मैने पहने है कपड़े धुले
आप भी अब मिरे गम बढ़ा दीजिए
मुझको लंबी उमर की दुआ दीजिए
मैने पहने है कपड़े, धुले आज फिर
तोहमते अब नई कुछ लगा दीजिए
रोशनी के लिए, इन अंधेरों में अब
कुछ नही तो मिरा दिल जला दीजिए
चाप कदमों की अपनी मैं पहचान लूं
आईने से यूँ मुझको मिला दीजिए
गर मुहब्बत ज़माने में है इक खता
आप मुझको भी कोई सज़ा दीजिए
चाँद मेरे दुखों को न समझे कभी
चाँदनी आज उसकी बुझा दीजिए
हंसते हंसते जो इक पल में गुमसुम हुई
राज़ "श्रद्धा" नमी का बता दीजिए
Beher-e-Mutadaarik:
faa-i-lun; faa-i-lun; faa-i-lun; faa-i-lun
or
L-S-L; L-S-L; L-S-L; L-S-L
Aap bhi ab mire gham badha dijiye
Mujhko lambi umar ki dua dijiye
Maine pahne hai kapdhe dhule aaj phir
Tohmate ab nayi kuch laga dijiye
Roshni ke liye, in andheron mein ab
Kuch nahi to mira dil jala dijiye
Chaap kadmon ki apni main pahchaan loon
Aaine se un mujhko mila dijiye
Gar muhabbat zamane mein hai ik khata
Aap mujhko bhi koi saza dijiye
Chand mere dukhon ko na samjhe kabhi
Chandni aaj uski bujha dijiye
Hanste hanste jo ik pal mein gumsum hui
Raz “Shrddha” nami ka bata dijiye
75 comments:
"चाँद समझेगा न मेरे दुख को कभी
चाँदनी आज उसकी बुझा दीजिए "
मर्मस्पर्शी !!!
-- शास्त्री जे सी फिलिप
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as usual दी आप कमाल कि लिखती हैं, और इसे भी कमाल का लिखा है... lovely
बहुत सुंदर गजल.
मैने पहने है कपड़े, धुले आज फिर
तोहमते अब नई कुछ लगा दीजिए
क्या बात है श्रधा जी....बेहद खूबसूरत ग़ज़ल...हर शेर लाजवाब...बेमिसाल...बधाई.
नीरज
अच्छी ग़ज़ल।
है मुहब्बत गुनाह, गर ज़माने में फिर
आप मुझको भी कोई सज़ा दीजिए
चाँद समझेगा न मेरे दुख को कभी
चाँदनी आज उसकी बुझा दीजिए
bahut hi sundar bhav
बहुत अच्छा लिखा आपने श्रद्धा जी। कुछ लाइनें तो दिल को छू गयी। बधाई और इंतजार अगले पोस्ट का।
अच्छी बात-
आप भी अब मिरे गम बढ़ा दीजिए
मुझको लंबी उमर की दुआ दीजिए
क्या खूबसूरती से मोहब्बत का इकरार किया गया है-
है मुहब्बत गुनाह, गर ज़माने में फिर
आप मुझको भी कोई सज़ा दीजिए
अच्छी गजल है। एक विनम्र सुझाव है- नाम बदलकर या उपनाम से कई शायर लिखते रहें हैं। गृजल में इससे अच्छा असर देखने को मिला है। श्रद्धा नाम संस्कृत का है इसलिए लय में कुछ ठहराव सा पैदा करता है। आपने नाम/उपनाम के बारे में कभी तो जरुर सोचा होगा।
चाप कदमों की अपनी, मैं पहचान लूं
आईने से कुछ ऐसे मिला दीजिए
बहुत दिनों बाद नजर आयी ....ये शेर याद रहेगा कई दिनों तक....
मैने पहने है कपड़े, धुले आज फिर
तोहमते अब नई कुछ लगा दीजिए
kamal ka sher hai.badhiya bhavavyakti.
एक से एक लाज़वाब अशआर... पर ये लाइने बड़ी शानदार रहीं।
मैने पहने है कपड़े, धुले आज फिर
तोहमते अब नई कुछ लगा दीजिए
रोशनी के लिए, इन अंधेरों में अब
कुछ नही तो मिरा दिल जला दीजिए
मजा आ गया।
चाँद समझेगा न मेरे दुख को कभी
चाँदनी आज उसकी बुझा दीजिए
क्या बात है..
Behtareen ghazal likhi hai aapne. har sher lajawab hai
ये केवल कुछ पंक्तियाँ ही नही हैं.....इसमे सुंदर भाव भी दिख रहे हैं ......बहुत सुंदर
Chand samjheg na mere dukh ko kabhi,chandni aaj uski bujha deejiye. Shradhaji, bahut khoob. achhi rachna.
बहुत गहरी बातें कहती गजल।
मैने पहने है कपड़े, धुले आज फिर
तोहमते अब नई कुछ लगा दीजिए
वाह।
Maine pahne hai kapdhe dhule aaj phir
Tohmate ab nayi kuch laga dijiye
WAH..!! BAHUT HI KHOOBSURAT GAZAL LIKHI HAI AAPNE..!
BADHAAYI
मैने पहने है कपड़े, धुले आज फिर
तोहमते अब नई कुछ लगा दीजिए
ये लाइने बहुत अच्छी लगी !!
बहुत ही बेहतरीन गज़ल-वाह!!
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आपके आत्मिक स्नेह और सतत हौसला अफजाई से लिए बहुत आभार.
मैने पहने है कपड़े, धुले आज फिर
तोहमते अब नई कुछ लगा दीजिए
बेहद खूबसूरत
...हर शेर लाजवाब...
बेमिसाल...
ustaad shaayar bhi ghutne tek gaye.
"हंसते हंसते जो इक पल में गुमसुम हुई
राज़ "श्रद्धा" नमी का बता दीजिए"
गुनगुनाने का मन हो रहा है, इतनी अच्छी ग़ज़ल है यह श्रद्धा जी !
wah,kya baat hai. behatarin gazal
लम्बे अन्तराल के बाद इतनी खुबसूरत ग़ज़ल के साथ वापसी ने सारे गिले-शिकवे दूर कर दिए.
हर शेर लाजवाब. हर शेर बेमिसाल.
hand samjhega na mere dukh ko kabhi
Chandni aaj uski bujha dijiye
bahot badhiya shraddhaji
सुंदर
bahut khuub shradhha..
अच्छी गजल.. बहुत सुंदर भाव.
जी मार्मिक और बहुत ही सुंदर .
bahut khoob... dhardhar gazhal
रोशनी के लिए, इन अंधेरों में अब
कुछ नही तो मिरा दिल जला दीजिए
चाप कदमों की अपनी, मैं पहचान लूं
आईने से कुछ ऐसे मिला दीजिए
bahut khoob...
मैने पहने है कपड़े, धुले आज फिर
तोहमते अब नई कुछ लगा दीजिए
bahot hi kam puri tarah se purn ghazal padhane ko milta hai ,bahot hi umda likha hai aapne ..sundar rachana ke liye badhai.....
regards
Arsh
Bahut khoob
एक पुराणी गजल याद आ गई
मेरा दामन बहुत साफ़ है
कोई तोहमत लगा दीजिये
बहुत शानदार!
गर मुहब्बत ज़माने में है इक खता
आप मुझको भी कोई सज़ा दीजिए
Wah..Kya baat hai...
aapki gazal main bhav key saath hi technic bhi behtar hai
"तोहमते अब नई कुछ........"
badhai
main kaha hi tha mam
supreb
bahut accha likha hai
wakai....
all the best
keep it up
thank u .............
abhi jagjeet singh saaheb ki gazhala sunte hue aapki gazhal padhi. maza aa gya. aapko badhai...
khubsurat ghazal ki takhliq ke liye mubarakbaad , padhkar accha laga , isi tarahan likhte rahiye
khubsurat ghazal ki takhliq ke liye mubarakbaad , padhkar accha laga , isi tarahan likhte rahiye
श्रद्धा जी,
साहित्यशिल्पी पर आपकी टिप्पणी से मैं धन्य हुआ.
मेरी ऊर्जा में आशातीत वृद्धि हुई.
मैं प्रयासरत हूं कि कुछ और ऐसा कह पाऊं जो आप सरीखे समर्थ रचनाकारों को अच्छा लगे.
मैने पहने है कपड़े, धुले आज फिर
तोहमते अब नई कुछ लगा दीजिए ।
बहुत खूबसूरत शेर है, कहने का अंदाज भी सबसे जुदा। ऐसे में बधाई तो बनती ही है।
too gud mam!! likhti rahiye
मैने पहने है कपड़े, धुले आज फिर
तोहमते अब नई कुछ लगा दीजिए
चाँद मेरे दुखों को न समझे कभी
चाँदनी आज उसकी बुझा दीजिए
बेहतरीन गज़ल के ये शेर बहुत उम्दा लगे, बहुत अच्छी रचना के लिए बधाई।
wah wah
चाँद मेरे दुखों को न समझे कभी
चाँदनी आज उसकी बुझा दीजिए
बहुत सटीक लिखा है आपने हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है निरंतरता की चाहत है समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक दें
रोशनी के लिए, इन अंधेरों में अब।
कुछ नही तो मिरा दिल जला दीजिए।।
बहुत ही सुन्दर। बधाई। किसी की दो पंक्तियाँ जोडना चाहता हूँ-
अंधेरा माँगने आया था रोशनी की भीख।
हम अपना घर न जलाते तो क्या करते।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
रोशनी के लिए, इन अंधेरों में अब
कुछ नही तो मिरा दिल जला दीजिए
.......
bahut hi dili ehsaas hain,bahut sundar
मैने पहने है कपड़े, धुले आज फिर
तोहमते अब नई कुछ लगा दीजिए
रोशनी के लिए, इन अंधेरों में अब
कुछ नही तो मिरा दिल जला दीजिए
wah bahut hi shandar gazal,har sher subhan allah
बहुत बढिया लिखा है।
चाप कदमों की अपनी, मैं पहचान लूं
आईने से कुछ ऐसे मिला दीजिए
चाप कदमों की अपनी, मैं पहचान लूं
आईने से कुछ ऐसे मिला दीजिए
क्या बात है! आपकी सोच की दाद देता हूं। क्या ख़ूबसूरत ग़ज़ल है। पहली बार आया हूं। अब बस आता ही रहूंगा।
है मुहब्बत गुनाह, गर ज़माने में फिर
आप मुझको भी कोई सज़ा दीजिए
चाँद समझेगा न मेरे दुख को कभी
चाँदनी आज उसकी बुझा दीजिए .....
शब्द शिल्प पर आपका पुरा अधिकार है
अच्छी गजल पढ़वाने के लिए शुक्रिया
लिखते रहिये ...
श्रद्धा जी, शायद मै आप का ही नही खुद का गुनह्गार हुँ जो आपके कई इतनी प्यारी रचनावो और गजलो से खुद को वंचित रखा| ब्लोग जगत मे मै उतना सक्रिय नही थी पर धीरे धीरे मै यहाँ आप सब को पढने और आपसब से सीखने का भरसक प्रयास कर रहा हुँ और आपके ब्लोग की ये गजल बस दिल को छु गई|
है मुहब्बत गुनाह, गर ज़माने में फिर
आप मुझको भी कोई सज़ा दीजिए
शायद हमे तब तो फाँसी ही हो जाये.... :)
ऐसे ही बस लिखते रहे.... बहुत बहुत बधाई...
चाप कदमों की अपनी मैं पहचान लूं
आईने से यूँ मुझको मिला दीजिए
अपनी अस्मिता जानने की खूबसूरत कोशिश
खूबसूरत रूमानी शिकवा-शिकायत है आपकी रचना में...
पर चांदनी की क्या खता ...नाराज़गी तो ज़माने से है...
बहुत अच्छा
पर ये एक तरफा बात है, उनके खयालो मे भी आप ज़रूर आते होगे भूले बिसरे
आप तो बहुत ही अच्छा लिखती हैं मैं भी आपके ही पास अशोकनगर का ही हूँ आपली लेखन में जादू है
bahut kuch hai is rachna me,aashirwaad mera
badhai suandar rachna ke liye... dil ko choo jaane waali Gazal hai yeh jitni baar padho gungunao acha lagta hai
रोशनी के लिए, इन अंधेरों में अब
कुछ नही तो मिरा दिल जला दीजिए
achaanak aapki ghazalo.n se ru-b-ru hone ka mauqa mila.Waah, Kya baat hai...har she'r laajawab..badhaayee...aise hi likhtii rahein..
vah-vah, pahli bar es blog par aaya hun or etani saandar yaden, maja aa gaya, dhnyabad,
बहुत ही सुंदर
बधाई
मुझको लम्बी उम्र की दुआ दीजिये पर निवेदन है की बैसे देखा गया है की बुजुर्ग लोग आशीर्वाद देकर यहीं कहते है की _आयुष्मान भव : दीर्घजीवी हो ,बूढो डोकरा होईयो ,इस पर किसी ने कहा है की मुसीवत और लम्बी जिंदगानी , बुजुर्गों की दुआ ने मार डाला
चाप कदमों की अपनी मैं पहचान लूं
आईने से यूँ मुझको मिला दीजिए
गर मुहब्बत ज़माने में है इक खता
आप मुझको भी कोई सज़ा दीजिए
bahut sunder kaha hai
shubhkamnayen
shahid samar
चाप कदमों की अपनी मैं पहचान लूं
आईने से यूँ मुझको मिला दीजिए
गर मुहब्बत ज़माने में है इक खता
आप मुझको भी कोई सज़ा दीजिए
bahut sunder kaha hai
shubhkamnayen
shahid samar
dil ko chune wali gajhal hai aap ki
bahot hi umda aur meaari ghazal kahee hai. Aur ye sher ...
"chaap qadmoN ki apni maiN pehchaan looN , aaeene se yu mujhko milaa dijiye", haasil.e.ghazal sher hai. Mubarakbaad qubool farmaaeiN.
---MUFLIS---
bahut achcha likhti hain aap ..aaj pahli baar aapke blog par aayi hun.......badhayi
shrddha ji
ek lambe antaraal ke baad aapki koi gazal padi. wakai main bahut hi dil ko choo jane wali gazal hai'' merii badhaaii
रसात्मक और सुंदर अभिव्यक्ति
bahut sunder meter men napi tuli rachna.
आप भी अब मिरे गम बढ़ा दीजिए
मुझको लंबी उमर की दुआ दीजिए
sach kaha hai aapne..bahut achha likha hai...
श्रधा जी नमस्कार
आज भीगी गज़ल से मुलाकात हुई, आपका ब्लॉग बहुत पसंद आया.
आपकी ये गजल बहुत बहूत कुछ कह गयी है :
" मैने पहने है कपड़े, धुले आज फिर / तोहमते अब नई कुछ लगा दीजिए"
मेरी शुभकामनाएँ स्वीकार कीजिये
धन्यवाद
आभार
विपिन
Shradha ji ! aaz bhaut sari gazale padhin aapki....urdu itni pyaari bhasha hai ki seedhe dil main dastak deti hai ..or aapki gazalen un lafzon ko poori tarah compliment karti hain..bahut achcha laga yahan aakar...
sprem
shikha
"मैने पहने है कपड़े, धुले आज फिर
तोहमते अब नई कुछ लगा दीजिए"
bahut sundar ashaar hain shraddha ji...dil ko chu gaye..poori gazal kamyab hai..
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