Thursday, June 19, 2008

इक लड़की पागल दीवानी

इक लड़की पागल दीवानी ,गुम सुम चुप चुप सी रहती थी
बारिश सा शोर ना था उसमें ,सागर की तरह वो बहती थी
कोई उस को पढ़ नहीं पाया , ना कोई उसको समझा तब
छोटी उदास आँखें उस की ,न जाने क्या क्या कहती थी

शख्स जो अक्सर दिखता था ,उस दिल के झरोखे में
दर्द कई वो देता था , रखता था उसको धोखे में
जितने पल रुकता था आकर ,वो उस में सिमेटी रहती थी
छोटी उदास आँखें उस की ,न जाने क्या क्या कहती थी

इक दिन ऐसा भी आया ,वो आया पर दर नहीं खुला
दरवाज़े पर हँसता था जो,इक चेहरा उस को नहीं मिला
आँसू के हर्फ वहाँ थे , और था वफ़ा का किस्सा भी
तब जान गये आख़िर सब कैसे वो टूटी, कहाँ मिटी

समझा तब लोगों ने उसको, कैसे वो ताने सहती थी
छोटी उदास आँखें उस की ,न जाने क्या क्या कहती थी


बाद उसके खत भी मिले, जिनमें कई प्यार की बातें थी
सौगातें थी पाक दुआ की , भेजी चाँदनी रातें थी
लिखा था उसने, सम्हल के रहना,इतना भी मत गुस्सा करना
अब और कोई ना सीखेगा ,तुम से जीना, तुम पर मारना
अब वो पागल लड़की नहीं रही, जो तुम को खूब समझती थी
हर गुस्से को हर चुप को भी आसानी से पढ़ती थी

समझा वो भी अब जाकर , क्या उसकी आँखें कहती थी
था प्यार बला का उससे ही, वो जिसके ताने सहती थी
इक लड़की पागल दीवानी ,गुम सुम चुप चुप सी रहती थी

8 comments:

कृष्णशंकर सोनाने June 21, 2008 at 1:14 AM  

श्रद्धा जी,बहुत बधाई आपको । इक लडकी पागल दीवानी पढी। मन को छू गई।ऐसी रचनाएं बहुत कम लिखी जा रही है। मुझे इसलिए भी अच्‍छा लगा कि मेरी एक लम्‍बी कविता पागल लड्की पर है बडी खूबसूरत पगली इक लडकी ।चली जा रही वह न जाने किधर को।।
--उसे आप भी मेरे इस ब्‍लाक पर पढ सकते हैं । हमें बताए कि कैसी है।

कृष्णशंकर सोनाने June 21, 2008 at 1:15 AM  

श्रद्धा जी,बहुत बधाई आपको । इक लडकी पागल दीवानी पढी। मन को छू गई।ऐसी रचनाएं बहुत कम लिखी जा रही है। मुझे इसलिए भी अच्‍छा लगा कि मेरी एक लम्‍बी कविता पागल लड्की पर है बडी खूबसूरत पगली इक लडकी ।चली जा रही वह न जाने किधर को।।
--उसे आप भी मेरे इस ब्‍लाक पर पढ सकते हैं %http://shankarsonane.blogspot.com हमें बताए कि कैसी

श्रद्धा जैन June 27, 2008 at 12:11 PM  

Shankar ji bahut bahut dhanaywad aapne padha achha laga aapka aana aur aapki kavita bhi bahut pasand aayi

संत शर्मा June 27, 2008 at 3:59 PM  

Aksar yesa hota hai jab Prem ki bhasa samne wale ki samajh me aate aate kaphi deer ho jati hai aur phir bhul sudharane ki gunjayis nahi rah jati.

Karuna se bhari ek sashaqt rachana ke liye badhayee.

प्रवीण परिहार July 4, 2008 at 8:05 PM  

Bahut Badiya. har ek kavita bahut badiya hai Bhadhayi.

Anonymous March 20, 2009 at 5:40 PM  

bahut achha laga parhkar.... :-)


Aapki Rani :P

खोरेन्द्र February 2, 2010 at 9:12 PM  

bahut hi achchha likhatii hai aap

aur aur likhatii rahe

kishor

Vshayari April 29, 2020 at 6:44 AM  

Very nice.. kya likha h yr... you can check this one also
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