Wednesday, December 31, 2008

कितना है दम चराग़ में

कितना है दम चराग़ में, तब ही पता चले
फानूस की न आस हो , उस पर हवा चले

फानूस = काँच का कवर


लेता हैं इम्तिहान अगर, सब्र दे मुझे
कब तक किसी के साथ, कोई रहनुमा चले


नफ़रत की आँधियाँ कभी, बदले की आग है
अब कौन लेके झंडा –ए- अमनो-वफ़ा चले


चलना अगर गुनाह है, अपने उसूल पर
सारी उमर सज़ाओं का ही सिल सिला चले


खंजर लिये खड़ें हों अगर मीत हाथ में
“श्रद्धा” बताओ तुम वहाँ फ़िर क्या दुआ चले




Bh'r 2212-1211-2212-12

52 comments:

RADHIKA December 31, 2008 at 8:36 PM  

अच्छा लिखा हैं श्रद्धा जी ,नवीन वर्ष की बधाई

Sanjeev Mishra December 31, 2008 at 8:38 PM  

कितना है दम चराग़ में, तब ही पता चले
फानूस की न आस हो , उस पर हवा चले
atyant sundar ,prashansa ko shabd nahin hain.
खंज़र लिए खड़े हो गर, हाथों में दोस्त ही
“श्रद्धा” बताओ तुम वहाँ, फ़िर क्या दुआ चले
bahut hi lajawab.bahut khoob.

kumar Dheeraj December 31, 2008 at 8:45 PM  

नया साल आपके लेकर ढ़ेर सारी खुशियां लेकर आए

सुशील छौक्कर December 31, 2008 at 8:52 PM  

इंतजार खत्म हुआ।
खंज़र लिए खड़े हो गर, हाथों में दोस्त ही
“श्रद्धा” बताओ तुम वहाँ, फ़िर क्या दुआ चले
अद्भुत।
नववर्ष की आपको और आपके परिवार को ढेरों शुभकामनाएं।

shivraj gujar December 31, 2008 at 9:08 PM  

चलना अगर गुनाह है, अपने उसूल पर
सारी उमर सज़ाओं का ही सिल सिला चले
bahut hi badiya. man ko chho lene wali gajal.
mere blog(meridayari.blogspot.com) var bhi visit karen.

"अर्श" December 31, 2008 at 10:44 PM  

श्रधा जी सबसे पहले तो आपको तथा आपके पुरे परिवार को नव वर्ष की ढेरो बधाई और मंगलकामनाएँ..
अरसे बाद आपको एक खुबसूरत और मुक्कमल ग़ज़ल के साथ पढ़ने का मौका मिला बहोत ही खुबसूरत ग़ज़ल लिखी है आपने सुंदर सी काफिये और बेहतर रदीफ़ के साथ ....ढेरो बधाई कुबूल फरमाएं...
इस साल के आखिरी ग़ज़ल पर आपका भी मेरे ब्लॉग पे ढेरो स्वागत है ...

अर्श

अमिताभ मीत December 31, 2008 at 10:53 PM  

लेता हैं इम्तिहान गर, तो सब्र दे मुझे
कब तक किसी के साथ, कोई रहनुमा चले

क्या बात है .... गज़ब है ...

"क़दम क़दम पे जहाँ बेशुमार रहबर हैं
मुसाफ़िरों को वहाँ किस पे ऐतबार आए ?"

बहुत अच्छा शेर .. उम्दा ग़ज़ल ...

Wishing you a Very Happy New Year !!

समय चक्र December 31, 2008 at 11:55 PM  

अच्छा लिखा हैं श्रद्धा जी
नववर्ष की हार्दिक ढेरो शुभकामना . नया साल ढेरो खुशियाँ लेकर आये .

नीरज गोस्वामी January 1, 2009 at 2:51 AM  

चलना अगर गुनाह है, अपने उसूल पर
सारी उमर सज़ाओं का ही सिल सिला चले
क्या बात है...साल के अंत में लाजवाब ग़ज़ल...वाह..वा...
नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं
नीरज

गौतम राजऋषि January 1, 2009 at 4:57 PM  

उफ्फ्फ्फ्फ!!!!...कहर बरपा रहा है ये मतला तो...
सारे शेर लाजवाब हैं मैम,,,खास कर "खंज़र लिए खड़े हो गर, हाथों में दोस्त ही / “श्रद्धा” बताओ तुम वहाँ, फ़िर क्या दुआ चले"

और नये साल की करोड़ों शुभकामनायें आपको.ईश्वर करे ये जबरदस्त लेखनी आपकी यूं ही हमें पूरे साल बेमिसाल गज़लों से मिलवाती रहे...

ss January 1, 2009 at 7:30 PM  

खंज़र लिए खड़े हो गर, हाथों में दोस्त ही
“श्रद्धा” बताओ तुम वहाँ, फ़िर क्या दुआ चले

बहुत शानदार बन पड़ा है| सभी शेर एक से बढ़कर एक| नए साल पर बधाई|
मेरा ब्लॉग भी देखें| धन्यवाद|

Girish Kumar Billore January 2, 2009 at 3:24 AM  

मत झुलसाना न भरमाना
हर घर में खुशियाँ दे आना
आए तो स्वागत नवल वर्ष
अबके आँसू मत दे जाना !
ओ नवल वर्ष ओ धवल वर्ष
शिशु सा आकर्षण ले आना

daanish January 2, 2009 at 8:48 PM  

आप की आमद का शुक्रिया...
जब नज़रिया ही अच्छा हो तो लफ्ज़ भी अच्छे लगने लगते हैं

आप की ग़ज़ल बहोत उम्दा है, ख्याल में रवानी है और पुख्तगी भी....
हर शेर असरदार बन पडा है...
मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ !

" राहे-वफ़ा में चल ही पड़े हैं जो अब क़दम ,
चलता है साथ-साथ कोई हादसा, चले !"
---मुफलिस---

!!अक्षय-मन!! January 2, 2009 at 9:16 PM  

नए साल की शुभकामनाय साथ ही अक्षय का प्यार भरा नमन स्वीकार करें....
काफी समय बाद लिखा आपने और कमाल का लिखा बहुत ही प्रभावशाली हैं सारे के सारे शेर....
बताओ तुम वहां क्या दुआ चले,....ये बहुत ही शानदार है....





अक्षय-मन

๑۩۞۩๑वंदना शब्दों की ๑۩۞۩๑

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी January 3, 2009 at 12:05 AM  

आप बहुत अच्छा लिखती हैं श्रद्धा। बहर-मीटर सब को ध्यान में रखते हुये, सही गज़ल। वाह!

विवेक सिंह January 3, 2009 at 1:12 AM  

नव वर्ष की आप और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं !!!

डॉ .अनुराग January 3, 2009 at 9:48 PM  

श्रद्धा जी
इस शेर ने पूरी गजल का लुत्फ़ अकेले दे दिया ......

कितना है दम चराग़ में, तब ही पता चले
फानूस की न आस हो , उस पर हवा चले

सुभान अल्लाह .....

शेरघाटी January 4, 2009 at 3:09 AM  

jitni taarif kee jaaye kam hai.

gazal kahna aata gaya.....

संत शर्मा January 5, 2009 at 12:31 AM  

Bahut khubshurat avivyaqti, khash karhe ye dono

कितना है दम चराग़ में, तब ही पता चले
फानूस की न आस हो , उस पर हवा चले

खंज़र लिए खड़े हो गर, हाथों में दोस्त ही
“श्रद्धा” बताओ तुम वहाँ, फ़िर क्या दुआ चले

Kam shabdo me bahut gahri baat. Very nice.

Prakash Badal January 5, 2009 at 2:34 AM  

बढ़िया ग़ज़ल। संतोष की बात कि आपने मीटर भी सुझाया है। मुझे मीटर का तो पता चलता नहीं लेकिन आपका कथ्य इतना बढिया है कि मैं वाह के सिवा कहूं तो क्या कहूं। नए साल की आपको शुभकामनाएं।

Vinay January 6, 2009 at 2:21 AM  

बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल है


---मेरे पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम पर आपका सदैव स्वागत है|

Puja Upadhyay January 7, 2009 at 3:02 PM  

bahut khoobsoorat gazal hai, pahla sher to lajawab hai.

vijay kumar sappatti January 9, 2009 at 11:51 AM  

Ye aapki sabse acchi gazalo mein se ek hai , aakri sher lajawab hai ..mujhe gazal likhna nahi aata , par aapki gazalen padkar khush ho jaata hoon.

badhai

shradda ji , hamen to aap bhool hi gayi , mere blog par aap aati hi nahi ho ..

vijay
Pls visit my blog for new poems:
http://poemsofvijay.blogspot.com/

Dr. Zakir Ali Rajnish January 9, 2009 at 2:16 PM  

लेता हैं इम्तिहान गर, तो सब्र दे मुझे
कब तक किसी के साथ, कोई रहनुमा चले

चलना अगर गुनाह है, अपने उसूल पर
सारी उमर सज़ाओं का ही सिल सिला चले

खूबसूरत शेर कहें हैं आपने, बधाई।

योगेन्द्र मौदगिल January 9, 2009 at 11:10 PM  

Behtareen.............

Ankit January 10, 2009 at 1:29 AM  

नमस्कार श्रद्धा जी,
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही है आपने.

Sanjay Grover January 12, 2009 at 12:00 AM  

आज का दिन ऐतिहासिक है (क्योंकि) मैं आपके ब्लाॅग पर आया हूँ।
दरअसल......
इधर से गुज़रा था सोचा सलाम करता चलूंऽऽऽऽऽऽऽ
(और बधाई भी देता चलूं...)

प्रदीप मानोरिया January 12, 2009 at 12:09 PM  

बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति बहुत गहरे भावः भरी है आपकी ग़ज़ल

* મારી રચના * January 12, 2009 at 9:18 PM  

shraddha, orkut mai to ye padh liya lekin socha yaha bhi aap ko itni sundar rachna ke liye abhinandan dedu.. bahut hi badhiya likhti ho...

Abhijit January 13, 2009 at 6:00 PM  

naye saal ki badhaai...aur saath hi is ghazal ke liye bhi badhai..pehla sher bahut pasand aaya

hindi-nikash.blogspot.com January 13, 2009 at 9:43 PM  

मेरी कामना है की आपके शब्दों को नई ऊंचाइयां और नए व गहरे अर्थ मिलें और विद्वज्जगत में उनका सम्मान हो.
कभी समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर एक नज़र डालने का कष्ट करें.
http://www.hindi-nikash.blogspot.com

सादर-
आनंदकृष्ण, जबलपुर.

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ January 16, 2009 at 12:42 AM  

बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़लें
कहती हैँ आप

यह तो मैँने आज ही आपके ब्लॉग पर आ कर पढ़ा
:

नफ़रत की आँधियाँ कभी, बदले की आग है
अब कौन लेके झंडा –ए- अमनो-वफ़ा चले

नव वर्ष के लिए
आपको मेरी शुभकामनायें

GOPAL K.. MAI SHAYAR TO NAHI... January 18, 2009 at 1:36 AM  

WAH BAHUT HI SUNDAR GAZAL LIKHI HAI AAPNE.. BADHAAYI

रश्मि प्रभा... January 18, 2009 at 4:27 PM  

चलना अगर गुनाह है, अपने उसूल पर
सारी उमर सज़ाओं का ही सिल सिला चले
...........
बहुत ही अच्छी लगी है रचना

daanish January 19, 2009 at 12:20 AM  

kuchh bikhre hue alfaaz ko aapki paarkhi nazaron ka intzaar hai...
---MUFLIS---

गौतम राजऋषि January 19, 2009 at 1:37 AM  

मैम कहां हैं?बड़े दिन बीते...अब तो एक ताजी गज़ल हो जाये

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) January 19, 2009 at 5:02 AM  

चलना अगर गुनाह है, अपने उसूल पर
सारी उमर सज़ाओं का ही सिल सिला चले
आप सिंगापुर में.....हम रांची से हाथ हिला चले......
इक मुकम्मल ग़ज़ल पर कलम को घिसा चले.....
कभी लगे ना आपके हर्फों को हमारी नज़र....
भूतनाथ जी यहाँ से ये चले...वो चले....!!

Manuj Mehta January 19, 2009 at 12:20 PM  

श्रद्धा जी बहुत ही हूब्सुरत और वजनदार ग़ज़ल है, मतला बहुत ही शानदार बन पड़ा है.

निर्झर'नीर January 19, 2009 at 12:28 PM  

कितना है दम चराग़ में, तब ही पता चले
फानूस की न आस हो , उस पर हवा चले

kya baat hai..purmaani khayal

aap to jani mani kaviyatri ho gayii umen bhi shagird bana lo.

chandrabhan bhardwaj January 19, 2009 at 6:06 PM  

Shraddha ji, namaskar,
Aaj pahali bar aapka blog dekha aur ghazalen padin. aap bahut sunder ghazalen likhati hain. Sabse badi baat yah hai ki aapko bahar ka bhi gyan hai, jiske karan ghazal ki kahan men char chand lag gaye hain.bahut bahut bahut badhai. Nav varsh ki shubh kamanaaon ke sath.

Anonymous January 21, 2009 at 5:27 PM  

लिखना सभी को आता है । शायद लिखना सभी चाहते है । लेकिन चाहत का क्या लिखना उन्ही को आता है जो लिखने का हुनर जानते है । आपकी लेखनी का क्या तारीफ करूं समझ में नही आता है । बहुत खूब

अजित वडनेरकर January 25, 2009 at 5:57 AM  

अरे....नए साल में कुछ नहीं लिखा अभी तक !!!
इतना विराम ठीक नहीं श्रद्धाजी...
शुरू हो जाइये फिर से...

Prakash Badal January 25, 2009 at 12:18 PM  

आप की ग़ज़ल की क्या तारीफ करूँ और किस शेर की। बहर पित वज़्न में कही गई ऐसी ग़ज़ल जिसमें कथ्य बहुत ही बढिया है वाह वाह वाह

Yogi January 30, 2009 at 12:21 AM  

Shraddha ji,

ab aapki kaise tareef karu, mere ko to lavz nahin mil rahe, jin me aapki lekhni ki tareef kar sakoon...

fir bhi
1) aapka blog itna sundar hai, I am feeling jealous.
2) Mujhe aaj tak beher samaj me nahin aya, but behar me likhi hi gazals hi sundar hoti hain, aapki poetry padh kar samaj me a raha hai
3) The way you have written Bhigi gazal in purple color, is very beautiful...Amazing...YOu are not only a good poet, but an amazing artist also..
4) The number of comments that you have got on your poems is an clear indication of the quality of your creations.
5) Jitni bhi tareef karoonga, kam hi lagti hai mere ko...
Will defiinitely read more of your creations on weekend...

Aap apne blog par e-mail subscription ka option bhi enable kar deejiye...I'll subscribe...

if you need help regarding that, feel free to contact me...check my blog, I have added that option.

The site for that is www.feedburner.com, and you'll get to know, how to use it. :)

It'll be really useful for me..Please do it.

anand February 1, 2009 at 1:59 PM  

maa saraswatee ji k aasheerwad swaroop hi hum aise lekhani ko modpate hai jo kisi ka jeewan mod deti hai?y know!
sahaj nahi koi kala nikhar pati bandhu,kala k nikhar ko bhi kalakar chahiye! -----anand sharma.

anand February 1, 2009 at 2:03 PM  

sakar aaj hai kewal
kal"nirakar hota hai,
kal ka akar bana le
wah kalakar hota hai!!
AAP AAP
HAIN AAP KALAKAR HAI
ANAND SHARMA.......

anand February 1, 2009 at 2:10 PM  

AAPS K VYVHARO ME,
VISWAS AGAR MAR JATA
TAB PREETI NAHIRAH PATI
JEEVAN NEERAS KAR JATA!!!
######
JINKE RAHE RAM RAKHWARE
GRAH NAKSHTRA BIGARE KYA
HUM TO POORN BRAMH MAI DOOBE
AGE OR WICHRE KYA!
.....ANAND SHARMA..........

Yogi February 1, 2009 at 5:02 PM  

Bahut achha Shraddha ji.
Really Too good...matla to sach mein kamaal kar raha hai..

Aap se 2 savaal karne hain mere ko

1) Behar kab tay hota hai, matla likhne ke baad? are there fixed number of beher's

2) I try to write, something other than love, but i always end up in writing on love. Why is it so?
Aapki is poem ki tarah kisi general topic par kyo nahin likh paata hu main?

Will wait for your answer.

Dev February 16, 2009 at 6:26 PM  

बहुत सुंदर रचना .
बधाई
इस ब्लॉग पर एक नजर डालें "दादी माँ की कहानियाँ "
http://dadimaakikahaniya.blogspot.com/

"अर्श" March 4, 2009 at 7:18 PM  

shradha ji namaskar,
na jaane kitni baar ye gazal main padh chuka hun... iska matala hi itna badhiya aur khubsurat kaha hai aapne ke kya main kahun ... bas sochta rahta hun ..aisa matala... kamaal ka ..fir se aapka aabhar...

arsh

Sunil Kumar Pandey May 18, 2009 at 3:47 PM  

पूरी गज़ल तरासी हुई
मेरे जिंदगी की किताब....
धन्यवाद......

Rajat Narula May 20, 2009 at 1:00 PM  

चलना अगर गुनाह है, अपने उसूल पर
सारी उमर सज़ाओं का ही सिल सिला चले

Lajawab rachna hai... its simply superb...

www.blogvani.com

About This Blog