मुद्दतों हमने किया, पागलपन
प्यार में शर्त-ए-वफ़ा पागलपन
मुद्दतों हमने किया, पागलपन
हमने आवाज़ उठाई हक की
जबकि लोगों ने कहा, पागलपन
जाने वालों को सदा देने से
सोच क्या तुझको मिला, पागलपन
लोग सच्चाई से कतरा के गए
मुझ पे ही टूट पड़ा, पागलपन
जब भी देखा कभी मुड़ कर पीछे
अपना माज़ी ही लगा, पागलपन
खो गए वस्ल के लम्हे "श्रद्धा"
मूंद मत आँख, ये क्या पागलपन
52 comments:
मुद्दतों बाद लौट कर आना और ऐसी ग़ज़ल दिखा जाना!
मेरी तो नानी-दादी सभी याद आ गईं.
लोग सच्चाई से कतरा के गए
मुझ पे ही टूट पड़ा, पागलपन
kya baat hai shardha ji...dil khush ho gaya!
शानदार!!!!!!!शानदार!!!!!
हमने आवाज़ उठाई हक की
जबकि लोगों ने कहा, पागलपन
भावपूर्ण रचना अभिव्यक्ति...आभार
अच्छी और प्रभावशाली ग़ज़ल...बघाई।
बहुत उम्दा लगी आप की यह गजल. धन्यवाद
जब भी देखा कभी मुड़ कर पीछे
अपना माज़ी ही लगा, पागलपन
love this :-)
बहुत सुन्दर रचना| धन्यवाद|
जाने वालों को सदा देने से
सोच क्या तुझको मिला, पागलपन
लोग सच्चाई से कतरा के गए
मुझ पे ही टूट पड़ा, पागलपन
सच दर्द से मन नम हो गया.
बहुत दिन बाद तुम्हे पढ़ना अच्छा लगा.
हमने आवाज़ उठाई हक की
जबकि लोगों ने कहा, पागलपन
जाने वालों को सदा देने से
सोच क्या तुझको मिला, पागलपन
ati sundar!
welcome back shraddhaa ji ,
प्यार में शर्त-ए-वफ़ा पागलपन
मुद्दतों हमने किया, पागलपन
बहुत ख़ूबसूरत मतला है
हमने आवाज़ उठाई हक की
जबकि लोगों ने कहा, पागलपन
हक़गोई को इसी नाम से पुकारा गया हमेशा ही
बहुत ख़ूब्सूरत ग़ज़ल
हमने आवाज़ उठाई हक की
जबकि लोगों ने कहा, पागलपन
yh sher pasand aaya.
इस पागलपन को सलाम।
3/10
छोटे बहर की काम चलाऊ ग़ज़ल
हाँ मतला जानदार है
chhote bahar ki khoobsoorat gazal .. aap chhoti chhoti anubhootiyon ko shiddat se mahsoos karatin hain .
लोग सच्चाई से कतरा के गए
मुझ पे ही टूट पड़ा, पागलपन
सर्वत साहब कि बात में बहुत दम है...मैं उनकी बात का अनुमोदन करता हूँ...बहुत अच्छी गज़ल कही है और गज़ल का रदीफ...सुभान अल्लाह...
नीरज
लोग सच्चाई से कतरा के गए
मुझ पे ही टूट पड़ा, पागलपन
-बहुत उम्दा शेर...वाह!! क्या गज़ल कही है.
ye pyara sa pagalpan achchha laga shraddha jee............shandaar!!
kahan se aise soch late ho?
bahut dino se aap meri blog pe nahi aayeeen!!
बहुत प्यारा है ये पागलपन।
हमने आवाज़ उठाई हक की
जबकि लोगों ने कहा, पागलपन
बहुत खूब। सुन्दर गज़ल। शुभकामनायें।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.............मन को छू गई............
खूब!
प्यार में शर्त-ए-वफ़ा पागलपन
मुद्दतों हमने किया, पागलपन
उम्दा ग़ज़ल !
श्रद्धा जी
मुद्दत बाद आप नज़र आयीं...
गज़लों उम्दा है हमेशा कि तरह च गयीं आप....
हमारा हाल भी सरवत भी जैसा है......
हमने आवाज़ उठाई हक की
जबकि लोगों ने कहा, पागलपन
क्या शेर कहा.......
*******
जब भी देखा कभी मुड़ कर पीछे
अपना माज़ी ही लगा, पागलपन
इस शेर कि तारीफ में कुछ भी कहने लायक नहीं रहा.......!
जब भी देखा कभी मुड़ कर पीछे
अपना माज़ी ही लगा, पागलपन ...
वाह .. कमाल की ग़ज़ल है ... सच है इस पागलपन का मज़ा भी कुछ अलग है .... हर शेर क़ाबिले तारीफ़ ...
Bahot Khub... :)
Go thr my blog also...
http://www.niceshayari-poems.blogspot.com/
बहुत अच्छे शेर कहें हैं आपने,
खासतौर से ये दो शेर तो ग़ज़ब ढा रहे हैं,
"हमने आवाज़ उठाई हक की
जबकि लोगों ने कहा, पागलपन"
"जब भी देखा कभी मुड़ कर पीछे
अपना माज़ी ही लगा, पागलपन"
आपको पढ़ना मुझे हमेशा अच्छा लगता है....
ऐसे ही लिखती रहें....
शुभ कामनाएं...
गीता
सुन्दर अभिव्यक्ति...
हमने आवाज़ उठाई हक की
जबकि लोगों ने कहा, पागलपन
अक्सर ऐसा होता है जो लोग कुछ सही करने की ठान कर आगे बढ़ते हैं इसी दुनिया के कुछ नासमझ लोग उन्हे पागल भी करार दे देते है..
श्रद्धा जी, हर एक शेर की तारीफ करता हूँ..बहुत दिनों के बाद आपकी ग़ज़ल आई पर बहुत बढ़िया...शुभकामनाएँ
हर शेर बढ़िया है श्रद्धा जी. यह तो सचमुच सच्चाई में भीगी गज़ल है - सहजवाला
लोग सच्चाई से कतरा के गए
मुझ पे ही टूट पड़ा, पागलपन
aisa pagaalpan prashansniya hai jo satya ke liye khada ho jaye!!!
''कोई खयाल तो नहीं हो तुम,
और कोई बेखयाल सी भी नहीं हो हरगिज।
प्रेम के उन नितांत अकेले /क्षणों की परिधि में
जो अधूरा रह गया हो/
बिछड़े हुए प्रेम के दिये ही जलते हैं, कोई मशाल नहीं। "
खूब लिखा है पागलपन
लोग सच्चाई से कतरा के गए
मुझ पे ही टूट पड़ा, पागलपन
जाने वालों को सदा देने से
सोच क्या तुझको मिला, पागलपन
सुश्री श्रद्धा जी कभी यही पागलपन है तो हर इंसान का पागल हो जाना ही बेहतर है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल। बधाई।
प्यार में शर्त-ए-वफ़ा पागलपन
मुद्दतों हमने किया, पागलपन
क्या कहने...वाह
जब भी देखा कभी मुड़ कर पीछे
अपना माज़ी ही लगा, पागलपन
बहुत अच्छा शेर है...
सभी शेर उम्दा हैं.
Hmne Aawaz Uthayi Hak Ki,
Jabki Logo Ne Kaha Pagalpan.
Ye Sher Samaj Ki Hakikat Se Rubru Karata He..
Umda Ghazal
Karim Pathan 'Anmol'
जब भी देखा कभी मुड़ कर पीछे
अपना माज़ी ही लगा, पागलपन
बहुत अच्छा कहा है श्रद्धा जी, आपने
अभार!
सादर
बहुत सुन्दर! बेहतरीन!
आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामना!
बहुत उम्दा, ख़ूब्सूरत गजल....
आपको दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें...
वाह !!! बहुत खुबसूरत गज़ल,
हर शेर उम्दा ||
इस तरह की गज़ल , बहुत कम पढने को मिला करती है ||
श्रद्धा जी आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा और..आपका कविता गजल सृजन बहुत जमा ... और भावनाएं डूब कर आती है आपकी रचना में ..बहुत सुन्दर ..
हमने आवाज़ उठाई हक की
जबकि लोगों ने कहा, पागलपन
जाने वालों को सदा देने से
सोच क्या तुझको मिला, पागलपन
वाह बहुत सुंदर बात कही है ......
दिल को छु लेनेवाली बात,,,,
मत्ले से मक्ते तक पूरी ग़ज़ल बेहतरीन.
कुँवर कुसुमेश
ब्लॉग:kunwarkusumesh.blogspot.com.
प्यार में शर्त-ए-वफ़ा पागलपन
मुद्दतों हमने किया, पागलपन
हमने आवाज़ उठाई हक की
जबकि लोगों ने कहा, पागलपन
जाने वालों को सदा देने से
सोच क्या तुझको मिला, पागलपन
ghazab ka likha hai didi.
... behad khoobsoorat gajal !!!
लोग सच्चाई से कतरा के गए
मुझ पे ही टूट पड़ा, पागलपन
प्यार में शर्त-ए-वफ़ा पागलपन
मुद्दतों हमने किया, पागलपन
जब भी देखा कभी मुड़ कर पीछे
अपना माज़ी ही लगा, पागलपन
well PARVIN ALLAHABADI Does not have words to express His pagalpan(words) for the Likness of this particular POEM.
All people who try to do somethig different, or who r not able to Adjust Himself with the Pace OF SOCIETY will defentely like this.
All POETS R Softhearted, Emotional People ,
&
लोग सच्चाई से कतरा के गए
मुझ पे ही टूट पड़ा, पागलपन
someone wrote somehwere was ...
Agar Mera Naam
" HUM"
Aur Tera Naam
" TUM"
Ab bataao PAGAL Kaun??????????
PARVIN ALLAHABADI
kitna accha likhte hain aap
humare blog per bhi visit kijiye
प्यार में शर्त-ए-वफ़ा पागलपन
मुद्दतों हमने किया, पागलपन
तारीफ़ से बाहर है मतला..
जब भी देखा कभी मुड़ कर पीछे
अपना माज़ी ही लगा, पागलपन
greeeeeeeeeeeeeeeeeet
जब कभी देखा आपका ये पागलपन
जान गए होता है क्या ये पागलपन
Wow Very nice . i like it… dil khush ho gya
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