वो सुख तो कभी था ही नहीं,
जिसकी तलाश मुझे भटकाती रही,
चाह में खुद को जलाती रही
वो सुख तो कभी था ही नहीं
बेसबब उन पथरीली राहों पर चलकर
खुद को ज़ख़्मी बनाती रही,
कभी गिरती कभी सम्हल जाती
सम्हल कर चलती तो कभी लड़खड़ाती
लड़खड़ाते कदमो को देख लोग मुस्कराते
कोई कहता शराबी तो कई पागल बुलाते
पर कोई न होता जो मुझे सम्हाल पाता
गिरे देखकर अपना हाथ बढ़ाता
जिसकी तलाश में खुद को गिराती रही
वो सुख तो कभी था ही नहीं
अधूरे एहसास के साथ मैं चलती रही,
मिलन की आस लिए कल – कल बहती रही
कभी किसी झील, तो कभी नहर से मिली ,
कभी झरने में मिलकर, संग संग गिरी
मिला न वो,जो मुझमे मिलकर मुझे संवारे
मेरे रूप का श्रगार कर इसे और निखारे
जिसके लिए अपने वजूद को मिटाती रही
वो सुख तो कभी था ही नहीं
27 comments:
wo sukh to kabhi tha hi nahi..... kya baat hai
जिसके लिए अपने वजूद को मिटाती रही
वो सुख तो कभी था ही नहीं
ye line punchline hai....
जिसकी तलाश मुझे भटकाती रही,
चाह में खुद को जलाती रही
वो सुख तो कभी था ही नहीं
बहुत गहराई वाली बात कह दी आपने.
बहुत ही खूबसूरत रचना।
जिसकी तलाश मुझे भटकाती रही,
चाह में खुद को जलाती रही
वो सुख तो कभी था ही नहीं
मिला न वो,जो मुझमे मिलकर मुझे संवारे
मेरे रूप का श्रगार कर इसे और निखारे
जिसके लिए अपने वजूद को मिटाती रही
वो सुख तो कभी था ही नहीं
कया बात हे,"वो सुख तो कभी था ही नहीं,श्रद्धा जैन जी , धन्यवाद सुन्दर रचना के लिये
YAH TALASH KABHI KHTAM NAHI HOTI ..SUNDAR LAGI AAPKI RACHANA ..
very nice !
कभी किसी झील, तो कभी नहर से मिली ,
कभी झरने में मिलकर, संग संग गिरी
मिला न वो,जो मुझमे मिलकर मुझे संवारे...
अच्छा लिखा है आपने श्रद्धा जी,
एक प्यास जो पानी के साथ जिंदा है....
एक आस जो तारे के पास मिट बैठी।
खूबसूरत रचना .
सुख अजीब है....कभी हाथ बढाओ और पकड़ में आ जाता है या फ़िर सुख एक मरीचिका है... जो कभी मिलता नहीं लेकिन उसे पाने को हम जीवन भर दौड़ते रहते हैं और जब तक सत्य का भान होता है बहुत देर हो चुकी होती है...बहुत अच्छा लिखा है आपने...बधाई
नीरज
.
जिसके लिये अपने वज़ूद को...
बहुत ही अलग किस्म का एहसास देता है
अति सुदंर
One of your best creation!!
सांसारिक मिथ्या के प्रभावशाली चित्रण के साथ साथ सुख रूपी मायाजाल को खूबसूरती से परिभाषित किया है रचना में!
मेरी तमाम शुभकामनाएं!!
वो सुख तो कभी था ही नहीं
सच हमेशा कड़वा ही होता है.
बेचैनी भी कड़वाहट ही है.लेकिन ज़िन्दगी आखिर जीनी ही होती है.
शाद अजीमाबादी की इक ग़ज़ल का मतला भी आप ही के सच और बेचैनी को ब्यान करता है:
तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ
खिलौना देके बहलाया गया हूँ
श्रद्धा जी , आनेवाला कल आपका ही है.
तूती बोलेगी आपकी शायरी .
कभी किसी झील, तो कभी नहर से मिली ,
कभी झरने में मिलकर, संग संग गिरी
मिला न वो,जो मुझमे मिलकर मुझे संवारे...
बहुत खूब श्रधाजी !!
वाकई एक खुबसूरत रचना !!!
बधाई
बहुत ही सुन्दर रचना।
जिसके लिए अपने वजूद को मिटाती रही
वो सुख तो कभी था ही नहीं
बहुत ही गहरा दर्द!
अधूरे एहसास के साथ मैं चलती रही,
मिलन की आस लिए कल – कल बहती रही
कभी किसी झील, तो कभी नहर से मिली ,
कभी झरने में मिलकर, संग संग गिरी
Bahut khoobsoorat panktiyaan hain, Badhaayi.
Vedna ka itna spasht prakatikaran pana durlabh hai.....AApko koti-koti dhanyavaad, iss vishwaas ke sath ki aapki aagaami kavitayein issi tarah spasht aur bebaak hongi.
अधूरे एहसास के साथ मैं चलती रही,
मिलन की आस लिए कल – कल बहती रही
^ kitna sach likha hia apane..
कतरा कतरा सुख के पीछे भागती जिन्दगी, जो हमें कभी मिले न मिले, लेकिन किन्हीं लबों पर चंद पल की ख़ुशी देने के लिए, बस हम अपने आपको..... क्या अपना वजूद कुछ भी नहीं इस जीवन के लिए.
सुख क्या है?...
क्षण भर की खुशी ना?...
कोई चीज़ जब दूर होती है तो लगता है कि उसे पा कर हम सुखी हो जाएंगे लेकिन जब वो चीज़ हमें मिल जाती है तो उसकी कीमत कुछ नहीं रहती,हम फिर आगे बढ निकलते हैँ और नई खुशियों की तलाश में।
इच्छाएं अनंत हैँ....अरमाँ बेहिसाब हैँ...
"अधूरे एहसास के साथ मैं चलती रही,
मिलन की आस लिए कल – कल बहती रही
कभी किसी झील, तो कभी नहर से मिली ,
कभी झरने में मिलकर, संग संग गिरी
मिला न वो,जो मुझमे मिलकर मुझे संवारे
मेरे रूप का श्रगार कर इसे और निखारे
जिसके लिए अपने वजूद को मिटाती रही
वो सुख तो कभी था ही नहीं"
बहुत खूब!!!
दिल को छू गई.......
लड़खड़ाते कदमो को देख लोग मुस्कराते
कोई कहता शराबी तो कई पागल बुलाते
पर कोई न होता जो मुझे सम्हाल पाता
गिरे देखकर अपना हाथ बढ़ाता
जिसकी तलाश में खुद को गिराती रही
वो सुख तो कभी था ही नहीं
diye ke sath hai bati lekin hum andhero ke sathi...kyun?
kisika sath nahi kisi ka hath nahi.....
TERA SAANYI TUJJHA ME,
JYON PUNHPAN ME WAS,
KASTURI KO MRUG JO,
FIR-FIR DHUNDHE WAS...
SORRY I DONT KNOW MORE AS I M PHILOSOPHER AND I STILL FELT THIS
TRUTH IN LIFE.....
MR.JAIN,INDORE(INDIA)
जब हम सुख की चाह करते है तो वो कभी नही मिलता फिर भी हम उसका पीछा करते रहते है गली-गली. जैसे ही हम उसकी चाह खत्म कर देते है पीछा करना छोड देते है वो मिल जाता है अगले चोराहे पर. खुशिया ऐसे ही मिलती है क़तरा-क़तरा
wo sukh to kabhi tha hi nahi.........inhi panktiyon mein sab kuch kah diya.bahut khoob
अधूरे एहसास के साथ मैं चलती रही,
मिलन की आस लिए कल – कल बहती रही
कभी किसी झील, तो कभी नहर से मिली ,
कभी झरने में मिलकर, संग संग गिरी
मिला न वो,जो मुझमे मिलकर मुझे संवारे
मेरे रूप का श्रगार कर इसे और निखारे
जिसके लिए अपने वजूद को मिटाती रही
वो सुख तो कभी था ही नहीं
vah puri rachna bahut achchhii hai
aapko salam
kya baat hai.........very nice
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