Sunday, October 25, 2009

हँस के जीवन काटने का मशवरा देते रहे

हँस के जीवन काटने का, मशवरा देते रहे
आँख में आँसू लिए हम, हौसला देते रहे.

धूप खिलते ही परिंदे, जाएँगे उड़, था पता
बारिशों में पेड़ फिर भी, आसरा देते रहे

जो भी होता है, वो अच्छे के लिए होता यहाँ
इस बहाने ही तो हम, ख़ुद को दग़ा देते रहे

साथ उसके रंग, ख़ुश्बू, सुर्ख़ मुस्कानें गईं
हर खुशी को हम मगर, उसका पता देते रहे

चल न पाएगा वो तन्हा, ज़िंदगी की धूप में
उस को मुझसा, कोई मिल जाए, दुआ देते रहे

मेरे चुप होते ही, किस्सा छेड़ देते थे नया
इस तरह वो गुफ़्तगू को, सिलसिला देते रहे

पाँव में जंज़ीर थी, रस्मों-रिवाज़ों की मगर
ख़्वाब ‘श्रद्धा’ उम्र-भर, फिर भी सदा देते रहे


2122, 2122, 2122, 212

57 comments:

शरद कोकास October 25, 2009 at 1:37 AM  

चलिये हम भी गुफ्तगू को सिलसिला दे रहे हैं .. बधाई इस बेहतरीन गज़ल के लिये - शरद

Udan Tashtari October 25, 2009 at 1:41 AM  

चल न पाएगा वो तन्हा, ज़िंदगी की धूप में
उस को मुझसा, कोई मिल जाए, दुआ देते रहे

-वाह, क्या खूब कहा!! आनन्द आ गया आपकी रचना पढ़कर.

राजीव तनेजा October 25, 2009 at 2:42 AM  

साथ उसके रंग, ख़ुश्बू, सुर्ख़ मुस्कानें गईं
हर खुशी को हम मगर, उसका पता देते रहे

जो त्याग कर सकता है...वही प्रेम कर सकता है

बेहतरीन रचना

"अर्श" October 25, 2009 at 2:51 AM  

वाह जी वाह ग़ज़ल ने तो पूरी तरह से समा बाँध दिया है... मतले ने पहले जान ले ली फिर आपने ऐसे ऐसे शे'र कहे हैं के क्या कहने , धुप खिलते ही परिंदे ... क्या खूब कहन का खुबसूरत मिजाज का शे'र बना है ये ... और गुफ्तगू वाला शे'र भी अलग से दाद मांग रहा है .. बहुत बहुत बधाई जी ... और हाँ पूजा करते वक्त मैं कुछ मांगता नहीं बस मन से पूजा करता हूँ ...

अर्श

M VERMA October 25, 2009 at 7:48 AM  

जो भी होता है, वो अच्छे के लिए होता यहाँ
इस बहाने ही तो हम, ख़ुद को दग़ा देते रहे
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण गजल के लिये बधाई

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' October 25, 2009 at 9:36 AM  

धूप खिलते ही परिंदे, जाएँगे उड़, था पता
बारिशों में पेड़ फिर भी, आसरा देते रहे

वाह...वाह....!
श्रद्धा जैन जी आपने तो ग़ज़ल में
"अश्आर नही सुन्दर मोती टाँक दिये हैं।"

पारुल "पुखराज" October 25, 2009 at 11:36 AM  

धूप खिलते ही परिंदे, जाएँगे उड़, था पता
बारिशों में पेड़ फिर भी, आसरा देते रहे

जो भी होता है, वो अच्छे के लिए होता यहाँ
इस बहाने ही तो हम, ख़ुद को दग़ा देते रहे

bahut khuub shraddha...bahut badhiyaa

Yogi October 25, 2009 at 1:16 PM  

Every sher is extra-ordinary..

WOWW !!!

Lajavaab.........

Would like to add it to my collection..

पी.सी.गोदियाल "परचेत" October 25, 2009 at 1:37 PM  

चल न पाएगा वो तन्हा, ज़िंदगी की धूप में
उस को मुझसा, कोई मिल जाए, दुआ देते रहे

मेरे चुप होते ही, किस्सा छेड़ देते थे नया
इस तरह वो गुफ़्तगू को, सिलसिला देते रहे


बहुत सुन्दर श्रदा जी !

Nipun Pandey October 25, 2009 at 2:54 PM  

मेरे चुप होते ही, किस्सा छेड़ देते थे नया
इस तरह वो गुफ़्तगू को, सिलसिला देते रहे


वाह श्रद्धा जी
बहुत खूब कहा है ........
:):)
उम्दा ग़ज़ल बनी है ...:)

Unknown October 25, 2009 at 4:27 PM  

बहुत ही बढिया शेर है और गज़ल के रूप मए थीक से पिरोए गये है

Yogesh Verma Swapn October 25, 2009 at 6:37 PM  

WAH

मेरे चुप होते ही, किस्सा छेड़ देते थे नया
इस तरह वो गुफ़्तगू को, सिलसिला देते रहे

पाँव में जंज़ीर थी, रस्मों-रिवाज़ों की मगर
ख़्वाब ‘श्रद्धा’ उम्र-भर, फिर भी सदा देते रहे
BEHATAREEN PANKTIAN. BADHAAI.

प्रिया October 25, 2009 at 9:19 PM  

धूप खिलते ही परिंदे, जाएँगे उड़, था पता
बारिशों में पेड़ फिर भी, आसरा देते रहे

waise to sabhi sher achchey hai .....but hamhe ye wala bahut achcha laga

दिगम्बर नासवा October 25, 2009 at 9:47 PM  

मेरे चुप होते ही, किस्सा छेड़ देते थे नया
इस तरह वो गुफ़्तगू को, सिलसिला देते रहे

पाँव में जंज़ीर थी, रस्मों-रिवाज़ों की मगर
ख़्वाब ‘श्रद्धा’ उम्र-भर, फिर भी सदा देते रहे

खूबसूरत शेर हैं सब के सब ........ सुभान अल्ला ........ पकी हुयी फसल की तरह .

संजीव गौतम October 25, 2009 at 9:49 PM  

हँस के जीवन काटने का, मशवरा देते रहे
आँख में आँसू लिए हम, हौसला देते रहे.

धूप खिलते ही परिंदे, जाएँगे उड़, था पता
बारिशों में पेड़ फिर भी, आसरा देते रहे.
बहुत खूबसूरत अशआर हुए हैं. बारिशों वाला शेर तो गज़ब का है.

ललितमोहन त्रिवेदी October 25, 2009 at 11:18 PM  

धूप खिलते ही परिंदे, जाएँगे उड़, था पता
बारिशों में पेड़ फिर भी, आसरा देते रहे ........(निस्पृह समर्पण )

जो भी होता है, वो अच्छे के लिए होता यहाँ
इस बहाने ही तो हम, ख़ुद को दग़ा देते रहे ..........( दर्द की गहरी अनुभूति )

साथ उसके रंग, ख़ुश्बू, सुर्ख़ मुस्कानें गईं
हर खुशी को हम मगर, उसका पता देते रहे...........( सिर्फ देना और देना ....)

चल न पाएगा वो तन्हा, ज़िंदगी की धूप में
उस को मुझसा, कोई मिल जाए, दुआ देते रहे...........( जहाँ प्रेम भक्ति का रूप ले लेता है )

पाँव में जंज़ीर थी, रस्मों-रिवाज़ों की मगर
ख़्वाब ‘श्रद्धा’ उम्र-भर, फिर भी सदा देते रहे

श्रृद्धा जी ! मेरे पास इतने शब्द नहीं हैं जो इस ग़ज़ल की पूरी प्रशंसा कर सकूँ ! प्यार और समर्पण की असीम गहराई से उठी यह ग़ज़ल प्यार को इबादत का दर्जा दे देती है ! कहन का अंदाज़ , लाज़बाब मतला ,एक से बढ़कर एक खूबसूरत शे'र और बिछ जाने लायक मकता ......सचमुच हमतो कायल हो गए आपके !

शोभित जैन October 26, 2009 at 12:26 AM  

bahut hi behtareen gazal....ek ek sher jaandaar...

daanish October 26, 2009 at 12:37 AM  

जो भी होता है, वो अच्छे के लिए होता यहाँ
इस बहाने ही तो हम, ख़ुद को दग़ा देते रहे

बहुत ही खूबसूरत शेर कहा है
और,,,
खुद को दगा देते रहे ... का जवाब नहीं
ग़ज़ल का कथानक , तकनीक , और सलीका
सब शानदार है

"शेर हर इक खुशनुमा हो, हर ग़ज़ल हो पायदार
हम ग़ज़ल पढ़ कर, यही दिल से दुआ देते रहे"

KK Yadav October 26, 2009 at 3:54 AM  

पाँव में जंज़ीर थी, रस्मों-रिवाज़ों की मगर
ख़्वाब ‘श्रद्धा’ उम्र-भर, फिर भी सदा देते रहे
.....Bahut khub.shabdon men kashish hai.

सर्वत एम० October 26, 2009 at 12:31 PM  

आपकी कोशिश, मेहनत, लगन सभी इस गजल में साफ़ नजर आ रही हैं. इतने सारे लोगों की तारीफें इस बात का जीता जागता सबूत है कि एक शानदार-जानदार गजल वजूद में आ चुकी है. इस खूबसूरत रचना के लिए बधाई.

Prem October 26, 2009 at 1:43 PM  

बहुत सुंदर ग़ज़ल ,मज़ा आ गया ,आपकी बाकि रचनाये भी पहली बार पढ़ी ,सभी भावः पूर्ण एवं प्रशंसनीय हैं ।मेरे ब्लॉग पर आने का शुक्रिया ।

नीरज गोस्वामी October 26, 2009 at 3:31 PM  

जो भी होता है, वो अच्छे के लिए होता यहाँ
इस बहाने ही तो हम, ख़ुद को दग़ा देते रहे

श्रधा जी तालियाँ...ढेरों तालियाँ...इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए...वाह...हर शेर कामयाब है...
नीरज

Dr. Amar Jyoti October 26, 2009 at 4:17 PM  

एक अच्छी ग़ज़ल के लिये बधाई।

निर्झर'नीर October 26, 2009 at 4:41 PM  

साथ उसके रंग, ख़ुश्बू, सुर्ख़ मुस्कानें गईं
हर खुशी को हम मगर, उसका पता देते रहे

khoob bahot khoob ye sher kuch jyada hi dilnashi raha..

निर्मला कपिला October 26, 2009 at 5:18 PM  

धूप खिलते ही परिंदे, जाएँगे उड़, था पता
बारिशों में पेड़ फिर भी, आसरा देते रहेचल न पाएगा वो तन्हा, ज़िंदगी की धूप में
उस को मुझसा, कोई मिल जाए, दुआ देते रहे
लाजव्ाब पूरी गज़ल क्या खूब कही बहुत बहुत बधाई

गौतम राजऋषि October 26, 2009 at 9:59 PM  

"साथ उसके रंग, ख़ुश्बू, सुर्ख़ मुस्कानें गईं
हर खुशी को हम मगर, उसका पता देते रहे"

आहहा मैम...इस एक शेर पर सब निछावर है। सब कुछ।
यूं तो हमेशा की तरह पूरी ग़ज़ल बेहतरईन बन पड़ी है, लेकिन इस एक शेर ने मन मोह लिया।

...और फिर जब इस "उस को मुझसा, कोई मिल जाए, दुआ देते रहे" मिस्रे पर नजर पढ़ी तो ईष्या से जल उठा। आह! सुना था कुछ मिस्रे स्वर्ग से उतरते हैं। कुछ वैसा ही है ये।

रवीन्द्र दास October 27, 2009 at 4:26 PM  

shraddha ji, aap hamari kavita ko apna nahi mana, iska mujhe afsos hai.

डॉ .अनुराग October 27, 2009 at 10:43 PM  

जो भी होता है, वो अच्छे के लिए होता यहाँ
इस बहाने ही तो हम, ख़ुद को दग़ा देते रहे




देरी के लिए मुआफी.....ये शेर बहुत पसंद आया ....

Mumukshh Ki Rachanain October 28, 2009 at 11:59 AM  

जो भी होता है, वो अच्छे के लिए होता यहाँ
इस बहाने ही तो हम, ख़ुद को दग़ा देते रहे

इंसानी फितरत, पराश्रित, करे भी तो क्या करे, दगा ही सही, पाप तो कटा...........

चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com

Nirbhay Jain October 29, 2009 at 2:22 PM  

पाँव में जंज़ीर थी, रस्मों-रिवाज़ों की मगर
ख़्वाब ‘श्रद्धा’ उम्र-भर, फिर भी सदा देते रहे

बहुत ही अच्छी रचना !! बधाई

"रस्मो की जंजीर में भी, ख्वाब सुहाने आते रहे
हम अपने मर्यादा में रहकर सदा मुस्कुराते रहे"

‘सज्जन’ धर्मेन्द्र October 30, 2009 at 5:03 AM  

एक सुन्दर गज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं धन्यवाद श्रद्धा जी।

योगेन्द्र मौदगिल October 30, 2009 at 10:32 PM  

इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिये मेरी विलंबित बधाई स्वीकारें....

कडुवासच October 31, 2009 at 11:35 PM  

धूप खिलते ही परिंदे, जाएँगे उड़, था पता
बारिशों में पेड़ फिर भी, आसरा देते रहे
... behatareen abhivyakti !!!!

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) November 3, 2009 at 10:02 AM  

pahli baar aapke blog par aa raha hoon aur stabdh hoon..kamaal ka likhti hain aap..

"जो भी होता है, वो अच्छे के लिए होता यहाँ
इस बहाने ही तो हम, ख़ुद को दग़ा देते रहे"

"पाँव में जंज़ीर थी, रस्मों-रिवाज़ों की मगर
ख़्वाब ‘श्रद्धा’ उम्र-भर, फिर भी सदा देते रहे"

bas laajwaab.....

Anonymous November 3, 2009 at 1:56 PM  
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Asha Joglekar November 5, 2009 at 8:42 AM  

क्या गज़ल है एक एक शेर लाजवाब श्रध्दा जी ।

Anonymous November 6, 2009 at 5:20 PM  
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Anonymous November 6, 2009 at 10:17 PM  
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Manav Mehta 'मन' November 7, 2009 at 7:12 PM  

चल न पाएगा वो तन्हा, ज़िंदगी की धूप में
उस को मुझसा, कोई मिल जाए, दुआ देते रहे

बहुत सुन्दर श्रदा जी !

गौतम राजऋषि November 9, 2009 at 1:05 AM  

जन्म-दिवस पे कोई ग़ज़ल नहीं?????

बुहूहूहूsssssss!

खैर जन्म-दिन की फिर से खूब सारी बधाईयां!

Anonymous November 10, 2009 at 9:59 PM  

Bahut bahut khoob likha hai Shradhha ji..

chandrapal November 12, 2009 at 6:04 PM  

ये गज़ले नहीं, हमारी संवेदनाओ का अहसास है..जो हर वक्त साथ रहता है और प्रेरित करता है.. जीने के लिए... आपको बधाई...

SURINDER RATTI November 13, 2009 at 2:42 PM  

पाँव में जंज़ीर थी, रस्मों-रिवाज़ों की मगर
ख़्वाब ‘श्रद्धा’ उम्र-भर, फिर भी सदा देते रहे
Shraddha Ji,
badhai..
Surinder

योगेन्द्र मौदगिल November 13, 2009 at 6:04 PM  

है के लिये शुक्रिया... मैंने आज नोट किया..

और इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिये बधाई....

Ashish Anchinhar November 14, 2009 at 7:44 PM  

vah, vah, vha iske siva kuch bhi nhi

Ashish Anchinhar November 14, 2009 at 7:45 PM  

vah,vah, vah iske siva koi shabd nhi

Satish Saxena November 26, 2009 at 12:54 AM  

बहुत बढ़िया, श्रद्धा जी ! दिल को छू जाने वाली रचना के लिए बधाई !

Ambarish December 6, 2009 at 4:43 AM  

shandaar rachna... itna waqt kaise lag gaya mujhe yahan pahunchne mein!!!

प्रदीप कांत December 11, 2009 at 8:37 PM  

मेरे चुप होते ही, किस्सा छेड़ देते थे नया
इस तरह वो गुफ़्तगू को, सिलसिला देते रहे

BADHIYA

manu January 6, 2010 at 1:21 AM  

आप को भी नहीं पता होगा शायद...
के आपने क्या लिख दिया...

संजय भास्‍कर January 13, 2010 at 7:06 PM  

bahut hi behtareen gazal....ek ek sher jaandaar...

संजय भास्‍कर January 13, 2010 at 7:07 PM  

चल न पाएगा वो तन्हा, ज़िंदगी की धूप में
उस को मुझसा, कोई मिल जाए, दुआ देते रहे

बहुत सुन्दर श्रदा जी !

इस्मत ज़ैदी January 15, 2010 at 11:40 AM  

shraddha ji ap mere blog par ayin bahut bahut dhanyavad
kal ke bad aj phir main is blog par aane se khud ko nahin rok payi
is ghazal men kis sher ki pahle tareef karoon samajh nahin pa rahi hoon ,har sher apneap men bhavnaon ka samandar samete hue hai ,bahut bahut mubarak ho .

खोरेन्द्र January 27, 2010 at 1:31 AM  

पाँव में जंज़ीर थी, रस्मों-रिवाज़ों की मगर
ख़्वाब ‘श्रद्धा’ उम्र-भर, फिर भी सदा देते रहे

very nice

Akhil February 6, 2010 at 4:54 PM  

साथ उसके रंग, ख़ुश्बू, सुर्ख़ मुस्कानें गईं
हर खुशी को हम मगर, उसका पता देते रहे

bahut sundar..ek aur kamaal ki gazal..aapki saari rachnayen hi ek se badh kar ek hain..

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" April 8, 2010 at 10:38 AM  

धूप खिलते ही परिंदे, जाएँगे उड़, था पता
बारिशों में पेड़ फिर भी, आसरा देते रहे
साथ उसके रंग, ख़ुश्बू, सुर्ख़ मुस्कानें गईं
हर खुशी को हम मगर, उसका पता देते रहे
चल न पाएगा वो तन्हा, ज़िंदगी की धूप में
उस को मुझसा, कोई मिल जाए, दुआ देते रहे

ग़ज़ल बहुत ही सुन्दर है ... और ये शेर तो ...लाजवाब ! ... इतने सुन्दर भाव ...और इतनी सुन्दर तरह से लिखी गयी है की कहने को अल्फाज़ नहीं है ... आपकी ग़ज़लों में वो दर्द छुपा रहता है जो पढने वालों के दिल को छुं जाता है !

Coreydpdl January 18, 2013 at 4:47 PM  

vah,vah, vah iske siva koi shabd nhi

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