मालूम न था हमको
आई जो कभी दूरी ,कर देगी जुदा हमको
वो लौट न पाएँगे मालूम न था हमको
रिश्तों की कसौटी पर खुद को ही मिटा आए
हम चलते रहे तन्हा, थे साथ नहीं साए
अश्कों के सिवा उनसे, कुछ भी न मिला हमको
वो लौट न पाएँगे मालूम न था हमको
मौला ये बता दे मुझे, मेरा दिल क्यूँ सुलगता है
सूरज में जलन है गर, क्यूँ चाँद पिघलता है
साँसों के भी चलने से, लगता है बुरा हमको
वो लौट न पाएँगे मालूम न था हमको
सोचा कि मना लूँ उन्हें, मिन्नत भी कई कर लूँ
कदमों में गिर जाऊं, बाहों में उन्हें भर लूँ
होगा ये नही लेकिन, आसां जो लगा हमको
वो लौट न पाएँगे, मालूम न था हमको
गिरते हुए कदमों की, आहट पर न जाना तुम
मर जाएँगे हम यूँ ही, न अश्क़ गिराना तुम
आँसू ये तेरे अब भी, देते हैं सज़ा हमको
वो लौट न पाएँगे, मालूम न था हमको
27 comments:
good poem!
आँसू ये तेरे अब भी, देते हैं सज़ा हमको
वो लौट न पाएँगे, मालूम न था हमको
श्रधा जी
बहुत मार्मिक रचना लिखी है आप ने...बहुत संवेदन शील....दिल को सीधे छू गयी....
नीरज
मौला ये बता दे मुझे,मेरा दिल क्यूँ सुलगता है
सूरज में जलन है गर,क्यूँ चाँद पिघलता है
साँसों के भी चलने से,लगता है बुरा हमको
वो लौट न पाएँगे मालूम न था हमको ...
संवेदन शील मार्मिक लिखी है.
मौला ये बता दे मुझे, मेरा दिल क्यूँ सुलगता है
सूरज में जलन है गर, क्यूँ चाँद पिघलता है
साँसों के भी चलने से, लगता है बुरा हमको
वो लौट न पाएँगे मालूम न था हमको
bahut khoob ...aapko padhne ka maja bhi khoob hai....
रिश्तों की कसौटी पर खुद को ही मिटा आए
हम चलते रहे तन्हा, थे साथ नहीं साए
अश्कों के सिवा उनसे, कुछ भी न मिला हमको
वो लौट न पाएँगे मालूम न था हमको
बहुत खूब श्रद्धा जी
अति सुन्दर!
रिश्तों की कसौटी पर खुद को ही मिटा आए
हम चलते रहे तन्हा, थे साथ नहीं साए
अश्कों के सिवा उनसे, कुछ भी न मिला हमको
वो लौट न पाएँगे मालूम न था हमको
आँसू ये तेरे अब भी, देते हैं सज़ा हमको
वो लौट न पाएँगे, मालूम न था हमको
--Bahut khoob!!! Badhai.
गिरते हुए कदमों की, आहट पर न जाना तुम
मर जाएँगे हम यूँ ही, न अश्क़ गिराना तुम
आँसू ये तेरे अब भी, देते हैं सज़ा हमको
वो लौट न पाएँगे, मालूम न था हमको
सच कहूं तो श्रद्धा जी रोंगटे खडे हो गए मेरे इस गीत को पढकर। वाकई बहुत सिददत से लिखी गई है यह। मैं तहे दिल से आपका शुक्रगुजार हूं कि इतनी अच्छी रचना पढने को मिली। आपको बधाई।
आँसू ये तेरे अब भी, देते हैं सज़ा हमको
वो लौट न पाएँगे, मालूम न था हमको
बहुत ही मार्मिक कविता लिखी हे आप ने बहुत उदास कर दिया,
आप का धन्यवाद,
दूर हुए हो कुछ यूँ तुम हम से
दिल अपना चाक-चाक रोता है...
जब भी बन्द मुट्ठी खोलते हैँ..
हाथ खाली था..खाली होता है
भीतरी संवेदनाओं को उकेरती हुई मार्मिक कविता.....
बहुत खूब!
sunder
सोचा कि मना लूँ उन्हें, मिन्नत भी कई कर लूँ
कदमों में गिर जाऊं, बाहों में उन्हें भर लूँ
होगा ये नही लेकिन, आसां जो लगा हमको
वो लौट न पाएँगे, मालूम न था हमको
अतिसुन्दर।
bahut marmik aur pyari rachna.......!!
आई जो कभी दूरी ,कर देगी जुदा हमको
वो लौट न पाएँगे मालूम न था हमको
रिश्तों की कसौटी पर खुद को ही मिटा आए
हम चलते रहे तन्हा, थे साथ नहीं साए
बुहत खुबसुरत!!!
Khoobsoorat GHAZAL.
श्रद्धा जी शायर तीन तरह के होते हैं पहले वो जो कलम से लिखते हैं ये चाहकर भी कोई उपलब्धि हासिल नहीं कर पाते हैं, दूसरे वो जो दिमाग से लिखते हैं ये शायरों की दुनिया में सबसे ज्यादा नाम कमाते हैं, और तीसरे वो जो दिल से लिखते हैं ये कई बार अपनी रचनाएं दुनिया के सामने भी नहीं लाते हैं.
हम खुशनसीब हैं जो ऐसे ही एक शायर की रचनाएं पढ़ पा रहे हैं.
सच में आपकी ये कविता हमें, ऊंची श्रेणी के कवियों में आपको गिने जाने की वजह याद दिलाती है.
सुंदर ! सुंदर !! अति सुंदर !!!
शब्द नही हैं आपकी तारीफ़ के लिए !
विदिशा या भेलसा की इस बेटी को प्रणाम !
शुभकामनाए
dard bahri nazm...kuchh zakhm taaza kar gayi...
Sundar. Bahut maarmik rachna hai.
nice poem.....!
बेहद खुबसूरत नज़्म है आपकी !
गिरते हुए कदमों की, आहट पर न जाना तुम
मर जाएँगे हम यूँ ही, न अश्क़ गिराना तुम
आँसू ये तेरे अब भी, देते हैं सज़ा हमको
वो लौट न पाएँगे, मालूम न था हमको
bahut acche se dard ko darshya hai virha se samporn rachna..
sardha ji maine ap ka blog dekha waki ap dil se likhti ishwar kare ap esi tarah likhti rahe our hamain achi kavita our kahani padhne ka muka mele
गिरते हुए कदमों की, आहट पर न जाना तुम
मर जाएँगे हम यूँ ही, न अश्क़ गिराना तुम
आँसू ये तेरे अब भी, देते हैं सज़ा हमको
वो लौट न पाएँगे, मालूम न था हमको
BAHUT KHUB LIKHA HAI SHRADHA JI,
HAR SHABD KHUD KA YATHARTH CHITRAN KARTA HAI.......OR DARSHATA HAI AAPKI SANVEDNA OR BHAVNAO KO,........
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कई लोगो के दिल की बडे ही सजीले ढग से कह दी आपने.रिश्ते तो बनते बिछडते रहते है,कही किसी मोड पर कोई और रिश्ता खडा होगा, ज़िन्दगी फिर कुछ कहेगी कुछ अनकही सी
गिरते हुए कदमों की, आहट पर न जाना तुम
मर जाएँगे हम यूँ ही, न अश्क़ गिराना तुम
आँसू ये तेरे अब भी, देते हैं सज़ा हमको
वो लौट न पाएँगे, मालूम न था हमको
bahutbahut achchha
sundar shraddhha jii
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