मुझ सा ही दीवाना लगता है आईना
मुझ सा ही दीवाना लगता है आईना
पल में रोता, पल में हंसता है आईना
शायद कोई उम्मीद जगे अब सीने में
दरवाज़े को शब भर तकता है आईना
दिलवर हैं आ बैठे पल भर को पास मेरे
इक दुल्हन जैसा अब सजता है आईना
गैरों के घर रोशन करने की है आदत
चुपचाप इसी धुन में जलता है आईना
राजा और प्यादा में अंतर करता है जग
हर इक को इक कद में रखता है आईना
आगाज़ ग़ज़ल का कर ही दो अब “श्रद्धा” तुम
उलझा-उलझा मुझको दिखता है आईना
58 comments:
राजा और प्यादा में अंतर करता है जग
हर इक को इक कद में रखता है आईना
बहुत खूब श्रद्धा जी। कमाल की लिखतीं हैं आप। सच तो यह है कि आपकी गजलों का मुझे इन्तजार रहता है।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
मुझ सा ही दीवाना लगता है आईना
पल में रोता, पल में हंसता है आईना
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति . आभार
bada samjdar bhi hai aaina
jaise ke liye taisa dikta hai aaina.
bahut accha likha hai aapne
Lajavaab hai aapki gazal ......... aaina to kamaal hai gazalkaaron ke liye ....
शायद कोई उम्मीद जगी है सीने में
दरवाज़े को शब भर तकता है आईना
Pyar ki Behtareen Abhivyakti..
Badhayi..
मुझ सा ही दीवाना लगता है आईना
पल में रोता, पल में हंसता है आईना
मतला बहुत अच्छा हुआ है. बहुत ख़ूब!
दिलवर हैं आ बैठे पल भर को पास मेरे
इक दुल्हन जैसा अब सजता है आईना
गैरों के घर रोशन करने की है आदत
चुपचाप इसी धुन में जलता है आईना
waah lajawab,aaine ka har pehlu bayan ho gaya.sunder.
bahut hi khubsoorat hai ainaa our aapki daastan......
राजा और प्यादा में अंतर करता है जग
हर इक को इक कद में रखता है आईना
bahut sundar abhivyakti....
har sher bas kamal hai bahut khoobsoorat kaha hai
SABHEE SHER DIL SE NIKLE HUE LAGTE
HAIN,YAHEE INKEE KHOOBSOORTEE HAI.
DHERON BADHAAEEYAN.
वाह क्या खूब ग़ज़ल लिखी है...सुंदर
आईना से कई सच्चाई कह दी। पसंद आया ये आईना।
राजा और प्यादा में अंतर करता है जग
हर इक को इक कद में रखता है आईना
वाह वाह ...
shradhha ji aap bahut sunder likhatee hain .
अच्छी रचना....बधाई
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल है ......
दिल के भाव हर शेर में उमड़ पड़े हैं ...:)
शायद कोई उम्मीद जगे अब सीने में
दरवाज़े को शब भर तकता है आईना....
main koi paagal to nahin....
mujhko paagal saa taktaa aayinaa...
अहा श्रद्धा जी की लेखनी का एक और चमत्कार...
इस शेर पर "राजा और प्यादा में अंतर करता है जग
हर इक को इक कद में रखता है आईना" पर तालियां-तालियां...और मतला हटकर जबरदस्त दाद माँग रहा है मुझसे।
राजा और प्यादा में अंतर करता है जग
हर इक को इक कद में रखता है आईना
सुन्दर अभिव्यक्ति
शायद कोई उम्मीद जगी है सीने में
दरवाज़े को शब भर तकता है आईना
bahut khoob, lajawaab rachna.
Bahut kuchh kaha ja chuka hai atah un sab se sahamat hote huye itna hi kahunga ki achchhi lagi ye gazal.
aap ki kavita bahut achi lagi. aap ka likha har sabda dil ki gahraiyo ko chu jata hai.
राजा और प्यादा में अंतर करता है जग
हर इक को इक कद में रखता है आईना
वाह बहुत सुन्दर ..बहुत दिनों बाद आपका लिखा पढ़ कर बहुत अच्छा लगा ..बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति
मुझे बहुत पसंद आई आपकी ये ग़ज़ल
"राजा और प्यादा में अंतर करता है जग
हर इक को इक कद में रखता है आईना"
Waah! Shradhha Ji, lagta hai ek nayee 'MADHUSHAALAA' Likh rahi hain aap.....
Bahut Khoob
शायद कोई उम्मीद जगी है सीने में
दरवाज़े को शब भर तकता है आईना
just beautiful....
राजा और प्यादा में अंतर करता है जग
हर इक को इक कद में रखता है आईना
वाह श्रद्धा जी वाह...बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने...बधाई..
नीरज
shaandar hai
sharsdha ji ye aapka andaaz
aapka scrap dekha aaj orkut main...
...dhanyvaad poochne ke liye main accha hoon.
Aap kaisi hain?
ghazal badiya ban padi hai khaskar
शायद कोई उम्मीद जगे अब सीने में
दरवाज़े को शब भर तकता है आईना....
ye line acchi lagi kya azeeb itfaq hai ki maine bhi aaine ke vishay main likha hai kuch apni recent post main///
रोक ले पलकों में आंसू, ये नदी अच्छी नहीं,
जो हंसा कर फिर रुला दे , वो ख़ुशी अच्छी नहीं।
बाल हैं बिखरे हुए चेहरा शिकन आलूद है
आईने मुझसे तेरी यूँ बेरुखी अच्छी नहीं।
मुझ सा ही दीवाना लगता है आइना
पल में रोता पल में हँसता है आइना
बहुत ही सुन्दर बात कह दी श्रधा
वाकई उलझा हुआ है मोहतरमा....अरसे बाद नजर आई...कहाँ थी आप ?
बहुत सुंदर गजल।
( Treasurer-S. T. )
देरी के लिए मुआफी जी ... मगर इसमें कोई शक नहीं के मैं आपके ग़ज़लों का दीवाना हूँ ... कोई शक नहीं ... क्या खूब कहती हैं आप... उफ्फ्फ्फ़ हद से बाहर होती है आपकी गज़लें की कुछ कह पौन... बहुत बहुत बधाई..
हर शे'र अलग से दाद मांग रहा है .. फिर आता हूँ ..
अर्श
श्रद्धा, आपके ब्लाग पर भारत यात्रा से लौट कर अभी ही आने का मौक़ा मिला। देखा तो ४ नई गज़लें कहीं हैं आपने। और हर एक बहुत अच्छी। ग़ज़ल ऐसी हो जो मत्ला पढ़ कर और आगे पढ़ने को जी चाहे, और फिर हर शेर पढ़ते ही चले जायें, जो बात कि आपकी ग़ज़लों में रही। आगे आपकी और ग़ज़लों के इंतज़ार में-
मानोशी
कईं दिनों से निरन्तरता नहीं थी इसीलिये चूक गया. सभी ग़ज़लें बेहतरीन हैं श्रद्धा जी... और हां याद आया कि आपने पूछा था दूसरी प्रति का क्या करूं तो उसे किसी पुस्तकालय या किसी काव्यप्रेमी को दे दें. भारतीय डाक-व्यवस्था पर मेरा विश्वास फिर से जम गया. शुक्रिया....
शायद कोई उम्मीद जगे अब सीने में
दरवाज़े को शब भर तकता है आईना
श्रद्धा जी
आप बहुत अच्छा लिख रहीं हैं
पर एक आग्रह आपसे है
जुबाने तो मादरे वतन की सर आँखों पर हैं हमारी
पर मात्र भाषा की भी महिमा है बड़ी प्यारी
फिर आप तो हिन्दी की आध्यापिका भी हैं
कोई गीत कुछ दोहे भी कलम से उतरें यही प्रार्थना हमारी
नमस्कार श्रद्धा जी,
वाह बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है....कुछ शेर जैसे "शायद कोई उम्मीद जगे अब सीने में
दरवाज़े को शब भर तकता है आईना " और "राजा और प्यादा में अंतर करता है जग
हर इक को इक कद में रखता है आईना" बेहतरीन बन पड़े हैं.
behatarin...its realy realy a gr8 one...
बहुत सुंदर कविता है
Its a awesome poem !!
"मुझ सा ही दीवाना लगता है आईना
पल में रोता, पल में हंसता है आईना
राजा और प्यादा में अंतर करता है जग
हर इक को इक कद में रखता है आईना"
सुन्दर रचना....बहुत बहुत बधाई....
शायद कोई उम्मीद जगे अब सीने में
दरवाज़े को शब भर तकता है आईना
एक बहुत अच्छी ग़ज़ल कहने पर
बधाई स्वीकार करें
हर शेर अपनी दास्ताँ खुद कह रहा है
.....और ये मिस्रा तो
बिलकुल नया और नायाब है
"इक दुल्हन जैसा अब सजता है आईना..."
वाह...!
---मुफलिस---
आगाज़ ग़ज़ल का कर ही दो अब “श्रद्धा” तुम
उलझा-उलझा मुझको दिखता है आईना
बहुत खूब ....!!
लाजवाब लिखतीं हैं आप भी .....!!
एक खूबसूरत ग़ज़ल है.
राजा और प्यादा में अंतर करता है जग
हर इक को इक कद में रखता है आईना
आगाज़ ग़ज़ल का कर ही दो अब “श्रद्धा” तुम
उलझा-उलझा मुझको दिखता है आईना
ये आशा'र बहुत पसंद आये.
महावीर
मंथन
nice
गैरों के घर रोशन करने की है आदत
चुपचाप इसी धुन में जलता है आईना
बेहद पसंद आया ग़ज़ल का यह शेर.
बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
www.cmgupta.blogspot.com
wah shraddha.... Aaine ko bekhubi pesh kiya tumne..
मुझ सा ही दीवाना लगता है आईना
पल में रोता, पल में हंसता है आईना
राजा और प्यादा में अंतर करता है जग
हर इक को इक कद में रखता है आईना
lajabab likha hai aapne. Bahut sundar aur sahi bhi.
वाह वाह वाह
बेहद सुंदर रचना
लाजवाब.....
गैर के घर रोशन करने की है आदत
एक दुल्हन जैसा सजता है अब आइना
आईने में उतार दिया आपने तो सब कुछ ...अति सुन्दर
अच्छी ग़ज़ल कहना आसान नहीं होता.......मगर आपके लिए है..बधाई..
hi diiii...........badi pyari gazal likhi hai.....congrats!
hi diiii...........badi pyari gazal likhi hai.....congrats!
मै सोच रहा हूँ आपने अपने ब्लॉग का नाम भीगी गज़ल क्यों रखा ! आपके शहर विदिशा की याद आते ही स्व.शलभ श्रीराम सिंह याद आ गये । वे दुर्ग में कुछ दिन मेरे यहाँ रुके थे और विदिशा के बारे में ढेरों बाते बताया करते थे । गज़ल तो अच्छी है आपकी ।- शरद कोकास
आपने जो लिखा है यह नया २०१० में यह ह्रदय को छू जाता है मै ग़ज़ल पसंद करता हु किन्तु खुद नहीं लिख सकता हु क्युकी मेरे में ऐसी काबिलियत नहीं है.
आपका बहुत बहुत आभार
शैलेन्द्र त्रिपाठी
+919274584757
stripathi30625@gmail.com
आपके शब्दों से सच्चाई की महक टपकती है... वाह ...........
aap ki kavita bahut achi lagi. aap ka likha har sabda dil ki gahraiyo ko chu jata hai.
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