क्या कभी सोचे गए हम
अजनबी खुद को लगे हम
इस कदर तन्हा हुए हम
उम्र भर इस सोच में थे
क्या कभी सोचे गए हम
खूबसूरत ज़िंदगी थी
तुम से मिलकर जब बने हम
चाँद दरिया में खड़ा था
आसमाँ तकते रहे हम
सुबह को आँखों में रख कर
रात भर पल - पल जले हम
खो गए हम भीड़ में जब
फिर बहुत ढूँढे गए हम
इस ज़मीं से आसमां तक
था जुनूँ उलझे रहे हम
जीस्त के रस्ते बहुत थे
हर तरफ रोके गए हम
लफ्ज़ जब उरियाँ हुए तो
फिर बहुत रुसवा हुए हम
जागने का ख़्वाब ले कर
देर तक सोते रहे हम
तेरे सच को पढ़ लिया था
बस इसी खातिर मिटे हम
हर तरफ रोके गए हम
लफ्ज़ जब उरियाँ हुए तो
फिर बहुत रुसवा हुए हम
जागने का ख़्वाब ले कर
देर तक सोते रहे हम
तेरे सच को पढ़ लिया था
बस इसी खातिर मिटे हम
52 comments:
AJNABEE KHUD KO LAGE HUM
IS TARAH TANHAA HUE HUM
CHHOTEE BAHAR AUR OONCHAA KHYAAL
HAR SHER KO UMDAA BANAA RAHAA HAI .
जागने का ख़्वाब ले कर
देर तक सोते रहे हम
तेरे सच को पढ़ लिया था
बस इसी खातिर मिटे हम.
बड़ी सुंदर गज़ल रची है आपने. बधाई.
चाँद दरिया में खड़ा था
आसमाँ तकते रहे हम
क्या बात है ..बहुत खूब.
@जागने का ख़्वाब ले कर
देर तक सोते रहे हम
वाह,बहुत खूब.
उम्र भर इस सोच में थे
क्या कभी सोचे गए हम---बहुत खूब ...क्या कहा है ...
उम्र भर इस सोच में थे
क्या कभी सोचे गए हम
हासिले-ग़ज़ल और तारीखी शेर हुआ है श्रद्धा जी, मुबारकबाद...
चाँद दरिया में खड़ा था
आसमाँ तकते रहे हम
वाह...किस हुनर से बात कही है सुबहान अल्लाह.
हर शेर लाजवाब.
चाँद दरिया में खड़ा था
आसमाँ तकते रहे हम
सुबह को आँखों में रख कर
रात भर पल - पल जले हम
खूब....बहुत ही उम्दा ग़ज़ल है.....
जैसे खिडकी से पर्दा हते और भोर की नरम नरम धुप छू जाए ... खूबसूरत दो शोती वाली लड़की सी आपकी यह ग़ज़ल ... बधाई ...
श्रद्धा जी अरसे बाद नज़र आयीं हैं और क्या ग़ज़ल कही है आपने...सुभान अल्लाह..छोटी बहर में कमाल कर दिया है आपने...बहुत से मासूम और नाज़ुक ख्यालातों को बेहद कारीगरी से शेरों में पिरोया है...वाह..
उम्र भर इस सोच में थे
क्या कभी सोचे गए हम
चाँद दरिया में खड़ा था
आसमाँ तकते रहे हम
जैसे शेर कहे नहीं जाते ऊपर से उतरते हैं...मेरी दिली दाद कबूल करें...
नीरज
श्रद्धा जी अरसे बाद नज़र आयीं हैं और क्या ग़ज़ल कही है आपने...सुभान अल्लाह..छोटी बहर में कमाल कर दिया है आपने...बहुत से मासूम और नाज़ुक ख्यालातों को बेहद कारीगरी से शेरों में पिरोया है...वाह..
उम्र भर इस सोच में थे
क्या कभी सोचे गए हम
चाँद दरिया में खड़ा था
आसमाँ तकते रहे हम
जैसे शेर कहे नहीं जाते ऊपर से उतरते हैं...मेरी दिली दाद कबूल करें...
नीरज
लफ्ज़ जब उरियाँ हुए तो
फिर बहुत रुसवा हुए हम
बहुत खूब.
अतिसुन्दर अभिव्यक्ति
भावपूर्ण रचना
चाँद दरिया में खड़ा था
आसमाँ तकते रहे हम
बहुत खूब ।
जीस्त के रस्ते बहुत थे
हर तरफ रोके गए हम
kyaa baat....kyaa baat....kyaa baat....
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति!
बहुत खूब ... मुझे टी हर शेर इतना पसंद आया की किसी एक को लिखना मुश्किल है ...
छोटी बहर में कमाल किया है आपने ..
अच्छी ग़ज़ल के लिये बधाई.... एक ही शे'र एक साथ दो लोग कैसे कह सकते हैं...
चाँद दरिया में खड़ा था
आसमाँ तकते रहे हम
फिर समन्दर की चाहतें लेकर,
चाँद आंखों में आ गया होगा !
अर्श
चाँद दरिया में खड़ा था
आसमाँ तकते रहे हम
जीस्त के रस्ते बहुत थे
हर तरफ रोके गए हम
लाज़वाब गज़ल ,
यूँ तो हर शेर लाज़वाब है ,
पर ये दो शेर , जैसे दिल में उतर आया ||
दिल से बधाई ||
bahut khoob..
bahut khoob
श्रद्धा जी
शानदार ग़ज़ल....... !!!!!
मुद्दत बाद आपका कलाम पढ़ा. कुछ शेर तो बिलकुल नए से हैं.... कथ्य में भी और विम्ब में भी !!!!
उम्र भर इस सोच में थे
क्या कभी सोचे गए हम
सुबह को आँखों में रख कर
रात भर पल - पल जले हम
तेरे सच को पढ़ लिया था
बस इसी खातिर मिटे हम
बहुत सुंदर गज़ल, भावपूर्ण रचना
भावपूर्ण रचना,सुंदर गज़ल
चाँद दरिया में खड़ा था
आसमाँ तकते रहे हम
जीस्त के रस्ते बहुत थे
हर तरफ रोके गए हम
तेरे सच को पढ़ लिया था
बस इसी खातिर मिटे हम
बेहतरीन
वाह. लाजवाब गज़ल.
जागने का ख़्वाब ले कर
देर तक सोते रहे हम
बहुत खूब
बहुत प्यारी और उम्दा गजल है ....
♥
आदरणीया श्रद्धा जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
अपनी स्थापित पहचान के अनुरूप बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने -
सुबह को आंखों में रख कर
रात भर पल-पल जले हम
लाजवाब शे'र !
जीस्त के रस्ते बहुत थे
हर तरफ रोके गए हम
बहुत मर्मस्पर्शी शे'र है !
…जिस पर बीती वह समझ सकता है यह दर्द !
जागने का ख़्वाब ले कर
देर तक सोते रहे हम
जी करता है हर शे'र कोट करदूं … :)
बधाई और आभार इस ग़ज़ल के लिए !
दीपावली की अग्रिम बधाई और शुभकामनाओं सहित
-राजेन्द्र स्वर्णकार
Nice!
Nice!
आदरणीय श्रद्धा जी (शिल्पाजी)
आपको जन्म दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाऐं!
ईश्वर करे कि आपकी उम्र सौ वर्ष की हो और उसकी गिनती आज से प्रारंभ हो।
पुनः जन्मदिवस की बहुत बहुत शुभकामनाऐं।
इस अवसर पर आपके साथ एक महत्वपूर्ण
साहित्यिक उद्देश्य साझा करना चाहूँगा । बात यूँ है कि प्रेम की उपासक अमृता जी का हौज खास वाला घर बिक गया है। कोई भी जरूरत सांस्कृतिक विरासत से बडी नहीं हो सकती। इसलिये अमृताजी के नाम पर चलने वाली अनेक संस्थाओं तथा इनसे जुडे तथाकथित साहित्यिक लोगों से उम्मीद करूँगा कि वे आगे आकर हौज खास की उस जगह पर बनने वाली बहु मंजिली इमारत का एक तल अमृताजी को समर्पित करते हुये उनकी सांस्कृतिक विरासत को बचाये रखने के लिये कोई अभियान अवश्य चलायें। पहली पहल करते हुये भारत के राष्ट्रपति को प्रेषित अपने पत्र की प्रति आपको भेज रहा हूँ । उचित होगा कि आप एवं अन्य साहित्यप्रेमी भी इसी प्रकार के मेल भेजे । अवश्य कुछ न कुछ अवश्य होगा जन्म दिवस की बहुत बहुत शुभकामना के साथ महामहिम का लिंक है
08november 2011
महामहिम राष्ट्रपति जी का लिंक यहां है । कृपया एक पहल आप भी अवश्य करें!!!!
बहुत सुन्दर ग़ज़ल ...
बधाई हो !
मेरे ब्लॉग पे आपका हार्दिक स्वागत है ..
सदस्य बन रहा हूँ !
खूबसूरत ज़िंदगी थी
तुम से मिलकर जब बने हम
नया और बेहद खूबसूरत शेर सानी कमाल का कहा है --
सुबह को आँखों में रख कर
रात भर पल - पल जले हम
तश्बीह बहुत ताबिन्दा आयी --
खो गए हम भीड़ में जब
फिर बहुत ढूँढे गए हम
पसमंज़र और मर्क़ज़े ख्याल बहुत ही appealing है
जीस्त के रस्ते बहुत थे
हर तरफ रोके गए हम
निकल आये कहाँमंज़िल की धुन में //यहाँ बस रास्ता ही रास्ता है --निदा -इस के एक मुख़्तलिफ ज़ाविये पर तुम्हारा शेर भी बहुत अच्छा है --
लफ्ज़ जब उरियाँ हुए तो
फिर बहुत रुसवा हुए हम
the dignity of expression makes a man a human being ---शायरी रेशा ए गुल से तेशे का काम लेना और तितलीके पम्खों से फूलों पर शबनम कीकहानी लिखने का नाम्है -तुम कामयाब हो --जीती रहो!!!!
खूबसूरत ज़िंदगी थी
तुम से मिलकर जब बने हम
नया और बेहद खूबसूरत शेर सानी कमाल का कहा है --
सुबह को आँखों में रख कर
रात भर पल - पल जले हम
तश्बीह बहुत ताबिन्दा आयी --
खो गए हम भीड़ में जब
फिर बहुत ढूँढे गए हम
पसमंज़र और मर्क़ज़े ख्याल बहुत ही appealing है
जीस्त के रस्ते बहुत थे
हर तरफ रोके गए हम
निकल आये कहाँमंज़िल की धुन में //यहाँ बस रास्ता ही रास्ता है --निदा -इस के एक मुख़्तलिफ ज़ाविये पर तुम्हारा शेर भी बहुत अच्छा है --
लफ्ज़ जब उरियाँ हुए तो
फिर बहुत रुसवा हुए हम
the dignity of expression makes a man a human being ---शायरी रेशा ए गुल से तेशे का काम लेना और तितलीके पम्खों से फूलों पर शबनम कीकहानी लिखने का नाम्है -तुम कामयाब हो --जीती रहो!!!!
bahut sundar blog...behatareen rachna...उम्र भर इस सोच में थे
क्या कभी सोचे गए हम...wahhh
bahut sundar blog...behatareen rachna...उम्र भर इस सोच में थे
क्या कभी सोचे गए हम...wahhh
बहुत सुन्दर ग़ज़ल
बधाई !
behtarin gajal...!
welcome on blog.
बेहतरीन गजल।
सादर
beautiful :)
Welcome to मिश्री की डली ज़िंदगी हो चली
जागने का ख़्वाब ले कर
देर तक सोते रहे हम
तेरे सच को पढ़ लिया था
बस इसी खातिर मिटे हम.....
श्रद्धा जी !
अचानक आपके ब्लॉग पर आकर लगा जैसे मुराद पूरी हो गयी हो ...यद्यपि आपको केवल कविता-कोष पर ही पढ़ा है मैंने ...मगर जितना भी पढ़ा है जी कर पढ़ा है ...आपके काफ़ी शेर फेसबुक पर मेरे स्टेटस की शोभा बढ़ा चुके हैं (आपके नाम और आपकी गरिमा के साथ ) प्रभु से विनती है कि अब जो भी आप पोस्ट करें उसे पढ़ता रहूँ ...सच में आप स्वयं प्रेम हैं !!
बहुत सुन्दर श्रद्धा जी...
हर लफ्ज़ जानदार..
दाद पेश करती हूँ..
उम्र भर इस सोच में थे
क्या कभी सोचे गए हम
जागने का ख़्वाब ले कर
देर तक सोते रहे हम
सुबह को आंखों में रख कर
रात भर पल-पल जले हम
बड़ी ही प्यारी सी गज़ल में इन अश'आरों में जरा हट के ही बात कही गई है.
उम्र भर इस सोच में थे
क्या कभी सोचे गए हम.. वाह! वाह!
चाँद दरिया में खड़ा था
आसमाँ तकते रहे हम... बहुत उम्दा...
हर शेर बेशकीमती... बहुत ही उम्दा ग़ज़ल... आनंद आ गया आदरणीया श्रद्धा जी...
सादर.
जागने का ख़्वाब ले कर
देर तक सोते रहे हम
तेरे सच को पढ़ लिया था
बस इसी खातिर मिटे हम
वाह! श्रद्धा जी,
बहुत सुन्दर प्रस्तुति है आपकी.
सदा जी की हलचल और आपका आभार.
मन के साहिल में हलचल मचाने में सक्षम...
------
..की-बोर्ड वाली औरतें।
उम्र भर इस सोच में थे
क्या कभी सोचे गए हम...
kamaal ke sher hai ,bahut hi ummda gazal hai Shradda ji ,mubarak ho aapko
चांद दरिया में खड़ा था
आसमां तकते रहे हम
बेहद उम्दा कृति बधाई
Its just great to read here...
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