जिगर की बात
हमने छुपा के रखी थी सबसे जिगर की बात
सुनते हैं फिर भी गैरों से, अपने ही घर की बात
छोटी सी बात से ही तो बुनियाद हिल गयी
मज़बूत हैं कहते रहे, दीवार ओ दर की बात
बनना सफ़ेदपोश तो कालिख लगाना सीख
उंगली उठाना बन गया अब तो हुनर की बात
बातें फक़त बनाने में न जाए ये उमर
लाओ अगर अमल में तो होगी असर की बात
जज़्बात दिल के मैंने, जो बेबाक लिख दिए
कुछ लोग कहे रहे हैं के होगी कहर की बात
वादे के इंतेज़ार में, जब रात ढल गयी
महफ़िल में तब से हो रही अश्क़ भर की बात
जब भी मिली है मंज़िल, रस्ता बदल लिया
हमको तो शौक़ “श्रद्धा” करते सफ़र की बात
35 comments:
बहुत ही उम्दा रचना
बनना सफ़ेदपोश तो कालिख लगाना सीख
उंगली उठाना बन गया अब तो हुनर की बात
जब भी मिली है मंज़िल, रस्ता बदल लिया
हमको तो शौक़ “श्रद्धा” करते सफ़र की बात
गहरी और बेहतरीन गज़ल है श्रद्धा जी। बधाई स्वीकारें..
***राजीव रंजन प्रसाद
ये दो शेर बहुत पसंद आये ........
छोटी सी बात से ही तो बुनियाद हिल गयी
मज़बूत हैं कहते रहे, दीवार ओ दर की बात
बातें फक़त बनाने में न जाए ये उमर
लाओ अगर अमल में तो होगी असर की बात
ओर हाँ तारीफ को रस्मी टिपण्णी न समझे .......आपका लिखा वाकई खूब है....
बहुत अच्छी रचना, सुंदर....अति उत्तम।।।।
बहुत अच्छी रचना, सुंदर....अति उत्तम।।।।
श्रद्धा जी
हमने छुपा के रखी थी सबसे जिगर की बात
सुनते हैं फिर भी गैरों से, अपने ही घर की बात
आप का हर शेर एक से बड कर एक धन्यवाद
छोटी सी बात से ही तो बुनियाद हिल गयी
मज़बूत हैं कहते रहे, दीवार ओ दर की बात
बनना सफ़ेदपोश तो कालिख लगाना सीख
उंगली उठाना बन गया अब तो हुनर की बात
जी पसंद आई आपकी गज़ल ।
जज़्बात दिल के मैंने, जो बेबाक लिख दिए
कुछ लोग कहे रहे हैं के होगी कहर की बात
बढ़िया --बहुत बढ़िया
वादे के इंतेज़ार में, जब रात ढल गयी
महफ़िल में तब से हो रही अश्क़ भर की बात
जब भी मिली है मंज़िल, रस्ता बदल लिया
हमको तो शौक़ “श्रद्धा” करते सफ़र की बात
बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई स्वीकारें।
छोटी सी बात से ही तो बुनियाद हिल गयी
मज़बूत हैं कहते रहे, दीवार ओ दर की बात
बहुत बढ़िया
हमने छुपा के रखी थी सबसे जिगर की बात
सुनते हैं फिर भी गैरों से, अपने ही घर की बात
Bahut khoob Shraddha ji!! Matle ne dil le liya!
वाह! बहुत सुन्दर.बहुत बधाई.
छोटी सी बात से ही तो बुनियाद हिल गयी
मज़बूत हैं कहते रहे, दीवार ओ दर की बात
जज़्बात दिल के मैंने, जो बेबाक लिख दिए
कुछ लोग कहे रहे हैं के होगी कहर की बात
बहुत उम्दा शेर हैं. बहुत खूब.
बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई स्वीकारें।
हमने छुपा के रखी थी सबसे जिगर की बात
सुनते हैं फिर भी गैरों से, अपने ही घर की बात
वाह जी वाह.. पहला ही शेर धारधार है.. खूबसूरत ग़ज़ल
छोटी सी बात से ही तो बुनियाद हिल गयी
मज़बूत हैं कहते रहे, दीवार ओ दर की बात
बनना सफ़ेदपोश तो कालिख लगाना सीख
उंगली उठाना बन गया अब तो हुनर की बात
गहरी और बेहतरीन गज़ल!
बधाई स्वीकारें
बनना सफ़ेदपोश तो कालिख लगाना सीख
उंगली उठाना बन गया अब तो हुनर की बात
वाह..श्रधा जी...वाह...बेहद खूबसूरत सार्थक शेरों से सजी ये ग़ज़ल कमाल है...सारे शेर ऐसे हैं जो हमेशा हमेशा जवान रहेंगे...एक से बढ़ कर एक...देर से पढने आया हूँ...लेकिन आननद आ गया...
सिंगापूर आना जाना होता रहता है इस बार आया तो आप से शायद मुलाकात नसीब हो.
नीरज
वाह श्रद्धा जी, आपने तो कमाल कर दिया..
अच्छी लगी आपकी ग़ज़ल पढ़कर..
बधाई..!!
जज़्बात दिल के मैंने, जो बेबाक लिख दिए
कुछ लोग कहे रहे हैं के होगी कहर की बात
bahut hi achha likha aapne hamesha ki trah “श्रद्धा ki likhi rachna dil se hoti hai
हमने छुपा के रखी थी सबसे जिगर की बात
सुनते हैं फिर भी गैरों से, अपने ही घर की बात
kya baat hai..wah! wah!
behatreen ghazal..mubarikbaad..
khyaal
हमने छुपा के रखी थी सबसे जिगर की बात
सुनते हैं फिर भी गैरों से, अपने ही घर की बात
ये शेर सबसे ज़्यादा पसन्द आया....
उम्दा रचना के बधाई स्वीकार करें
Shezad saheb ka ek sher yaad aaya....
Maslihat chin gayi quvvat-e-guftaar magar,
Kuchh na kehna hi mera meri sadaa ho baita
बनना सफ़ेदपोश तो कालिख लगाना सीख
उंगली उठाना बन गया अब तो हुनर की बात
wah..wah
kya baat hai...
babhai.
वैसे तो पूरी गजल ही बहुत प्यारी है, पर इस शेर तो कहने ही क्या
छोटी सी बात से ही तो बुनियाद हिल गयी
मज़बूत हैं कहते रहे, दीवार ओ दर की बात
बधाई।
bahut sundar...
bahut khoob, ghazal jisne bhigo dia !!!
बातें फक़त बनाने में न जाए ये उमर
लाओ अगर अमल में तो होगी असर की बात
आहा कितनी ऊची और कितने काम कि बात खेडी इन दो पंखतियो मे मजा आपका गया
वादे के इंतेज़ार में, जब रात ढल गयी
महफ़िल में तब से हो रही अश्क़ भर की बात
ये भी क्या दर्द है बहुत खूबसूरत भावना ..
Shradhdhaji
Bahut khub. Ungli uthane vala sher lakawab hai.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
assignments पूरा करने में व्यस्त होकर भी आपने "जिगर की बात" कह डाली
अच्छा लगा और आपकी मेहनत भी :)
श्रद्धा जी,
आप की ग़ज़ल के हर शेर उम्दा है, फिर भी निम्न शेर कुछ ज्यदा ही अच्छा लगा......
बनना सफ़ेदपोश तो कालिख लगाना सीख
उंगली उठाना बन गया अब तो हुनर की बात
बधाई स्वीकार करे.
चन्द्र मोहन गुप्त
shabd nahi bache hai aapki tareef karne k liye, bas aap k hi shabdo me
जब भी मिली है मंज़िल, रस्ता बदल लिया
हमको तो शौक़ “श्रद्धा” करते सफ़र की बात
श्रद्धा जी कैसी हैं आप?
आपको व आपके पूरे परिवार को स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभ-कामनाएं...
जय-हिन्द!
बहोत हि बढीया है, दिलके तोडने वाले कोइ ओर नही है, पर अपने हि है, क्या बेबसी है, "बहोत खुब" बोलना अच्छा नही लगता, क्योंकी आंखे थोडी नम जो हो गई है.
Aapke blog spot com me aapki rachnaye padhi.bahut hi marmik aur sundar rachnaye hai.prkrti aur manavta ke bahut nikat hai.Itni acchi rachnaye padhne ko mili.Badhi.
bahut sundar...
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