMMUKH SWATAH HI MAN NATMASTAK HO JATA HAI....

AISE HI SUNDAR LIKHTI RAHEN....ANANT SHUBHKAMNAYEN...

alka mishra December 13, 2009 at 2:14 PM  

जिंदगी समझौता है इक
कोई जिद चलती नहीं है

आशु December 19, 2009 at 1:25 PM  

श्रदा जी ,

बहुत सही लिखा है...

जिंदगी में पर हक़ीक़त
ख्याल सी बिलकुल नहीं है
जिंदगी समझौता है इक
कोई जिद चलती नहीं है

जिंदगी में पर हक़ीक़त
सोच सी बिलकुल नहीं है

अति सुन्दर रचना..

अक्सर सिंगापुर में मेरा आना जाना लगा रहता है ..शायद कभी मुलाक़ात हो.

आशु

आशु December 19, 2009 at 1:31 PM  

श्रदा जी ,

बहुत सही लिखा है...

जिंदगी में पर हक़ीक़त
ख्याल सी बिलकुल नहीं है
जिंदगी समझौता है इक
कोई जिद चलती नहीं है

जिंदगी में पर हक़ीक़त
सोच सी बिलकुल नहीं है

अति सुन्दर रचना..

अक्सर सिंगापुर में मेरा आना जाना लगा रहता है ..शायद कभी मुलाक़ात हो.

आशु

योगेन्द्र मौदगिल December 20, 2009 at 11:53 PM  

wah...achhi kavita....

manish..... December 23, 2009 at 10:11 PM  

जिंदगी में पर हक़ीक़त
सोच सी बिलकुल नहीं है..

bahut khub.....

Pushpendra Singh "Pushp" December 31, 2009 at 3:00 PM  

बहुत खूब
बेहतरीन रचना
बहुत बहुत आभार
एवं नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं

alka mishra January 3, 2010 at 10:41 PM  

नए साल में हिन्दी ब्लागिंग का परचम बुलंद हो
स्वस्थ २०१० हो
मंगलमय २०१० हो

पर मैं अपना एक एतराज दर्ज कराना चाहती हूँ
सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगर के लिए जो वोटिंग हो रही है ,मैं आपसे पूछना चाहती हूँ की भारतीय लोकतंत्र की तरह ब्लाग्तंत्र की यह पहली प्रक्रिया ही इतनी भ्रष्ट क्यों है ,महिलाओं को ५०%तो छोडिये १०%भी आरक्षण नहीं

Anonymous January 4, 2010 at 2:09 AM  

bahut khub

खोरेन्द्र January 27, 2010 at 1:28 AM  

जिंदगी में पर हक़ीक़त
ख्याल सी बिलकुल नहीं है
जिंदगी समझौता है इक
कोई जिद चलती नहीं है

sach aur sundar dono

Akhil February 6, 2010 at 4:52 PM  

wah..wah...sach baat kahi hai aapne..dil ko chu gayi nazam..bahut shukriya.

Aadii March 8, 2010 at 12:42 PM  

bahuutt hi simple and badhiyaa rachna !!

Yatish March 25, 2010 at 1:22 PM  

Bahut sunder

It reminded me of Jagdish Sings gazal "vo kagaz ki kashti vo barish ka pani "

Anonymous May 31, 2010 at 4:08 AM  

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