Saturday, July 5, 2008

दर्द

क्यूँ चुप चुप सा खड़ा है दर्द
आँखों में जब हरा है दर्द

हंसते खिलते लोगों से मिल,
कुछ तो शायद डरा है दर्द

अफ़साने लिखती हूँ तब ही
हद से जब भी बढ़ा है दर्द

आँख छुपा लेती जज़्बो को
मुंडेरों पे मरा है दर्द

यादों की इक आग जलाकर
कहा है हमने खरा है दर्द

तुमने वफ़ा के सफ़र में “श्रद्धा”
सुना, लिखा और पढ़ा है दर्द

28 comments:

अमिताभ मीत July 5, 2008 at 10:53 AM  

बहुत सुंदर.

Anonymous July 5, 2008 at 11:07 AM  

बहुत ही सुंदर रचना।

रंजू भाटिया July 5, 2008 at 11:41 AM  

हंसते खिलते लोगों से मिल,
कुछ तो शायद डरा है दर्द

बहुत खूब लिखा ..हँसते रहने से ही दर्द कम हो सकता है

सुशील छौक्कर July 5, 2008 at 12:29 PM  

हंसते खिलते लोगों से मिल,
कुछ तो शायद डरा है दर्द

बहुत खूबसूरती से दर्द बयान किया।

कुश July 5, 2008 at 12:32 PM  

पहला ही शेर जबरदस्त है.. लाजवाब ग़ज़ल

संजय शर्मा July 5, 2008 at 12:38 PM  

बहुत ही बेहतरीन रचना ! पूरे श्रद्धा के साथ दर्द को डराने और फ़िर पर मारने का क्रम जारी रहे.
आभार ! सीखते हुए जा रहा हूँ.

डॉ .अनुराग July 5, 2008 at 1:43 PM  

आँख छुपा लेती जज़्बो को
मुंडेरों पे मरा है दर्द

यादों की इक आग जलाकर
कहा है हमने खरा है दर्द

तुमने वफ़ा के सफ़र में “श्रद्धा”
सुना, लिखा और पढ़ा है दर्द


एक एक लफ्ज़ ढेरो असर रखता है......एक ओर उम्दा गजल......

तुमने ढूँढा होगा इधर उधर
हमने सिरहाने रखा है दर्द

mehek July 5, 2008 at 2:32 PM  

यादों की इक आग जलाकर
कहा है हमने खरा है दर्द

तुमने वफ़ा के सफ़र में “श्रद्धा”
सुना, लिखा और पढ़ा है दर्द
dard ko bhi itne sundar roop se piroya hai,puri ki puri gazal bahut sundar bani hai,bahut bahut badhai.

Anonymous July 5, 2008 at 3:05 PM  

aankhon ke ashq jab dil se nikle
tab mano khara hai dard......
bahut hi chhoo lene waali rachna hai shraddha ji......

Dushyant July 5, 2008 at 3:06 PM  

aankhon ke ashq jab dil se nikle
tab mano khara hai dard......
bahut hi chhoo lene waali rachna hai shraddha ji......

Anil Pusadkar July 5, 2008 at 4:03 PM  

ab tak sirf likha,padha aur suna hi tha,aapne ehsaas kara diya dard ka

समयचक्र July 5, 2008 at 5:50 PM  

bahut sundar. aap likhati rahiye achcha likh rahi hai .

شہروز July 5, 2008 at 6:32 PM  

इस दर्द की दवा क्या है ? निसंदेह जवाब होगा सिर्जन यानी अदब यानी शे 'र यानी ग़ज़ल .मुक्ति रचनाकार की उसकी तख्लीक में ही है .मतला यूँ कहीं खटकता तो है लेकिन अपने मफहूम की वजह्कर दाद पा जाता है .दुआ है लिखती जाएँ खुद बखुद महफ़िल संवर जायेगी .

Anonymous July 5, 2008 at 8:01 PM  

bhut hi sundar. badhai ho.

Batangad July 5, 2008 at 10:49 PM  

बहुत सुंदर

vipinkizindagi July 5, 2008 at 11:18 PM  

श्रद्धा जी आप अच्छा लिखती है,
आशा है आप हमेशा अच्छा लिखे,
मैं भी कविताएँ और शायरी लिखता हूँ,
मेरा ब्लॉग आप पढ़ें

रंजना July 6, 2008 at 12:01 AM  

dard ko bahut hi khoobsoorti se shabdon me piroya hai aapne.

विजय तिवारी " किसलय " July 6, 2008 at 2:47 AM  

श्रद्धा,

मुझे विश्वास है कि आप खुश ही होगी

ब्लॉग पर " दर्द " पढ़ी, अच्छा लगा॰

दर्द दिल में उभरता है,
आँसुओं में बहता है,
खुशियों से डरता है,
बहलाने से बहलता है,
आँख भले ही
ज़ज्बात छुपा ले,
दर्द यादों में रहता है.

ये सारी विशेषताएँ
वाकई खरे दर्द की ही हो सकती हैं
क्योंकि,जब दिल में कसक
उठती है तो दर्द का होना लाज़मी
भी है.
एक बार फिर से कहना
चाहूँगा,कि अच्छा लगा.

आपका

विजय तिवारी " किसलय "
जबलपुर.

Manish Kumar July 6, 2008 at 2:53 AM  

sundar rachna

राजीव तनेजा July 6, 2008 at 10:00 AM  

दर्द को बखूबी उकेरती आपकी रचना पसन्द आई

Pranav Pradeep Saxena July 7, 2008 at 4:58 PM  

श्रद्दा आज इस ग़ज़ल को पढ़कर मालूम हुआ कि केवल आपका नाम ही भीगी ग़ज़ल नहीं है बल्कि आप अपनी ग़ज़ल से पाठकों की आँखें भिगोने की क्षमता भी रखती हैं
it is fabulous.

Shishir Shah July 9, 2008 at 7:52 AM  

हंसते खिलते लोगों से मिल,
कुछ तो शायद डरा है दर्द

wah wah wah....khub kaha...

डाॅ रामजी गिरि July 9, 2008 at 8:43 PM  

"अफ़साने लिखती हूँ तब ही
हद से जब भी बढ़ा है दर्द "

सच्ची बात है श्रद्धा जी..
दर्द के इतने आयाम हैं कि सारी कायनात के डूबने के बाद भी कम ना पड़े ...

Anonymous July 9, 2008 at 10:36 PM  

ऊपर इतने गंभीर लोगों ने कमेंट किए हैं कि मैं अपने आप को कमेंट के काबिल नहीं समझता...

बहुत खूब....

Lekh Nath July 10, 2008 at 3:06 PM  

I selute your writing skills. You have really drilled the emotions.
Please keep it up.
~Lekh Nath

NEER July 12, 2008 at 3:43 PM  

bhut khub............. jawaqb nhi apka dear

!!अक्षय-मन!! August 12, 2008 at 2:01 AM  

हंसते खिलते लोगों से मिल,
कुछ तो शायद डरा है दर्द

अफ़साने लिखती हूँ तब ही
हद से जब भी बढ़ा है दर्द
wah! mann kush kar diya in pankhtiyo ne bahut hi sundar shabd ki kami pad jayegi is soch ka saaransh karne mai..

Yogi January 30, 2009 at 12:53 AM  

lajavab rachna, shraddha ji.

Kamaal karte ho aap.

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