हँस के जीवन काटने का मशवरा देते रहे
हँस के जीवन काटने का, मशवरा देते रहे
आँख में आँसू लिए हम, हौसला देते रहे.
धूप खिलते ही परिंदे, जाएँगे उड़, था पता
बारिशों में पेड़ फिर भी, आसरा देते रहे
जो भी होता है, वो अच्छे के लिए होता यहाँ
इस बहाने ही तो हम, ख़ुद को दग़ा देते रहे
साथ उसके रंग, ख़ुश्बू, सुर्ख़ मुस्कानें गईं
हर खुशी को हम मगर, उसका पता देते रहे
चल न पाएगा वो तन्हा, ज़िंदगी की धूप में
उस को मुझसा, कोई मिल जाए, दुआ देते रहे
मेरे चुप होते ही, किस्सा छेड़ देते थे नया
इस तरह वो गुफ़्तगू को, सिलसिला देते रहे
पाँव में जंज़ीर थी, रस्मों-रिवाज़ों की मगर
ख़्वाब ‘श्रद्धा’ उम्र-भर, फिर भी सदा देते रहे
2122, 2122, 2122, 212
57 comments:
चलिये हम भी गुफ्तगू को सिलसिला दे रहे हैं .. बधाई इस बेहतरीन गज़ल के लिये - शरद
चल न पाएगा वो तन्हा, ज़िंदगी की धूप में
उस को मुझसा, कोई मिल जाए, दुआ देते रहे
-वाह, क्या खूब कहा!! आनन्द आ गया आपकी रचना पढ़कर.
साथ उसके रंग, ख़ुश्बू, सुर्ख़ मुस्कानें गईं
हर खुशी को हम मगर, उसका पता देते रहे
जो त्याग कर सकता है...वही प्रेम कर सकता है
बेहतरीन रचना
वाह जी वाह ग़ज़ल ने तो पूरी तरह से समा बाँध दिया है... मतले ने पहले जान ले ली फिर आपने ऐसे ऐसे शे'र कहे हैं के क्या कहने , धुप खिलते ही परिंदे ... क्या खूब कहन का खुबसूरत मिजाज का शे'र बना है ये ... और गुफ्तगू वाला शे'र भी अलग से दाद मांग रहा है .. बहुत बहुत बधाई जी ... और हाँ पूजा करते वक्त मैं कुछ मांगता नहीं बस मन से पूजा करता हूँ ...
अर्श
जो भी होता है, वो अच्छे के लिए होता यहाँ
इस बहाने ही तो हम, ख़ुद को दग़ा देते रहे
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण गजल के लिये बधाई
धूप खिलते ही परिंदे, जाएँगे उड़, था पता
बारिशों में पेड़ फिर भी, आसरा देते रहे
वाह...वाह....!
श्रद्धा जैन जी आपने तो ग़ज़ल में
"अश्आर नही सुन्दर मोती टाँक दिये हैं।"
धूप खिलते ही परिंदे, जाएँगे उड़, था पता
बारिशों में पेड़ फिर भी, आसरा देते रहे
जो भी होता है, वो अच्छे के लिए होता यहाँ
इस बहाने ही तो हम, ख़ुद को दग़ा देते रहे
bahut khuub shraddha...bahut badhiyaa
Every sher is extra-ordinary..
WOWW !!!
Lajavaab.........
Would like to add it to my collection..
चल न पाएगा वो तन्हा, ज़िंदगी की धूप में
उस को मुझसा, कोई मिल जाए, दुआ देते रहे
मेरे चुप होते ही, किस्सा छेड़ देते थे नया
इस तरह वो गुफ़्तगू को, सिलसिला देते रहे
बहुत सुन्दर श्रदा जी !
मेरे चुप होते ही, किस्सा छेड़ देते थे नया
इस तरह वो गुफ़्तगू को, सिलसिला देते रहे
वाह श्रद्धा जी
बहुत खूब कहा है ........
:):)
उम्दा ग़ज़ल बनी है ...:)
बहुत ही बढिया शेर है और गज़ल के रूप मए थीक से पिरोए गये है
WAH
मेरे चुप होते ही, किस्सा छेड़ देते थे नया
इस तरह वो गुफ़्तगू को, सिलसिला देते रहे
पाँव में जंज़ीर थी, रस्मों-रिवाज़ों की मगर
ख़्वाब ‘श्रद्धा’ उम्र-भर, फिर भी सदा देते रहे
BEHATAREEN PANKTIAN. BADHAAI.
धूप खिलते ही परिंदे, जाएँगे उड़, था पता
बारिशों में पेड़ फिर भी, आसरा देते रहे
waise to sabhi sher achchey hai .....but hamhe ye wala bahut achcha laga
मेरे चुप होते ही, किस्सा छेड़ देते थे नया
इस तरह वो गुफ़्तगू को, सिलसिला देते रहे
पाँव में जंज़ीर थी, रस्मों-रिवाज़ों की मगर
ख़्वाब ‘श्रद्धा’ उम्र-भर, फिर भी सदा देते रहे
खूबसूरत शेर हैं सब के सब ........ सुभान अल्ला ........ पकी हुयी फसल की तरह .
हँस के जीवन काटने का, मशवरा देते रहे
आँख में आँसू लिए हम, हौसला देते रहे.
धूप खिलते ही परिंदे, जाएँगे उड़, था पता
बारिशों में पेड़ फिर भी, आसरा देते रहे.
बहुत खूबसूरत अशआर हुए हैं. बारिशों वाला शेर तो गज़ब का है.
धूप खिलते ही परिंदे, जाएँगे उड़, था पता
बारिशों में पेड़ फिर भी, आसरा देते रहे ........(निस्पृह समर्पण )
जो भी होता है, वो अच्छे के लिए होता यहाँ
इस बहाने ही तो हम, ख़ुद को दग़ा देते रहे ..........( दर्द की गहरी अनुभूति )
साथ उसके रंग, ख़ुश्बू, सुर्ख़ मुस्कानें गईं
हर खुशी को हम मगर, उसका पता देते रहे...........( सिर्फ देना और देना ....)
चल न पाएगा वो तन्हा, ज़िंदगी की धूप में
उस को मुझसा, कोई मिल जाए, दुआ देते रहे...........( जहाँ प्रेम भक्ति का रूप ले लेता है )
पाँव में जंज़ीर थी, रस्मों-रिवाज़ों की मगर
ख़्वाब ‘श्रद्धा’ उम्र-भर, फिर भी सदा देते रहे
श्रृद्धा जी ! मेरे पास इतने शब्द नहीं हैं जो इस ग़ज़ल की पूरी प्रशंसा कर सकूँ ! प्यार और समर्पण की असीम गहराई से उठी यह ग़ज़ल प्यार को इबादत का दर्जा दे देती है ! कहन का अंदाज़ , लाज़बाब मतला ,एक से बढ़कर एक खूबसूरत शे'र और बिछ जाने लायक मकता ......सचमुच हमतो कायल हो गए आपके !
bahut hi behtareen gazal....ek ek sher jaandaar...
जो भी होता है, वो अच्छे के लिए होता यहाँ
इस बहाने ही तो हम, ख़ुद को दग़ा देते रहे
बहुत ही खूबसूरत शेर कहा है
और,,,
खुद को दगा देते रहे ... का जवाब नहीं
ग़ज़ल का कथानक , तकनीक , और सलीका
सब शानदार है
"शेर हर इक खुशनुमा हो, हर ग़ज़ल हो पायदार
हम ग़ज़ल पढ़ कर, यही दिल से दुआ देते रहे"
पाँव में जंज़ीर थी, रस्मों-रिवाज़ों की मगर
ख़्वाब ‘श्रद्धा’ उम्र-भर, फिर भी सदा देते रहे
.....Bahut khub.shabdon men kashish hai.
आपकी कोशिश, मेहनत, लगन सभी इस गजल में साफ़ नजर आ रही हैं. इतने सारे लोगों की तारीफें इस बात का जीता जागता सबूत है कि एक शानदार-जानदार गजल वजूद में आ चुकी है. इस खूबसूरत रचना के लिए बधाई.
बहुत सुंदर ग़ज़ल ,मज़ा आ गया ,आपकी बाकि रचनाये भी पहली बार पढ़ी ,सभी भावः पूर्ण एवं प्रशंसनीय हैं ।मेरे ब्लॉग पर आने का शुक्रिया ।
जो भी होता है, वो अच्छे के लिए होता यहाँ
इस बहाने ही तो हम, ख़ुद को दग़ा देते रहे
श्रधा जी तालियाँ...ढेरों तालियाँ...इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए...वाह...हर शेर कामयाब है...
नीरज
एक अच्छी ग़ज़ल के लिये बधाई।
साथ उसके रंग, ख़ुश्बू, सुर्ख़ मुस्कानें गईं
हर खुशी को हम मगर, उसका पता देते रहे
khoob bahot khoob ye sher kuch jyada hi dilnashi raha..
धूप खिलते ही परिंदे, जाएँगे उड़, था पता
बारिशों में पेड़ फिर भी, आसरा देते रहेचल न पाएगा वो तन्हा, ज़िंदगी की धूप में
उस को मुझसा, कोई मिल जाए, दुआ देते रहे
लाजव्ाब पूरी गज़ल क्या खूब कही बहुत बहुत बधाई
"साथ उसके रंग, ख़ुश्बू, सुर्ख़ मुस्कानें गईं
हर खुशी को हम मगर, उसका पता देते रहे"
आहहा मैम...इस एक शेर पर सब निछावर है। सब कुछ।
यूं तो हमेशा की तरह पूरी ग़ज़ल बेहतरईन बन पड़ी है, लेकिन इस एक शेर ने मन मोह लिया।
...और फिर जब इस "उस को मुझसा, कोई मिल जाए, दुआ देते रहे" मिस्रे पर नजर पढ़ी तो ईष्या से जल उठा। आह! सुना था कुछ मिस्रे स्वर्ग से उतरते हैं। कुछ वैसा ही है ये।
shraddha ji, aap hamari kavita ko apna nahi mana, iska mujhe afsos hai.
जो भी होता है, वो अच्छे के लिए होता यहाँ
इस बहाने ही तो हम, ख़ुद को दग़ा देते रहे
देरी के लिए मुआफी.....ये शेर बहुत पसंद आया ....
जो भी होता है, वो अच्छे के लिए होता यहाँ
इस बहाने ही तो हम, ख़ुद को दग़ा देते रहे
इंसानी फितरत, पराश्रित, करे भी तो क्या करे, दगा ही सही, पाप तो कटा...........
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
पाँव में जंज़ीर थी, रस्मों-रिवाज़ों की मगर
ख़्वाब ‘श्रद्धा’ उम्र-भर, फिर भी सदा देते रहे
बहुत ही अच्छी रचना !! बधाई
"रस्मो की जंजीर में भी, ख्वाब सुहाने आते रहे
हम अपने मर्यादा में रहकर सदा मुस्कुराते रहे"
एक सुन्दर गज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं धन्यवाद श्रद्धा जी।
इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिये मेरी विलंबित बधाई स्वीकारें....
धूप खिलते ही परिंदे, जाएँगे उड़, था पता
बारिशों में पेड़ फिर भी, आसरा देते रहे
... behatareen abhivyakti !!!!
pahli baar aapke blog par aa raha hoon aur stabdh hoon..kamaal ka likhti hain aap..
"जो भी होता है, वो अच्छे के लिए होता यहाँ
इस बहाने ही तो हम, ख़ुद को दग़ा देते रहे"
"पाँव में जंज़ीर थी, रस्मों-रिवाज़ों की मगर
ख़्वाब ‘श्रद्धा’ उम्र-भर, फिर भी सदा देते रहे"
bas laajwaab.....
क्या गज़ल है एक एक शेर लाजवाब श्रध्दा जी ।
चल न पाएगा वो तन्हा, ज़िंदगी की धूप में
उस को मुझसा, कोई मिल जाए, दुआ देते रहे
बहुत सुन्दर श्रदा जी !
जन्म-दिवस पे कोई ग़ज़ल नहीं?????
बुहूहूहूsssssss!
खैर जन्म-दिन की फिर से खूब सारी बधाईयां!
Bahut bahut khoob likha hai Shradhha ji..
ये गज़ले नहीं, हमारी संवेदनाओ का अहसास है..जो हर वक्त साथ रहता है और प्रेरित करता है.. जीने के लिए... आपको बधाई...
पाँव में जंज़ीर थी, रस्मों-रिवाज़ों की मगर
ख़्वाब ‘श्रद्धा’ उम्र-भर, फिर भी सदा देते रहे
Shraddha Ji,
badhai..
Surinder
है के लिये शुक्रिया... मैंने आज नोट किया..
और इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिये बधाई....
vah, vah, vha iske siva kuch bhi nhi
vah,vah, vah iske siva koi shabd nhi
बहुत बढ़िया, श्रद्धा जी ! दिल को छू जाने वाली रचना के लिए बधाई !
shandaar rachna... itna waqt kaise lag gaya mujhe yahan pahunchne mein!!!
मेरे चुप होते ही, किस्सा छेड़ देते थे नया
इस तरह वो गुफ़्तगू को, सिलसिला देते रहे
BADHIYA
आप को भी नहीं पता होगा शायद...
के आपने क्या लिख दिया...
bahut hi behtareen gazal....ek ek sher jaandaar...
चल न पाएगा वो तन्हा, ज़िंदगी की धूप में
उस को मुझसा, कोई मिल जाए, दुआ देते रहे
बहुत सुन्दर श्रदा जी !
shraddha ji ap mere blog par ayin bahut bahut dhanyavad
kal ke bad aj phir main is blog par aane se khud ko nahin rok payi
is ghazal men kis sher ki pahle tareef karoon samajh nahin pa rahi hoon ,har sher apneap men bhavnaon ka samandar samete hue hai ,bahut bahut mubarak ho .
पाँव में जंज़ीर थी, रस्मों-रिवाज़ों की मगर
ख़्वाब ‘श्रद्धा’ उम्र-भर, फिर भी सदा देते रहे
very nice
साथ उसके रंग, ख़ुश्बू, सुर्ख़ मुस्कानें गईं
हर खुशी को हम मगर, उसका पता देते रहे
bahut sundar..ek aur kamaal ki gazal..aapki saari rachnayen hi ek se badh kar ek hain..
धूप खिलते ही परिंदे, जाएँगे उड़, था पता
बारिशों में पेड़ फिर भी, आसरा देते रहे
साथ उसके रंग, ख़ुश्बू, सुर्ख़ मुस्कानें गईं
हर खुशी को हम मगर, उसका पता देते रहे
चल न पाएगा वो तन्हा, ज़िंदगी की धूप में
उस को मुझसा, कोई मिल जाए, दुआ देते रहे
ग़ज़ल बहुत ही सुन्दर है ... और ये शेर तो ...लाजवाब ! ... इतने सुन्दर भाव ...और इतनी सुन्दर तरह से लिखी गयी है की कहने को अल्फाज़ नहीं है ... आपकी ग़ज़लों में वो दर्द छुपा रहता है जो पढने वालों के दिल को छुं जाता है !
vah,vah, vah iske siva koi shabd nhi
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