Thursday, November 25, 2010

तिश्नगी थोड़ी बढ़ाकर देखना

तिश्नगी थोड़ी बढ़ाकर देखना
सूख जाएगा समुन्दर देखना

अपनी आदत, अपने अन्दर देखना
देखना खुद को निरंतर देखना

हर बुलंदी पर है तन्हाई बहुत
सख्त मुश्किल है सिकंदर देखना

शाख से टूटा हुआ पत्ता हूँ मैं
देखना मेरा मुक़द्दर देखना

खून जिनका धर्म और ईमान है
उनके छज्जे पर कबूतर देखना

झूठ-सच का फैसला लेना हो जब
चीखता है कौन अन्दर देखना

मेरा और साहिल का रिश्ता है अजब
दोनों के रस्ते में पत्थर, देख ना!

52 comments:

नया सवेरा November 26, 2010 at 12:24 AM  

... behatreen gajal !!!

इस्मत ज़ैदी November 26, 2010 at 1:33 AM  

झूठ-सच का फैसला लेना हो जब
चीखता है कौन अन्दर देखना

बहुत ख़ूब!
अच्छी ग़ज़ल !

उस्ताद जी November 26, 2010 at 2:12 AM  

5/10

न जाने क्यों ग़ज़ल सही होते हुए भी दिल में ठहर नहीं रही लेकिन यह शेर बार-बार अपनी तरफ खींच रहा है :
"झूठ-सच का फैसला लेना हो जब
चीखता है कौन अन्दर देखना"

संत शर्मा November 26, 2010 at 2:14 AM  

खून जिनका धर्म और ईमान है
उनके छज्जे पर कबूतर देखना

झूठ-सच का फैसला लेना हो जब
चीखता है कौन अन्दर देखना |

waah waah.

राजेश उत्‍साही November 26, 2010 at 2:22 AM  

हम तो आपके इस शेर पर फिदा हैं-

अपनी आदत, अपने अन्दर देखना
देखना खुद को निरंतर देखना

उस्ताद बाल गोविन्द November 26, 2010 at 2:53 AM  

श्रद्धा जी ,
९ / १०
अदभुत गज़ल है इसे कम नंबर देना निरी मूर्खता है !






क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी वास्तव में अत्यधिक दुबले पतले मरियल से दिखते हैं ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी अपने असली ब्लॉग में बिजनेसमैन बने हुए हैं ?
क्या आप जानते है कि उस्ताद जी के सच्चे नाम से लाईट का क्या सम्बन्ध है ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी के असली ब्लॉग में उनका साइड पोज वाला फोटो लगा है ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी कानों के ऊपर बालों वाला फोटो बहुत पसंद करते हैं ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी मोहल्ला होशियारपुर ग्राम लखनऊ में रहते हैं ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी बोध कथाओं को हास्य कथा मानते हैं ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी अपने फर्जी ब्लॉग में माडरेशन लगाये हुए हैं ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी का गोविन्द से क्या सम्बन्ध है ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी पहेलियाँ किस नाम से बूझते हैं ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी फर्जी आई डी क्यों बनाये हुए हैं ?

‘सज्जन’ धर्मेन्द्र November 26, 2010 at 4:24 AM  

ग़ज़ल तो बहुत अच्छी है, मगर मुझे कुछ बासी बासी सा लग रहा है। आपकी ग़ज़लों को पढ़कर अब ऐसा लगता है जैसे एक ही बात को बार बार घुमा फिराकर कह रही हों। ताज़गी का अभाव सा लगने लगा है अब आपकी ग़ज़लों में।

Patali-The-Village November 26, 2010 at 10:14 AM  

झूठ-सच का फैसला लेना हो जब
चीखता है कौन अन्दर देखना |
अच्छी ग़ज़ल !

Shah Nawaz November 26, 2010 at 12:10 PM  

तिश्नगी थोड़ी बढ़ाकर देखना
सूख जाएगा समुन्दर देखना


वाह! बेहद खूबसूरत भाव!


झूठ-सच का फैसला लेना हो जब
चीखता है कौन अन्दर देखना



प्रेमरस.कॉम

सदा November 26, 2010 at 2:34 PM  

बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" November 26, 2010 at 3:21 PM  

अपनी आदत, अपने अन्दर देखना
देखना खुद को निरंतर देखना

बहुत ही सुन्दर ! बेहतरीन !

Dr. Amar Jyoti November 26, 2010 at 5:17 PM  

अपनी आदत अपने अन्दर देखना देखना ख़ुद को निरन्तर देखना बहुत ख़ूब!

दिगम्बर नासवा November 26, 2010 at 5:35 PM  

शाख से टूटा हुआ पत्ता हूँ मैं
देखना मेरा मुक़द्दर देखना

खून जिनका धर्म और ईमान है
उनके छज्जे पर कबूतर देखना
बहुत कमाल की ग़ज़ल है ... हर शेर दिल में उतरता हुवा ... बहुत लजवाब ... सुभान अल्ला ....

shyam gupta November 26, 2010 at 8:34 PM  

---शानदार गज़ल....

शारदा अरोरा November 26, 2010 at 10:16 PM  

badhiya ,har kisi ko koee n koee sher to click kiya hi hai ..yani achchha laga hai .

पारुल "पुखराज" November 26, 2010 at 10:30 PM  

अपनी आदत, अपने अन्दर देखना
देखना खुद को निरंतर देखना

badhiya baat kahi

Parul kanani November 27, 2010 at 12:09 AM  

झूठ-सच का फैसला लेना हो जब
चीखता है कौन अन्दर देखना

मेरा और साहिल का रिश्ता है अजब
दोनों के रस्ते में पत्थर, देख ना!

kamaal hai!

डॉ. मोनिका शर्मा November 27, 2010 at 2:18 AM  

अपनी आदत, अपने अन्दर देखना
देखना खुद को निरंतर देखना
बेहद प्रभावी.... हकीकत परक पंक्तियाँ

Rajeev Bharol November 27, 2010 at 12:25 PM  

बहुत ही बढ़िया गज़ल..
मतला बेहद अच्छा है."कबूतर" और "साहिल" वाले शेर खास तौर पर पसंद आये..

निर्मला कपिला November 27, 2010 at 12:30 PM  

खून जिनका धर्म और ईमान है
उनके छज्जे पर कबूतर देखना

मेरा और साहिल का रिश्ता है अजब
दोनों के रस्ते में पत्थर, देख ना!श्रद्धा जी लाजवाब गज़ल और ये शेर तो कमाल हैं। आपकी गज़ल पढने को बेताब रहती हूँ मगर मेरी ब्लाग लिस्ट डिलीट हो गयी थी दोबारा बनाई तो शायद आपका ब्लाग रह गया। आज ही इसे ब्लागलिस्ट मे डालती हूँ।बधाई इस गज़ल के लिये।

बाल भवन जबलपुर November 27, 2010 at 2:38 PM  

अहा
क्या बात है
नेटकास्टिंग:प्रयोग
लाईव-नेटकास्टिंग
Editorials

मुकेश कुमार सिन्हा November 27, 2010 at 4:14 PM  

मेरा और साहिल का रिश्ता है अजब
दोनों के रस्ते में पत्थर, देख ना!

sach me behatreen....waise bhi aapki likhi gajlo ka koi shumar nahi...:)

सर्वत एम० November 27, 2010 at 4:40 PM  

बहुत ढेर से, अच्छे-अच्छे अशआर से रची-बसी यह ग़ज़ल तबीयत बाग़-बाग़ कर गयी. लेखन पर आपकी पकड़ दिन-प्रतिदिन मजबूत होती जा रही है. आपकी लम्बी अनुपस्थितियाँ खल जाती हैं. लोगों के कमेंट्स को ध्यान से पढ़ें, विशेषतया आलोचनात्मक टिप्पणियाँ-

shahroz November 27, 2010 at 5:51 PM  

मेरा और साहिल का रिश्ता है अजब
दोनों के रस्ते में पत्थर, देख ना!

amar jeet November 27, 2010 at 7:56 PM  

खून जिनका धर्म और ईमान है
उनके छज्जे पर कबूतर देखना
शांति के प्रतिक कबूतर को आपने बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया !

सु-मन (Suman Kapoor) November 28, 2010 at 1:43 AM  

बेहतरीन अभिव्यक्ति...................

Manav Mehta 'मन' November 28, 2010 at 10:18 PM  

बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति.........

http://saaransh-ek-ant.blogspot.com

Manish Kumar November 29, 2010 at 9:48 PM  

अपनी आदत, अपने अन्दर देखना
देखना खुद को निरंतर देखना


अलग सा लगा ये शेर..

Pinaakpaani November 30, 2010 at 11:45 PM  

"अपनी आदत, अपने अन्दर देखना
देखना खुद को निरंतर देखना"
और
"मेरा और साहिल का रिश्ता है अजब
दोनों के रस्ते में पत्थर, देख ना!"
क्या बात है!अति सुन्दर !!!साबित हुआ,गागर में सागर समेटा जा सकता है.

Anupam Karn December 2, 2010 at 4:45 PM  

काफी उम्दा ग़ज़ल !

देर-ओ-हरम में कर आये बहुत अब सरकलम
अब तो केवल पशुओं की जिंदगी से सीखना !

http://anusamvedna.blogspot.com December 3, 2010 at 5:28 PM  

तिश्नगी थोड़ी बढ़ाकर देखना
सूख जाएगा समुन्दर देखना

बहुत सुंदर गजल....

Anonymous December 4, 2010 at 3:00 PM  

acchi ghazal hai :)

Anonymous December 4, 2010 at 3:09 PM  

झूठ-सच का फैसला लेना हो जब
चीखता है कौन अन्दर देखना

मेरा और साहिल का रिश्ता है अजब
दोनों के रस्ते में पत्थर, देख ना!


ye do sher bohot khoobsurat lage :)
good to read you..

Kunwar Kusumesh December 4, 2010 at 10:29 PM  

सभी शेर एक से बढ़कर एक. किसकी तारीफ करूं किसकी छोडूँ समझ में नहीं आ रहा है. वाह श्रद्धा जी वाह.आप बक़ायदे अरूज़ का ध्यान रखते हुए ग़ज़ल कहती है ,ये खास तौर पर अच्छा लगा.

योगेन्द्र मौदगिल December 5, 2010 at 2:11 PM  

फिर नयी उम्मीद है उम्मीद से
कह रहा है उसका आ कर देखना .........

केवल राम December 6, 2010 at 12:12 AM  

अपनी आदत, अपने अन्दर देखना
देखना खुद को निरंतर देखना
xx
बिलकुल सच ....लाजबाब गजल ...शुक्रिया

Ankit December 6, 2010 at 7:41 PM  

झूठ-सच का फैसला लेना हो जब
चीखता है कौन अन्दर देखना

वाह-वा, बहुत उम्दा शेर है.

Akshitaa (Pakhi) December 9, 2010 at 7:50 PM  

आप तो बहुत सुन्दर लिखती हैं....बधाई.

'पाखी की दुनिया' में भी आपका स्वागत है.

seema gupta December 11, 2010 at 11:56 AM  

behd hi sundar abhivykti

regards

adbiichaupaal December 12, 2010 at 11:23 AM  

aap gazlon ke contents men thoda vistaar karen. yh thiik hai ki aap ki gazlon men sab kuchh maujood hai lekin wartmaan ko nazar men rakhte huye sher aapki pratibha ko nikharenge, aapko shohrat bhi denge.

निर्मला कपिला December 14, 2010 at 2:53 PM  

खून जिनका धर्म और ईमान है
उनके छज्जे पर कबूतर देखना

झूठ-सच का फैसला लेना हो जब
चीखता है कौन अन्दर देखना
हर एक शेर लाजवाब। बधाई आपको।

निर्झर'नीर December 15, 2010 at 7:31 PM  

हर बुलंदी पर है तन्हाई बहुत
सख्त मुश्किल है सिकंदर देखना

exceelent sher

daanish December 16, 2010 at 8:34 PM  

अपनी आदत, अपने अन्दर देखना
देखना, खुद को निरंतर देखना


आत्म-विश्लेषण के महत्त्व को दर्शाता हुआ
बहुत ही उम्दा शेर कहा है आपने ...वाह !
पूरी ग़ज़ल
मन को लुभाने में कामयाब बन पडी है

ManPreet Kaur December 18, 2010 at 4:06 PM  

sabse achi gazal lagi aapki mujhe...

mere blog par bhi sawagat hai..
Lyrics Mantra
thankyou

ज्ञानचंद मर्मज्ञ December 20, 2010 at 12:34 PM  

श्रद्धा जी ,
ग़ज़ल के मतले ने ही ग़ज़ल के तेवर दिखा दिया,
तिश्नगी थोड़ी बढ़ाकर देखना
सूख जाएगा समुन्दर देखना
वाह, हर एक शेर लाजवाब हैं ,पूरी मुक्कमल ग़ज़ल है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

ManPreet Kaur December 24, 2010 at 7:22 PM  

Merry Christmas
hope this christmas will bring happiness for you and your family.
Lyrics Mantra

Akhil January 19, 2011 at 4:52 PM  

तिश्नगी थोड़ी बढ़ाकर देखना
सूख जाएगा समुन्दर देखना

waah..ek ek sher..misra..behtreen hua hai...kamaal ki gazal hui hai..bahut saari daad kabool karen..

kshetrapal Sharma April 10, 2011 at 8:54 AM  

मैंने पूरा ब्लॉग देखा है . बहुत अच्छा लगा है. .....भीगी नाम क्यों दिया की जो देखे उसकी भी आँख नाम हो जाए ......क्षेत्रपाल शर्मा , शान्तिपुरम, सासनी गेट , अलीगड २०२००१

Anonymous May 29, 2011 at 3:14 PM  

श्रद्धा जी आपकी गहरी सोच को सामने लती हुई एक और ग़ज़ल| इस शेर ने तो झकझोर दिया

झूठ-सच का फैसला लेना हो जब
चीखता है कौन अन्दर देखना

-- Mayank

manu June 13, 2011 at 2:10 PM  

तिश्नगी थोड़ी बढ़ाकर देखना
सूख जाएगा समुन्दर देखना

बहुत तरीके से कहा गया मतला...

खून जिनका धर्म और ईमान है
उनके छज्जे पर कबूतर देखना

कबूतर जैसे मासूम को कातिल के छज्जे पर दिखाने का अंदाज़ बहुत पसंद आया श्रद्धा जी..

मेरा और साहिल का रिश्ता है अजब
दोनों के रस्ते में पत्थर, देख ना!

अपना सा शे'र...
और इसमें देखना को देख ना देखकर बहुत अच्छा लग रहा है...

sachin saxena May 25, 2016 at 9:39 PM  

उसी तरह है अभी तिश्नगी इन आँखों में !

में इनकी प्यास बुझालूं तो फिर चले जाना !!


कसम खुदा की में पीकर बहक नही सकता !

मगर जो जाम उछालूँ तो फिर चले जाना !!


ये गुफ्तगू थी सितारों की तुम ना आओगे !

में इनकी शम्मे बुझादू तो फिर चले जाना !!

sachin saxena May 25, 2016 at 9:42 PM  

उसी तरह है अभी तिश्नगी इन आँखों में !

में इनकी प्यास बुझालूं तो फिर चले जाना !!


कसम खुदा की में पीकर बहक नही सकता !

मगर जो जाम उछालूँ तो फिर चले जाना !!


ये गुफ्तगू थी सितारों की तुम ना आओगे !

में इनकी शम्मे बुझादू तो फिर चले जाना !!

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