खो गये
आँखों से गुलिस्तान वो, खवाबों के खो गये
रस घोलते बदन थे, गुलाबों के खो गये
वो बोलती ज़बान, कहीं जा के सो गयी
क़िस्से बग़ावती वो, किताबों के खो गये
देखो वो मिट गये, मुक़द्दर की मार से
मिलते थे जो निशान, नवाबों के खो गये
उलझन में हो जब कि, हर शख्स शहर का
तो सिलसिले वो शोख, जवाबो के खो गये
खामोश क्यूँ खड़ी हो, कि अब मुस्करा भी दो
भीगे हुए जो दिन थे, अज़ाबों के खो गये
48 comments:
वो बोलती ज़बान, कहीं जा के सो गयी
क़िस्से बग़ावती वो, किताबों के खो गये
क्या खूब शेर कहा श्रद्धा जी
अच्छा लिखा है आपने.
जी बहुत खूब,
वो बोलती ज़बान, कहीं जा के सो गयी
क़िस्से बग़ावती वो, किताबों के खो गये
देखो वो मिट गये, मुक़द्दर की मार से
मिलते थे जो निशान, नवाबों के खो गये
उलझन में हो जब कि, हर शख्स शहर का
तो सिलसिले वो शोख, जवाबो के खो गये
बहुत खूब
देखो वो मिट गये, मुक़द्दर की मार से
मिलते थे जो निशान, नवाबों के खो गये
बहुत बढिया!!
खुद 'ग़ज़ल' की उँगलियों से जो 'ग़ज़ल' पिघली है......अल्फाजों से उसकी तारीफ करके उसके कोहेकाफ जैसे कद को बौना नहीं करना चाहते......! खामोशी के दिलकश होंठों से निकलती......मन की केसरिया साँसों में रची-बसी प्रशंसा को महसूस कीजियेगा..........!!
--कुमार पंकज
वो बोलती ज़बान, कहीं जा के सो गयी
क़िस्से बग़ावती वो, किताबों के खो गये
wah ji wah!!! Bahut khoob!!
खामोश क्यूँ खड़ी हो, कि अब मुस्करा भी दो
भीगे हुए जो दिन थे, अज़ाबों के खो गये
कया बात हे,अब किस किस शेर पर दाद दे सभी एक से बड कर एक हे, धन्यवाद
एक से बढकर हर एक शेर...तालियाँ ...
उलझन में हो जब कि, हर शख्स शहर का
तो सिलसिले वो शोख, जवाबो के खो ग
शेर अच्छा लिखा श्रद्धा जी.
उलझन में हो जब कि, हर शख्स शहर का
तो सिलसिले वो शोख, जवाबो के खो गये
बहुत बढिया
उलझन में हो जब कि, हर शख्स शहर का
तो सिलसिले वो शोख, जवाबो के खो गये
खामोश क्यूँ खड़ी हो, कि अब मुस्करा भी दो
भीगे हुए जो दिन थे, अज़ाबों के खो गये
bahut khoob.....
BAHUT SUNDAR BAHUT MANMOHAK KALPANA HAI....
aap ka likha ek jaadu hai jo bahut khubsurat hai aap jaisai vyktitv sai dosti kar khushi hoti hai aap likhti rahey hum ho na ho aap hamesha rahey ..dost
WOw bahut khoob ji....great depth...maja aa gaya padkar....keep writing.!!
बहुत ही खुबसूरत
वाह्.........
एक शब्द....मेरे मन की
बात कहने के लियें पर्याप्त है,
स्-स्नेह
गीता पंडित
woh bolti zubaan kahaan jaa ke so ghiagyi............badhaiya,nahi, bahut bahut bahut badhiya
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल...हर शेर कबीले तारीफ है..वाह.
नीरज
"वो बोलती ज़बान, कहीं जा के सो गयी
क़िस्से बग़ावती वो, किताबों के खो गये "
अच्छा लिखा है आपने.
Yu to har sher hi achcha hai lakin
देखो वो मिट गये, मुक़द्दर की मार से
मिलते थे जो निशान, नवाबों के खो गये
behad achcha hai. Bahut Khubsurat.
bahut hi sundar likha hai apne doobeyji doob gaye apki in chand lineon mein
वो बोलती ज़बान, कहीं जा के सो गयी
क़िस्से बग़ावती वो, किताबों के खो गये
kya baat hai...bahut umda.
वाह! बहुत सुन्दर.बहुत बधाई.
वो बोलती ज़बान, कहीं जा के सो गयी
क़िस्से बग़ावती वो, किताबों के खो गये
देखो वो मिट गये, मुक़द्दर की मार से
मिलते थे जो निशान, नवाबों के खो गये
bahut shandaar !!!!
sach hai na ab wo historical bagawatain rahin aur na hi nawabiyatain
bahut khoob likha hai
umeed hai aage bhi aisi hi khubsurat ghazlain padhne ko milengi
Bahut khoob, shraddha ji !
Deepak Gogia
वाह वाह! क्या ग़ज़ल है!
bahut khub!
वो बोलती ज़बान, कहीं जा के सो गयी
क़िस्से बग़ावती वो, किताबों के खो गये
sunder bhaav...badhaayee....
khamosh kyun ho, ab muskura bhi do........behad khubsurat!!
Shraddha jee, u r really a vry good sher writer, keep it up!!
mukesh!!
उलझन में हो जब कि, हर शख्स शहर का
तो सिलसिले वो शोख, जवाबो के खो गये
nice!!!
अच्छा लिखा है
andaz tagazzul aayega magar dheere-dheere.
bahut kamyab hain aap yahan.
मैंने आपकी कुछ ग़ज़लों से गुज़रा । लगा ग़जलों की पुराने हवेली से गुज़र रहा हूँ । मैडम, हिंदी ग़ज़लों की दुनिया विन्यास से नहीं किन्तु भावों और भावनाओं में काफी ऊँचाई पर जा चुकी है । आप शायद उससे वाक़िफ़ भी हों । आप अच्छा लिख रही हैं । भाव, इमेज, कहन मीटर भी सधा हुआ है । कुछ और लगातार शिल्प के बारे में चाहें तो आप ध्यान दे सकती हैं ।
कुछ खास लिखें तो हमारे लिए भेज सकती हैं । ग़ज़लों के अलावा भी कुछ । आप परदेश में रहकर इतना कर रही हैं । हम मुझे हिंदीसेवी के लिए गौरव का विषय है । सादर
www.srijangatha.com
bahut badhiya shraddha... bahut achha likhti ho..
achhi rachna kew liye badhai
खामोश क्यूँ खड़ी हो, कि अब मुस्करा भी दो
भीगे हुए जो दिन थे, अज़ाबों के खो गये
nice ehsas....
वाह श्रद्धा जी वाह
" वो बोलती ज़ुबान ,कहीं जा के सो गयी
किस्से बग़ावती वो किताबों मे खो गये "
भाई वाह ...क्या सशक्त शेर है मज़ा आ गया
मैने अभी आपके ब्लॉग की काफ़ी रचनाए पढ़ी
मेरी दिली - दाद स्वीकार करिएगा -
चलिए एक ग़ज़ल के कुछ शेर भेज रहा हूँ देखिएगा -अगर अल्फाज अन्दर से निकल कर आ नहीं सकते
नशा बनकर जमाने पर ,कभी वो छा नहीं सकते
बहुत डरपोक हो सचमुच ,तुम्हारा हौसला कम है
किसी भी हाल मैं तुम मंजिलों को पा नहीं सकते
उसे सबकुछ पता है , कौन कैसे याद करता है
किसी छापे -तिलक से तुम उसे बहला नहीं सकते
सुरों की भूलकर इनसे कभी उम्मीद मत करना
समंदर चीख सकते हैं ,समंदर गा नहीं सकते
चुनौती दे रहा हूँ मैं यहाँ के सूरमाओं को
जहाँ पे आ गया हूँ मैं वहां तुम आ नहीं सकते .....
डॉ उदय ' मणि' कौशिक
kota, rajasthaan
umkaushik@gmail.com
वैसे ये ग़ज़ल मेरे ब्लॉग पर है
प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ , श्रद्धा जी ,
साथ ही गुज़ारिश करूँगा की यही स्नेह बनाए रखें
और , देखती रहें
http://mainsamayhun.blogspot.com
muze kavita ki jyada smaz to nhi but muze ye padkr kafi achha lga ....
Nice Gazal.
Keep it up plz.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
bahut mushkil lagta hai aana,par aane par sari thaaan chali gai,
bahut achhi lagi kavita...
खामोश क्यूँ खड़ी हो, कि अब मुस्करा भी दो
भीगे हुए जो दिन थे, अज़ाबों के खो गये
haasil-e-ghazal sher hai ye ... bahut hi bejod jazbaat ... khoobsurat kalaam ...
उलझन में हो जब कि, हर शख्स शहर का
तो सिलसिले वो शोख, जवाबो के खो गये
kya baat hai kya dam hai aapki lekhni mai bahut hi unda rachna......
wow...awesome!!!
har sher dheron baatein kah jaata hai
aapke blog ki ghazalen pahali bar padh raha hun wakai bahot khub maza aagaya...har sher me wajan hai sundar rachana ..
देखो वो मिट गये, मुक़द्दर की मार से
मिलते थे जो निशान, नवाबों के खो गये
bahot khub .....mere blog me bhi aapka khub swagat hai...
regards
Arsh
देखो वो मिट गये, मुक़द्दर की मार से
मिलते थे जो निशान, नवाबों के खो गये
सुंदर भावाभिव्यक्ति बधाई
थोडा समय निकालें मेरे ब्लॉग पर पुन: पधारें
Bahut acha likha hai...
Badhai...
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