Monday, June 30, 2008

शूल से शब्द

चुभते शूल से शब्द
किसी फूल से नाज़ुक एहसास को
मुरझा देने पर मज़बूर कर देते हैं
और बाग़ में बचतीं हैं कुछ सूखी सी पत्तियां
और माली सोचता हुआ
कि आखिर साथ साथ चलते हुए
क्यों घायल कर जाते हैं
दो साथी एक दूसरे को,

शायद अपने अस्तित्व को बचाने के लिए
दूसरे को घायल करना ज़रूरी था

26 comments:

अमिताभ मीत June 30, 2008 at 12:42 AM  

अपने अस्तित्व को बचाने के लिए
दूसरे को घायल करना ज़रूरी था

Acchha. Pataa nahiiN.
Acchha likha hai.

महेन June 30, 2008 at 12:54 AM  

सच तो है यह।
शुभम।

अबरार अहमद June 30, 2008 at 1:46 AM  

बहुत अच्छा।

Anonymous June 30, 2008 at 1:47 AM  

bhut gahari rachana. badhai ho.

Anonymous June 30, 2008 at 1:52 AM  

aacha likha hai

Anil Pusadkar June 30, 2008 at 2:32 AM  

zindagi ka sabse kadua sach

Udan Tashtari June 30, 2008 at 5:06 AM  

बहुत बढ़िया.

राजीव तनेजा June 30, 2008 at 10:15 AM  

सांकेतिक शब्दों में जीवन की सच्चाई से रुबरू कराती आपकी कविता अच्छी लगी....लिखते रहें

कुश June 30, 2008 at 11:01 AM  

सीधा वार किया है आपने.. अंतिम दो पंक्तिया लाजवाब है

सुशील छौक्कर June 30, 2008 at 12:09 PM  

चुभते शूल से शब्द
किसी फूल से नाज़ुक एहसास को
मुरझा देने पर मज़बूर कर देते हैं

अपने अस्तित्व को बचाने के लिए
दूसरे को घायल करना ज़रूरी था

सच तो यही है। पर ये सच क्यों?

ज़ाकिर हुसैन June 30, 2008 at 1:52 PM  

wah shradhji
behad umda kavita likhi hai

aur bagh main bachti hain kuch sookhi pattiyan
!!!!!!!!!!!
shayad apne astitva ko bachane ke liye
doosre ko ghayal karna aroori tha
!!!!!!!!1
lanes main aapne jin deep feelings ko simple shabdon main zahir kiya hai
uske liye badhi !!!

रंजू भाटिया June 30, 2008 at 9:42 PM  

शायद अपने अस्तित्व को बचाने के लिए
दूसरे को घायल करना ज़रूरी था

बहुत सही लिखा है आपने श्रद्धा ..अच्छा लगा इसको पढ़ना

शेरघाटी June 30, 2008 at 11:10 PM  

संभव है कुछ साहित्य के पंडितों को ग़ज़ल और उसी अन्दाज़े बयाँ में कविता लिखना आपका पसंद न आये .वो आपको खारिज भी कर सकते हैं .लेकिन आप घबराएँ हरगिज़ नहीं .आपके पास विचार है . मोजू है और सब से बड़ी बात वक़्त के नब्ज़ को आप मुकम्मल समग्रता में प्रस्तुत करना जानती हैं .

Saee_K July 1, 2008 at 3:12 PM  

चुभते शूल से शब्द
किसी फूल से नाज़ुक एहसास को
मुरझा देने पर मज़बूर कर देते हैं

अपने अस्तित्व को बचाने के लिए
दूसरे को घायल करना ज़रूरी था

pehli baar padha hai aapko..
sachhai..ko badhiya tareeqe se bayaan kiya.

likhte rahe

Shishir Shah July 1, 2008 at 8:39 PM  

dastur-e-duniya chand lafzo mein bayan kar diya aap ne...bahot khub...

समयचक्र July 1, 2008 at 10:45 PM  

अपने अस्तित्व को बचाने के लिए
दूसरे को घायल करना ज़रूरी था.
बहुत बढ़िया.

Pranav Pradeep Saxena July 2, 2008 at 1:35 PM  

Shraddha,
your poem is so deep & impresive In one word I'll say it Awesome.

But I've got an Answer for you
Tell me am I correct or not :-

चाहिए हमको संभालना
इन शूल से शब्दों को
वरना फूल मुरझाते रहेंगे
और शायद कोई माली भी ना हो
सोचने के लिए कि क्या है वजह
फूलों के मुरझाने की
सूखी पत्तियों के रह जाने की
एक दूजे को घायल करने की
मजबूरी मारने-मरने की
स्वार्थ से ऊपर अब उठना होगा
हमें खुद को बदलना होगा
रचना होगा नया समाज
इसीकी हमको जरूरत है आज


....Pranav Pradeep Saxena

Anonymous July 2, 2008 at 3:25 PM  

शायद अपने अस्तित्व को बचाने के लिए
दूसरे को घायल करना ज़रूरी था
shayad kabhi aisa karna bhi jaruri hota hai,bahut khub

Vinay July 2, 2008 at 4:40 PM  

कमाल का शब्द प्रयोग और एक सार्थक कविता का उद्भव हुआ... सभी रचनाएँ पढीं बेहद सुन्दर हैं सभी!

pallavi trivedi July 3, 2008 at 2:22 AM  

kuch alag andaaz ki rachna...achchi lagi

संजय शर्मा July 3, 2008 at 7:53 PM  

एक एक शब्द चुभता हुआ ! धारदार !!
आभार !

डॉ .अनुराग July 3, 2008 at 11:01 PM  

शायद अपने अस्तित्व को बचाने के लिए
दूसरे को घायल करना ज़रूरी था

sachhi baat.....

Dr. Zakir Ali Rajnish July 4, 2008 at 3:54 PM  

शायद अपने अस्तित्व को बचाने के लिए
दूसरे को घायल करना ज़रूरी था
yahi zindagi kadvi sachchaai hai.

AVNISH SHARMA July 5, 2008 at 1:38 AM  

बहुत सुंदर लिखा है आपने .
किसी ने ठीक कहा है
चमन को सींचने मैं कुछ पट्टियां झड़ ही गयी होंगी क्या येही इल्जाम लग रहा meri बेवफाई का और जिन्होंने चमन को रौंद डाला वही दावा करते चमन की रहनुमाई का.

Subhash Ujjwal July 19, 2008 at 12:59 AM  

अपने अस्तित्व को बचाने के लिए
दूसरे को घायल करना ज़रूरी ......

ek sachae hai.insan mai bhi ye pervarty....aadim vikash ki...awastha ko...bataty hai...

ye vvyhar jungle mai aam hai.

jara gaur karen...

Apne man mai doob kar paaja surage...Jindgi

Tuu agar mera nahi to na ban

Apna to ban

Man ki daulat sood-o-sauda makro fan
Tan ki daulat Sansh hai ,

Aata hai dhan jata hai dhan..

!!अक्षय-मन!! August 12, 2008 at 2:04 AM  

शायद अपने अस्तित्व को बचाने के लिए
दूसरे को घायल करना ज़रूरी था
ye shayad hi jaan le gaya bahut acchi peshkash bahut bhavuk dhayaan dene yogya rachna.

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