tag:blogger.com,1999:blog-72950723387520717392024-03-14T13:59:10.152+08:00भीगी ग़ज़लएहसास की रवानी है ग़ज़ल, मेरी अपनी कहानी है ग़ज़ल...श्रद्धा जैनhttp://www.blogger.com/profile/08270461634249850554noreply@blogger.comBlogger45125tag:blogger.com,1999:blog-7295072338752071739.post-51710415608413399922012-10-30T23:45:00.002+08:002012-10-30T23:45:45.692+08:00जाने वाले कब लौटे हैं क्यूँ करते हैं वादे लोग<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
जाने वाले कब लौटे हैं क्यूँ करते हैं वादे लोग <br />नासमझी में मर जाते हैं हम से सीधे सादे लोग <br /><br />पूछा बच्चों ने नानी से - हमको ये बतलाओ ना<br />क्या सचमुच होती थी परियां, होते थे शहज़ादे लोग ?<br /><br />टूटे सपने, बिखरे अरमां, दाग़ ए दिल और ख़ामोशी<br />कैसे जीते हैं जीवन भर इतना बोझा लादे लोग<br /><br />अम्न, वफ़ा, नेकी, सच्चाई, हमदर्दी की बात करें<br />इस दुनिया में मिलते है अब, ओढ़े कितने लबादे लोग<br /><br />कट कर रहते - रहते हम पर वहशत तारी हो गई है <br />ए मेरी तन्हाई जा तू, और कहीं के ला दे लोग</div>
श्रद्धा जैनhttp://www.blogger.com/profile/08270461634249850554noreply@blogger.com31tag:blogger.com,1999:blog-7295072338752071739.post-13333277434160024092011-09-14T23:12:00.000+08:002011-09-14T23:14:30.024+08:00क्या कभी सोचे गए हमअजनबी खुद को लगे हम<br />इस कदर तन्हा हुए हम<br /><br />उम्र भर इस सोच में थे<br />क्या कभी सोचे गए हम<br /><br />खूबसूरत ज़िंदगी थी<br />तुम से मिलकर जब बने हम <br /><br />चाँद दरिया में खड़ा था<br />आसमाँ तकते रहे हम<br /><br />सुबह को आँखों में रख कर<br />रात भर पल - पल जले हम<br /><br />खो गए हम भीड़ में जब<br />फिर बहुत ढूँढे गए हम<br /><br />इस ज़मीं से आसमां तक<br />था जुनूँ उलझे रहे हम<div><br /></div><div>जीस्त के रस्ते बहुत थे<br />हर तरफ रोके गए हम<br /><br />लफ्ज़ जब उरियाँ हुए तो <br />फिर बहुत रुसवा हुए हम<br /><br />जागने का ख़्वाब ले कर<br />देर तक सोते रहे हम<br /><br />तेरे सच को पढ़ लिया था <br />बस इसी खातिर मिटे हम</div>श्रद्धा जैनhttp://www.blogger.com/profile/08270461634249850554noreply@blogger.com52tag:blogger.com,1999:blog-7295072338752071739.post-49548740471080894462011-06-07T18:45:00.001+08:002011-06-07T18:45:59.370+08:00चुन लिया सुबह के सूरज का उजाला मैंनेअपने हर दर्द को अशआर में ढाला मैंने<br />ऐसे रोते हुए लोगों को संभाला मैंने<br /><br />शाम कुछ देर ही बस सुर्ख़ रही, हालांकि<br />खून अपना तो बहुत देर उबाला मैंने<br /><br />बच्चे कहते हैं कि एहसान नहीं फ़र्ज़ था वो<br />अपनी ममता का दिया जब भी हवाला मैंने<br /><br />कभी सरकार पे, किस्मत पे, कभी दुनिया पर<br />दोष हर बात का औरों पे ही डाला मैंने<br /><br />लोग रोटी के दिलासों पे यहाँ बिकते हैं<br />जब कि ठुकरा दिया सोने का निवाला मैंने<br /> <br />आप को शब् के अँधेरे से मुहब्बत है, रहे<br />चुन लिया सुबह के सूरज का उजाला मैंने<br /><br />आज के दौर में सच बोल रही हूँ 'श्रद्धा'<br />अक्ल पर अपनी लगा रक्खा है ताला मैंनेश्रद्धा जैनhttp://www.blogger.com/profile/08270461634249850554noreply@blogger.com48tag:blogger.com,1999:blog-7295072338752071739.post-51879496761652220592011-02-12T14:57:00.002+08:002011-02-12T14:59:04.275+08:00मेरी गजलों में महक होगी, तरावत होगीजब कभी मुझको गम-ए-यार से फुर्सत होगी<br />मेरी गजलों में महक होगी, तरावत होगी <br />तरावत= ताज़गी<br /><br />भुखमरी, क़ैद, गरीबी कभी तन्हाई, घुटन<br />सच की इससे भी जियादा कहाँ कीमत होगी<br /><br />धूप-बारिश से बचा लेगा बड़ा पेड़ मगर<br />नन्हे पौधों को पनपने में भी दिक्क़त होगी<br /><br />बेटियों के ही तो दम से है ये दुनिया कायम<br />कोख में इनको जो मारा तो क़यामत होगी<br /><br />आज होंठों पे मेरे खुल के हंसी आई है<br />मुझको मालूम है उसको बड़ी हैरत होगी<br /><br />नाज़ सूरत पे, कभी धन पे, कभी रुतबे पर<br />ख़त्म कब लोगों की आखिर ये जहालत होगी<br /><br />जुगनुओं को भी निगाहों में बसाए रखना <br />काली रातों में उजालों की ज़रूरत होगी<br /><br />वक़्त के साथ अगर ढल नहीं पाईं 'श्रद्धा'<br />ज़िंदगी कुछ नहीं बस एक मुसीबत होगीश्रद्धा जैनhttp://www.blogger.com/profile/08270461634249850554noreply@blogger.com58tag:blogger.com,1999:blog-7295072338752071739.post-41166906123771556932011-01-16T22:47:00.004+08:002011-01-16T22:49:35.816+08:00टूटे हुए दिल की है बस इतनी-सी कहानीशीशे के बदन को मिली पत्थर की निशानी<br />टूटे हुए दिल की है बस इतनी-सी कहानी<br /><br />फिर कोई कबीले से कहीं दूर चला है<br />बग़िया में किसी फूल पे आई है जवानी<br /><br />कुछ आँखें किसी दूर के मंज़र पर टिकी हैं<br />कुछ आँखों से हटती नहीं तस्वीर पुरानी<br /><br />औरत के इसी रूप से डर जाते हैं अब लोग<br />आँचल भी नहीं सर पे नहीं आँख में पानी<br /><br />तालाब है, नदियाँ हैं, समुन्दर है पर अफ़सोस<br />हमको तो मयस्सर नहीं इक बूंद भी पानी<br /><br />छप्पर हो, महल हो, लगे इक जैसे ही दोनों<br />घर के जो समझ आ गए ‘श्रद्धा’ को मआनीश्रद्धा जैनhttp://www.blogger.com/profile/08270461634249850554noreply@blogger.com53tag:blogger.com,1999:blog-7295072338752071739.post-14987476816096919992010-11-25T23:15:00.002+08:002010-11-25T23:19:46.451+08:00तिश्नगी थोड़ी बढ़ाकर देखनातिश्नगी थोड़ी बढ़ाकर देखना<br />सूख जाएगा समुन्दर देखना<br /><br />अपनी आदत, अपने अन्दर देखना<br />देखना खुद को निरंतर देखना<br /><br />हर बुलंदी पर है तन्हाई बहुत<br />सख्त मुश्किल है सिकंदर देखना<br /><br />शाख से टूटा हुआ पत्ता हूँ मैं<br />देखना मेरा मुक़द्दर देखना<br /><br />खून जिनका धर्म और ईमान है<br />उनके छज्जे पर कबूतर देखना<br /><br />झूठ-सच का फैसला लेना हो जब<br />चीखता है कौन अन्दर देखना<br /><br />मेरा और साहिल का रिश्ता है अजब<br />दोनों के रस्ते में पत्थर, देख ना!श्रद्धा जैनhttp://www.blogger.com/profile/08270461634249850554noreply@blogger.com52tag:blogger.com,1999:blog-7295072338752071739.post-3029448659287352902010-10-20T21:41:00.003+08:002010-10-20T21:52:39.508+08:00मुद्दतों हमने किया, पागलपनप्यार में शर्त-ए-वफ़ा पागलपन<br />मुद्दतों हमने किया, पागलपन<br /><br />हमने आवाज़ उठाई हक की<br />जबकि लोगों ने कहा, पागलपन<br /><br />जाने वालों को सदा देने से<br />सोच क्या तुझको मिला, पागलपन<br /><br />लोग सच्चाई से कतरा के गए<br />मुझ पे ही टूट पड़ा, पागलपन<br /><br />जब भी देखा कभी मुड़ कर पीछे<br />अपना माज़ी ही लगा, पागलपन<br /><br />खो गए वस्ल के लम्हे "श्रद्धा"<br />मूंद मत आँख, ये क्या पागलपनश्रद्धा जैनhttp://www.blogger.com/profile/08270461634249850554noreply@blogger.com52tag:blogger.com,1999:blog-7295072338752071739.post-51869210022401245122010-08-07T00:15:00.002+08:002010-08-07T00:19:04.387+08:00कीड़ा मीठे में पड़ते देखा हैहमने गुलशन उजड़ते देखा है<br />भाई-भाई को लड़ते देखा है<br /><br />इतनी वहशत जुदाई से 'तौबा'<br />ख़्वाब तक में बिछड़ते देखा है<br /><br />बोझ नजदीकियाँ न बन जाएँ<br />कीड़ा मीठे में पड़ते देखा है<br /><br />एक बस दिल की बात सुनने में<br />हमने रिश्ते बिगड़ते देखा है<br /><br />अब तो गर्दन बचाना है मुश्किल<br />पाँव उनको पकड़ते देखा है<br /><br />हार दुनिया ने मान ली "श्रद्धा"<br />जब तुझे जिद पे अड़ते देखा हैश्रद्धा जैनhttp://www.blogger.com/profile/08270461634249850554noreply@blogger.com83tag:blogger.com,1999:blog-7295072338752071739.post-50942741082138337682010-08-01T01:40:00.002+08:002010-08-01T01:47:22.739+08:00वो सारे ज़ख़्म पुराने, बदन में लौट आए<p>वो सारे ज़ख़्म पुराने, बदन में लौट आए<br />गली से उनकी जो गुज़रे, थकन में लौट आए<br /><br />हवा उड़ा के कहीं दूर ले गई जब भी<br />सफ़र तमाम किया और वतन में लौट आए<br /><br />जो शहरे इश्क था, वो कुछ नहीं था, सहरा था<br />खुली जो आँख तो हम फिर से वन में लौट आए<br /><br />बहार लूटी है मैंने कभी, कभी तुमने<br />बहाने अश्क़ भी हम ही चमन में लौट आए<br /><br />ये किसने प्यार से बोसा रखा है माथे पर<br />कि रंग, ख़ुशबू, घटा, फूल, मन में लौट आए<br /><br />गए जो ढूँढने खुशियाँ तो हार कर "श्रद्धा"<br />उदासियों की उसी अंजुमन में लौट आए</p>श्रद्धा जैनhttp://www.blogger.com/profile/08270461634249850554noreply@blogger.com51tag:blogger.com,1999:blog-7295072338752071739.post-16493219898791257802010-06-25T17:19:00.003+08:002010-06-27T01:26:40.088+08:00काश बदली से कभी धूप निकलती रहतीकाश बदली से कभी धूप निकलती रहती<br />ज़ीस्त उम्मीद के साए में ही पलती रहती<br /><br />ज़ख्म कैसे भी हों भर जाते हैं रफ़्ता रफ़्ता<br />ज़िंदगी ठोकरें खा- खा के, संभलती रहती<br /><br />फ़र्ज़ दुनिया के निभाने में गुज़र जाए दिन<br />और हर रात तेरी याद मचलती रहती<br /><span style="font-size:0pt;"></span><br /><span></span>पाँव फैलाए अँधेरा है हर इक कोने में<br />ज्योति हालाँकि हर इक बाम पे जलती रहती<br /><br />शांत दिखता है समुन्दर भी लिए गहराई<br />जब के नदिया की लहर खूब उछलती रहती<br /><br />तू अगर होती खिलौना तो बहुत बेहतर था<br />तुझसे “श्रद्धा” ये तबीयत ही बहलती रहती<br /><span></span><br />बाम - छज्जा<br />ज़ीस्त - ज़िंदगीश्रद्धा जैनhttp://www.blogger.com/profile/08270461634249850554noreply@blogger.com73tag:blogger.com,1999:blog-7295072338752071739.post-23827557005038378502010-05-26T21:11:00.001+08:002010-05-26T21:14:13.290+08:00आखिर हमारे चाहने वाले कहाँ गएरोशन थे आँखों में, वो उजाले कहाँ गए<br />आखिर, हमारे चाहने वाले कहाँ गए<br /><br />रिश्तों पे देख, पड़ गया अफवाहों का असर<br />वाबस्तगी के सारे हवाले कहाँ गए<br /><br />गम दूसरों के बाँट के, खुशयां बिखेर दें<br />थे ऐसे कितने लोग निराले, कहाँ गए<br /><br />आग़ाज़ अजनबी की तरह, हमने फिर किया<br />काँटे मगर दिलों से निकाले कहाँ गए<br /><br />मुश्किल सफ़र ने इतना किया हौसला बुलंद<br />हैरत है मेरे पाँव के छाले कहाँ गए <br /><br />बस शोर हो रहा था कि मोती तलाशिए<br />नदिया, समुद्र, झील, खंगाले कहाँ गए<br /><br />“श्रद्धा” के ख़्वाब रेत के महलों की तरह थे<br />तूफ़ान में निशाँ भी संभाले कहाँ गएश्रद्धा जैनhttp://www.blogger.com/profile/08270461634249850554noreply@blogger.com80tag:blogger.com,1999:blog-7295072338752071739.post-63038250142135050032010-04-25T23:49:00.015+08:002010-04-26T00:38:53.020+08:00यूँ प्यार को आज़माना नहीं था<p>कल रात एक मित्र से मेरे ग़ज़ल के सफ़र की चर्चा हो रही थी , चर्चा के दौरान शुरूवाती दौर में कही गई गजलों का जिक्र आया बस मन हुआ कि एक पुरानी ग़ज़ल पोस्ट की जाए </p><p><span style="font-size:0;"></span></p><p><span style="font-size:0;"></span></p><p><span style="font-size:0;"></span><span style="font-size:0;"></span></p><p><span style="font-size:0;"></span></p><p><br /><br />दूरी को अपनी बढ़ाना नहीं था<br />यूँ प्यार को आज़माना नहीं था<br /><br /><br />उसने न टोका न दामन ही थामा<br /></p><p>रुकने का कोई बहाना नहीं था</p><p><span style="font-size:0;"></span><br /><br /><br />चादर पे ख़ुशबू थी उसके बदन की<br /></p><p>जागे तो उसका ठिकाना नहीं था<br /><br /><br /></p><p><span style="font-size:0;"></span></p><p><br />दामन पर उसके कई दाग आए<br />आँसू उसे यूँ, गिराना नहीं था<br /></p><p><br />उल्फत में कैसे वफ़ा मिलती "श्रद्धा"<br />किस्मत में जब ये खज़ाना नहीं था<br /></p>श्रद्धा जैनhttp://www.blogger.com/profile/08270461634249850554noreply@blogger.com50tag:blogger.com,1999:blog-7295072338752071739.post-46050156401695356172010-04-24T14:05:00.006+08:002010-04-24T14:33:08.445+08:00मेरी ग़ज़लों की चोरीइंटरनेट ने जहाँ एक ओर लेखकों को ऐसा मंच उपलब्ध कराया है जिसके ज़रिये वे आसानी से अपने विचारों को पाठकों तक पँहुचा सकते हैं वहीं दूसरी ओर इस सुविधा ने बौद्धिक सम्पदा के चोरी किये जाने को भी आसान बना दिया है। बहुत आसानी से लोग Ctrl+C और Ctrl+V का प्रयोग कर सामग्री कॉपी कर लेते हैं और उसे स्वरचित बता कर बेशर्मी के साथ प्रस्तुत करते हैं। इसके कई स्पष्ट उदाहरण पिछले दो दिनों में मेरे सामने आये हैं।<br /><strong>नीचे दिये गये ब्लॉग्स को चलाने वाले व्यक्तियों ने मेरी ग़ज़लों को कॉपी कर अपने नाम से प्रस्तुत किया है: </strong><br /><br /><a href="http://aapkaahsas.blogspot.com/">http://aapkaahsas.blogspot.com/</a><br /><br /><br />सारी ही ग़ज़लें / रचनाएँ मेरी हैं <br /><br /><a href="http://vikalpremember.blogspot.com/">http://vikalpremember.blogspot.com/</a><br /><br />पहली दोनों ग़ज़लें मेरी है<br /><br /><a href="http://my.indyarocks.com/blogs/blog_visiterview_main.php?id=54460#blog54460">http://my.indyarocks.com/blogs/blog_visiterview_main.php?id=54460#blog54460</a><br /><br />सारी ही ग़ज़लें / रचनाएँ मेरी हैं <br /><br /><a href="http://kumar-ahesashhitohai.blogspot.com/">http://kumar-ahesashhitohai.blogspot.com/</a><br /><br />पहली पोस्ट में मेरी २-३ ग़ज़लें एक साथ पोस्ट की गयीं है<br /><br />बहुत बार ऐसा होता है कि किसी को कोई ग़ज़ल या कविता पसंद आती है तो वह व्यक्ति उसे अपने ब्लॉग पर पोस्ट कर देता है लेकिन रचयिता का नाम देना भूल जाता है। ऐसे लोग इरादतन यह नहीं करते लेकिन उन्हें ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिये; रचना के रचयिता का नाम अवश्य ही रचना के साथ दिया जाना चाहिये। ऊपर दिये गये ब्लॉग्स "ग़ैर-इरादतन की गई ग़लती" की श्रेणी में नहीं आते क्योंकि इन लोगों ने एक-दो नहीं बल्कि मेरी बहुत-सी रचनाओं को कॉपी किया है। साथ ही इन्होनें कई जगह <strong>मेरी ग़ज़लों के मक़्तों में से मेरा तखल्लुस "श्रद्धा" भी हटा दिया है।</strong><br /><br /><strong>इस तरह के कार्यों की निंदा की जानी चाहिये और ब्लॉगर समुदाय को ऐसे लोगो के ब्लॉग्स का परित्याग करने के अलावा और भी कदम उठाने चाहियें जिससे ये लोग शर्मसार और हतोत्साहित महसूस करें।</strong><br /><br />मैं इस पोस्ट के ज़रिये इन लोगो और इनके ब्लॉग्स को अपने सुधी पाठकों के ध्यान में लाना चाहती थी। इस तरह चोरी के कार्यों से साहित्य का कोई भला नहीं होता और हिन्दी ब्लॉग जगत के प्रति लोगो का विश्वास भी टूटता है।<br /><br /><br />जिन दोस्तों ने मेरी ग़ज़लों की हो रही चोरी के सम्बंध में मुझे जानकारी दी मैं उनकी शुक्रगुज़ार हूँ।<br />धन्यवाद<br /><br />श्रद्धा जैनश्रद्धा जैनhttp://www.blogger.com/profile/08270461634249850554noreply@blogger.com64tag:blogger.com,1999:blog-7295072338752071739.post-66950772670167791732010-04-12T23:54:00.007+08:002010-04-15T21:45:54.542+08:00फूल, ख़ुशबू, चाँद, जुगनू और सितारे आ गएफूल, ख़ुशबू, चाँद, जुगनू और सितारे आ गए <br />खुद-ब-खुद ग़ज़लों में अफ़साने तुम्हारे आ गए <br /><br />रूह को आदाब दिल के, थे सिखाने पर तुले<br />पर उसे तो ज़िस्म वाले सब इशारे आ गए <br /><br />आंसुओं से सींची है, शायद ज़मीं ने फ़स्ल ये<br />क्या तअज्जुब पेड़ पर ये फल जो खारे आ गए<br /><br />हमको भी अपनी मुहब्बत पर हुआ तब ही यकीं <br />हाथ में पत्थर लिए जब लोग सारे आ गए<br /><br />उम्र भर फल-फूल ले, जो छाँव में पलते रहे<br />पेड़ बूढ़ा हो गया, वो लेके आरे आ गए<br /><br />मैंने मन की बात ’श्रद्धा’ ज्यों की त्यों रखी मगर<br />लफ्ज़ में जाने कहां से ये शरारे आ गएश्रद्धा जैनhttp://www.blogger.com/profile/08270461634249850554noreply@blogger.com50tag:blogger.com,1999:blog-7295072338752071739.post-25757797299174043732010-02-11T20:44:00.002+08:002010-02-11T20:50:41.214+08:00क़दम-क़दम पे मिलेंगे, मेरी वफ़ा के चराग़पलट के देखेगा माज़ी, तू जब उठा के चराग़<br />क़दम-क़दम पे मिलेंगे, मेरी वफ़ा के चराग़<br /><br />नहीं है रोशनी उनके घरों में, जो दिन भर<br />सड़क पे बेच रहे थे, बना-बना के चराग़<br /><br />कठिन घड़ी हो, कोई इम्तिहान देना हो<br />जला के रखती है राहों में, माँ दुआ के चराग़ <br /><br />ये लम्स तेरा, बदन रोशनी से भर देगा <br />किताब-ए-ज़िस्म को पढ़ना, ज़रा बुझा के चराग़<br /><br />करो जो इनसे मुहब्बत, तो हो जहाँ रोशन<br />यतीम बच्चे नहीं, ये तो हैं खुदा के चराग़<br /><br />उजाला बांटना आसान तो नहीं 'श्रद्धा'<br />चली हैं आंधियां जब भी रखे जला के चराग़<br /><br />लम्स- स्पर्शश्रद्धा जैनhttp://www.blogger.com/profile/08270461634249850554noreply@blogger.com88tag:blogger.com,1999:blog-7295072338752071739.post-14525207447939853802010-01-24T11:43:00.006+08:002010-01-24T22:49:14.797+08:00अज़ीब शख़्स था, आँखों में ख़्वाब छोड़ गयाअज़ीब शख़्स था, आँखों में ख़्वाब छोड़ गया<br />वो मेरी मेज़ पे, अपनी किताब छोड़ गया <br /><br />नज़र मिली तो अचानक झुका के वो नज़रें<br />मेरे सवाल के कितने जवाब छोड़ गया<br /><br />उसे पता था, कि तन्हा न रह सकूँगी मैं <br />वो गुफ़्तगू के लिए, माहताब छोड़ गया<br /><br />गुमान हो मुझे उसका, मिरे सरापे पर<br />ये क्या तिलिस्म है, कैसा सराब छोड़ गया<br /><br />सहर के डूबते तारे की तरह बन 'श्रद्धा'<br />हरिक दरीचे पे जो आफताब छोड़ गया <br /> <br />अज़ाब – punishment / Pain<br />सराब- Illusion<br />आफताब- Sunश्रद्धा जैनhttp://www.blogger.com/profile/08270461634249850554noreply@blogger.com75tag:blogger.com,1999:blog-7295072338752071739.post-60819481982516352352010-01-17T11:42:00.007+08:002010-01-24T11:12:49.031+08:00हमको भी समझ फूल या पत्थर नहीं आतेहमको भी समझ फूल या पत्थर नहीं आते <br />दुश्मन की तरह दोस्त अगर घर नहीं आते <br /><br />नज़दीक बहुत गर रहे, बन जाओगे आदत<br />ये सोच के, मिलने तुम्हें अक्सर नहीं आते <br /><br />जिस दिन से मैं ले आई हूँ बाज़ार से पिंजरा<br />उस रोज से, छज्जे पे कबूतर नहीं आते<br /> <br />मिल जाए नया ज़ख़्म तो फिर कोई ग़ज़ल हो<br />अब ज़हन में अल्फ़ाज़ के पैकर नहीं आते<br /><br />बिस्तर पे कभी करवटें बदलें वो भी 'श्रद्धा'<br />आँखों में ये नायाब से मंजर नहीं आते.<br /><br />पैकर – आकृतिश्रद्धा जैनhttp://www.blogger.com/profile/08270461634249850554noreply@blogger.com71tag:blogger.com,1999:blog-7295072338752071739.post-14440906937338701682010-01-03T23:17:00.006+08:002010-01-03T23:43:22.226+08:00कोई पत्थर तो नहीं हूँ , कि ख़ुदा हो जाऊँकैसे मुमकिन है, ख़मोशी से फ़ना हो जाऊँ<br />कोई पत्थर तो नहीं हूँ, कि ख़ुदा हो जाऊँ<br /><br />फ़ैसले सारे उसी के हैं, मिरे बाबत भी <br />मैं तो औरत हूँ कि राज़ी-ओ-रज़ा हो जाऊँ<br /><br />धूप में साया, सफ़र में हूँ कबा फूलों की <br />मैं अमावस में सितारों की जिया हो जाऊँ<br /><br />मैं मुहब्बत हूँ, मुहब्बत तो नहीं मिटती है<br />एक ख़ुश्बू हूँ , जो बिखरूँ तो सबा हो जाऊँ<br /><br />गर इजाज़त दे ज़माना, तो मैं जी लूँ इक ख़्वाब<br />बेड़ियाँ तोड़ के आवारा हवा हो जाऊँ<br /><br />रात भर पहलूनशीं हों वो कभी “श्रद्धा” के <br />रात कट जाए तो, क्या जानिये क्या हो जाऊँ<br /><br />फ़ना = तबाह <br />कबा = लिबास <br />जिया = चमक, रोशनी<br />सबा = ठंडी हवाश्रद्धा जैनhttp://www.blogger.com/profile/08270461634249850554noreply@blogger.com71tag:blogger.com,1999:blog-7295072338752071739.post-43589852588710999732009-11-13T23:12:00.000+08:002009-11-13T23:13:51.336+08:00कितना आसान लगता थाNazm,<br /><br />कितना आसान लगता था <br />ख़्वाब में नए रंग भरना <br />आसमाँ मुट्ठी में करना <br />ख़ुश्बू से आँगन सजाना <br />बरसात में छत पर नहाना <br /><br />कितना आसान लगता था<br /> <br />दौड़ कर तितली पकड़ना<br />हर बात पर ज़िद में झगड़ना<br />झील में नए गुल खिलाना <br />कश्तियों में, पार जाना <br /><br />कितना आसान लगता था <br /><br />जिंदगी में पर हक़ीक़त <br />ख्याल सी बिलकुल नहीं है <br />जिंदगी समझौता है इक<br />कोई जिद चलती नहीं है<br /> <br />जिंदगी में पर हक़ीक़त <br />सोच सी बिलकुल नहीं हैश्रद्धा जैनhttp://www.blogger.com/profile/08270461634249850554noreply@blogger.com48tag:blogger.com,1999:blog-7295072338752071739.post-8223815025836210812009-10-25T01:27:00.004+08:002009-11-03T14:36:19.051+08:00हँस के जीवन काटने का मशवरा देते रहेहँस के जीवन काटने का, मशवरा देते रहे<br />आँख में आँसू लिए हम, हौसला देते रहे.<br /><br />धूप खिलते ही परिंदे, जाएँगे उड़, था पता<br />बारिशों में पेड़ फिर भी, आसरा देते रहे<br /><br />जो भी होता है, वो अच्छे के लिए होता यहाँ<br />इस बहाने ही तो हम, ख़ुद को दग़ा देते रहे<br /><br />साथ उसके रंग, ख़ुश्बू, सुर्ख़ मुस्कानें गईं<br />हर खुशी को हम मगर, उसका पता देते रहे<br /><br />चल न पाएगा वो तन्हा, ज़िंदगी की धूप में<br />उस को मुझसा, कोई मिल जाए, दुआ देते रहे<br /><br />मेरे चुप होते ही, किस्सा छेड़ देते थे नया<br />इस तरह वो गुफ़्तगू को, सिलसिला देते रहे<br /><br />पाँव में जंज़ीर थी, रस्मों-रिवाज़ों की मगर<br />ख़्वाब ‘श्रद्धा’ उम्र-भर, फिर भी सदा देते रहे <br /> <br /><br />2122, 2122, 2122, 212श्रद्धा जैनhttp://www.blogger.com/profile/08270461634249850554noreply@blogger.com57tag:blogger.com,1999:blog-7295072338752071739.post-42947074753863706042009-10-11T01:30:00.001+08:002009-10-11T01:32:06.545+08:00फिर किसी से दिल लगाया जाएगाअब नया दीपक जलाया जाएगा <br />फिर किसी से दिल लगाया जाएगा <br /><br />चाँद गर साथी न मेरा बन सके<br />साथ सूरज का निभाया जाएगा <br /><br />रस्म-ए-रुखसत को निभाने के लिए <br />फूल आँखों का चढ़ाया जाएगा <br /><br />कर भला कितना भी दुनिया में मगर <br />मरने पे ही बुत बनाया जाएगा <br /><br />आईना सूरत बदलने जब लगे <br />ख़ुद को फिर कैसे बचाया जाएगा <br /><br />मेरी अलबम कुछ करीने से लगे <br />उनको पहलू में बिठाया जाएगाश्रद्धा जैनhttp://www.blogger.com/profile/08270461634249850554noreply@blogger.com39tag:blogger.com,1999:blog-7295072338752071739.post-79942084674704919282009-09-10T22:51:00.002+08:002011-06-19T23:49:29.170+08:00हमदर्द मगर कोई बनाया करो ‘श्रद्धा’सबको न गले ऐसे लगाया करो 'श्रद्धा'<br />हमदर्द करीब अपने बिठाया करो 'श्रद्धा'<br /><br />बैठो कभी जब अक्स तुम्हारा हो मुकाबिल<br />आँखें न कभी खुद से चुराया करो 'श्रद्धा'<br /><br />जाओ किसी मेले में, कभी बाग़ में टहलो<br />हंस-हंस के भरम ग़म का मिटाया करो 'श्रद्धा'<br /><br />बन्दूक तमंचे ही दिखाते हो तुम अक्सर<br />बच्चों को परिंदे भी दिखाया करो 'श्रद्धा'<br /><br />तुम दर्द की बरसात में रोजाना नहाओ<br />सूखे में भी मल-मल के नहाया करो 'श्रद्धा'<br /><br />आते ही, चले जाने की उलझन को लपेटे<br />आते हो, तो इस तरह न आया करो 'श्रद्धा'<br /><br />रिश्तों को तिजारत की तराजू से न तोलो<br />कुछ त्याग-समर्पण भी उठाया करो 'श्रद्धा'श्रद्धा जैनhttp://www.blogger.com/profile/08270461634249850554noreply@blogger.com76tag:blogger.com,1999:blog-7295072338752071739.post-79951922160442073432009-08-18T21:16:00.004+08:002009-08-18T23:39:52.865+08:00मुझ सा ही दीवाना लगता है आईनामुझ सा ही दीवाना लगता है आईना <br />पल में रोता, पल में हंसता है आईना<br /><br />शायद कोई उम्मीद जगे अब सीने में<br />दरवाज़े को शब भर तकता है आईना <br /> <br />दिलवर हैं आ बैठे पल भर को पास मेरे<br />इक दुल्हन जैसा अब सजता है आईना <br /> <br />गैरों के घर रोशन करने की है आदत <br />चुपचाप इसी धुन में जलता है आईना<br /><br />राजा और प्यादा में अंतर करता है जग<br />हर इक को इक कद में रखता है आईना <br /><br />आगाज़ ग़ज़ल का कर ही दो अब “श्रद्धा” तुम<br />उलझा-उलझा मुझको दिखता है आईनाश्रद्धा जैनhttp://www.blogger.com/profile/08270461634249850554noreply@blogger.com58tag:blogger.com,1999:blog-7295072338752071739.post-27021271985643191662009-07-30T23:02:00.003+08:002009-08-06T19:40:20.344+08:00रब अता करेआदरणीय गुरु प्राण शर्मा जी की सलाहियतों के बगैर ये ग़ज़ल पूरी होना संभव नहीं था <br />उनके इस स्नेह और आशीर्वाद के लिए मैं जीवन भर अभारी रहूंगी <br /><br />हो एक ऐसा शख्स जो, मोहब्बत-ओ-वफ़ा करे<br />उठाए हाथ जब भी वो, मेरे लिए दुआ करे<br /><br /><br />अकेले बैठूं जो कभी मैं, खुद को सोचती हुई<br />तो आँखें मूंद के मेरी, वो पीछे से हंसा करे<br /><br /><br />मुझे बताए ग़लतियाँ भी, रास्ता दिखाए फिर<br />वो देखे बन के आइना, हरेक पल खुदा करे<br /><br /><br />हूँ जो खफा मनाए, करके भोली सी शरारतें <br />जो खिलखिला के हंस पडूँ, तो एकटक तका करे<br /><br /><br />हो पूरे ख्वाब कब, नहीं ये “श्रद्धा” जानती मगर<br />कज़ा से पहले चार दिन, खुशी के रब अता करे<br /><br />Beh'r = 1212 x 4श्रद्धा जैनhttp://www.blogger.com/profile/08270461634249850554noreply@blogger.com53tag:blogger.com,1999:blog-7295072338752071739.post-53063338455060507812009-07-13T19:45:00.002+08:002009-07-13T19:52:27.348+08:00मिज़ाज फूलों काजिस्म सन्दल, मिज़ाज फूलों का <br />रात देखा है, ताज फूलों का<br /><br />उसकी खुश्बू , उसी की यादें हैं <br />मेरे घर में है, राज फूलों का<br /><br />हुस्न के, नाज़ भी उठाता है <br />इश्क़ को, इहतियाज फूलों का<br /><br />इहतियाज = Need<br /><br />नफ़रतों को, मिटा हैं सकते गर<br />आग को दें, इलाज फूलों का <br /><br />थक गये राग-ए-गम को गा-गा कर<br />साज़ छेड़ा है, आज फूलों का <br /><br />हो न हिंदू, न हो कोई मुस्लिम <br />बस बने इक, समाज फूलों का<br /><br />लाई “श्रद्धा” भी मोगरे की लड़ी<br />लौट आया, रिवाज फूलों का<br /><br /><br /><br />ये एक शेर मेरे ज़हन में आया और जाने क्यूँ मुझे बहुत अच्छा लगा <br />ग़ज़ल में नहीं जोड़ सकी क्यूंकी काफिया दोष था, मगर आप सबसे बाँट रहीं हूँ<br /><br /><br />प्यार-ओ-ख्वाब इक जगह रखना<br />नाम देना, दराज़ फूलों काश्रद्धा जैनhttp://www.blogger.com/profile/08270461634249850554noreply@blogger.com52