Monday, February 16, 2009

अच्छी है यही खुद्दारी क्या

अच्छी है यही खुद्दारी क्या
रख जेब में दुनियादारी क्या

जो दर्द छुपा के हंस दे हम
अश्कों से हुई गद्दारी क्या

हंस के जो मिलो सोचे दुनिया
मतलब है, छुपाया भारी क्या

वे देह के भूखे क्या जाने
ये प्यार वफ़ा दिलदारी क्या

बातें तो कहे सच्ची "श्रद्धा"
वे सोचे मीठी खारी क्या

64 comments:

Udan Tashtari February 17, 2009 at 12:11 AM  

जो दर्द छुपा के हंस दे हम
अश्कों से हुई गद्दारी क्या


-वाह, क्या बात है. आनन्द आ गया.

Yogesh Verma Swapn February 17, 2009 at 12:15 AM  

हंस के जो मिलो सोचे दुनिया
मतलब है, छुपाया भारी क्या

वे देह के भूखे क्या जाने
ये प्यार वफ़ा दिलदारी क्या

bahut sunder shradha ji wah wah karne ko dil karta hai. badhaai

अखिलेश शुक्ल February 17, 2009 at 12:20 AM  

प्रिय बहन श्रद्घा
सादर प्रणाम
बहुत दिनों से आपसे बात नहीं हुई। आपकी यह रचना बहुत ही अच्छी है क्या मैं इसे अपनी पत्रिका में प्रकाशन के लिए उपयोग में ले सकता हूं।
अखिलेश शुक्ल
संपादक कथा चक्र
please visit--
http://katha-chakra.blogspot.com

बवाल February 17, 2009 at 12:28 AM  

बहुत उम्दा श्रद्धा जी "गद्दारी क्या"। कह गए आप वाक़ई बात कह गए। अहा !

Ahmad Ali Barqi Azmi February 17, 2009 at 12:45 AM  

है श्रद्धा जैन की बेहद हसीँ भीगी ग़ज़ल
जिसके एक एक शेर पर जाता है मेरा दिल मचल

उनके अंदाज़े बयाँ मेँ है नेहायत सादगी
गर्दिशे हालात पर यह तबसेरा है बर महल
डा अहमद अली बर्क़ी आज़मी
विदेश प्रसारण सेवा
आकाशवाणी, नई दिल्ली

गौतम राजऋषि February 17, 2009 at 12:48 AM  

कैसे कहूँ ’वाह’ कि सिर्फ वाह से तो काम चलेगा नहीं....
गज़ब का मतला और इस शेर पर "जो दर्द छुपा के हंस दे हम/अश्कों से हुई गद्दारी क्या"
तालियां तालियां तालियां

राजीव तनेजा February 17, 2009 at 12:57 AM  

जो दर्द छुपा के हंस दे हम
अश्कों से हुई गद्दारी क्या

बहुत...बहुत ही बढिया

bijnior district February 17, 2009 at 12:59 AM  

वे देह के भूखे क्या जाने
ये प्यार वफ़ा दिलदारी क्या
छोटी बहर की शानदार गजल। बधाई

GOPAL K.. MAI SHAYAR TO NAHI... February 17, 2009 at 1:43 AM  

WAH SHRADDHA JI BAHUT HI ACHHI GAZAL LIKHI AAPNE..!!

Anonymous February 17, 2009 at 1:47 AM  

जो दर्द छुपा के हंस दे हम
अश्कों से हुई गद्दारी क्या
waah bahut hi khubsurat gazal

Yogi February 17, 2009 at 1:58 AM  

वाकई मेरे पास शब्द नहीं है, तारीफ के लिये

बहुत बहुत ही अच्छा

गज़ब का लिखा है आपने

Alpana Verma February 17, 2009 at 2:58 AM  

जो दर्द छुपा के हंस दे हम
अश्कों से हुई गद्दारी क्या
waah! bahut khuub!

Dr. Ashok Kumar Mishra February 17, 2009 at 3:37 AM  

जो दर्द छुपा के हंस दे हम
अश्कों से हुई गद्दारी क्या

bahut behtreen aur umda gazal kahi aapney.

http://www.ashokvichar.blogspot.com

संगीता पुरी February 17, 2009 at 12:11 PM  

वाह !! बहुत सुंदर...

seema gupta February 17, 2009 at 12:48 PM  

जो दर्द छुपा के हंस दे हम
अश्कों से हुई गद्दारी क्या
" बेहतरीन.....कुछ बात तो है इस शेर मे......मन भा गया.."

regards

नीरज गोस्वामी February 17, 2009 at 12:49 PM  

जो दर्द छुपा के हंस दे हम
अश्कों से हुई गद्दारी क्या

वे देह के भूखे क्या जाने
ये प्यार वफ़ा दिलदारी क्या

वाह श्रधा जी वाह...छोटी बहर में ग़ज़ल कहना बहुत मुश्किल होता है लेकिन आपने अपने हुनर से इसे कितना आसन बना दिया है...लाजवाब शेर और बेहतरीन ग़ज़ल...बहुत बहुत बधाई आपको...

नीरज

रंजू भाटिया February 17, 2009 at 1:38 PM  

जो दर्द छुपा के हंस दे हम
अश्कों से हुई गद्दारी क्या

बहुत सुंदर गजल लिखी है आपने श्रद्धा

कुश February 17, 2009 at 2:00 PM  

एक एक शेर अंदर तक गहरा उतरा है.. बहुत ही उम्दा..

डॉ .अनुराग February 17, 2009 at 3:13 PM  

अच्छी है यही खुद्दारी क्या
रख जेब में दुनियादारी क्या

ये शेर खास पसंद आया .इत्तिफकान खुद्दारी पे ही मैंने एक त्रिवेणी लिखी है आज ..

रश्मि प्रभा... February 17, 2009 at 9:31 PM  

बातें तो कहे सच्ची "श्रद्धा"
वे सोचे मीठी खारी क्या.......
bahut sahi,aur bahut achhi

योगेन्द्र मौदगिल February 17, 2009 at 9:35 PM  

जो दर्द छुपा के हंस दे हम
अश्कों से हुई गद्दारी क्या

वे देह के भूखे क्या जाने
ये प्यार वफ़ा दिलदारी क्या
La-jawaab.. वाह श्रद्धा जी, वाह......

सुशील छौक्कर February 17, 2009 at 10:12 PM  

चंद शब्दों बहुत गहरी बात कह दी।
अच्छी है यही खुद्दारी क्या
रख जेब में दुनियादारी क्या

वाह, बहुत खूब।

NEER February 17, 2009 at 10:19 PM  

वे देह के भूखे क्या जाने
ये प्यार वफ़ा दिलदारी क्या

its true sharda dear..
sacha pyar nhi hai aajkl

bhut achi lagi aapki yeh poem

Sanjeev Mishra February 17, 2009 at 10:40 PM  

वे देह के भूखे क्या जाने
ये प्यार वफ़ा दिलदारी क्या

bas do hi shabd kah sakte hain "wah-wah."

समयचक्र February 17, 2009 at 11:06 PM  

हंस के जो मिलो सोचे दुनिया
मतलब है, छुपाया भारी क्या
वे देह के भूखे क्या जाने
ये प्यार वफ़ा दिलदारी क्या
बातें तो कहे सच्ची "श्रद्धा"
वे सोचे मीठी खारी क्या
आपकी इस गजल में कितने दर्द छुपे है ...जो कुछ कुछ सच कह रहे है . कुछ तो लोगो की मानसिकता से जुड़े सवाल है . बधाई

manish..... February 18, 2009 at 4:28 PM  

जो दर्द छुपा के हंस दे हम
अश्कों से हुई गद्दारी क्या

वे देह के भूखे क्या जाने
ये प्यार वफ़ा दिलदारी क्या

dil ko chhune wali rachna...
Bahut Bahut Badhai....

दिगम्बर नासवा February 19, 2009 at 8:19 PM  

जो दर्द छुपा के हंस दे हम
अश्कों से हुई गद्दारी क्या

सुंदर एहसास को समेटे गहरी भावनाएं

pallavi trivedi February 20, 2009 at 2:39 PM  

sabhi sher achche lage...badhai.

समयचक्र February 21, 2009 at 8:41 PM  

समयचक्र: चिठ्ठी चर्चा : चिठ्ठी लेकर आया हूँ कोई देख तो नही रहा हैबहुत अच्छा जी
आपके चिठ्ठे की चर्चा चिठ्ठीचर्चा "समयचक्र" में
महेन्द्र मिश्र

प्रदीप मानोरिया February 23, 2009 at 12:23 PM  

वे देह के भूखे क्या जाने
ये प्यार वफ़ा दिलदारी क्या
सुंदर अद्भुत ...........! मेरे ब्लॉग पर पधार कर "सुख" की पड़ताल को देखें पढ़ें आपका स्वागत है
http://manoria.blogspot.com

महावीर February 24, 2009 at 3:36 AM  

बेहतरीन ग़ज़ल है। लाजवाब अशा'र और छोटी बहर में। बधाई हो।
महावीर शर्मा

Anonymous February 26, 2009 at 7:54 PM  

ग़ज़ल में बात कहने में 'रिस्क' ये है कि कहीं 'लिबास' जिस्म से हसीं हो जाता है,कहीं 'जिस्म' लिबास से ।आपकी ग़ज़ल में दोनों का 'बैलेंस' अच्छा लगा।

daanish February 28, 2009 at 2:57 AM  

"ve deh ke bhooke kya jaane ,
ye pyaar wafaa dildaari kya.."

gehri aur saadiq soch ki
tarjumaani karti hui ek umda gazal

mubarakbaad . . . .
---MUFLIS---

ललितमोहन त्रिवेदी March 1, 2009 at 1:42 PM  

श्रृद्धा जी !अवनीश के ऑरकुट से यूँ ही उत्सुकतावश आपके ब्लॉग पर चला आया ,पर यहाँ तो खजाना ही खुल गया !आपकी कई ग़ज़ल पढ़ी ! बहुत अच्छा लिखती हैं आप !ख़यालात और कहन दौनों ही मुकम्मल है !बहुत खूब !बधाई !

suresh sharma March 4, 2009 at 7:22 PM  

अच्छी है यही खुद्दारी क्या
रख जेब में दुनियादारी क्या

जो दर्द छुपा के हंस दे हम
अश्कों से हुई गद्दारी क्या

हंस के जो मिलो सोचे दुनिया
मतलब है, छुपाया भारी क्या

वे देह के भूखे क्या जाने
ये प्यार वफ़ा दिलदारी क्या

बातें तो कहे सच्ची "श्रद्धा"
वे सोचे मीठी खारी क्या

------ har shaabd aapni he pahchaan liye huey hai jo kissi ko bhi aapne mai samet le ,,,

,, shaayad lafzo ki aawaz nahi hoti par andaaz bahut hotey hai ,,

..

Vinay March 9, 2009 at 9:25 PM  

होली की आपको और आपके परिवार में समस्त स्वजनों को हार्दिक शुभकामनाएँ!

राकेश जैन March 9, 2009 at 10:29 PM  

sundar aur sateek.

गर्दूं-गाफिल March 12, 2009 at 3:17 AM  

मैने पहने है कपड़े, धुले आज फिर
तोहमते अब नई कुछ लगा दीजिए

आपके ब्लॉग पर अचानक नजर पडी
ठिठक गया मन कुछ पल रुकी घडी
डूबने का हुनर आता है डुबाने का भी
यूँ ही करते रहो अपनी लकीर बडी

ज़ाकिर हुसैन March 12, 2009 at 5:06 PM  

अच्छी है यही खुद्दारी क्या
रख जेब में दुनियादारी क्या
वे देह के भूखे क्या जाने
ये प्यार वफ़ा दिलदारी क्या
....बहुत खूब !

योगेन्द्र मौदगिल March 12, 2009 at 9:27 PM  

होली की अनंत असीम व रंगीन शुभकामनाएं..........

pustak mili ya nahi..?

विक्रांत बेशर्मा March 17, 2009 at 2:18 AM  

जो दर्द छुपा के हंस दे हम
अश्कों से हुई गद्दारी क्या

बहुत खूब श्रद्धा जी !!!!!!!!

कडुवासच March 17, 2009 at 10:06 AM  

बेहद प्रभावशाली व प्रसंशनीय अभिव्यक्ति है, शुभकामनाएँ !!!!!

imrankhan March 20, 2009 at 3:11 AM  

niceeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeee

sandeep sharma March 20, 2009 at 10:17 PM  

जो दर्द छुपा के हंस दे हम
अश्कों से हुई गद्दारी क्या

हंस के जो मिलो सोचे दुनिया
मतलब है, छुपाया भारी क्या

बहुत सुन्दर भाव हैं....

Puneet March 21, 2009 at 9:26 PM  

Bahut aacha likha hai Di aapne... do u rember me .. I am Puneet from Delhi...shyed yaad ho ...kais ehai aap.

Anonymous March 23, 2009 at 1:20 PM  

hi...nice to go through your blog...well written...by the way which typing tool are you using for typing in Hindi...?

recently i was searching for the user friendly Indian Language typing tool and found .." quillpad ". do u use the same...?

heard that it is much more superior than the Google's indic transliteration..!?

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Jai...Ho....

KK Yadav March 25, 2009 at 3:50 PM  

बहुत सुन्दर अभिव्यक्तियाँ...बधाई !!
___________________________
गणेश शंकर ‘विद्यार्थी‘ की पुण्य तिथि पर मेरा आलेख ''शब्द सृजन की ओर'' पर पढें - गणेश शंकर ‘विद्यार्थी’ का अद्भुत ‘प्रताप’ , और अपनी राय से अवगत कराएँ !!

Akanksha Yadav March 28, 2009 at 3:50 PM  

नव संवत्सर २०६६ विक्रमी और नवरात्र पर्व की हार्दिक शुभकामनायें

आशीष कुमार 'अंशु' March 30, 2009 at 4:39 PM  

क्या बात है!!!

आनन्द आ गया

vikky March 31, 2009 at 3:40 PM  

सच्चाई है ये ज़िन्दगी की !!
नजरिया है ये नज़रों का !!
यही ज़िन्दगी है बहोत खोब लिखा है
श्रद्धा ji

Science Bloggers Association March 31, 2009 at 6:02 PM  

छोटी बहर में सुन्‍दर गजल।

-----------
तस्‍लीम
साइंस ब्‍लॉगर्स असोसिएशन

Akanksha Yadav April 1, 2009 at 9:17 PM  

वे देह के भूखे क्या जाने
ये प्यार वफ़ा दिलदारी क्या

बातें तो कहे सच्ची "श्रद्धा"
वे सोचे मीठी खारी क्या
...dil ko chhuti hain panktiyan.

Mahesh Savale April 4, 2009 at 1:59 AM  

वा ,.....वे देह के भुखे क्या जाने प्यार वफादारी क्या......क्या खूब कहा आपने........

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' April 15, 2009 at 12:29 PM  

वे देह के भूखे क्या जाने,
ये प्यार वफ़ा दिलदारी क्या|

बहुत ही अच्छा!लाजवाब शेर |मेरे पास शब्द नहीं है, तारीफ के लिये......

मैनें आप का ब्लाग देखा। बहुत अच्छा लगा।आप
मेरे ब्लाग पर आयें,यकीनन अच्छा लगेगा और अपने विचार जरूर दें।प्लीज....हर रविवार को नई ग़ज़ल,गीत अपने तीनों ब्लाग पर डालता हूँ।मुझे यकीन है कि आप को जरूर पसंद आयेंगे....
प्रसन्न वदन चतुर्वेदी

Anonymous April 17, 2009 at 1:43 PM  

जो दर्द छुपा के हंस दे हम
अश्कों से हुई गद्दारी क्या

Science Bloggers Association April 20, 2009 at 3:14 PM  

गजल का चौथा शेर, हाशिले गजल है। मुबारकबाद कुबूल फरमाएं।

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खुशियों का विज्ञान-3
एक साइंटिस्‍ट का दुखद अंत

Nitin Anand April 23, 2009 at 3:51 PM  

Very nice...!!
Bahot achi kavita he !!

Khamosh Shayar April 25, 2009 at 4:13 AM  

wah bahut khoob didi
didi maine i'l launched 2 website a technical website plz visit didi..
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admin May 7, 2009 at 4:23 PM  

अरे वाह, क्‍या बात है। खुददारी के बहाने बहुत प्‍यारी गजल पढवा दी आपने।

-----------
SBAI TSALIIM

लोकेन्द्र विक्रम सिंह May 10, 2009 at 2:39 PM  

वाकई में आप ने एक खूबसूरत गजल पेश की है....

Sujata Dua May 13, 2009 at 12:16 PM  

aadarneeyaa shradhaa ji ,
aapko e kavitaa main padhaa hai mainey ...mainey tab bhee kahaa thaa aap bahut acchaa likhtee hain ...aaj phir dohraa rahi hoon ..har ek sher dil kee karun awaaj hai ....
saadar
sujata

RAMKRISH July 14, 2009 at 1:08 AM  

Kuch un nigaahon ka kusur tha, Kuch mera surur tha,
Un be-baak nigaahon se koi na bach k reh saka||
Daali jo nazar teri gazal pe humne,
Har gazal me laga hai lafzon ne gehna pehan liya|



Kehar ki Laakh nigaahon ki tumhe Zarurat kya hai,
Luft Ki ek nigaahe-Naaz He na Jeene Degi humko||



निगाहों से बचने के लिए निगाहें थीं निगहबान ,
निगाहें निगाहों से लड़ी दिल पे बना निशाँ ||

प्रदीप कांत April 23, 2010 at 10:44 PM  

अच्छी है यही खुद्दारी क्या
रख जेब में दुनियादारी क्या

बढिया

Anonymous December 2, 2012 at 3:30 PM  

अच्छी है यही खुद्दारी क्या रख जेब में दुनियादारी क्या ये शेर खास पसंद आया .इत्तिफकान खुद्दारी पे ही मैंने एक त्रिवेणी लिखी है आज ..

www.blogvani.com

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