Wednesday, October 20, 2010

मुद्दतों हमने किया, पागलपन

प्यार में शर्त-ए-वफ़ा पागलपन
मुद्दतों हमने किया, पागलपन

हमने आवाज़ उठाई हक की
जबकि लोगों ने कहा, पागलपन

जाने वालों को सदा देने से
सोच क्या तुझको मिला, पागलपन

लोग सच्चाई से कतरा के गए
मुझ पे ही टूट पड़ा, पागलपन

जब भी देखा कभी मुड़ कर पीछे
अपना माज़ी ही लगा, पागलपन

खो गए वस्ल के लम्हे "श्रद्धा"
मूंद मत आँख, ये क्या पागलपन

52 comments:

सर्वत एम० October 20, 2010 at 9:57 PM  

मुद्दतों बाद लौट कर आना और ऐसी ग़ज़ल दिखा जाना!
मेरी तो नानी-दादी सभी याद आ गईं.

सुरेन्द्र "मुल्हिद" October 20, 2010 at 9:57 PM  

लोग सच्चाई से कतरा के गए
मुझ पे ही टूट पड़ा, पागलपन

kya baat hai shardha ji...dil khush ho gaya!

सुधीर राघव October 20, 2010 at 10:12 PM  

शानदार!!!!!!!शानदार!!!!!

समयचक्र October 20, 2010 at 10:31 PM  

हमने आवाज़ उठाई हक की
जबकि लोगों ने कहा, पागलपन

भावपूर्ण रचना अभिव्यक्ति...आभार

महेन्‍द्र वर्मा October 20, 2010 at 11:06 PM  

अच्छी और प्रभावशाली ग़ज़ल...बघाई।

राज भाटिय़ा October 20, 2010 at 11:14 PM  

बहुत उम्दा लगी आप की यह गजल. धन्यवाद

प्रिया October 20, 2010 at 11:22 PM  

जब भी देखा कभी मुड़ कर पीछे
अपना माज़ी ही लगा, पागलपन

love this :-)

Patali-The-Village October 20, 2010 at 11:28 PM  

बहुत सुन्दर रचना| धन्यवाद|

अनामिका की सदायें ...... October 21, 2010 at 12:07 AM  

जाने वालों को सदा देने से
सोच क्या तुझको मिला, पागलपन

लोग सच्चाई से कतरा के गए
मुझ पे ही टूट पड़ा, पागलपन

सच दर्द से मन नम हो गया.
बहुत दिन बाद तुम्हे पढ़ना अच्छा लगा.

Parul kanani October 21, 2010 at 12:35 AM  

हमने आवाज़ उठाई हक की
जबकि लोगों ने कहा, पागलपन

जाने वालों को सदा देने से
सोच क्या तुझको मिला, पागलपन

ati sundar!

इस्मत ज़ैदी October 21, 2010 at 12:52 AM  

welcome back shraddhaa ji ,
प्यार में शर्त-ए-वफ़ा पागलपन
मुद्दतों हमने किया, पागलपन

बहुत ख़ूबसूरत मतला है

हमने आवाज़ उठाई हक की
जबकि लोगों ने कहा, पागलपन

हक़गोई को इसी नाम से पुकारा गया हमेशा ही
बहुत ख़ूब्सूरत ग़ज़ल

adbiichaupaal October 21, 2010 at 1:03 AM  

हमने आवाज़ उठाई हक की

जबकि लोगों ने कहा, पागलपन

yh sher pasand aaya.

राजेश उत्‍साही October 21, 2010 at 1:22 AM  

इस पागलपन को सलाम।

राजेश उत्‍साही October 21, 2010 at 1:22 AM  
This comment has been removed by the author.
उस्ताद जी October 21, 2010 at 3:47 AM  

3/10


छोटे बहर की काम चलाऊ ग़ज़ल
हाँ मतला जानदार है

प्रज्ञा पांडेय October 21, 2010 at 10:42 AM  

chhote bahar ki khoobsoorat gazal .. aap chhoti chhoti anubhootiyon ko shiddat se mahsoos karatin hain .

नीरज गोस्वामी October 21, 2010 at 1:25 PM  

लोग सच्चाई से कतरा के गए
मुझ पे ही टूट पड़ा, पागलपन

सर्वत साहब कि बात में बहुत दम है...मैं उनकी बात का अनुमोदन करता हूँ...बहुत अच्छी गज़ल कही है और गज़ल का रदीफ...सुभान अल्लाह...

नीरज

Udan Tashtari October 21, 2010 at 5:47 PM  

लोग सच्चाई से कतरा के गए
मुझ पे ही टूट पड़ा, पागलपन


-बहुत उम्दा शेर...वाह!! क्या गज़ल कही है.

मुकेश कुमार सिन्हा October 21, 2010 at 6:57 PM  

ye pyara sa pagalpan achchha laga shraddha jee............shandaar!!

kahan se aise soch late ho?

bahut dino se aap meri blog pe nahi aayeeen!!

Dr. Zakir Ali Rajnish October 21, 2010 at 7:43 PM  

बहुत प्यारा है ये पागलपन।

निर्मला कपिला October 21, 2010 at 10:45 PM  

हमने आवाज़ उठाई हक की
जबकि लोगों ने कहा, पागलपन
बहुत खूब। सुन्दर गज़ल। शुभकामनायें।

सु-मन (Suman Kapoor) October 21, 2010 at 11:35 PM  

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.............मन को छू गई............

Dr. Amar Jyoti October 22, 2010 at 9:23 PM  

खूब!

'साहिल' October 22, 2010 at 11:39 PM  

प्यार में शर्त-ए-वफ़ा पागलपन
मुद्दतों हमने किया, पागलपन

उम्दा ग़ज़ल !

Pawan Kumar October 23, 2010 at 2:31 PM  

श्रद्धा जी
मुद्दत बाद आप नज़र आयीं...
गज़लों उम्दा है हमेशा कि तरह च गयीं आप....
हमारा हाल भी सरवत भी जैसा है......

हमने आवाज़ उठाई हक की
जबकि लोगों ने कहा, पागलपन
क्या शेर कहा.......
*******
जब भी देखा कभी मुड़ कर पीछे
अपना माज़ी ही लगा, पागलपन
इस शेर कि तारीफ में कुछ भी कहने लायक नहीं रहा.......!

दिगम्बर नासवा October 25, 2010 at 2:24 PM  

जब भी देखा कभी मुड़ कर पीछे
अपना माज़ी ही लगा, पागलपन ...

वाह .. कमाल की ग़ज़ल है ... सच है इस पागलपन का मज़ा भी कुछ अलग है .... हर शेर क़ाबिले तारीफ़ ...

Sonali Bhogle October 25, 2010 at 5:12 PM  

Bahot Khub... :)
Go thr my blog also...
http://www.niceshayari-poems.blogspot.com/

Ankit October 26, 2010 at 2:01 PM  

बहुत अच्छे शेर कहें हैं आपने,
खासतौर से ये दो शेर तो ग़ज़ब ढा रहे हैं,
"हमने आवाज़ उठाई हक की
जबकि लोगों ने कहा, पागलपन"

"जब भी देखा कभी मुड़ कर पीछे
अपना माज़ी ही लगा, पागलपन"

गीता पंडित October 27, 2010 at 11:55 AM  

आपको पढ़ना मुझे हमेशा अच्छा लगता है....
ऐसे ही लिखती रहें....

शुभ कामनाएं...
गीता

फ़िरदौस ख़ान October 29, 2010 at 6:15 PM  

सुन्दर अभिव्यक्ति...

विनोद कुमार पांडेय October 30, 2010 at 12:03 PM  

हमने आवाज़ उठाई हक की
जबकि लोगों ने कहा, पागलपन

अक्सर ऐसा होता है जो लोग कुछ सही करने की ठान कर आगे बढ़ते हैं इसी दुनिया के कुछ नासमझ लोग उन्हे पागल भी करार दे देते है..

श्रद्धा जी, हर एक शेर की तारीफ करता हूँ..बहुत दिनों के बाद आपकी ग़ज़ल आई पर बहुत बढ़िया...शुभकामनाएँ

Prem Chand Sahajwala October 31, 2010 at 3:23 PM  

हर शेर बढ़िया है श्रद्धा जी. यह तो सचमुच सच्चाई में भीगी गज़ल है - सहजवाला

अनुपमा पाठक October 31, 2010 at 4:54 PM  

लोग सच्चाई से कतरा के गए
मुझ पे ही टूट पड़ा, पागलपन
aisa pagaalpan prashansniya hai jo satya ke liye khada ho jaye!!!

Unknown October 31, 2010 at 10:39 PM  

''कोई खयाल तो नहीं हो तुम,
और कोई बेखयाल सी भी नहीं हो हरगिज।
प्रेम के उन नितांत अकेले /क्षणों की परिधि में
जो अधूरा रह गया हो/
बिछड़े हुए प्रेम के दिये ही जलते हैं, कोई मशाल नहीं। "


खूब लिखा है पागलपन

Unknown November 1, 2010 at 5:08 PM  

लोग सच्चाई से कतरा के गए
मुझ पे ही टूट पड़ा, पागलपन

जाने वालों को सदा देने से
सोच क्या तुझको मिला, पागलपन

सुश्री श्रद्धा जी कभी यही पागलपन है तो हर इंसान का पागल हो जाना ही बेहतर है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल। बधाई।

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' November 2, 2010 at 2:45 PM  

प्यार में शर्त-ए-वफ़ा पागलपन
मुद्दतों हमने किया, पागलपन
क्या कहने...वाह
जब भी देखा कभी मुड़ कर पीछे
अपना माज़ी ही लगा, पागलपन
बहुत अच्छा शेर है...
सभी शेर उम्दा हैं.

KARIM PATHAN Anmol November 2, 2010 at 9:40 PM  

Hmne Aawaz Uthayi Hak Ki,
Jabki Logo Ne Kaha Pagalpan.

Ye Sher Samaj Ki Hakikat Se Rubru Karata He..

Umda Ghazal
Karim Pathan 'Anmol'

अमिताभ त्रिपाठी ’ अमित’ November 3, 2010 at 10:51 AM  

जब भी देखा कभी मुड़ कर पीछे
अपना माज़ी ही लगा, पागलपन
बहुत अच्छा कहा है श्रद्धा जी, आपने
अभार!
सादर

nilesh mathur November 4, 2010 at 12:40 PM  

बहुत सुन्दर! बेहतरीन!
आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामना!

Dr.Ajmal Khan November 5, 2010 at 10:07 PM  

बहुत उम्दा, ख़ूब्सूरत गजल....

आपको दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें...

Shayar Ashok : Assistant manager (Central Bank) November 8, 2010 at 11:23 AM  

वाह !!! बहुत खुबसूरत गज़ल,
हर शेर उम्दा ||

इस तरह की गज़ल , बहुत कम पढने को मिला करती है ||

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति November 8, 2010 at 8:49 PM  

श्रद्धा जी आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा और..आपका कविता गजल सृजन बहुत जमा ... और भावनाएं डूब कर आती है आपकी रचना में ..बहुत सुन्दर ..

Unknown November 8, 2010 at 9:50 PM  

हमने आवाज़ उठाई हक की
जबकि लोगों ने कहा, पागलपन

जाने वालों को सदा देने से
सोच क्या तुझको मिला, पागलपन


वाह बहुत सुंदर बात कही है ......

दिल को छु लेनेवाली बात,,,,

Kunwar Kusumesh November 12, 2010 at 12:03 AM  

मत्ले से मक्ते तक पूरी ग़ज़ल बेहतरीन.

कुँवर कुसुमेश
ब्लॉग:kunwarkusumesh.blogspot.com.

शिवांश शर्मा November 19, 2010 at 9:29 PM  

प्यार में शर्त-ए-वफ़ा पागलपन
मुद्दतों हमने किया, पागलपन

हमने आवाज़ उठाई हक की
जबकि लोगों ने कहा, पागलपन

जाने वालों को सदा देने से
सोच क्या तुझको मिला, पागलपन



ghazab ka likha hai didi.

नया सवेरा November 21, 2010 at 8:19 AM  

... behad khoobsoorat gajal !!!

प्रदीप कांत November 21, 2010 at 10:23 PM  

लोग सच्चाई से कतरा के गए
मुझ पे ही टूट पड़ा, पागलपन

PARVIN ALLAHABADI November 24, 2010 at 7:48 AM  

प्यार में शर्त-ए-वफ़ा पागलपन
मुद्दतों हमने किया, पागलपन

जब भी देखा कभी मुड़ कर पीछे
अपना माज़ी ही लगा, पागलपन
well PARVIN ALLAHABADI Does not have words to express His pagalpan(words) for the Likness of this particular POEM.
All people who try to do somethig different, or who r not able to Adjust Himself with the Pace OF SOCIETY will defentely like this.
All POETS R Softhearted, Emotional People ,
&
लोग सच्चाई से कतरा के गए
मुझ पे ही टूट पड़ा, पागलपन
someone wrote somehwere was ...
Agar Mera Naam
" HUM"
Aur Tera Naam
" TUM"
Ab bataao PAGAL Kaun??????????
PARVIN ALLAHABADI

Anonymous January 26, 2011 at 8:45 AM  

kitna accha likhte hain aap
humare blog per bhi visit kijiye

manu June 13, 2011 at 2:03 PM  

प्यार में शर्त-ए-वफ़ा पागलपन
मुद्दतों हमने किया, पागलपन

तारीफ़ से बाहर है मतला..



जब भी देखा कभी मुड़ कर पीछे
अपना माज़ी ही लगा, पागलपन
greeeeeeeeeeeeeeeeeet

shyam gupta November 16, 2012 at 9:22 PM  

जब कभी देखा आपका ये पागलपन
जान गए होता है क्या ये पागलपन

sayitsmartly.com June 21, 2017 at 1:32 AM  

Wow Very nice . i like it… dil khush ho gya

www.blogvani.com

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