चुन लिया सुबह के सूरज का उजाला मैंने
अपने हर दर्द को अशआर में ढाला मैंने
ऐसे रोते हुए लोगों को संभाला मैंने
शाम कुछ देर ही बस सुर्ख़ रही, हालांकि
खून अपना तो बहुत देर उबाला मैंने
बच्चे कहते हैं कि एहसान नहीं फ़र्ज़ था वो
अपनी ममता का दिया जब भी हवाला मैंने
कभी सरकार पे, किस्मत पे, कभी दुनिया पर
दोष हर बात का औरों पे ही डाला मैंने
लोग रोटी के दिलासों पे यहाँ बिकते हैं
जब कि ठुकरा दिया सोने का निवाला मैंने
आप को शब् के अँधेरे से मुहब्बत है, रहे
चुन लिया सुबह के सूरज का उजाला मैंने
आज के दौर में सच बोल रही हूँ 'श्रद्धा'
अक्ल पर अपनी लगा रक्खा है ताला मैंने
48 comments:
आप को शब् के अँधेरे से मुहब्बत है, रहे
चुन लिया सुबह के सूरज का उजाला मैंने
आज के दौर में सच बोल रही हूँ 'श्रद्धा'
अक्ल पर अपनी लगा रक्खा है ताला मैंने
वाह ... बहुत खूब ... ।
बहुत सुन्दर ग़ज़ल!
tareef karun kya uski......jiske har sher hi bolte hain..
आप को शब् के अँधेरे से मुहब्बत है, रहे
चुन लिया सुबह के सूरज का उजाला मैंने
बहुत सुन्दर गज़ल ..बहुत दिनों बाद पढने को मिली ...
बच्चे कहते हैं कि एहसान नहीं फ़र्ज़ था वो
अपनी ममता का दिया जब भी हवाला मैंने
हक़ीक़त की पथरीली ज़मीन का एह्सास कराता शेर
कभी सरकार पे, किस्मत पे, कभी दुनिया पर
दोष हर बात का औरों पे ही डाला मैंने
बहुत उम्दा ,सच है हमें अपनी ग़लतियां कहां नज़र आती हैं
लोग रोटी के दिलासों पे यहाँ बिकते हैं
जब कि ठुकरा दिया सोने का निवाला मैंने
वाह !
खूबसूरत ग़ज़ल ,,,मुबारक हो
आप को शब् के अँधेरे से मुहब्बत है, रहे
चुन लिया सुबह के सूरज का उजाला मैंने
Bahut khoosoorat ghazal hai
Subhanallah!!!
शाम कुछ देर ही बस सुर्ख़ रही, हालांकि
खून अपना तो बहुत देर उबाला मैंने
kya shaandaar lines hain ye...aafareen!
आज के दौर में सच बोल रही हूँ 'श्रद्धा'
अक्ल पर अपनी लगा रक्खा है ताला मैंने
खूबसूरत
बच्चे कहते हैं कि एहसान नहीं फ़र्ज़ था वो
अपनी ममता का दिया जब भी हवाला मैंने
कितना बडा सच कह दिया। किस किस शेर की बात करूँ लाजवाब गज़ल। शुभ.का.
इस निहायत खूबसूरत ग़ज़ल, जिसका हर शेर लाजवाब है, के लिए मेरी दिली दाद कबूल फरमाएं...
नीरज
बहुत खूबसूरत...वाह.
बच्चे कहते हैं कि एहसान नहीं फ़र्ज़ था वो
अपनी ममता का दिया जब भी हवाला मैंने
बहुत ही उम्दा..
मैडम..... नमस्कार.
मुद्दत बाद इस वापसी का दिली शुक्रिया.
आनंद जी को भी नमस्कार.
जबरदस्त काफिये का प्रयोग है.....!!!!
पूरी ग़ज़ल बेजोड़ है और उस पर इस शेर के तो क्या कहने ........
अपने हर दर्द को अशआर में ढाला मैंने
ऐसे रोते हुए लोगों को संभाला मैंने
और
कभी सरकार पे, किस्मत पे, कभी दुनिया पर
दोष हर बात का औरों पे ही डाला मैंने
वाह वाह...!!!!
लोग रोटी के दिलासों पे यहाँ बिकते हैं
जब कि ठुकरा दिया सोने का निवाला मैंने
बहुत ही गैरत वाला शेर कह दिया,.....!!!
आप को शब् के अँधेरे से मुहब्बत है, रहे
चुन लिया सुबह के सूरज का उजाला मैंने
आज के दौर में सच बोल रही हूँ 'श्रद्धा'
अक्ल पर अपनी लगा रक्खा है ताला मैंने
क्या खूब कहा.
अहा आते ही धमाका ! कहीं कोई गुंजाइश नहीं की टोक सकूँ... ! बेहद खुबसूरत ग़ज़ल !
Shradha Ji Namaste,
Bahut Hi Khubsurat Gazal Likhi He.
Share Krne K Liye Shukriya..
ANMOL
आज के दौर में सच बोल रही हूँ 'श्रद्धा'
अक्ल पर अपनी लगा रक्खा है ताला मैंने
वाह। क्या बात है।
लोग रोटी के दिलासों पे यहाँ बिकते हैं
जब कि ठुकरा दिया सोने का निवाला मैंने
ek khobsoorat sher...
shubhkaamnaayen.........
आभार
कभी सरकार पे, किस्मत पे, कभी दुनिया पर
दोष हर बात का औरों पे ही डाला मैंने
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
"बच्चे कहते हैं कि एहसान नहीं फ़र्ज़ था वो
अपनी ममता का दिया जब भी हवाला मैंने"
आज के दौर के इस कडवे सच को
बड़े हौसले के साथ लफ़्ज़ों में पिरो डाला है आपने ...
बड़ा सार्थक शेर है
"लोग रोटी के दिलासों पे यहाँ बिकते हैं
जब कि ठुकरा दिया सोने का निवाला मैंने"
ज़िन्दगी की इक और तल्ख़ हकीक़त से
रुबरु करवाता हुआ सच्चा शेर...! वाह !!
और
"दोष हर बात का औरों पे ही डाला मैंने"
ये अकेला मिसरा ही अपनी बात
मुकम्मल तौर पर कह रहा है ....
ग़ज़ल के तमाम अश`आर
इस बात की जानिब सही इशारा कर रहे हैं
कि ये तहरीर किसी उस्ताद-ए-मुहतरम के क़लम का ही शाहकार है
मुबारकबाद .
bahut sundar
शाम कुछ देर ही बस सुर्ख रही ,हालाँकि
खून अपना बहुत देर उबाला मैंने |.....बहुत ही सुंदर शेर ! क्या बात है श्रद्धा जी जिंदगी कि हकीकत से रूबरू करा दिया आपने ! बधाई|
शाम कुछ देर ही बस सुर्ख़ रही, हालांकि
खून अपना तो बहुत देर उबाला मैंने
दर्दनाक शे'र..
बच्चे कहते हैं कि एहसान नहीं फ़र्ज़ था वो
अपनी ममता का दिया जब भी हवाला मैंने
बहुत सही..
कभी सरकार पे, किस्मत पे, कभी दुनिया पर
दोष हर बात का औरों पे ही डाला मैंने
:)
आज के दौर में सच बोल रही हूँ 'श्रद्धा'
अक्ल पर अपनी लगा रक्खा है ताला मैंने
:)
अक्ल पर से टाला खोल देने के बाद कोई कहाँ सच कह सकता है...
बहुत खूब..
har sher me ek sach hai..khoobsoorat ..
आप को शब् के अँधेरे से मुहब्बत है, रहे
चुन लिया सुबह के सूरज का उजाला मैंने ...
कमाल की ग़ज़ल है .... बहुत ही लाजवाब शेर लिखे हैं ...
बच्चे कहते हैं कि एहसान नहीं फ़र्ज़ था वो
अपनी ममता का दिया जब भी हवाला मैंने..
eakdam dil ke paas hokar gujar gayi aapki gajal ...
कभी सरकार पे, किस्मत पे, कभी दुनिया पर
दोष हर बात का औरों पे ही डाला मैंने
ye to sabhi ki aadadt hai
aapki puri gazal bahut sunder hain
rachana
बच्चे कहते हैं कि एहसान नहीं फ़र्ज़ था वो
अपनी ममता का दिया जब भी हवाला मैंने
आप को शब् के अँधेरे से मुहब्बत है, रहे
चुन लिया सुबह के सूरज का उजाला मैंने
उम्दा शेर
बच्चे कहते हैं कि एहसान नहीं फ़र्ज़ था वो
अपनी ममता का दिया जब भी हवाला मैंने
बेहतरीन, पागल हो रहा हूँ मैं, लाजबाब
too good. very original. true feeling.
बच्चे कहते हैं कि एहसान नहीं फ़र्ज़ था वो
अपनी ममता का दिया जब भी हवाला मैंने
आप को शब् के अँधेरे से मुहब्बत है, रहे
चुन लिया सुबह के सूरज का उजाला मैंने
आज के दौर में सच बोल रही हूँ 'श्रद्धा'
अक्ल पर अपनी लगा रक्खा है ताला मैंने
bahut sundar abhivyakti hai mam
श्रद्धा जी,
बहुत ही ख़ूब सूरत ग़ज़ल कही है आपने।
मरहबा!
हर शे’र काबिले दाद है
बधाई!
सादर
बच्चे कहते हैं कि एहसान नहीं फ़र्ज़ था वो
अपनी ममता का दिया जब भी हवाला मैंने.
bahhut achha likha h........:)
यह ग़ज़ल ख़ुशबू लुटाती है चमेली की तरह|
वाह क्या खूब ये अश'आर निकाले तुमने|
एक एक मिसरे को पढ़ के यूं लगे है मुझको|
यादों के कोष सलीक़े से खँगाले तुमने|
aapki yeh gajal http://yogdankarta.blogspot.com
per link ki gayee hai kripaya apne vicharo se awasya awagat karaye.
aap ki kavita me sachai he jo ki aaj har ek ki jubani he jo log khus nasib hote he jisko layak santan layak milati he
हर एक शेर अच्छा है
लोग रोटी के दिलासों पे यहाँ बिकते हैं
जब कि ठुकरा दिया सोने का निवाला मैंने
Bahut hi acchi gazal..
swagat hai aapaka mere blog par..
आपकी गज़ल कि तारीफ़ करना ..मुझे तो नहीं आता श्रद्धा .. आप की लेखनी जो लिखा जाए वो कम है और दिल पर जो असर होता है .. वो तो amazing है ..
आभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
Nice .
देखिये
हुमायूं और रानी कर्मावती का क़िस्सा और राखी का मर्म
बेहद सुंदर!
श्रद्धा जी,
नमस्कार,
आपके ब्लॉग को "सिटी जलालाबाद डाट ब्लॉगसपाट डाट काम" के "हिंदी ब्लॉग लिस्ट पेज" पर लिंक किया जा रहा है|
सुन्दर ग़ज़ल.
यदि मीडिया और ब्लॉग जगत में अन्ना हजारे के समाचारों की एकरसता से ऊब गए हों तो कृपया मन को झकझोरने वाले मौलिक, विचारोत्तेजक आलेख हेतु पढ़ें
अन्ना हजारे के बहाने ...... आत्म मंथन http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com/2011/08/blog-post_24.html
बच्चे कहते हैं कि एहसान नहीं फ़र्ज़ था वो
अपनी ममता का दिया जब भी हवाला मैंने
वाह !! बहुत खुबसूरत शेर ||
गज़ल पढ़कर , अदभूत आनंद मिला ||
बहुत दिनों बाद आना हुआ ,
इसके लिए क्षमा मांगता हूँ ||
इस गज़ल के लिए दिल से बधाई " आपको "
अशोक
खूबसूरत गज़ल बहुत -बहुत बधाई श्रद्धा जी
खूबसूरत गज़ल बहुत -बहुत बधाई श्रद्धा जी
बच्चे कहते हैं कि एहसान नहीं फ़र्ज़ था वो
अपनी ममता का दिया जब भी हवाला मैंने
shraddha ji aapko padhkar hamesha kuch naya likhne ki prerana milti hai...har sher behtreen hua hai..hamesha ke tarah
अपने हर अश्क को अशआर में ढाला मैने
अपनी गिरती हुई दौलत को सम्हाला मैने
ग़ज़ल बहुत सुन्दर है श्रद्धा !! आप को शब के अन्धेरे ........इस शेर को थोड़ा और बेहतर कर सकती हो !!!
लोग रोटी के दिलासों पे यहाँ बिकते हैं
जब कि ठुकरा दिया सोने का निवाला मैंने
आप को शब् के अँधेरे से मुहब्बत है, रहे
चुन लिया सुबह के सूरज का उजाला मैंने..bahut umda..badhai swikaren.
बच्चे कहते हैं कि एहसान नहीं फ़र्ज़ था वो
अपनी ममता का दिया जब भी हवाला मैंने
-बहुत खूब अपेक्षाए रखकर जीवन मेरा जला डाला मेने
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