टूटे हुए दिल की है बस इतनी-सी कहानी
शीशे के बदन को मिली पत्थर की निशानी
टूटे हुए दिल की है बस इतनी-सी कहानी
फिर कोई कबीले से कहीं दूर चला है
बग़िया में किसी फूल पे आई है जवानी
कुछ आँखें किसी दूर के मंज़र पर टिकी हैं
कुछ आँखों से हटती नहीं तस्वीर पुरानी
औरत के इसी रूप से डर जाते हैं अब लोग
आँचल भी नहीं सर पे नहीं आँख में पानी
तालाब है, नदियाँ हैं, समुन्दर है पर अफ़सोस
हमको तो मयस्सर नहीं इक बूंद भी पानी
छप्पर हो, महल हो, लगे इक जैसे ही दोनों
घर के जो समझ आ गए ‘श्रद्धा’ को मआनी
53 comments:
शीशे के बदन को मिली पत्थर की निशानी
ula bejod !
टूटे हुए दिल की है बस इतनी-सी कहानी
फिर कोई कबीले से कहीं दूर चला है
बग़िया में किसी फूल पे आई है जवानी
कुछ आँखें किसी दूर के मंज़र पर टिकी हैं
कुछ आँखों से हटती नहीं तस्वीर पुरानी
औरत के इसी रूप से डर जाते हैं अब लोग
आँचल भी नहीं सर पे नहीं आँख में पानी
koi sani nahin! haq hai haq!
तालाब है, नदियाँ हैं, समुन्दर है पर अफ़सोस
हमको तो मयस्सर नहीं इक बूंद भी पानी
kya kahna !
छप्पर हो, महल हो, लगे इक जैसे ही दोनों
घर के जो समझ आ गए ‘श्रद्धा’ को मआनी
sach hai sach !
gazal murassa hi mukammal hai lekin kuch sher k kahne hi kya khoob !!
shahroz, now in ranchi
पूरी नज्म बेहद खूबसूरत है,बधाई.
बहुत खूब,,,,, हर शेर कमाल का है पर अंत के तीन शेरों की बात ही अलग है|
आप ही की तरह खूबसूरत ग़ज़ल। मतला बेजोड़, दूसरे शे’र में "बगिया" की जगह "जंगल" हो तो कैसा रहे। इतनी अच्छी ग़ज़ल में "पानी" काफ़िए का दो बार प्रयोग कुछ जमा नहीं। इतना छोटा तो नहीं है आपका शब्दकोश। "आँचल भी" से ऐसा लगता है जैसे सर पे और भी कुछ था जो अब नहीं है। ऐसा कर सकती हैं सर पे नहीं आँचल न ही आँखों में है पानी। मकता बेजोड़। बधाई
शीशे के बदन को मिली पत्थर की निशानी
टूटे हुए दिल की है बस इतनी-सी कहानी
वाह। बेहद खुबसुरत एहसास लिए सुंदर रचना। आभार।
कुछ आँखें किसी दूर के मंज़र पर टिकी हैं
कुछ आँखों से हटती नहीं तस्वीर पुरानी
वाह...क्या खूब शेर है.
औरत के इसी रूप से डर जाते हैं अब लोग
आँचल भी नहीं सर पे नहीं आँख में पानी
हासिले-ग़ज़ल शेर है श्रद्धा जी.
बहुत ही उम्दा गजल ।
तालाब है, नदियाँ हैं, समुन्दर है पर अफ़सोस
हमको तो मयस्सर नहीं इक बूंद भी पानी
आप की अपनी पहचान यही गजल....साधू....
औरत के इसी रूप से डर जाते हैं अब लोग
आँचल भी नहीं सर पे नहीं आँख में पानी
तालाब है, नदियाँ हैं, समुन्दर है पर अफ़सोस
हमको तो मयस्सर नहीं इक बूंद भी पानी
..
बहुत खूबसूरत गज़ल ....
आदरणीय श्रद्धा जैन जी
नमस्कार !
बहुत खूबसूरत गज़ल ....
आप ने बहुत कमाल की गज़ले कही हैं
shraddha ji aap gazal kahatiin hain aur khoob kahati hain !! shabd bhi hote hain aur arth men gajab ki hai rawaani ..
shraddha ji aap gazal kahatiin hain aur khoob kahati hain !! shabd bhi hote hain aur arth men gajab ki hai rawaani ..
बहुत सुंदर लगी आप की गजल धन्यवाद
good one :)
औरत के इसी रूप से डर जाते हैं अब लोग
आँचल भी नहीं सर पे नहीं आँख में पानी
इस ग़ज़ल के मतले से मकते(जो लाजवाब है) तक का सफ़र बेहद खूबसूरत है...हर अशआर कमाल का है ...मेरी दिली दाद कबूल करें...
नीरज
कल ही आपका ब्लॉग फ़ालो किया ! खूबसूरत है !
आप तो सिद्ध शायरा हैं ! ग़ज़ल बहुत उम्दा है !
बात कहने का खास अंदाज़ है आपका ,सो दिखा!
बग़िया में किसी फूल पे आई है जवानी
khoobsoorat bhav se saji gazal Sharddha ji!
औरत के इसी रूप से डर जाते हैं अब लोग
आँचल भी नहीं सर पे नहीं आँख में पानी
बेहद खूबसूरत ....!
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना आज मंगलवार 18 -01 -2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/2011/01/402.html
औरत के इसी रूप से डर जाते हैं अब लोग
आँचल भी नहीं सर पे नहीं आँख में पानी
हर पंक्ति अर्थपूर्ण ...... बहुत सुंदर
vaah , bhav abhivykti me saksham
बेहतरीन!
'औरत के इसी रूप से डर जाते हैं अब लोग
आँचल भी नहीं सर पे नहीं आँख में पानी '
बहुत सुन्दर !
कुछ आँखें किसी दूर के मंज़र पर टिकी हैं,
कुछ आँखों से हटती नहीं तस्वीर पुरानी।
इस शे‘र में एक कहानी-सी छुपी हुई है।
पूरी ग़ज़ल में पाठकों को प्रभावित करने की क्षमता है।
bouth he sahi baat likhi hai aapne aacha lagaa..........
Lyrics Mantra
Music Bol
बेमिसाल ग़ज़ल है. हर एक शेर तराशा हुआ नगीना सा है
औरत के इसी रूप से डर जाते हैं अब लोग
आँचल भी नहीं सर पे नहीं आँख में पानी..
बहुत ही उम्दा .. खूबसूरत ग़ज़ल ...
ये शेर तो बहुत ही लाजवाब सामयिक लगा आज के हालात पर बेबाक तप्सरा ....
shraddha ji,
kafi arse baad aap ko padhne ka mauka mila..meri apni kamiyan hain..aapki gazalon men jo rawani hai wo dil jeet leti hai..bar bar padhne ka man karta hai...har sher kabile daad raha..ye ek mera khas hua...
कुछ आँखें किसी दूर के मंज़र पर टिकी हैं
कुछ आँखों से हटती नहीं तस्वीर पुरानी..
bahut khoob..
शीशे के बदन को मिली पत्थर की निशानी
टूटे हुए दिल की है बस इतनी-सी कहानी
सुंदर गज़ल ....बहतरीन शेर
कुछ आँखें किसी दूर के मंज़र पर टिकी हैं
कुछ आँखों से हटती नहीं तस्वीर पुरानी
बेहद खूबसूरत शेर.
औरत के इसी रूप से डर जाते हैं अब लोग
आँचल भी नहीं सर पे नहीं आँख में पानी
bahot achchi lagi hai.
Ye bahut sundar hai.....
par kaise ganaa hai isko samajh naheen pataaa....
एक बार और पढ़ने आ गया।
इतनी खूबसूरत ग़ज़लों को अब तो किताब के शक्ल में आ जानी चाहिये मैम। उपकार होगा हमसब पर...
पूरी नज्म बेहद खूबसूरत है,बधाई|
तालाब है, नदियाँ हैं, समुन्दर है पर अफ़सोस
हमको तो मयस्सर नहीं इक बूंद भी पानी
...बहुत सुन्दर गज़ल..
Aad.shraddha ji,
Ghazal ka har sher khubsurat hai.
Aabhaar,
-Gyanchand marmagya
श्रधा जी बहुत ही खुबसूरत प्रस्तुति..... हर नज़्म बहुत कुछ कहती हुई...
Your creativity is indeed exceptional. This ghazal again proves that. You always amaze me with your originality of expression. There is the freshness of blooming roses in your ghazals.
सीसे के बदन को मिली पत्थर की निशानी......
मन को आंदोलित करती पोस्ट सही संदंर्र्भों में स्वयं ही हर कुछ झकझोर कर चली गयी। मन मोहक पोस्ट।
"शीशे के बदन को मिली पत्थर की निशानी/ टूटे हुए दिल की है बस इतनी-सी कहानी"- और यह कहीं किसी उपन्यास से काम नहीं. बहुत खूब. बधाई.
श्रद्धा जी मै कुछ कहने की हिम्मत नही जुटा पा रही सकते मे हूँ आपकी नायाब गज़ल पढ कर। किसी एक शेर को कोट करना पूरी गज़ल से नाइन्साफी है। बहुत बहुत बधाई आपको।
कुछ आँखें किसी दूर के मंज़र पर टिकी हैं
कुछ आँखों से हटती नहीं तस्वीर पुरानी
औरत के इसी रूप से डर जाते हैं अब लोग
आँचल भी नहीं सर पे नहीं आँख में पानी
अच्छे उपयोग हैं
har sher lajwab. kya baat hai.
शीशे के बदन को मिली पत्थर की निशानी
टूटे हुए दिल की है बस इतनी-सी कहानी
सच्चाई को बखूबी अभिव्यक्त किया है आपने ..पूरी ग़ज़ल का एक -एक लफ्ज अर्थपूर्ण है ...आपका आभार
bahut achchhi gajal
कुछ आँखें किसी दूर के मंज़र पर टिकी हैं
कुछ आँखों से हटती नहीं तस्वीर पुरानी
औरत के इसी रूप से डर जाते हैं अब लोग
आँचल भी नहीं सर पे नहीं आँख में पानी
exceelent sraddha ji
umda ghazal ke liye hardik abhaar.
sader,
dr.bhoopendra
rewa
mp
बेटियों के ही तो दम से है ये दुनिया कायम
कोख में इनको जो मारा तो क़यामत होगी
खूबसूरत गज़ल
http://shayaridays.blogspot.com
औरत के इसी रूप से डर जाते हैं अब लोग
आँचल भी नहीं सर पे नहीं आँख में पानी..
बेजोड़ शे'र कहा है....हमेशा परेशान किया करेगा...
आँचल भी नहीं सर पे न ही आँख में पानी --यहाँ नहीं आँख में पानी --टाइप हुआ है जिसे सहीह करना है !!
कुछ आँखें किसी दूर के मंज़र पर टिकी हैं,
कुछ आँखों से हटती नहीं तस्वीर पुरानी---बहुत जानदार शेर है -कुछ लोगों में मुस्तकबिल की उमंग है और कुछ लोगों को उनका अतीत नहीं छोड़ रहा --बहुत खूब !!
सभी शेर अच्छे हैं !!
वाह...!
Post a Comment