दर्द
क्यूँ चुप चुप सा खड़ा है दर्द
आँखों में जब हरा है दर्द
हंसते खिलते लोगों से मिल,
कुछ तो शायद डरा है दर्द
अफ़साने लिखती हूँ तब ही
हद से जब भी बढ़ा है दर्द
आँख छुपा लेती जज़्बो को
मुंडेरों पे मरा है दर्द
यादों की इक आग जलाकर
कहा है हमने खरा है दर्द
तुमने वफ़ा के सफ़र में “श्रद्धा”
सुना, लिखा और पढ़ा है दर्द
28 comments:
बहुत सुंदर.
बहुत ही सुंदर रचना।
हंसते खिलते लोगों से मिल,
कुछ तो शायद डरा है दर्द
बहुत खूब लिखा ..हँसते रहने से ही दर्द कम हो सकता है
हंसते खिलते लोगों से मिल,
कुछ तो शायद डरा है दर्द
बहुत खूबसूरती से दर्द बयान किया।
पहला ही शेर जबरदस्त है.. लाजवाब ग़ज़ल
बहुत ही बेहतरीन रचना ! पूरे श्रद्धा के साथ दर्द को डराने और फ़िर पर मारने का क्रम जारी रहे.
आभार ! सीखते हुए जा रहा हूँ.
आँख छुपा लेती जज़्बो को
मुंडेरों पे मरा है दर्द
यादों की इक आग जलाकर
कहा है हमने खरा है दर्द
तुमने वफ़ा के सफ़र में “श्रद्धा”
सुना, लिखा और पढ़ा है दर्द
एक एक लफ्ज़ ढेरो असर रखता है......एक ओर उम्दा गजल......
तुमने ढूँढा होगा इधर उधर
हमने सिरहाने रखा है दर्द
यादों की इक आग जलाकर
कहा है हमने खरा है दर्द
तुमने वफ़ा के सफ़र में “श्रद्धा”
सुना, लिखा और पढ़ा है दर्द
dard ko bhi itne sundar roop se piroya hai,puri ki puri gazal bahut sundar bani hai,bahut bahut badhai.
aankhon ke ashq jab dil se nikle
tab mano khara hai dard......
bahut hi chhoo lene waali rachna hai shraddha ji......
aankhon ke ashq jab dil se nikle
tab mano khara hai dard......
bahut hi chhoo lene waali rachna hai shraddha ji......
ab tak sirf likha,padha aur suna hi tha,aapne ehsaas kara diya dard ka
bahut sundar. aap likhati rahiye achcha likh rahi hai .
इस दर्द की दवा क्या है ? निसंदेह जवाब होगा सिर्जन यानी अदब यानी शे 'र यानी ग़ज़ल .मुक्ति रचनाकार की उसकी तख्लीक में ही है .मतला यूँ कहीं खटकता तो है लेकिन अपने मफहूम की वजह्कर दाद पा जाता है .दुआ है लिखती जाएँ खुद बखुद महफ़िल संवर जायेगी .
bhut hi sundar. badhai ho.
बहुत सुंदर
श्रद्धा जी आप अच्छा लिखती है,
आशा है आप हमेशा अच्छा लिखे,
मैं भी कविताएँ और शायरी लिखता हूँ,
मेरा ब्लॉग आप पढ़ें
dard ko bahut hi khoobsoorti se shabdon me piroya hai aapne.
श्रद्धा,
मुझे विश्वास है कि आप खुश ही होगी
ब्लॉग पर " दर्द " पढ़ी, अच्छा लगा॰
दर्द दिल में उभरता है,
आँसुओं में बहता है,
खुशियों से डरता है,
बहलाने से बहलता है,
आँख भले ही
ज़ज्बात छुपा ले,
दर्द यादों में रहता है.
ये सारी विशेषताएँ
वाकई खरे दर्द की ही हो सकती हैं
क्योंकि,जब दिल में कसक
उठती है तो दर्द का होना लाज़मी
भी है.
एक बार फिर से कहना
चाहूँगा,कि अच्छा लगा.
आपका
विजय तिवारी " किसलय "
जबलपुर.
sundar rachna
दर्द को बखूबी उकेरती आपकी रचना पसन्द आई
श्रद्दा आज इस ग़ज़ल को पढ़कर मालूम हुआ कि केवल आपका नाम ही भीगी ग़ज़ल नहीं है बल्कि आप अपनी ग़ज़ल से पाठकों की आँखें भिगोने की क्षमता भी रखती हैं
it is fabulous.
हंसते खिलते लोगों से मिल,
कुछ तो शायद डरा है दर्द
wah wah wah....khub kaha...
"अफ़साने लिखती हूँ तब ही
हद से जब भी बढ़ा है दर्द "
सच्ची बात है श्रद्धा जी..
दर्द के इतने आयाम हैं कि सारी कायनात के डूबने के बाद भी कम ना पड़े ...
ऊपर इतने गंभीर लोगों ने कमेंट किए हैं कि मैं अपने आप को कमेंट के काबिल नहीं समझता...
बहुत खूब....
I selute your writing skills. You have really drilled the emotions.
Please keep it up.
~Lekh Nath
bhut khub............. jawaqb nhi apka dear
हंसते खिलते लोगों से मिल,
कुछ तो शायद डरा है दर्द
अफ़साने लिखती हूँ तब ही
हद से जब भी बढ़ा है दर्द
wah! mann kush kar diya in pankhtiyo ne bahut hi sundar shabd ki kami pad jayegi is soch ka saaransh karne mai..
lajavab rachna, shraddha ji.
Kamaal karte ho aap.
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