Tuesday, August 5, 2008

जिगर की बात

हमने छुपा के रखी थी सबसे जिगर की बात
सुनते हैं फिर भी गैरों से, अपने ही घर की बात

छोटी सी बात से ही तो बुनियाद हिल गयी
मज़बूत हैं कहते रहे, दीवार ओ दर की बात

बनना सफ़ेदपोश तो कालिख लगाना सीख
उंगली उठाना बन गया अब तो हुनर की बात

बातें फक़त बनाने में न जाए ये उमर
लाओ अगर अमल में तो होगी असर की बात

जज़्बात दिल के मैंने, जो बेबाक लिख दिए
कुछ लोग कहे रहे हैं के होगी कहर की बात

वादे के इंतेज़ार में, जब रात ढल गयी
महफ़िल में तब से हो रही अश्क़ भर की बात

जब भी मिली है मंज़िल, रस्ता बदल लिया
हमको तो शौक़ “श्रद्धा” करते सफ़र की बात

35 comments:

Pramendra Pratap Singh August 5, 2008 at 10:36 PM  

बहुत ही उम्‍दा रचना

राजीव रंजन प्रसाद August 5, 2008 at 10:37 PM  

बनना सफ़ेदपोश तो कालिख लगाना सीख
उंगली उठाना बन गया अब तो हुनर की बात

जब भी मिली है मंज़िल, रस्ता बदल लिया
हमको तो शौक़ “श्रद्धा” करते सफ़र की बात

गहरी और बेहतरीन गज़ल है श्रद्धा जी। बधाई स्वीकारें..


***राजीव रंजन प्रसाद

डॉ .अनुराग August 5, 2008 at 10:38 PM  

ये दो शेर बहुत पसंद आये ........


छोटी सी बात से ही तो बुनियाद हिल गयी
मज़बूत हैं कहते रहे, दीवार ओ दर की बात


बातें फक़त बनाने में न जाए ये उमर
लाओ अगर अमल में तो होगी असर की बात

ओर हाँ तारीफ को रस्मी टिपण्णी न समझे .......आपका लिखा वाकई खूब है....

Nitish Raj August 5, 2008 at 10:48 PM  

बहुत अच्छी रचना, सुंदर....अति उत्तम।।।।

Nitish Raj August 5, 2008 at 10:48 PM  

बहुत अच्छी रचना, सुंदर....अति उत्तम।।।।

राज भाटिय़ा August 5, 2008 at 10:48 PM  

श्रद्धा जी
हमने छुपा के रखी थी सबसे जिगर की बात
सुनते हैं फिर भी गैरों से, अपने ही घर की बात
आप का हर शेर एक से बड कर एक धन्यवाद

सुशील छौक्कर August 5, 2008 at 11:29 PM  

छोटी सी बात से ही तो बुनियाद हिल गयी
मज़बूत हैं कहते रहे, दीवार ओ दर की बात
बनना सफ़ेदपोश तो कालिख लगाना सीख
उंगली उठाना बन गया अब तो हुनर की बात

जी पसंद आई आपकी गज़ल ।

पारुल "पुखराज" August 6, 2008 at 12:24 AM  

जज़्बात दिल के मैंने, जो बेबाक लिख दिए
कुछ लोग कहे रहे हैं के होगी कहर की बात
बढ़िया --बहुत बढ़िया

शोभा August 6, 2008 at 12:42 AM  

वादे के इंतेज़ार में, जब रात ढल गयी
महफ़िल में तब से हो रही अश्क़ भर की बात

जब भी मिली है मंज़िल, रस्ता बदल लिया
हमको तो शौक़ “श्रद्धा” करते सफ़र की बात
बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई स्वीकारें।

कामोद Kaamod August 6, 2008 at 12:53 AM  

छोटी सी बात से ही तो बुनियाद हिल गयी
मज़बूत हैं कहते रहे, दीवार ओ दर की बात
बहुत बढ़िया

रंजन गोरखपुरी August 6, 2008 at 1:00 AM  

हमने छुपा के रखी थी सबसे जिगर की बात
सुनते हैं फिर भी गैरों से, अपने ही घर की बात

Bahut khoob Shraddha ji!! Matle ne dil le liya!

Udan Tashtari August 6, 2008 at 2:35 AM  

वाह! बहुत सुन्दर.बहुत बधाई.

अमिताभ मीत August 6, 2008 at 9:25 AM  

छोटी सी बात से ही तो बुनियाद हिल गयी
मज़बूत हैं कहते रहे, दीवार ओ दर की बात

जज़्बात दिल के मैंने, जो बेबाक लिख दिए
कुछ लोग कहे रहे हैं के होगी कहर की बात

बहुत उम्दा शेर हैं. बहुत खूब.

बालकिशन August 6, 2008 at 10:14 AM  

बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई स्वीकारें।

कुश August 6, 2008 at 11:46 AM  

हमने छुपा के रखी थी सबसे जिगर की बात
सुनते हैं फिर भी गैरों से, अपने ही घर की बात

वाह जी वाह.. पहला ही शेर धारधार है.. खूबसूरत ग़ज़ल

ज़ाकिर हुसैन August 6, 2008 at 2:33 PM  

छोटी सी बात से ही तो बुनियाद हिल गयी
मज़बूत हैं कहते रहे, दीवार ओ दर की बात
बनना सफ़ेदपोश तो कालिख लगाना सीख
उंगली उठाना बन गया अब तो हुनर की बात

गहरी और बेहतरीन गज़ल!
बधाई स्वीकारें

नीरज गोस्वामी August 6, 2008 at 6:22 PM  

बनना सफ़ेदपोश तो कालिख लगाना सीख
उंगली उठाना बन गया अब तो हुनर की बात
वाह..श्रधा जी...वाह...बेहद खूबसूरत सार्थक शेरों से सजी ये ग़ज़ल कमाल है...सारे शेर ऐसे हैं जो हमेशा हमेशा जवान रहेंगे...एक से बढ़ कर एक...देर से पढने आया हूँ...लेकिन आननद आ गया...
सिंगापूर आना जाना होता रहता है इस बार आया तो आप से शायद मुलाकात नसीब हो.
नीरज

GOPAL K.. MAI SHAYAR TO NAHI... August 6, 2008 at 9:01 PM  

वाह श्रद्धा जी, आपने तो कमाल कर दिया..
अच्छी लगी आपकी ग़ज़ल पढ़कर..
बधाई..!!

pawan arora August 6, 2008 at 9:11 PM  

जज़्बात दिल के मैंने, जो बेबाक लिख दिए
कुछ लोग कहे रहे हैं के होगी कहर की बात
bahut hi achha likha aapne hamesha ki trah “श्रद्धा ki likhi rachna dil se hoti hai

सतपाल ख़याल August 6, 2008 at 10:07 PM  

हमने छुपा के रखी थी सबसे जिगर की बात
सुनते हैं फिर भी गैरों से, अपने ही घर की बात
kya baat hai..wah! wah!
behatreen ghazal..mubarikbaad..
khyaal

राजीव तनेजा August 6, 2008 at 11:36 PM  

हमने छुपा के रखी थी सबसे जिगर की बात
सुनते हैं फिर भी गैरों से, अपने ही घर की बात

ये शेर सबसे ज़्यादा पसन्द आया....

उम्दा रचना के बधाई स्वीकार करें

Anonymous August 7, 2008 at 4:56 AM  

Shezad saheb ka ek sher yaad aaya....

Maslihat chin gayi quvvat-e-guftaar magar,
Kuchh na kehna hi mera meri sadaa ho baita

योगेन्द्र मौदगिल August 8, 2008 at 3:27 PM  

बनना सफ़ेदपोश तो कालिख लगाना सीख
उंगली उठाना बन गया अब तो हुनर की बात
wah..wah
kya baat hai...
babhai.

admin August 8, 2008 at 6:17 PM  

वैसे तो पूरी गजल ही बहुत प्यारी है, पर इस शेर तो कहने ही क्या
छोटी सी बात से ही तो बुनियाद हिल गयी
मज़बूत हैं कहते रहे, दीवार ओ दर की बात
बधाई।

डाॅ रामजी गिरि August 8, 2008 at 9:45 PM  

bahut sundar...

राकेश जैन August 10, 2008 at 6:52 PM  

bahut khoob, ghazal jisne bhigo dia !!!

!!अक्षय-मन!! August 12, 2008 at 1:45 AM  

बातें फक़त बनाने में न जाए ये उमर
लाओ अगर अमल में तो होगी असर की बात
आहा कितनी ऊची और कितने काम कि बात खेडी इन दो पंखतियो मे मजा आपका गया
वादे के इंतेज़ार में, जब रात ढल गयी
महफ़िल में तब से हो रही अश्क़ भर की बात
ये भी क्या दर्द है बहुत खूबसूरत भावना ..

Harshad Jangla August 12, 2008 at 11:42 PM  

Shradhdhaji

Bahut khub. Ungli uthane vala sher lakawab hai.

-Harshad Jangla
Atlanta, USA

Anonymous August 13, 2008 at 1:58 AM  

assignments पूरा करने में व्यस्त होकर भी आपने "जिगर की बात" कह डाली

अच्छा लगा और आपकी मेहनत भी :)

Mumukshh Ki Rachanain August 13, 2008 at 10:37 PM  

श्रद्धा जी,
आप की ग़ज़ल के हर शेर उम्दा है, फिर भी निम्न शेर कुछ ज्यदा ही अच्छा लगा......
बनना सफ़ेदपोश तो कालिख लगाना सीख
उंगली उठाना बन गया अब तो हुनर की बात
बधाई स्वीकार करे.

चन्द्र मोहन गुप्त

Anonymous August 14, 2008 at 10:47 PM  

shabd nahi bache hai aapki tareef karne k liye, bas aap k hi shabdo me
जब भी मिली है मंज़िल, रस्ता बदल लिया
हमको तो शौक़ “श्रद्धा” करते सफ़र की बात

सुनीता शानू August 15, 2008 at 9:23 PM  

श्रद्धा जी कैसी हैं आप?
आपको व आपके पूरे परिवार को स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभ-कामनाएं...
जय-हिन्द!

nums world September 17, 2008 at 10:26 PM  

बहोत हि बढीया है, दिलके तोडने वाले कोइ ओर नही है, पर अपने हि है, क्या बेबसी है, "बहोत खुब" बोलना अच्छा नही लगता, क्योंकी आंखे थोडी नम जो हो गई है.

Anonymous February 5, 2009 at 1:25 AM  

Aapke blog spot com me aapki rachnaye padhi.bahut hi marmik aur sundar rachnaye hai.prkrti aur manavta ke bahut nikat hai.Itni acchi rachnaye padhne ko mili.Badhi.

Moore December 5, 2012 at 1:26 PM  

bahut sundar...

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