मिज़ाज फूलों का
जिस्म सन्दल, मिज़ाज फूलों का
रात देखा है, ताज फूलों का
उसकी खुश्बू , उसी की यादें हैं
मेरे घर में है, राज फूलों का
हुस्न के, नाज़ भी उठाता है
इश्क़ को, इहतियाज फूलों का
इहतियाज = Need
नफ़रतों को, मिटा हैं सकते गर
आग को दें, इलाज फूलों का
थक गये राग-ए-गम को गा-गा कर
साज़ छेड़ा है, आज फूलों का
हो न हिंदू, न हो कोई मुस्लिम
बस बने इक, समाज फूलों का
लाई “श्रद्धा” भी मोगरे की लड़ी
लौट आया, रिवाज फूलों का
ये एक शेर मेरे ज़हन में आया और जाने क्यूँ मुझे बहुत अच्छा लगा
ग़ज़ल में नहीं जोड़ सकी क्यूंकी काफिया दोष था, मगर आप सबसे बाँट रहीं हूँ
प्यार-ओ-ख्वाब इक जगह रखना
नाम देना, दराज़ फूलों का
52 comments:
हो न हिंदू, न हो कोई मुस्लिम
बस बने इक, समाज फूलों का
===
फूलो सा एहसास लिये इस गजल को दे दो तख्तो-ताज फूलो का
लाई “श्रद्धा” भी मोगरे की लड़ी
लौट आया, रिवाज फूलों का
Lajawaab gazal hai..... bahoot hi maasoom sher hai ye.... naya ehsaas hai is gazal mein
क्या कहूँ श्रद्धा जी.......आपकी इस रचना ने तो बस मन ही बाँध लिया.....लाजवाब अहसास हैं और खूबसूरत प्रस्तुति.....हर शेर के बाद एकदम स्वाभाविक ही दादों की झड़ी लग गयी...
क्या कहूँ श्रद्धा जी.......आपकी इस रचना ने तो बस मन ही बाँध लिया.....लाजवाब अहसास हैं और खूबसूरत प्रस्तुति.....हर शेर के बाद एकदम स्वाभाविक ही दादों की झड़ी लग गयी...
नाज फूलों, रिवाज फूलों का, क्या कया कहें हमें फूलों की हर अदा पसंद आयी।
हो न हिंदू, न हो कोई मुस्लिम
बस बने इक, समाज फूलों का
लाजवाब श्रधा जी वाह...पूरी ग़ज़ल ही आपके खास रंग में रंगी हुई है...बेहद खूबसूरत शेर कहे हैं आपने...वाह...शहरयार साहेब की ग़ज़ल..."फिर चली बात रात फूलों की...." याद आती रही ....
नीरज
bahut hi sundar hai mizaz fuloka .....khubsoorat
फूलों सी सुन्दर ग़ज़ल।
हो न हिंदू, न हो कोई मुस्लिम
बस बने इक, समाज फूलों का
जवाब नहीं। वाह।
mizaz khoobsurat hain phoolon ka
nazuk-e-andaaz lajawaab hain phoolon ka
हो न हिंदू, न हो कोई मुस्लिम
बस बने इक, समाज फूलों का
ये शे'र तो अलग से करोडो दाद मांग रहा है ,और हो भी क्यूँ ना ये शे'र ही ऐसा है जो धर्म जाती के फिरका परस्ती को पीछे छोड़ रहा है ... क्या खूब कही है आपने वाह ढेरो बधाई श्रधा जी ....
अर्श
नफ़रतों को, मिटा हैं सकते गर
आग को दें, इलाज फूलों का
सच फूलों से नफरतें मिट जाती हैं...सुंदर अंदाज फूलों का
हो न हिंदू, न हो कोई मुस्लिम
बस बने इक, समाज फूलों का
बहुत ही बढिया
हो न हिंदू, न हो कोई मुस्लिम
बस बने इक, समाज फूलों का
-एक एक शेर है, जानो गुलदस्ता फूलों का..कमरा पढ़ते पढ़ते मोगरे की खुशबू से भर गया.
लाई “श्रद्धा” भी मोगरे की लड़ी
लौट आया, रिवाज फूलों का
बहुत खूब!!
nafraton ko mita..... bahut he umda waaah
waise to har kavita beshumaar hai aapki , ya kahen har gazal hai lajavaab===
Isiliye arz kiya hai ki
=================
Ho koi noor-e-khuda, ya ho tum aaftab,
gulaabi chaand ko kuch kahen khila hua mahtaab;
Jo bhi ho tum aye ada-e-husn par ho tum lajavab;
K sehra b gulistan ho gaya jahan ho tumsa gulaab|
Phir chhidee baat phoolon ki
jo bani hai saaj usoolon ki
chhede to aaye aawaaj phoolon ki
ya phir kho jaaye yaad bhoolon ki
Umda Rachna. Shabd kam pad rahe hain. badhaai
नफ़रतों को, मिटा हैं सकते गर
आग को दें, इलाज फूलों का
waah sunder
कितनी खूबसूरत रचना है,भई वाह.
प्यार-ओ-ख्वाब इक जगह रखना
नाम देना, दराज़ फूलों का
हम भी यही सबसे ज्यादा पसंद आया श्रद्धा जी.......
बहुत खूब लिखा है आपने. फूलों की खुशबू को और भी बड़ा दिया आपने.
bahut hi sundar hai mizaz fuloka .....khubsoorat
डाली-डाली* सजी है फ़ूलो से, [*हरएक शेर]
बढ़ गया काम-काज फ़ूलो का।
फ़ूल सी सुन्दर ग़ज़ल्।
-मन्सूर अली हाश्मी
श्रद्धा जी,
सुन्दर ग़ज़ल! एकदम से शहरयार जी की याद आ गई।
किसी एक शेर को रेखांकित करके शेष का महत्व कम नहीं कर सकता। सभी सवा शेर लगे।
’रागे-ग़म’ हिंदी और उर्दू को मिला कर अच्छा प्रयोग किया है आपने।
बधाई!
हो न हिंदू, न हो कोई मुस्लिम
बस बने इक, समाज फूलों का
लाई “श्रद्धा” भी मोगरे की लड़ी
लौट आया, रिवाज फूलों का
....samajik sadbhav ki pratik panktiyan..behatrin rachna !!
यूं ही जल्दी-जल्दी आती रहिये ...
"उसकी खुश्बू , उसी की यादें हैं / मेरे घर में है, राज फूलों का" बेहतरीन शेर मैम...
इस अनूठे रदीफ़ को निभाना श्रद्धा जैन के ही वश की बात है।
और आखिरी शेर का काफ़िया "दराज़" को आजकल कौन "दराज़’ पढ़ता है मैम? हम जैसे सभी देशी लोग तो दराज ही पढ़ेंगे। इसे भी शामिल कीजिये ग़ज़ल...आप बेहतर जानती हैं। ग़ज़ल अब फ़ारसी-उर्दू बंदिशों से बहुत ऊपर निकल चुकी है।
हो न हिंदू, न हो कोई मुस्लिम
बस बने इक, समाज फूलों का
बहुत ही बढिया
सुन्दर प्रस्तुति पर आभार.
लौट आया, रिवाज फूलों का
पर लेने वाला भी समझता है की देने वाला कीमत भी उसेलेगा!!!!!!!!!!!!!!!!
चन्द्र मोहन गुप्त
बहुत खुब.....
मिझाज फूलों का
बेहद पसंद आया
श्याम-शून्यमनस्क
हो न हिंदू, न हो कोई मुस्लिम
बस बने इक, समाज फूलों का
गज़ब का लिखा है श्रद्धा जी ! सादर शुभकामनायें !
mazaa aaya.
उसकी खुश्बू , उसी की यादें हैं
मेरे घर में है, राज फूलों का
waah ...bahut khoob...harik she'r laajawab...
प्यार-ओ-ख्वाब इक जगह रखना
नाम देना, दराज़ फूलों का
AGER AAP IS SHER KO GAZAL ME JOD DETI TO YE SHER ITNA ACHCHHA HAI KI PADHNE WALE KA KAFIYA DOSH PAR DHYAN HI NAHI JATA.
उसकी खुश्बू , उसी की यादें हैं
मेरे घर में है, राज फूलों का
गज़ब शेर और ये भी
हो न हिंदू, न हो कोई मुस्लिम
बस बने इक, समाज फूलों का
beautiful...keep it up
आपकी ग़ज़ल पढ़ कर तो यही लगा कि-
'लौट आया रिवाज़ फूलों का'
बधाई।
हो न हिंदू, न हो कोई मुस्लिम
बस बने इक, समाज फूलों का
लाई “श्रद्धा” भी मोगरे की लड़ी
लौट आया, रिवाज फूलों का
... बहुत खूब, बेहद प्रभावशाली, बधाईंयाँ !!!
फूलों की लहलहाती डालियाँ ....
फ़ज़ा में बिखरी खुशबू ....
गुलिस्ताँ की पाकीज़ा ताज़गी ....
इन सब को मिला दें तो एक शगुफ्ता सी ग़ज़ल
बनती है ....जो आपके ज़हन से निकली है
वाह ! मुबारकबाद !!
---मुफलिस---
न जाने कैसे आपकी ब्लॉग पर पहुँच गई ,और आपकी सभी कवितायें पढ़ डाली ,मज़ा आ गया .बहुत बहुत शुभ कामनाएं ।
न जाने कैसे आपकी ब्लॉग पर पहुँच गई ,और आपकी सभी कवितायें पढ़ डाली ,मज़ा आ गया .बहुत बहुत शुभ कामनाएं ।
Pahli bar apke blog me gye aur apki kavita padi ek ke bad ek padta hi chala gaya bhut achchha laga ap ye maniye ki mai apka niymit pathak ban gya.badhai
Jab bhi lagata hai mujhe ishwar nahin hai...tab main ek phool ko dekhta hon aur lagta hai woh hai iski banavat mein...khushoo mein... rang mein aur mujhe lagta hai wo phool nahin iswar ka diya ek paigaam hai...kyuonki phool kahbi kis ko chot nahin pahunchata...achcha likha to achcha laga.
http://www.yoursaarathi.blogspot.com/
Neelesh Jain, Mumbai
आप बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर आती हैं ,यह आलस्य हमीं लोगों तक रहने दें ! वैसे हमेशा आपका ब्लॉग देखता हूँ पर पता नहीं कैसे चूक गया ,आज पढ़ा तो सचमुच मन फूलों सा ही प्रफुल्लित हो गया ! बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है आपने और वह भी फूलों के प्रतीक से ....
उसकी खुश्बू , उसी की यादें हैं
मेरे घर में है, राज फूलों का .......वाह
थक गये राग-ए-गम को गा-गा कर
साज़ छेड़ा है, आज फूलों का
प्यार-ओ-ख्वाब इक जगह रखना
नाम देना, दराज़ फूलों का................बहुत खूब
श्रृद्धा जी आपके ही कारण ....लौट आया, रिवाज फूलों का............
Shradha Ji,
gazal pad ke lag raha hai aa hi jayeya desh main mausam jhuloon ka,
mahkeka jab desh bhar main har jagah bageecha foolon ka!
bahut hi utkrist rachana hai....
aapki gazal bulandi par pahunche, aisi kamna hai!
उसकी खुश्बू , उसी की यादें हैं
मेरे घर में है, राज फूलों का
नफ़रतों को, मिटा हैं सकते गर
आग को दें, इलाज फूलों का
लाई “श्रद्धा” भी मोगरे की लड़ी
लौट आया, रिवाज फूलों का
मोगरे की लड़ी ने तो मन खुशबुओं से सराबोर कर दिया है.बधाई श्याम सखा श्याम
aap gajab ki shayaraa hain .. hum aapke qaayal ho gaye ...aapko padhanaa ek nayii duniya men jaane jaisa hua .. jahan phoolon ki baat hai aur derdon ke der jane ki .. shayad meri khush kismati aapko padhate rahane men hogi ..
प्यार-ओ-ख्वाब इक जगह रखना
नाम देना, दराज़ फूलों का
bahut sunder
Shardha ji Aadab,
Aapki Ghazlen Guftugu par parhne ko mili jinko parkhar ye mehsoos hua ke abhi ye karobaar hay sukhan apne andar bhout se raanayan rakhta hia , mian khaksaar bhi thora bhout likh leta hon aour adabi halqon main Ufaq Faridi ke name se jana jata hon mere khwaish hia aap ko se adabi dosti ki jaye agar manzoor ho to pls. mujhko friend list main add karlen .
after eid Delhi mian ek All India Mushaira kara raha hon agar mumkin ho to us se phle rabta farmayin Karam Hoga
Wajebaat
Asad Mehmood "Ufaq Faridi"
Mob. +919716855768
bahut ache sher kahti hain aap.badhai.
इतनी खूबसूरत गजल कहती है और काफिये जैसी चीज की इतनी टेंशन लेती हैं आप...?
इस लाजवाब शे'र को बेवजह गजल से बाहर ना कीजिये...
लाई “श्रद्धा” भी मोगरे की लड़ी
लौट आया, रिवाज फूलों का
मक्ता बड़ा खुशबूदार रहा..
नफ़रतों को, मिटा हैं सकते गर
आग को दें, इलाज फूलों का
bahut acchaa.badhai.
krantidut.blogspot.com
हो न हिंदू, न हो कोई मुस्लिम
बस बने इक, समाज फूलों का
Kab banega y samaj fulo ka ??
When the day will come?
सच फूलों से नफरतें मिट जाती हैं...सुंदर अंदाज फूलों का
प्यार-ओ-ख्वाब इक जगह रखना
नाम देना, दराज़ फूलों का
bahut sunder
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