हमदर्द मगर कोई बनाया करो ‘श्रद्धा’
सबको न गले ऐसे लगाया करो 'श्रद्धा'
हमदर्द करीब अपने बिठाया करो 'श्रद्धा'
बैठो कभी जब अक्स तुम्हारा हो मुकाबिल
आँखें न कभी खुद से चुराया करो 'श्रद्धा'
जाओ किसी मेले में, कभी बाग़ में टहलो
हंस-हंस के भरम ग़म का मिटाया करो 'श्रद्धा'
बन्दूक तमंचे ही दिखाते हो तुम अक्सर
बच्चों को परिंदे भी दिखाया करो 'श्रद्धा'
तुम दर्द की बरसात में रोजाना नहाओ
सूखे में भी मल-मल के नहाया करो 'श्रद्धा'
आते ही, चले जाने की उलझन को लपेटे
आते हो, तो इस तरह न आया करो 'श्रद्धा'
रिश्तों को तिजारत की तराजू से न तोलो
कुछ त्याग-समर्पण भी उठाया करो 'श्रद्धा'
76 comments:
bahut hi behatreen ghazal kahi aapne padhi aur padhta gaya.....shabd saral aur baat itni badi ki bas ek hi aawaaj nikli waaaaaaaaaaah wah
जाया करो मेले कभी, बागों में भी टहलो
हंस-हंस के भरम ग़म का मिटाया करो ‘श्रद्धा’
क्या बात है. बहुत खूब. बहुत अच्छे शेर ... और बहुत बढ़िया प्रयोग.
woww diiiiiiii.....bahut khoobsoorat gazal hai.....really inspiring...maza aa gaya.....
वाह जी यह बहुत बढ़िया कृति है
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Tech Prevue: तकनीक दृष्टा
KYA BAAT HAI SHRADHAA JI .. KYA KHUB RADIF CHUNAA AHI AAPNE.. WAAH MAIN TO EK BAAR DEKH KE DANG RAH GAYAA THA MAGAR JIS TARAH SE AAPNE NIRVAAH KIYAA HAI WO TO KAHNE LAYAK NAHI AB... BAHUT BAHUT BADHAAYE JI
ARSH
बहुत खुब। सुन्दर रचना.........
सुन्दर रचना आभार
नुकसान-नफा सोच के रिश्ते नहीं बनते
कुछ त्याग-समर्पण भी तो लाया करो ‘श्रद्धा’
Last one is best .
"बैठा करो कुछ देर चराग़ों को बुझा कर
आँखें कभी खुद से, न चुराया करो ‘श्रद्धा’
नुकसान-नफा सोच के रिश्ते नहीं बनते
कुछ त्याग-समर्पण भी तो लाया करो ‘श्रद्धा’"
हर शेर लाजवाब...उम्दा ग़ज़ल....बहुत बहुत बधाई....
क्या बात है, बहुत खूब, लाजवाब रचना।
बैठा करो कुछ देर चराग़ों को बुझा कर
आँखें कभी खुद से, न चुराया करो ‘श्रद्धा’
बहुत खुब ......
नुकसान-नफा सोच के रिश्ते नहीं बनते
कुछ त्याग-समर्पण भी तो लाया करो
सही है जिन रिश्तो मे लाभ-हानी का
हिसाब किताब वो ।
वो सम्बंध फ़िर सम्बंध नही व्यापार हो जाते है
बैठा करो कुछ देर चराग़ों को बुझा कर
आँखें कभी खुद से, न चुराया करो ‘श्रद्धा
ये क्या कि हो जाना तेरा महफ़िल में भी तन्हा
आते हो तो इस तरह न आया करो ‘श्रद्धा’
नुकसान-नफा सोच के रिश्ते नहीं बनते
कुछ त्याग-समर्पण भी तो लाया करो ‘श्रद्धा’
क्या कहने हैं श्रृद्धा जी , बहुत खूब ! ये तीन अशआर और मतला , इनकी तो जितनी भी तारीफ की जाय कम ही है ! रदीफ़ का ऐसा खूबसूरत प्रयोग आपने किया है जो अपने आप में दुर्लभ है ! पूरी ग़ज़ल ही मुकम्मल है और निहायत सादगी से बहुत कुछ कह जाती है ! इसके लिए आप मेरी बधाई और शुभकामनाएँ स्वीकारें !
किसकी तारीफ ज़्यादा करूँ?...
सभी शेर ..एक से बढकर एक
bahut khoob shraddha ji ...
har sher kayamat si kashish rakhta hai,
aise hi roz kuchh likh likh kar padhaya karo 'Shraddha'...
wonderfull write...
:)
bahut sunder rachna .. dil se badhaayee
bahut sunder rachna .. dil se badhaayee
बैठा करो कुछ देर चराग़ों को बुझा कर
आँखें कभी खुद से, न चुराया करो ‘श्रद्धा’
--आह!! वाह!! बहुत खूब..एक नये तरीके का प्रयोग..उम्दा!!
बहुत सुन्दर!
लेखनी प्रभावित करती है.
नुकसान-नफा सोच के रिश्ते नहीं बनते
कुछ त्याग-समर्पण भी तो लाया करो ‘श्रद्धा’
बहुत सुन्दर शेर लिखे हैं आपने।
बधाई!
बैठा करो कुछ देर चराग़ों को बुझा कर
आँखें कभी खुद से, न चुराया करो ‘श्रद्धा’
बेहतरीन श्रधा जी.
नीरज
इस तरह तो ना आया करो... वाह क्या बात है। आपकी रूमानियत हमें कहीं ओर लिए जाती है, किसी बीती हुई दुनिया में...फिर से बस जाने के लिए। बधाई।
हंस-हंस के भरम ग़म का मिटाया करो ‘श्रद्धा’
waah !! aisaa shaandaar misraa keh kar aapne apni gzl meiN
anokhi-si jaan daal di hai ...
sundar bhaav
sundar rachnaa .
---MUFLIS---
नुकसान-नफा सोच के रिश्ते नहीं बनते
कुछ त्याग-समर्पण भी तो लाया करो ‘श्रद्धा’
sahi kha bilkul...
bhut achi rachna hai
badai aapko
नुकसान-नफा सोच के रिश्ते नहीं बनते
कुछ त्याग-समर्पण भी तो लाया करो ‘श्रद्धा’
ऐसे ही बस लिखते जाया करो श्रद्धा !!!
यूँ खूबसूरत गज़लें बनाया करो श्रद्धा !!
बेहतरीन !!!!!
सबको गले से तुम न लगाया करो ‘श्रद्धा’
हमदर्द मगर कोई बनाया करो ‘श्रद्धा’
बैठा करो कुछ देर चराग़ों को बुझा कर
आँखें कभी खुद से, न चुराया करो ‘श्रद्धा’
नुकसान-नफा सोच के रिश्ते नहीं बनते
कुछ त्याग-समर्पण भी तो लाया करो ‘श्रद्धा’
ये चाँद लफ्जों में सिमटे शेर कभी-कभी इतना कुछ कह जाते हैं जो एक मुकम्मल किताब में भी कह पाना संभव नहीं हो पाता !
बहुत प्यारी ...बहुत खूबसूरत ग़ज़ल !
ऊपर वाले ने बहुत खूब हुनर बख्शा है आपको
स्नेह व शुभकामनाएं
दिल को छू लिया इस गज़ल ने,सब कुछ जैसे महसूस हुआ
बैठा करो कुछ देर चराग़ों को बुझा कर
आँखें कभी खुद से, न चुराया करो ‘श्रद्धा’
atisundar bhav .badhai!!
didi aap ki gazal bhut achchhi lagi....aap bhut achchha likhti hai
bahut pyaaree gazal.
"हमदर्द मगर कोई बनाया करो ‘श्रद्धा’"
यह भी खूब रही...
- सुलभ सतरंगी (यादों का इंद्रजाल...)
ग़ज़ल पढ़ी! अपना नाम हटा दें तो ग़ज़ल और भी कमाल हो जाएगी। आहा!
नुकसान-नफा सोच के रिश्ते नहीं बनते
कुछ त्याग-समर्पण भी तो लाया करो ‘श्रद्धा’
....bahut sundar...lajwab likha apne !!
प्रकाश बादल जी के सुझाव को मेरा भी सुझाव मानें। शेर् तो सरल होगा ही प्रभाव और भी बढ़ जाएगा ।
कभी-कभी मेरे ब्लाग--anchinharakharkolkat.blogspot.com पर भी दस्तक दें।
बहुत अच्छा लिखा है
बहुत दिनों के बाद, आपका लिखा पढ़ने को मिला
अच्छा लगा पढ़कर
bahut hi sunder
htttp://sanjaybhaskar.blogspot.com
pahli baar aapke blog tak pahucha/ aour gazalo me bheeg gayaa/ lihaza BHEEGI GAZAL saarthak he/
जाया करो मेले कभी, बागों में भी टहलो
हंस-हंस के भरम ग़म का मिटाया करो ‘श्रद्धा’
wahji, bahut sarlta se aapne dard ko chhupane ka rastaa dikhayaa/
aour is she'r ne-
नुकसान-नफा सोच के रिश्ते नहीं बनते
कुछ त्याग-समर्पण भी तो लाया करो ‘श्रद्धा’
rishte ho yaa prem..use samarpan chahiye, tyaag chahiye.../ rachna ke is she'r ne jyada prabhavit kiya/
Bahoot hi Sunder Rachna hai !!
Shubhkamnayee Swikar karen !!
ये क्या कि हो जाना तेरा महफ़िल में भी तन्हा
आते हो तो इस तरह न आया करो ‘श्रद्धा’
नुकसान-नफा सोच के रिश्ते नहीं बनते
कुछ त्याग-समर्पण भी तो लाया करो ‘श्रद्धा’
Behtarin...........
bahut hi sunder ,bahut badhiya
जाया करो मेले कभी, बागों में भी टहलो
हंस-हंस के भरम ग़म का मिटाया करो ‘श्रद्धा’
जगजीत की गई ग़ज़ल याद आई...धूप में नहाकर निकलो ....अरसे बाद आपका आना हुआ इस गली.
नुकसान-नफा सोच के रिश्ते नहीं बनते
कुछ त्याग-समर्पण भी तो लाया करो ‘श्रद्धा’
बहुत खूब!
आपने बहुत नसीहतें दे डालीं स्वयं को!
Salam.... Hi...could i join in
Salam.... Hi...could i join in
बंदूक-तमंचे से जो घिर जाए ये बचपन
पर्वत, नदी, फूलों से मिलाया करो ‘श्रद्धा’
लाजवाब गज़ल श्रद्धा जी बधाई
very good ji bahut acheche wese apne pahchan to liya hi hoga
mohsin
उर्दू के साथ हिन्दी के शब्दों का बेहतरीन प्रयोग है
loved ur flair writing sill and also your about me section :)
will continue here .
मेरी पसंदीदा बहर...और "रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिये आ" इस बहर की मेरी सबसे पसंदीदा ग़ज़ल
और आज विलंब से आपकी इस ग़ज़ल को पढ़ना
"बंदूक-तमंचे से जो घिर जाए ये बचपन
पर्वत, नदी, फूलों से मिलाया करो ‘श्रद्धा’"
बहुत खूब !
Waah, ek ek sher lajabab hai
manu ji se aapke blog main aaiya....
jab unko aapki ghazal ka intzaar rehta hai to isse hi pata lag jaata hai aap kitna accha likhti hongi...
...ye har sher main takhallus ka prayog naya hone ke saath adbhoot bhi laga....
aapki kai gahzal ek saath padhne ka subhagya mil gaya....
Mujh sa hi...
"दिलवर हैं आ बैठे पल भर को पास मेरे
इक दुल्हन जैसा अब सजता है आईना "
Rab ata kare....
हो पूरे ख्वाब कब, नहीं ये “श्रद्धा” जानती मगर
कज़ा से पहले चार दिन, खुशी के रब अता करे
aur ye mizaaz phoolon ka se ek purani nazm yaad ho aie shayad same behar ki hai....
..phir chiri raat baat phoolon ki....
aise hi kuch !!
aur wo be-kafiye ka she (kewal nukte ke wajah se) hi sabse behterin tha....
..thanks share karne ke liye...
Visiting your blog for the first time. really impressed.
ये क्या कि हो जाना तेरा महफ़िल में भी तन्हा
आते हो तो इस तरह न आया करो ‘श्रद्धा’
Indeed fine lines! keep writing.
wah kya baat hai shraddhaa ji.
बैठा करो कुछ देर चराग़ों को बुझा कर
आँखें कभी खुद से, न चुराया करो ‘श्रद्धा’
bahut khoob.....dil ko choo gai...
jub man gam se bhari hota hai
andhera sahelaane aata hai.....
ujale ki terah kabhi bhi
chuti bher namak saath nahi lata hai......
जाया करो मेले कभी, बागों में भी टहलो
हंस-हंस के भरम ग़म का मिटाया करो ‘श्रद्धा’
ये क्या कि हो जाना तेरा महफ़िल में भी तन्हा
आते हो तो इस तरह न आया करो ‘श्रद्धा’
नुकसान-नफा सोच के रिश्ते नहीं बनते
कुछ त्याग-समर्पण भी तो लाया करो ‘श्रद्धा’
shraddha kya likhu aur kaise likhu ki tumne kya likha ......
bus her sher haath tham ker baith gaya....kamal hai
आपकी गजल देखने का अवसर मिल ही गया. यह सौभग्य ही कहा जा सकता है. चूंकि मैं ब्लॉग पर नया हूँ, कुल ७-८ माह हुए, इस लिए अब तक बहुत लोगों को जान नहीं सका हूँ.
आप में गज़लों के इन्फेक्शन नहीं, बल्कि आप पूरी तरह संक्रमित हैं और बचने का कोई चांस नहीं है. मैं दुःख के साथ कह रहा हूँ कि उम्र भर गजल आपका पीछा नहीं छोड़ेगी. आप की, फिलवक्त दो गजलें ही देख सका हूँ और चावल के एक-दो दानों ने मुझे बता दिया है कि हांडी पक चुकी है.
आपको थोड़ी और मेहनत की जरूरत है, अगर समय निकालकर वो आपने कर ली फिर शायद आने वाले दिनों में हम भारत में बैठ कर गर्व करेंगे कि विदेश में एक भारतीय महिला गज़लों के चिराग रोशन कर रही है. (यह सब कुछ मैं ने जागते में, होश-हवास कायम रहते हुए लिखा है और मैं व्यर्थ किसी की प्रशंसा नहीं करता).
बंदूक-तमंचे से जो घिर जाए ये बचपन
पर्वत, नदी, फूलों से मिलाया करो ‘श्रद्धा’
जबर्दस्त रदीफ है। इतना कुछ सबने कहा, और क्या कहें। उम्मीद है आप खुश होंगी। यक़ीनन इस विधा पर आपकी पकड़ मज़बूत है। इसमें लगातार और बरक्क़त मिलती रहे।
खुदा करे...
बंदूक-तमंचे से जो घिर जाए ये बचपन
पर्वत, नदी, फूलों से मिलाया करो ‘श्रद्धा’
बेहतरीन सन्देश दे रही है आपकी ये ग़ज़ल और उसके हर नायब शेर.
हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
पहली बार पढा, और अच्छा लगा.
श्रद्वा जी
आप का मेरे ब्लाग पर बहुत स्वागत है, अभी आपकी कुछ रचनायें पढी दिल को छु गयी वतन से दुरी ने आपकी रचनाआे में शायद एक कशिश पैदा कर दी है........
बैठा करो कुछ देर चराग़ों को बुझा कर
आँखें कभी खुद से, न चुराया करो ‘श्रद्धा’
khud se bhagte is sansar ko chetane ke liye kya khub kaha aapne......
aapke is prabhavshali lekhani ke liye badhai...
बहुत दिन बाद आ पाया , आनंद आगया श्रद्धा जी !
नुकसान-नफा सोच के रिश्ते नहीं बनते
कुछ त्याग-समर्पण भी तो लाया करो ‘श्रद्धा
vaah ! vaah! vaah!
बहुत बडी बात कह दी आपने.
बंदूक-तमंचे से जो घिर जाए ये बचपन
पर्वत, नदी, फूलों से मिलाया करो ‘श्रद्धा’
Bhaut hee khoobsurat gazal
बंदूक-तमंचे से जो घिर जाए ये बचपन
पर्वत, नदी, फूलों से मिलाया करो ‘श्रद्धा’
Bhaut hee khoobsurat gazal
बढिया शेर...
sundar...
shradha ji
deri se aane ke liye maafi chahunga
kuch uljha hua tha haalat me ..
sirf bahut acchi gazal kah doonga to theek na honga :
बैठा करो कुछ देर चराग़ों को बुझा कर
आँखें कभी खुद से, न चुराया करो ‘श्रद्धा’
नुकसान-नफा सोच के रिश्ते नहीं बनते
कुछ त्याग-समर्पण भी तो लाया करो ‘श्रद्धा’
ये क्या कि हो जाना तेरा महफ़िल में भी तन्हा
आते हो तो इस तरह न आया करो ‘श्रद्धा’
ye teen sher kamal ke hai jo ki sirf aapki kalam se hhi likhe ja sakte hai ...
is post ke liye meri badhai sweekar kare..
dhanywad
vijay
www.poemofvijay.blogspot.com
jai ho deedi
misfit pe bhee ekaadh gazal daal diyaa kariye
मैं फिर आ गया लेकिन मुझे वही पोस्ट मिली. अब आ गया हूँ तो रस्मे-मेहमानी निभानी ही चाहिए, इस लिए दो शब्द ...... मुझे नई रचना की प्रतीक्षा है.
sitaaron ki apni alag hi duniya he.
kabhi apne ghar ki chhat pe bhi jakar dekho..............Rahi
आया हूँ पहली बार तुम्हारे ब्लॉग पर ,
मेरे ब्लॉग पर कभी आया करो 'श्रद्धा '
छलक जाने दो इन आँखों में नमी को मेरे ऐसा
के बन बूँद उतर जाये मेरे लब पे कोई "श्रद्धा"..
बैठा करो कुछ देर चराग़ों को बुझा कर
आँखें कभी खुद से, न चुराया करो ‘श्रद्धा’
अपना ही एक शेर याद आ गया
"पर्छाइयों से भी मुझे लगने लगा है डर
मैंने बुझा दिया है चरागों को शाम से"
...कभी हमारे आँगन भी तशरीफ़ लाइए
बादल हो घने गम के चमकती हो बिजलियाँ
बरसात में मल-मल के नहाया करो ‘श्रद्धा’
vah ....nice
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